Saturday 22 February 2020

किसानों का स्वाभिमान जगाने वाले मसीहा स्वामी सहजानन्द सरस्वती की याद में ....

पंचायती राज की उपेक्षा और विकास के दावे
रविकांत सिंह 

आजाद भारत में पंचायती राज की स्थापना एक क्रांति के रुप में जाना जाता है। गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बनी पंचायती राज संस्थाओं का उदय होना भारत के चहुमुखी विकास के लिए अतिमहत्वपूर्ण था। भारत में अलग-अलग सम्प्रदाय, संस्कृति के लोग निवास करते है। आजादी  के समय ग्रामीण आबादी लगभग 85 प्रतिशत थी। शहरों से दूर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन गुजारने वाली यह आबादी हजारों साल से पीड़ित थी।

 देश के शासकों ने इनका भरपुर शोषण किया। सामन्तों और जमींदारों ने तो इन्हें प्रगति के लिए पैर जमाने तक का अवसर नहीं दिया। रोटी और मानव संसाधन का इंतजाम करने वाली इस ग्रामीण आबादी को तथाकथित सभ्य समाज ने जातियों में बांटकर मानव विकास को बहुत गहरी हानि पहुंचाई। यही कारण था कि विदेशी शासकों ने बार-बार आक्रमण कर इस देश को छिन्न-भिन्न  कर डाला। इस देश में राजे- रजवाड़ों के खजाने भरे रहते थे और किसान भूखा-नंगा, रात-दिन इनकी गुलामी करता था। देश की ऐसी दुर्गति और अव्यवस्था को जानने समझने वालों ने यह ठान लिया था कि विदेशी शासकों से मुक्त होना है तो हमें किसानों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। तभी आजादी को वास्तविक माना जा सकता है।

इस वास्तविक आजादी की पहल करने वाले नेताओं में महात्मा गॉधी, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, जवाहरलाल नेहरु व भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारी नाम शामिल हैं। भगत सिंह इस अव्यवस्था के विरोध में स्वयं को नास्तिक मानते थे। उन्हें जातिगत धार्मिकतावादी व्यवस्था स्वीकार नहीं थी। उनका मत था कि आजादी के बाद जिसमें किसानों की राय शामिल नहीं है ऐसे भूमि अधिग्रहण जैसे काले कानून को खत्म किया जायेगा। 
Phoenix farm South Africa

महात्मा गॉंधी ग्राम स्वराज की पहल आजादी से पहले ही कर चुके थे। उन्होंने 1904 में साउथ अफ्रिका के डरबन शहर से 13 मील दूर ‘फिनिक्स फार्म’ की स्थापना की थी। पहले 20 एकड़ जमीन पर फार्म शुरु हुआ और फिर 80 एकड़ जमीन खरीदी गयी। वहां रहने वाले कई भारतीयों ने सहयोग किया। 1910 में 1100 एकड़ में जोहानसबर्ग का टालस्टाय फार्म और फिर भारत में साबरमती: गुजरात, भितिहरवा : बिहार और सेवाग्राम: महाराष्ट्र  में सत्याग्रह कर रहे परिवार वालों को सामुदायिक जीवन अपनाने के लिए ऐसे आश्रमों की महात्मा गॉंधी ने स्थापना की। स्वराज के लिए जरुरी यह एक महत्वपूर्ण कदम था। महात्मा गॉधी का मत था कि आत्मनिर्भरता ही गुलामी से मुक्त कर सकता है। सूत कातने से लेकर स्वयं टायलेट साफ करने तक के कामों से लोगों में स्वावलंबन के जरिये आत्मनिर्भरता का महत्व बताते रहे। बिना लड़े ही लड़ाई जीत लेने की अद्भूत कला का ज्ञान देने वाले महात्मा गॉधी के मार्ग को छोड़ने व इन संस्थाओं की उपेक्षा का ही परिणाम है कि आज भी किसान भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारितंत्र पर निर्भर है।    

1960 के दशक में पंचायती राज संस्थान की शुरुआत की गयी। पंचायती राज को तीन प्रमुख कार्य सौंपे गये जो विकास संबंधी प्रशासनिक और राजनैतिक थे। मेहता सिफारिशों में विकास को महत्व दिया परन्तु तीनों कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना था। लेकिन राजस्व का नहीं मिलना दिये गये कार्यो को पूरा करने में बाधक था। जिला स्तर के अधिकारियों पर अत्यधिक दबाव के चलते उनका पंचायती राज संस्थानों के प्रति रवैया विरोधात्मक हो गया। धीरे-धीरे विधायकों और अन्य राजनीतिज्ञ पंचायतीराज संस्थानों के नीतिगत महत्व को समझने लगे। उन्होंने इसे प्रतियोगिता समझते हुए पंचायती राज के प्रतिनिधियों को अपना राजनैतिक विरोधी बनाना शुरु कर दिये। राजनितिज्ञों ने इन संस्थानों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया। स्थानीय स्तर के अधिकारी वर्ग के उदासीन रवैये ने विकास और प्रशासन कार्यों में पंचायती राज संस्थानों की भूमिका को कम कर दिया। जिसके फलस्वरुप इन संस्थानों का पतन होने लगा और संस्थाएं अपने उद्देश्यों से भटक गयीं। इसके विपरित विकास के हवाई किले बनाने वाली राजनैतिक भूमिका अधिक मुखर हो गयी। 


रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

पंचायती राज की उपेक्षा और विकास के दावे

किसानों का स्वाभिमान जगाने वाले मसीहा स्वामी सहजानन्द सरस्वती की याद में ....


