Sunday 29 October 2017

कानून को आसान भाषा में जानो

क्षमा करें , लिखवाट के शब्द  त्रुटिपूर्ण है

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की एक गाइड 

क्या आप अपराध पीड़ित हैं? 

क्या आपके विरुद्ध किसी ने कोइ अपराध किया है?

अगर आप किसी अपराध के ग्रसित हैं, तो इसके बारे में अधिकारीयों को सूचित करना आपका अधिकार ही नहीं , दायित्व भी है  यह करने के लिए पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट [ प्र.सु.रि./FIR] प्रस्तुत की जा सकती है अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई जा सकती हैI



प्र.सु.रि.(FIR) के बारे में




1. क्या है FIR?

FIR पुलिस द्वारा तेयार किया हुआ एक दस्तावेज है जिसमे अपराध की सुचना वर्णित होती है I सामान्यत: पुलिस द्वारा अपराध संबंधी अनुसंधान प्रारंभ करने से पूर्व यह पहला कदम अनिवार्य है I

अगर कोई अपराध अभी तक अघटित है, परंतु आपको इसके बारे मैं जानकारी है अथवा सुचना है, तो आप पुलिस के पास जाकर यह सुचना दे सकते हैं I अगर यह एक संज्ञेय अपराध है, तो इसे रोकना पुलिस का कर्तव्य है एवं वह अनुरूप कारवाही करेंगे I

2. क्या पुलिस को हर FIR दर्ज करनी होती है?

आप पुलिस के पास किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में जा सकते हैंI अति-आवश्यक एवं गंभीर मामलों मैं पुलिस को FIR तुरंत दर्ज कर अनुसंधान प्रारंभ करना अनिवार्य है I इस प्रकार के अपराध ‘संज्ञेय अपराध’ कहलाते हैं, जैसे की हत्या, बलात्कार, डकेती, इत्यादि I कौनसे अपराध ‘संज्ञेय अपराध’‘ कहलाते हैं यह जाने के लिए यहाँ क्लिक करिए

अन्य, कम गंभीर अपराध जैसे की परगमन (adultery), मानहानि (defamation) इत्यादि में अनुसंधान शुरू करने से पूर्व पुलिस को मजिस्ट्रेट से उचित निर्देश प्राप्त करने होते हैं I इनहे ‘असंज्ञेय अपराध’ कहते हैं I अगर आप किसी असंज्ञेय अपराध के संदर्भ मैं पुलिस के पास जाते हैं, तो उन्हें फिर भी एक “असंज्ञेय अपराध’ रिपोर्ट” दर्ज कर आपको मजिस्ट्रेट के पास भेझ्ना होता है I

यदि मामले की प्रकृति अस्पष्ट है, तो यह पता लगाने के लिए पुलिस एक छोटी प्रारंभिक जाँच कर सकती है I अन्य सभी मामलों में पुलिस को ये अनुसंधान आरंभ करना होता है अथवा आपको मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है I

3. FIR कैसे दर्ज करूँ?

अगर एक अपराध हुआ है, आप भले ही पीड़ित पक्ष हों, अथवा इस अपराध के बारे मैं सुचना रखते हों, आप पुलिस स्टेशन जा कर FIR दर्ज (रजिस्टर) कर सकते हैं I आपको जितना भी पता है आप पुलिस को बताएं, मगर आपको अपराध के बारे मैं विस्तृत या सक्षम ज्ञान होना आवय्श्यक अथवा अनिवार्य नहीं है I उदहारण हेतु, FIR दर्ज करवाने के लिए अपराध करने वाले व्यक्ति का नाम ज्ञात होना जरुरी नहीं है I

पुलिस स्टेशन मैं घुसते ही आपको ड्यूटी ऑफिसर के पास अग्रेषित किया जायेगा I सुचना रिपोर्ट मौखिक अथवा स्वलिखित हो सकती है I अगर आप शिकायत का मौखिक वर्ण करते हैं तो पुलिस को उसे लिख कर, बोल कर आपको सुनना होता है I इसके पश्चात ड्यूटी ऑफिसर स्वागत-कक्ष (रिसेप्शन) में रखे रोजनामचे (General Diary or Daily Diary) मैं संबंधित प्रविषिट करेगा I

अगर आपकी शिकायत लिखित रूप मैं है, तो उसकी दो प्रतिलिपि (copy) ले जायें एवं DO को सौंप दें I दोनों प्रतिलीपियों पर रोजनामचे संदर्भ नंबर (Daily Dairy Reference Number) के अंकन का ठप्पा लगाया जायेगा एवं एक प्रतिलिपि ठ्प्पायुक्य आपको लौटा दी जाएगी I यह ठप्पा इस बात का प्रमाण है कि पुलिस को शिकायत प्राप्त हो चुकी है I

एक बार पुलिस आपकी शिकायत पढ़कर, बोलकर सुनाएगी, अगर संपूर्ण विवरण सही है, आप इस FIR पर अपना हस्ताक्षर कर सकते हैं I FIR की एक मुफ्त प्रतिलिपि प्राप्त करना आपका अधिकार है I FIR का नंबर, दिनांक एवं पुलिस स्टेशन के नाम का एक नोट बना अपने पास रख लें ताकि यदि आपकी कापी गुम जाये तो आप FIR को ऑनलाइन देख सकते हैं I

FIR दर्ज होने के पश्चात उसमे किसी भी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता I परंतु कोई भी अतिरिक्त सुचना आप पुलिस को कभी भी दे सकते हैं I

कुछ राज्य और शेहेरों मैं , निश्चित प्रकार के FIR और शिकायतों को ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है


4. मुझे कैसे पता चले की कौनसा पुलिस स्टेशन जाना है ?

