राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने वाले इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना का विरोध भला, वो किस प्रकार कर पाते ? इस योजना पर कुछ नेताओं ने बोलने की कोशिश की लेकिन नैतिक बल के अभाव में उनकी सांसे टूट गयीं।
देश के किसान गरीबी से तंग आकर स्वहत्या कर रहे हैं। बिहार- झारखण्ड के आदिवासी दिल्ली जैसे महानगरों में अमीरों की गुलामी कर पेट पाल रहे हैं। छात्र-छात्रायें फीस वृद्धि के खिलाफ सरकार की लाठियां खा रहे हैं। बेरोजगार युवा नौकरी की तलाश में ठगे जा रहे हैं। असंवैधानिक कानून एनआरसी और कैब के विरोध में आम नागरिक सड़कों पर खून बहा रहे है। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र के अधिकतर आदिवासियों की प्रति व्यक्ति आय जहाँ औसतन 20 रुपये प्रतिदिन है। देश का आम नागरिक जिस आर्थिक मंदी से जूझ रहा है उसी आर्थिक मंदी के दौरान भाजपा की दुगनी और कांग्रेस पार्टी की चौगुनी आय बढ़ जाती है।
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नोटबंदी के बाद साल 2017-18 में भाजपा की कुल आय 1,027 करोड़ रुपये थी। 2018-19 में भाजपा की आय बढ़कर 2,410 करोड़ हो गयी। यानि भाजपा की आय में 134 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी। कांग्रेस पार्टी जो सत्ता में नहीं है उसकी 2018-19 की कमाई में चार गुना बढ़ोत्तरी हो गयी। 2017-18 में कांग्रेस की आय 199 करोड़ रुपये थी। जो 2018-19 में बढ़कर 918 करोड़ हो गयी। यानि कांग्रेस की आय में 361 प्रतिशत की वृद्धि हुयी।
इलेक्टोरल बांड यानि पाप की कमाई को कानूनी मान्यता
इलेक्टोरल बांड अर्थात् हिन्दी में ‘चुनावी बंधन’ पत्र के जरिये पाप की कमाई को राजनीतिक दल खुलेआम चंदा के रुप में लेते है। चुनावी चंदा की व्यवस्था में सुधार के नाम पर फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा इलेक्टोरल बांड योजना मोदी सरकार द्वारा लाया गया था। जिसे तत्कालीन एनडीए की मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। देश की जहां अधिकतर योजनाएं कागजों पर सफल हो रही हैं वहीं राजनीतिक दलों के लिए ‘चुनावी बंधन’ पत्र नरेन्द्र मोदी सरकार की सबसे व्यवहारिक, निर्विवाद और एक सफल योजना साबित हो रही है। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भूनाकर रकम हासिल करते हैं। महज 1 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टियां भी इस योजना का लाभ उठा सकती हैं यदि उनका साठगांठ देशी-विदेशी पूंजीपतियों से हो तो। राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने वाले इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना का विरोध भला, वो किस प्रकार कर पाते ? इस योजना पर कुछ नेता बोलने की कोशिश किये लेकिन नैतिक बल के अभाव में उनकी सांसे टूट गयी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है ' ।
पिछले साल से अब तक देश के 16 राज्यों में भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भूनाने के लिए अधिकृत किया गया। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 12 चरणों में कुल 6,128 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं। इसमें से सबसे ज्यादा 1879 करोड़ रुपये के बॉन्ड मुंबई में बेचे गए हैं। दिल्ली में सबसे ज्यादा 4,917 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए गए हैं। रिटायर्ड कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दाखिल आरटीआई आवेदन के जवाब में यह जानकारी मिली है। इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा 30.67 फीसदी हिस्सा मुंबई में बेचा गया। इनका सबसे ज्यादा 80.50 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया।
इसी साफ सुथरी योजना इलेक्ट्रोरल बांड के जरिये सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिला। चुनाव आयोग ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा 210 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। भाजपा की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में उसकी 2,410 करोड़ रुपये की आमदनी में से 1,450 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए आए। ये भाजपा की कुल आय का लगभग 60 प्रतिशत है। जबकि कांग्रेस को 2017-18 की पाप की कमाई हासिल करने वाली प्रतियोगिता में मात्र पांच करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त हुए थे। साल 2018-19 में चुनावी बॉन्ड के जरिए कांग्रेस को 383 करोड़ रुपये की आय हुई जो कुल आय की लगभग 48 प्रतिशत है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एडीआर की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण का भी यही तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से कॉरपोरेट और उद्योग जगत को फायदा हो रहा है और ऐसे बॉन्ड से मिले चंदे का 95 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है। बाकी सारे दल मिलाकर भी इस बॉन्ड से सिर्फ 11 करोड़ रुपये का चंदा हासिल कर पाए थे। चुनाव आयोग ने इस मामले में चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी।
द्रष्टा मानता है कि जो सत्ता में रहता है वो दिन का द्योतक है और जो विपक्षी पार्टी सत्ता से बेदखल होती है वह रात की द्योतक है। देश के नागरिकों को मनन, मंथन, चिंतन करने की आवश्यकता है कि क्यों सत्ता में रहने वाली पार्टी बीजेपी की दिन दुगनी आमदनी बढ़ती है। और सत्ता से बेदखल कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी बढ़ती है? पार्टीयों की खेमेबंदी में बंटकर रोटी, कपड़ा और मकान की प्राथमिकता को भूल जाना आप पर कितना भारी पड़ा है इस खबर से सबक सीख सकते हैं। सोशल मिडिया पर पार्टियों की भक्ति और ‘आई सपोर्ट.. फलाने’ लिखने वाले विचार करें कि पिछले चार सालों में उन्होंने कितना विकास लक्ष्य प्राप्त किया? बेरोजगार युवक पता करें कि उनके अगल-बगल रहने वाले कितने दोस्तों को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी मिली है। परिवार का मुखिया यह तय करें कि उनके परिवार की आमदनी दुगनी हुयी या चौगुनी बढ़ी।
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