स्वामी सहजानन्द सरस्वती
जब देश अधार्मिक राजनेताओं के झूठ तंत्र से जाति, धर्म में बंटकर बेकार की बहसों के बीच उलझा है। तब इन अधार्मिक बहसों और राजनेताओं के बीच इन महापुरुषों के जन्मदिन पर उनके स्वर्णीम कार्यों को याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है। आमतौर पर लोग व्यक्ति को महान बताने की प्रतियोगिता में उनके गुणों और कार्यो का अनुसरण करना भूल ही जाते हैं। 19 फरवरी को बलवंत राय मेहता और 22 फरवरी को स्वामी सहजानन्द सरस्वती का जन्म दिवस मनाया जाता है। स्वामी सहजानन्द सरस्वती किसानों के मसीहा कहे जाते हैं और दिवंगत बलवंत राय मेहता ‘पंचायती राज’ के जनक। भूखमरी, बेरोजगारी, अज्ञानता, असमानता, गंदगी व संसाधनों के अभाव में अव्यवस्थित प्रबंधन के साथ देश को आजादी मिली थी। ‘पंचायती राज’ जैसे क्रान्तिकारी व्यवस्था का निर्माण कर इस अव्यवस्थित प्रबंधन को व्यवस्थित करने में बलवंत राय मेहता का अमूल्य योगदान है। 

आजादी के बाद गॉवों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल शुरु हुयी। क्रान्तिकारियों के सपनों को पूरा करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने बलवंत राय मेहता को चुना। बलवंतराय मेहता एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी और त्याग की भावना रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री थे। गॉंंव आत्मनिर्भर बने, लोगों का अपना शासन हो इस विचार के साथ बलवंत राय मेहता लोगों के लिए संसद से सड़क तक लड़े।   

अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने मनाई पंचायती राज के जनक बलवंत राय मेहता की जयन्ती 

बलवंत राय मेहता का जन्म 19 फरवरी  सन् 1900 को गुजरात के भावनगर में हुआ था। उन्होंने बीए तक पढ़ाई की, लेकिन विदेशी सरकार से डिग्री लेना मुनासिब न समझा और इनकार कर दिया। उनके अध्ययन, कड़ी मेहनत और सौम्य स्वभाव के लिए अध्यापक उनकी प्रशंसा करते थे। वह 1920 में महात्मा गॉंधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने भावनगर में स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 1921 में प्रजा मंडल की स्थापना की। उन्होंने 1930 से 1932 तक सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। 

गांधीजी के सुझाव पर, उन्होंने कांग्रेस कार्य समिति की सदस्यता ग्रहण की। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने, तो बलवंत राय मेहता पं. नेहरु के महासचिव चुने गए। वहां उन्होंने जमीनी राजनीति में कदम रखा। महात्मा गांधी और लाला लाजपत राय की पसंद के संपर्क में आकर, वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। इस संघर्ष के दौरान, ब्रिटिश सरकार ने कई बार उन्हें कैद किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गई। उन्होंने सात साल का मूल्यवान जीवन ब्रिटिश साम्राज्य की जेल में बिताया। वह बारडोली सत्याग्रह के सैनिक थे, स्व-शासन के लिए रियासतों के लोगों की लड़ाई में उनका सबसे बड़ा योगदान था। उनका नाम लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के साथ जुड़ा हुआ है। देश में पंचायती राज के नाम से प्रसिद्ध क्रांतिकारी कार्यक्रम बलवंतराय मेहता समिति की सिफारिशों पर ही आधारित है।

15 जनवरी, 1963 को बलवंत राय मेहता गुजरात के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने भारतीय विद्या भवन की भी शुरूआत की। भारत के बच्चों को विश्व स्तर की शिक्षा और भारतीय मूल्यों को देने के लिए संस्था शुरू की गई थी। वह देश के लिए जिए और मरे, एक समर्पित जीवन, व्यापक रूप से 'पंचायती राज के वास्तुकार' के रूप में जाना जाता है।

सन् 1965 में भारत और पाकिस्तान युद्ध छिड़ चुका था। बलवंत राय मेहता अपनी पत्नी तीन निजी स्टाफ एक पत्रकार और दो चालक दल के सदस्यों के साथ विमान से पूणे के लिए रवाना हो रहे थे। पाकिस्तानी सेना के फ्लाइंग अधिकारी हुसैन ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से आदेश प्राप्त करने के बाद इस असैनिक विमान पर गोलीबारी की। मुख्यमंत्री बलवंराय मेहता और उनकी पत्नी समेत सभी विमान सवार मारे गये। 