जनसँख्या, क्षेत्रफल आदि के आधार पर किसी भी पुलिस स्टेशन का क्षेत्राधिकार निर्धारित होता है I एक PS के क्षेत्राधिकार मैं सर्कार द्वारा निर्धारित क्षेत्र आते हैं I जैसे की PS करोल बाग का खेत्राधिकार केवल अपने निर्धारित क्षेत्र मैं घटित अपराध का होगा I अन:, जिस जगह अपराध घटित हुआ है, उस जगह के निकटतम PS पर रिपोर्ट देना उचित है I PS का सटीक ज्ञान होना आवश्यक नहीं है I आप किसी भी PS जायें, यदि वह आपकी शिकायत दर्ज करने मैं असमर्थ हैं, तो वह आपको उपयुक्त PS के बारे मैं बता देंगे I आप पुलिस आपातकालीन नंबर “१००” पर भी इस बात की जानकारी ले सकते हैं I

5. यदि पुलिस ऑफिसर FIR दर्ज करने से मना कर दे तो?

अगर अपराध संज्ञेय है, पुलिस का उसे दर्ज करना कानूनन अनिवार्य है I यदि वह एसा न करे, तो आप निम्नलिखित अधिकार रखते हैं :-

अपनी शिकायत का विवरण स्तानीय पुलिस अधीक्षक/ पुलिस उपयुक्त को भेज सकते हैं I अगर उन्हें यह प्रतीत होता है की संज्ञेय अपराध घटित हुआ है, तो उन्हें या तो स्वयं अनुसंधान शुरू करना होता है अथवा अनुसुंधन आरंभ करने का निर्देश अधीनस्थ पुलिस को देना होता है I

यदि SP/DCP के समक्ष जाने के बावजूद कोई कारवाही नहीं की गयी है, तो आप स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर पुलिस को अनुसंधान प्रारंभ करने का आदेश प्राप्त कर सकते हैं I

राज्य मानव अधिकार आयोग को शिकायत कर सकते हैं I

अगर आपके राज्य में ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ स्थापित है तो आप वहां भी पुलिस अधिकारीयों की शिकायत कर सकते हैंI

आवयश्क सूचना 

यदि पुलिस आपकी FIR पर कारवाही करने से मना कर दे तो आपके पास अपने कारवाही करने के प्रयास का प्रमाण पत्र होना चाहिए I यहाँ पर पुलिस द्वारा ठप्पायुक्त सुचना की प्रतिलित्प अत्यंत महत्वपूर्ण है I यह एक प्रणित रसीद जैसी है I आपको अपने हर आगमि पत्र अथवा शिकायतों पर रोजनामचा संदर्भ नंबर जो की पहली शिकायत करने पर दिया गया था को अंकित करना चाहिए I


मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद- पीड़ित के दृष्टिकोण से

Published on: May 16, 2017
1. मैं मजिस्ट्रेट को शिकायत किस स्तिथि मैं कर सकती हूँ?

आप मजिस्ट्रेट को एक निजी शिकायत कर सकती हैं I इस प्रक्रिया के लिए एक वकील का उपसस्थित होना उचित है I मजिस्ट्रेट परिवाद पेश करने वाले व्यक्ति एवं गवाहों को परीक्षित करेगी I परिवाद पेश करते समय इसके समर्थन मैं जो भी सामग्री उपलब्ध है उसे शिकायत में शामिल करें I

2. किस मजिस्ट्रेट के पास जाऊं ?

सामान्यतः, जिस मजिस्ट्रेट के स्थानीय क्षेत्र मैं अपराध घटित हुआ है उसे मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होगा I अगर घटना एक क्षेत्र मैं करीत की गई है परंतु उसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों मैं महसूस होता है, ऐसी स्तिथि मैं दोनो क्षेत्रों के मजिस्ट्रेट मामले की सुनवाई कर सकते हैं I उदहारण के लिए, यदि हरि को गुरुग्राम मैं गोली मारी गई है पर उसका देहांत अस्पताल जाते वक्त दिल्ली मैं हो जाता है, तब दोनो गुरुग्राम व् दिल्ली के मजिस्ट्रेट का श्रवण अधिकार हो सकता है I जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष आप उपसिथ हुए हैं, यदि उसे मामले की सुनवाई करने की शक्ति प्राप्त नहीं है तो वह शिकायत को अनुमोदन कर उचित मजिस्ट्रेट के पास भेज सकती हैं I

3. मेरे शिकायत करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट क्या कदम उठाएगी?

परिवाद सम्बन्धी परिक्षण करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट निमंलिखित मैं से कोई भी एक कदम ले सकती हैं :

समन या वारंट जारी कर अपराधिक विचारण (ट्रायल) की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं, अथवा

इन्क्वारी संचालित कर सकती हैं, स्वयं द्वारा अथवा पुलिस के माध्यम से, अथवा

परिवाद को ख़ारिज कर शिकायत का उत्सादन कर सकती हैं I

मजिस्ट्रेट उपरोक्त मैं से कोई भी कदम ले सकते हैं I परंतु मामला यदि गंभीर प्रकृति का है एवं सेशन न्यायलय द्वारा विचारणीय है, तो उन्हें स्वयं हे “ इन्क्वारी” का सञ्चालन करना अनिवार्य है-वह पुलिस को इस बाबत निर्देश नहीं दे सकती है I इन मामलों मैं अक्सर ७ वर्ष अधिक कारावास का प्रावधान होता है, जैसे की हत्या या दुष्कर्म I

4. आगे क्या होगा?

अगर उन्हें ऐसा प्रतीत हो की मामले मैं अन्य तथ्य उजागर होने की संभावना है, तो मजिस्ट्रेट एक ‘ इन्क्वारी’ का निर्देश पारीत कर स्वयं अथवा पुलिस द्वारा इसे संचालित कर सकती हैI अगर मजिस्ट्रेट ने यह निर्देश पुलिस को दिया है की पुलिस अनुसंधान कर मजिस्ट्रेट के समक्ष एक प्रतिवेदन (रिपोर्ट) पेश करेगी I यह रिपोर्ट ‘ आरोप-पत्र’ नहीं है I यह रिपोर्ट या तो आपके परिवाद का समर्थन करेगी अथवा उसका खंडन करेगी , (‘ कोई अपराध कारित नहीं’ रिपोर्ट इस स्तिथि मैं पेश होगी )

पपूछताछ एवं परिक्षण करने के पश्चात मजिस्ट्रेट परिवादी को सुनवाई का अवसर देंगी I अभी तक कहीं भी आरोपी उपस्थिति नहीं है I इस सुनवाई का उद्देश्य यह निर्धारित करना है की क्या अभियुक्त को न्यायालय मैं उपस्थिति करने के लिए ‘समन’ जरी करना चाहिए I अगर न्यायालय के मन मैं आगे और कारवाही करने का कोई ओचित्य नहीं है; परिवाद को ख़ारिज कर निस्तारित कर दिया जाएगा I



पुलिस केस – पीड़ित के दृष्टिकोण से

1. पुलिस अनुसंधान प्रारम्भ कब कर सकती है?

एक संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना मिलते ही पुलिस द्वारा अनुसंधान शुरू किया जा सकता है यदि उन्हें अपराध होने का पता हो तो वह FIR के आभाव मैं भी जाँच शुरू कर सकती है I यधपि अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व पुलिस को एक रिपोर्ट, FIR सहित, मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी ताकि वह इस मामले मैं अवगत रहे I

2. क्या पुलिस को हर अपराध मैं अनुसंधान करना होता है?

नहीं I यदि पुलिस को यह प्रतीत हो की अनुसुंधन जारी रखने के पयार्प्त कारण नहीं हैं, वह इसे रोक सकते हैं I तथापि, अनुसंधान करने से पहले ही यदि मामले को बन्द किया जाता है, तो पुलिस का तर्क सहित मजिस्ट्रेट एवं शिकायत करता को इस बारे मैं रिपोर्ट करना अनिवार्य है I इस समय आप इस समापित रिपोर्ट के विरुद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकते हैं I

3. अनुसंधान मैं क्या-क्या- कदम होते हैं?

एक अनुसुंधन मैं पुलिस विभिन कदम ले सकती है:

अपराध के घटना स्थल का मुआयना,

लोगों की तलाश एवम वस्तुओं की जब्ती

लोगों से अन्वेषण ( सवाल जवाब)

शव परिक्षण का आयोजन I

4. क्या पुलिस मेरे घर की तलाशी ले सकती है?

यदि अनुसुंधन में आवश्यक हो तो पुलिस किसी भी जगह की तलाशी ले सकती है I आम तौर पर उन्हें एक अधिपत्र (वारंट) की आवश्यकता होती है, जोकि न्यायालय द्वारा तलाशी लेने की आज्ञा है I बिना वारंट भी तलाशी ली जा सकती है, यदि;

उन्हें विश्वास है की आपके पास अनुसंधान मैं अपेक्षित कुछ ऐसा है जिसका तुरंत मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है I

मजिस्ट्रेट ने तलाशी हेतु उचित आगेश पारित किया है एवं वह तालाशी के लिए स्वयं साथ आये I

5. क्या पुलिस मुझे पुलिस स्टेशन जाने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपको पुलिस स्टेशन आने का एवं सवालों का जवाब देने का आदेश दे सकती है I यथापि, अगर आप

एक महिला हैं, अथवा

१५ वर्ष से कम अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं, अथवा

मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं I

तब पुलिस आप को कहीं भी आने का आदेश नहीं दे सकती, उन्हें आप से स्वयं के घर मैं ही पूछताछ करनी होगी I

याद रखें, हमेशा पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का प्रमाण उत्पन्न करने का प्रयास करें I अगर आप को पुलिस द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है, तो उसे नष्ट न करें I इसी तरह, पुलिस के समक्ष उपस्थित होते समय एक पत्र उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें एवं प्रतिलिपि मैं इस बाबत अभिस्विक्र्ती प्राप्त करें I यह उनके द्वारा उल्त्मोड़ अथवा सच को तोड़ने-मरोरने के परयास पर रोक लगाएगा I

6. क्या पुलिस मुझे सवालों का जवाब देने एवं हस्ताक्षर करने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपसे अपराध अथवा उसकी सुचना बाबत पूछताछ कर सकती है I सच्चाई से जवाब देना आपका दायित्व है I तथापि “क्या आप अपराध के दोषी हैं?” जैसे सवाल यदि किये जायें तो आप चुप रहने का अधिकार रखते हैंI

आप पुलिस को जो कुछ भी बताते हैं, वह उसे लिखित मैं उतार सकते हैं अथवा उसकी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं I पुलिस आप को कथन देने के लिए न धमका सकती है न छल का प्रयोग कर सकती है I

7. क्या यह जानकारी लेने का अधिकार मुझे प्राप्त है की मामले मैं क्या चल रहा है?

दुर्भाग्यवश, विधि मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आप को मामले के संदर्भ में सूचित रखने पर पुलिस को विवश करे I पर एक बार अनुसुंधन पूर्ण होने के पश्चात पुलिस को FIR पेशकर्ता को यह बताना होता है कि मामले मैं क्या कारवाही की गई I ( उधारंग्त्या, यदि आरोपत्र पेश किया गया है ?) कई पुलिस वेबसाइट FIR की वर्तमान स्थिथि पर नज़र रखने की सम्भावना प्रदान करती है I यह ‘ कंप्लेंट ट्रैकिंग सिस्टम’ (CCTNS) से संभव है I हालांकि हमेशा नवीनतम स्थिथि उपलब्ध नहीं होती है, पर फिर भी आप अपनी स्थानिक अथवा राज्य पुलिस की वेबसाइट इस बाबत जानकारी हेतु देख सकते हैं I

8. अनुसंधान पूर्ण होने के पश्चात क्या होता है?

अनुसंधान पूर्ण कर लेने के बाद पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को एक ‘अंतिम रिपोर्ट’ भेजी जाती है, ऐसे मैं दो परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं:

पुलिस के पास अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य है ; ऐसी अवस्था मैं पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘ अंतिम रिपोर्ट’ पेश करेगी जिसे ‘ आरोप पत्र’ अथवा ‘चालान’ कहते हैं I इस रिपोर्ट मैं अपराध संबंधी सम्पूर्ण साक्ष्य का उल्लेख होता है I अभियुक्त यदि पुलिस अभिरक्षा मैं है, तोह उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष न्यायालय द्वारा मामले के विचारण हेतु भेजा जाएगा

पुलिस ने ‘समापित रिपोर्ट’ पेश की है: इसका अर्थ है की पुलिस के मन मैं न्यायालय को मामला विचरण हेतु नहीं लेना चाहिए I यहाँ या तो पुलिस को लगता है की कोई अपराध घटित हुआ ही नहीं है, अथवा अनुसंधान मैं आरोपी के विरुद्ध प्रयाप्त सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है I यदि आरोपी अभिरक्षा मैं ही, तो उसे एक ‘बांड’ निष्पादित करने के प्रश्चात रिहा कर दिया जाएगा I इस स्तिथि मैं प्रथम सूचक को एक नोटिस भेजा जाएगा I आप पुलिस की इस कदम का ‘ प्रोटेस्ट पेटिशन’ द्वारा विरोध कर सकते हैं I

विधि का यह सुस्थाप्ती आश्वासन है की पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करते समय पीड़ित अथवा किसी भी गवाह को न्यायालय मैं उपस्थित होने के लिए विवश नहीं कर सकती. तथापि, पुलिस आप को पीड़ित अथवा गवाह के रूप मैं मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे सकती है I यह बांड न्यायालय मैं निष्पद्नकर्ता की साक्ष्य हेतु उपस्थिति सुनिश्चित करता है I

-----क्रमशः
http://nyaaya.in 

Friday 27 October 2017

बेरोजगारों को ठगते बेरोजगार

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

देश में सरकार की आंकड़े बाजी वाली नीतियों के चलते बेरोजगार नौजवानों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। 2013 से 2016 के बीच बेरोजगारों की संख्या 37 लाख से बढ़कर 57 लाख हो गई है। केन्द्र व राज्य की सरकारों की राजनीति ने जिस प्रकार के हालात देश में बनाये हैं उससे यह बेरोजगारी के आंकड़े सुधरते हुए नहीं दिखाई दे रहे।
कुछ दिनों पूर्व कनॉट प्लेस में एक युवक से मुलाकात हुयी। उसने बताया कि वह हरियाणा का रहने वाला है और वह इस समय काफी परेशान है। पूछने पर युवक ने बताया कि वह नौकरी के लिए इंटरव्यु देने आया था, पास में ही योगेश्वर बिल्डिंग में उसे मोबाईल कॉल कर बुलाया गया था। वहां पर कई लड़के लड़कियां इंटरव्यू देने आईं थी। बिल्डिंग के गेट पर मौजूद एक लड़के ने आईडी के रुप में मेरा आधार कार्ड मांगा और एक मशीन पर फिंगर प्रिंट लेकर अन्दर ले गया। बिल्डिंग के कई कमरों में नौकरी के लिए आये लड़के-लड़कियों का एक साथ इंटरव्यू चल रहा था। कुछ देर बाद मुझे भी एक कमरे में जाने को कहा गया। कमरे में एक खूबसूरत लड़की मेरा इंटरव्यू लेने बैठी थी। उसने मेरा रेज्यूम देखने के बाद बोली कि आपको 12 से 18 हजार रुपये तक की सैलरी मिल सकती है। आपको, 750 रुपये जमानत के तौर पर अभी देने होंगे। जब मैंने पूछा कि जमानत राशि किसलिए? लड़की ने बोला कि यदि आप बीच में नौकरी छोड़ दिये तो कम्पनी को नुकसान होगा, भरपाई के लिए कम्पनी आपकी जमानत राशि जब्त कर लेगी। 
 
हरियाणा के छोरे ने आगे बताया कि उसे जब इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो, कॉल करने वाली लड़की ने कहा कि मैं जीयो कम्पनी की एचआर हूं, आपको अपनी आईडी, 2 फोटो लेकर लेकर 10 से 12 बजे तक पते पर पहुंचना है। मैं आपको पता एसएमएस कर रही हॅंू। उसने किसी भी प्रकार का शुल्क न देने की बात कही थी, और मैंने भी नौकरी पाने के लिए रुपये देने में असमर्थता जताई थी। इसके बावजूद उन लोगों ने मुझे झांसा देकर यहां बुलाया। अब यहां इंटरव्यू लेने वाली लड़की बोल रही है कि हमारे नियम, फोन करने वालों को नहीं पता होता है, उनका काम केवल इंटरव्यू के स्थान व समय की जानकारी देना होता है। बात करते हुए उसका हलक सूख रहा था, उसने मेरी पानी की बोतल मांगी, और अपनी प्यास बुझाई। उसने आगे बताया कि वह सुबह चार बजे घर से झोला उठाकर निकल गया था। जो कुछ उसके पास रुपये थे वह किराये में खर्च हो गया , अभी उसने नास्ता भी नहीं किया है।
यह साफ दिखाई दे रहा था कि अच्छा, खासा, तगड़ा नौजवान ठगी का शिकार हुआ है। मैंने उसे पुलिस में शिकायत करने की सलाह दे दी। उसने मेरी तरफ ऐसे देखा, जैसे मैंने उसके जले पर नमक डाल दिया हो। उसने बोला लैंग्वेज से तो आप यूपी के रहने वाले लगते हो, लगता है दिल्ली पुलिस के बारे में जानकारी नहीं है। पुलिस मामला सुलझाती नहीं, उलझाती है। मुझे उलझना नहीं है भाई। मुझे नहीं करनी है शिकायत, मुझे घर जाना है, और वह फिर चला गया।  
इस हरियाणा के छोरे की कहानी की तरह देश के लाखों बेरोजगार युवकों की कहानी है। दिल्ली व एनसीआर में ठगी का करोबार फलफूल रहा है। पुलिस कहती है कि जब तक कोई लिखित शिकायत नहीं देगा, तब तक हम ऐसे मामले में किसी से पूछताछ नहीं कर सकते हैं। पुलिस का यह रवैया, ठगी के कारोबार का आधार है। पुलिस अपना हिस्सा लेती है और बदले में ठगों को सुरक्षा देती है। 
कनॉट प्लेस, लक्ष्मी नगर, करोलबाग, राजेन्द्र नगर, जनकपुरी, गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव आदि दिल्ली व एनसीआर के कोने-कोने में बेरोजगारों को नौकरी देने व लोन दिलाने का कारोबार चल रहा है। ऐसा सालों से हो रहा है, देश के लाखों नौजवान प्रतिदिन ठगे जाते हैं। बकायदा अख़बारों में वर्गीकृत विज्ञापन छपवाये जाते हैं यानि खुल्लम खुल्ला नौकरी देने के नाम पर ठगी करेंगे, क्योंकि कोई नौजवान उनकी पुलिस में शिकायत नहीं करता।
कौन और कैसे फंसते हैं नौजवान
आज के नौजवानों की कुछ कॉमन परेशानियां सामने दिखने लगी है। लड़के अपनी गर्लफ्रेंड की जरुरतों के लिए, लड़कियां अपने मेकप के लिए दोस्तों से अनबन, मॉ-बाप, भाई से चिकचिक करते रहते हैं। ऐसे नौजवानों की जरुरतें पूरी नहीं होती क्योंकि वह स्वयं कोई काम करके नहीं कमाते। मध्यम वर्ग के वो नौजवान जो दुनिया की चकाचौंध को वास्तविक जीवन मान बैठे हैं या फिर वो जो, काबिल होने के बावजूद अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। कुछ नौजवान ऐसे भी होते हैं जो अपने काम से समाज व देश-दुनिया में प्रसिद्धि पाना चाहते हैं। 
बेरोजगार नौजवानों में तीन श्रेणीयां हैं। 
पहला- जो पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए रोजगार की तलाश करता है।
दूसरा-जो स्वयं आरामदायक जीवन जी सके वह, ऐसी नौकरी ढूंढता है। 
तीसरा- जो अपनी काबिलियत से अपने परिवार, समाज, देश-दुनिया में प्रसिद्धि पा सके वह ऐसे काम की तलाश में रहता है। ऐसे नौजवान बेरोजगारों की संख्या बहुत कम है।
देश में तेजी से बदल रहे परिवेश में लड़के-लड़कियों ने स्वयं के लाभ को इतना महत्व दे दिया है कि वे अब गलत काम करने से भी नहीं झिझकते। वे दूसरों को पीड़ा पहुंचाकर स्वयं को सुखी रखने का जरिया तलाश लेते हैं। वे अपनी जरुरत पूरी न होने पर दुखी रहते हैं और अपने दुख को दूर करने के लिए रोजगार तलाशते हैं। वे कभी अख़बार में छपे विज्ञापनों को देखते हैं तो कभी इंटरनेट पर मौजूद नौकरी देने वाले वेबसाईटों को टटोलते हैं। इन माध्यमों से कभी-कभी फर्जी फर्मों के झांसे में आ जाते हैं। जब इन फर्मों में बेरोजगार नौजवान उसी हरियाणे के छोरे की तरह पहुंचता है तो, इंटरव्यू के नाम पर रुपये ऐंठने के लिए खूबसूरत लड़कियां बैठी मिलती हैं और दरवाजे के बाहर दरबान बनकर हट्टे कट्टे लड़के खड़े मिलते हैं। जो लड़का या लडकी इंटरव्यू लेने वाले से हाजिर जबाबी करता है उसे ये दरबान धक्के मारकर बाहर निकालने का काम करते हैं।
ये ठगी का कारोबार करने वाले वही दूसरे श्रेणी के बेरोजगार युवा होते हैं जिनकी जरुरतें दूसरों को लूटकर, पीड़ा देकर पूरी होती हैं। इस प्रकार एक नौजवान की बेरोजगारी दूसरे नौजवान का रोजगार बन जाता है। इस प्रकार बेरोजगार को एक बेरोजगार नौजवान ही ठग रहा है।

Wednesday 11 October 2017

क्या पत्रकारों के प्रति बदल रहा है देश का नज़रिया?

पत्रकार अर्थात् सर्वोच्च मानवीय दृष्टिकोण वह है जो, दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा सही और गलत का अन्तर त्वरित जान लेता है। 

-रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 




‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी तक नहीं मिल श पायी है। भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा है। पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली सीपीजे एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्था है। 2011-2015 में आयी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘‘ 1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में कत्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है। संस्था के रिपोर्ट में उस समय तीन भारतीय पत्रकारों जगेन्द्र सिंह, अक्षय सिंह और उमेश राजपूत का भी जिक्र था। सीपीजे की रिपोर्ट के पहले, साल 2015 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के एक अध्ययन में कहा गया था कि ,‘पत्रकारों की हत्याओं के पीछे जिनका हाथ होता है वे बिना सजा के बच कर निकल जाते हैं’। इन प्रतिष्ठित संस्थाओं की रिपोर्टों के बाद भी देश में लगातार हो रही पत्रकारों की हत्या पर सरकारों की चुप्पी से, देश के नज़रिये में हो रहे बदलाव को देखा जा सकता है।  

आज देश के नागरिकों के मन में एक साथ तमाम विचारों की आंधी चल रही है। धर्म, जाति, देशभक्ति, देशद्रोह, राष्ट्रवाद-राष्ट्रगीत, इस प्रकार के राजनीतिक विषय समाचार माध्यमों से लोगों के विचारों में स्थापित हो गये हैं। कुछ इस आंधी को भांप कर अपने विचार व्यक्त कर पा रहे हैं तो, कुछ नहीं। देश में इस तरह का दौर आजादी के बाद से ही शुरु है। पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्या इस आंधी की गति को तेज कर रहे हैं। किसान, जो लोगों के भूखे पेट को भरता है, पत्रकार जो व्यक्ति की जिज्ञासा को शान्त करता है। उस किसान की आत्महत्या और पत्रकार की हत्या यह केवल लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है, यह मानवीय दृष्टिकोण में हो रहे बदलाव को भी व्यक्त कर रहा है।
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक रत्नाकर नाम का दस्यु (डाकू) था जो अपने इलाके से आने-जाने वाले यात्रियों को लूटकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार नारद मुनि भी इस दस्यु के शिकार बने। जब रत्नाकर ने उन्हें मारने का प्रयत्न किया तो नारद जी ने पूछा कि तुम यह अपराध क्यूं करते हो? रत्नाकर ने कहा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए? नारद मुनि बोले अच्छा तो क्या जिस परिवार के लिए तुम यह अपराध करते हो वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार है ? इसको सुनकर रत्नाकर ने नारद मुनि को पेड़ से बांध दिया और प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर चला गया। घर जाकर उसने अपने परिवार वालों से यह सवाल किया लेकिन, उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई भी उसके पाप में भागीदार नहीं बनना चाहता। घर से लौटकर उसने नारद जी को स्वतंत्र कर दिया। रत्नाकर सत्यमार्ग दिखाने के लिए, नारद को धन्यवाद देता है और ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप करता है। इसी डकैत को आज हम महर्षि वाल्मीकि के रुप में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद की उस वक्त जो भूमिका थी वही, आज के पत्रकारों की मानी जाती है। गौर से देखा जाय तो इस प्रकार के प्रसंग हमारे सामने प्रतिक्षण उपस्थित होते रहते हैं। हाल ही में दिवंगत हुई पत्रकार गौरी लंकेश इसका उदाहरण हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में अपने अधिकारों के लिए हथियारों से लड़ रहे नक्सलियों को गौरी लंकेश सही और गलत का फर्क समझाती थीं। उनसे प्रभावित होकर कई नक्सलियों ने हिंसात्मक लड़ाई छोड़कर, वैचारिक लड़ाई लड़ना शुरु कर दिया। क्या आज नागरिकों में पत्रकारों के प्रति वही नजरिया और सम्मान है, जो हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक नारद का था, नहीं। आज पत्रकारों के प्रति देश का नज़रिया बदल रहा है। देश के नागरिक पत्रकार व पेशेवर पत्रकारिता के अन्तर को समझ नहीं पा रहे हैं। इसे जानने वाले बोल नहीं पा रहे और समझने वाले सोच नहीं पा रहे हैं। कुछ बौद्धिक सोच वाले सरकारी समाचार चैनलों पर मीडिया मंथन भी कर रहे हैं। लेकिन क्या परिणाम निकल पा रहा है? 


अपनी कलम की शक्ति का लोहा मनवाने वाले एमएम कालबूर्गी, नरेन्द्र दाभोलकर, जगेन्द्र सिंह, अक्षय सिंह, राजदेव रंजन, गौरी लंकेश आदि तमाम पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। गौरी लंकेश की हत्या, मीडिया में चर्चा का विषय बन जाती है। सोशल मीडिया में मानव समाज को कलंकित करने वाले शब्द पोस्ट किये जाते हैं और उस हत्या पर ‘कुतिया’ लिखने वाले ऐसे वाहियात व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री अनुसरण करता है। इसी बीच गौरी लंकेश के बारे में मनगढंत बातों की आंधी बहने लगती है और हत्या की वजह को छोड़कर सोशल मीडिया में फैल रहे झूठ से जंग छिड़ जाती है। देश के जानेमाने पत्रकार इस जंग में कूद पड़ते हैं परिणाम, गौरी लंकेश के विचारों का विस्तार देश जान ही नहीं पाता। 

देश के आम नागरिकों में जो देखा, वह यह कि एक पत्रकार की हत्या हो गयी है जिसको कुछ लोग हिन्दू विरोधी लेखक बोल रहे हैं। हत्या के विरोध में दिल्ली के प्रेस क्लब सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ पत्रकार प्रदर्शन कर रहे हैं। लूटपाट में, गैंगवार के दौरान, प्रेम प्रपंच के चलते, जायदाद के लिए, वर्चस्व खत्म करने के लिए हुयी हत्याओं की तरह ही, पत्रकारों की हत्या को भी देश के अधिकांश लोगों ने केवल एक सामान्य घटना माना है।
पत्रकार का न तो जीवन सामान्य है न ही, आम नौकरियों की तरह किसी मीडिया संस्थान में पत्रकारिता करना। पत्रकार हर क्षण अपने निजी जीवन, पेशे व कार्यक्षेत्र की चुनौतियों से लगातार जुझता है। वह अपनी रोजी-रोटी विचारों से ही कमाता है। उसका रहन-सहन वैसा ही है जैसे निर्धन व धनवान रहते है, लेकिन वह पलपल दूसरों के सूख के लिए जीता है। वह अपनी शिक्षा, ज्ञान, सामर्थ्य के अनुसार समाज को देखता है, उसे परखता है। निर्धन, धनवान, बलवान के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित हो, मानवीय संतुलन बना रहे वह इस बात पर विचार करता है। वह राजनीतिज्ञों और सरकारों की, अपने नज़रिये के मुताबिक आलोचना करता है ताकि नागरिकों के जीवन में सुधार हो सके। वह खाते-पीते, सोते-जागते, उठते बैठते केवल यही विचार करता है कि लोगों को तार्किक व जागरुक कैसे बनाया जाय। वह स्वयं किस परिस्थिति में है ये कम सोचता है और शोषित समाज की दशा कैसे सुधरे इस पर अधिक समय देता है। वह दबे कुचले लोगों के विकास में ही अपने विचारों का विकास देखता है। भला ऐसे पत्रकारों की हत्या को अन्य हत्याओं की तरह कैसे माना जा सकता है।


''एक राजनेता सत्ता के लिए समाज से छल कर सकता है, एक व्यापारी अपने लाभ के लिए देश को ठग सकता है, एक नौकरशाह सरकार के इशारे पर जनता के लिए दमनकारी हो सकता है, आम व्यक्ति भय के कारण अपनी रोजी-रोटी के लिए अमानवीयता को सहन कर सकता है लेकिन एक पत्रकार किसी भी परिस्थिति में अमानवीय और देशद्रोही नहीं हो सकता।''
आज से हजारों साल पहले आदिकाल में मानव गुफाओं मेंरहता था। उसने अपनी जीवनशैली को चट्टानों पर चित्र बनाकर व्यक्त करता था ताकि वहां से गुजरने वाले यह जान सकें की वह कैसे रहता था। धिरे-धिरे बोली और बाद में लिपी का मानव ने विकास किया। पाली, ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि भाषाओं सहित आज हम संस्कृत अंग्रेजी आदि सैकड़ों भाषाओं को जानते और बोलते हैं। अर्थात् आदिकाल से ही मानव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राकृतिक है। समग्र विश्व  के लोग इसकी स्वतंत्रता को लेकर सहमत हैं। हमारे देश के संविधान में इसका ही महत्व है विद्वान इसी को लोकतंत्र मानते है। विश्व का कोई भी देश हो, उस देश का सत्ताधीश यदि किसी वस्तु से डरता है तो, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से डरता है। इसी से सत्ता छिन जाने का उसे भय सताता रहता है। किसी भी देश का संविधान अपने नागरिक को अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता देता है यह एक अलग विषय है लेकिन यही स्वतंत्रता उस देश की परम्पराओं को जन्म देती है। यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानव में प्राकृतिक नहीं होता तो, आज हम अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ रहे होते और न ही हमें आजादी मिलती। हम भी राजशाही परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े होते।
हमारे देश के संविधान में शासन किया कैसे जाय इससे ज्यादा महत्व व्यक्ति की प्राकृतिक स्वतंत्रताओंको दिया गया है, ताकि लोगों में भाईचारा, एकता बनी रहे। संविधान बनाने वालों को यह पता था कि इस देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं, उनकी जीवनशैली, भाषा, बोलीयां एक दूसरे से भिन्न है। इन्हें एकजूट रखने के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है। किसी भी देश के शक्तिशाली होने का प्रमाण उस देश में नागरिकों की एकता होती है। आम नागरिक को जो संवैधानिक अधिकार प्राप्त है वही पत्रकारों को भी प्राप्त है। आज सोशल मीडिया में जो कुछ लिखा जा रहा है इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की देन है। कुछ लोग इस मुफ्त की जगह का दुरुपयोग कर रहे हैं तो, कुछ प्रयोग और उपयोग।
पत्रकारों के प्रति बदल रहे देश के नज़रिये में सोशल मीडिया का भी योगदान है। अराजकता फैलाने वाले सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर कुछ गैर व नौसिखिए पत्रकारों की बात करके, सादगीपूर्ण बेदाग छवि के पत्रकारों को भी उसी जमात में खड़ा कर दे रहे हैं। मीडिया संस्थानों में पत्रकारिता का चोला ओढ़कर घूस आये, मुनाफाखोर गैर पत्रकारों को मीडिया घरानों द्वारा तवज्जो देने से पत्रकारों की छवि व पेशा  बदनाम हो रहा है। कई बार देश ने प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के ख्यातिलब्ध पत्रकारों को दलाली करते हुए देखा है। संस्थानों द्वारा उन पर कार्रवाई करने की बजाय, पत्रकारिता को दूषित करने वाले ऐसे पत्रकारों के वेतन को बढ़ाकर मीडिया संस्थान उन्हें अपने साथ रखते हैं और पहले से अधिक महत्व देते हैं।
मीडिया संस्थानों द्वारा राजनीतिक दलगत प्रेम को भी देशवासी समझ रहे हैं। पत्रकारों के प्रति देश के नजरिये में बदलाव की ये मुख्य वजह है। पत्रकारों के साथ हो रही बर्बरता और उनकी हत्या का विरोध देश के नागरिक उसी एकजूटता से क्यों नहीं कर रहे हैं जैसे, निर्भया को न्याय दिलाने के लिए एकजूट हुए थे। पत्रकार तो ज्यादातर आम लोगों के हितों के लिए ही लिखता है फिर आम नागरिक इनके साथ क्यों नहीं खड़ा होता है? क्या राजनीतिक खेमेबंदी के नजरिये से लोग पत्रकारों को भी देखना शुरु कर दिये हैं? बहरहाल पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमले और इस पर आम नागरिकों का मौन, मीडिया संस्थानों का सरकारी अप्रत्यक्ष गठबंधनों से कहा जा सकता है कि देश की सोच बदल रही है।  ..क्रमशः जारी है.... 

    
रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

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