दुष्ट शक्तियों की चुनौतियाँ 

महात्मा गॉधी, भगत सिंह और स्वामी सहजानन्द सरस्वती की क्रान्ति को आगे बढ़ाते हुए लोक नायक जय प्रकाश नारायण और बलवंत राय मेहता ने सन् 1958 में ‘अखिल भारतीय पंचायत परिषद’ की स्थापना की थी। कामचोर, हरामखोर चरित्रहीन दुष्ट शक्तियों की चुनौतियों का सामना कर रही पंचायत परिषद आज बलवंत राय मेहता की 121 वीं जयन्ती मना रही है।  गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाने की ओर पंचायती राज को अब और कठिनाइयों का सामना करना है।

दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में बलवंत राय मेहता की जयन्ती पर अपना अनुभव साझा करते हुए अखिल भारतीय पंचायत परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाल्मिकी प्रसाद सिंह ने कहा कि कुछ दशकों से भ्रष्ट व्यवस्था पंचायती राज को खोखला करने में जुटी हैं। जिन उद्देश्यों के लिए पंचायती राज की स्थापना की गयी है उसकी लगातार उपेक्षा की जा रही है। जो अपेक्षा पंचायती राज संस्थाओं से की जाती है उसे भावी पीढ़ी गम्भीरता से नहीं ले रही है। केवल सरकार को दोष देने से पंचायती राज के उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सकता है। बल्कि हम सभी को अपने स्वाभिमान को जगाना होगा और एकजूट होकर ग्रामीण विकास के लिए संकल्प लेना होगा।  

पूर्व राज्य सभा सांसद ब्रहमदेवानंद पासवान ने कहा कि अखिल भारतीय पंचायत परिषद के पास किसानों की हर समस्या का समाधान है। लेकिन किसान अपनी ही समस्याओं को गम्भीरता से न लेकर गंदी राजनीति का शिकार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि नीचे तबके के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ानी होगी तभी आर्थिक मंदी के असर से देश को निजात मिलेगा। जाति-पांति  के भेदभाव  को भूलाकर प्रेम को स्थान देना होगा जिससे देश संगठित होकर बुरी ताकतों से लड़ सके। गॉव के लिए लाभकारी योजनाओं को पहुंचाने के लिए प्रखंड स्तर पर कार्य करना होगा। हिन्दुस्तान स्काउट एंड गाईड के आयुक्त विनोद विधुड़ी ने घोषणा करते हुए कहा कि  अखिल भारतीय पंचायत परिषद के साथ मिलकर हिन्दुस्तान स्काउट एंड गाईड विलेज वालिंटियर फोर्स बनायेगी। युवाओं का चरित्र निर्माण कर अनुशासित सेवा भाव से गॉवों को सुरक्षित किया जायेगा।

अखिल भारतीय पंचायत परिषद के महासचिव रविकांत सिंह ने कहा कि पंचायती राज संस्थानों का मूल सिद्धांत विकास कार्यों में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करना है। पंचायती राज के जनक बलवंत राय मेहता ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि प्रजातांत्रिक विकेन्द्रिकृत व्यवस्था में सरकार कुछ कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर लेती है और वह सब किसी अन्य प्रशासन को सौंप देती है। लेकिन प्रशासन सरकार के नियंत्रण में है और इसलिए सरकार की अन्तिम जिम्मेदारी खत्म नहीं होती है। पंचायतीराज एक प्रजातांत्रिक विकेन्द्रिकृत व्यवस्था है। 
लेकिन अधिकतर ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य अज्ञानतावश अपनी शक्तियों को भूलकर अधिकारितंत्र और राजनेताओं की भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार हो जाते है। उन्होंने कहा कि जिस अव्यवस्था को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी पंचायती राज के प्रतिनिधियों को दी जाती है। उसे पूरा करने में पंचायती राज असफल हुआ है। जिसका परिणाम है कि किसानों की समस्याएं बढ़ रही हैं। गॉव के लोगों की क्रय शक्ति घट रही है। अधिकारितंत्र और सरकारों ने अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं किया है। यदि गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाना है तो पंचायती राज के प्रतिनिधियों को अधिकारितंत्र पर निर्भरता खत्म करनी होगी। किसानों को समझना होगा कि ये उनके प्रतियोगी हैं। पंचायत परिषद के पास गॉवों को आत्मनिर्भर बनाने की कई ऐसी योजनाएं है जिसके क्रियान्वयन के लिए अधिकारितंत्र पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं है। इस मौके पर पर्यावरणविद डा. के के रॉय , डा. एस के सिंह, प्रो. वीएस भदौरिया, विजय पांडेय, प्रियंवदा सिंह,  इंटक के अध्यक्ष  प्रदीप कुमार, साकेत मनी त्रिवेदी, मनोज कुमार सिंह बृजमोहन, रुद्रविक्रम सिंह, नीतू त्यागी आदि पंचायत परिषद् के पदाधिकारी शामिल थे।  


रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 




Featured post

द्रष्टा देगा मुक्ति

संपादकीय देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों...