संपादकीय
देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों पर विश्वास कर रहे हैं। इन नेताओं ने धर्म को भी संकट में डाल दिया है। केन्द्र की सत्ता हो या राज्य की, शासन कर रहे नेताओं ने द्वेश पैदा करने वाले भाषणों, प्रेस वार्ताओं व सोशल मिडिया के जरिये सही को गलत और गलत को सही कह कर नागरिकों में भ्रम और भय का वातावरण बना दिये हैं। इस भ्रम और भय से भरे वातावरण का शिकार अधिकतर किशोर और युवा हो रहे हैं। भय और भ्रम से अज्ञानता का विस्तार हो रहा है और अब देश का भविष्य उस पथ का पथिक होने को आमादा है जिस पथ का विरोध भारतीय संस्कृति और सभ्यता पुरातन काल से करती चली आ रही है। समाज में चोरी, छिनैति, डकैती, ठगी, हत्या, बलात्कार जैसे घृणित कार्य करने वालों की आवभगत जोर-शोर से होने लगी है। उनकी आवभगत उनके जैसा ही दुष्कर्मी कर रहा है लेकिन धर्म या राजनीति का चोला पहनकर। समाज भी उन्हें बेझिझक स्वीकार कर रहा है। समाज के लोग कुछ को चुनकर नेता बना दे रहे हैं तो कुछ को धर्म रक्षक स्वामी। लोगों के मन में परमार्थ के विचार की जगह स्वार्थ की भावना अति प्रबल होने लगी है।
इस भय और भ्रम से विस्तार कर रही अज्ञानता को रोकने की शक्ति वर्तमान में मिडिया के पास है और मिडिया ही रोकेगी, लेकिन एक सत्य यह भी है कि इस तरह की अज्ञानता को विस्तार देने में मुख्यधारा की कुछ प्रमुख मिडिया संस्थानों का भी योगदान है। टीवी चैनलों पर तार्किक बहस की जगह अक्सर नेता कुतर्क करते रहते है और चैनल अपना टीआरपी बढ़ाने में लगा रहता है। जहां नेताओं के भड़काऊ भाषा से उनके चहते खुश होते है तो वहीं जागरुक जनता आहत होती है। नेता, एंकर अपनी मर्यादा तोड़ते है,और टीवी चैनल पत्रकारिता के मानदण्ड।
मिडिया कोई समाज नहीं है बल्कि वह हर समाज की आवाज है। मिडिया सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करती है तो उसे अपनी भी गलतियों पर उसी जोर-शोर के साथ आलोचना करनी चाहिए। आन लाईन सर्वे, एग्जिट पोल, पेड न्यूज, मीडिया के अस्त्र-शस्त्र बन गये है। इनके प्रयोग से पाठकों और दर्शकों में भ्रम और भय पैदा हो जाता है। इस तरह पिछले 20 सालों से प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों निजी टीवी चैनलों पर प्रसारित हुए बहसों ने पाठकों और दर्शकों के दिमाग में तर्क की जगह कुतर्क का बीजारोपण कर दिया है। कुतर्क से उत्पन्न भ्रम को दूर कर ‘द्रष्टा’ अपने पाठकों को भय मुक्त करेगा।
इस भय और भ्रम से विस्तार कर रही अज्ञानता को रोकने की शक्ति वर्तमान में मिडिया के पास है और मिडिया ही रोकेगी, लेकिन एक सत्य यह भी है कि इस तरह की अज्ञानता को विस्तार देने में मुख्यधारा की कुछ प्रमुख मिडिया संस्थानों का भी योगदान है। टीवी चैनलों पर तार्किक बहस की जगह अक्सर नेता कुतर्क करते रहते है और चैनल अपना टीआरपी बढ़ाने में लगा रहता है। जहां नेताओं के भड़काऊ भाषा से उनके चहते खुश होते है तो वहीं जागरुक जनता आहत होती है। नेता, एंकर अपनी मर्यादा तोड़ते है,और टीवी चैनल पत्रकारिता के मानदण्ड।
मिडिया कोई समाज नहीं है बल्कि वह हर समाज की आवाज है। मिडिया सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करती है तो उसे अपनी भी गलतियों पर उसी जोर-शोर के साथ आलोचना करनी चाहिए। आन लाईन सर्वे, एग्जिट पोल, पेड न्यूज, मीडिया के अस्त्र-शस्त्र बन गये है। इनके प्रयोग से पाठकों और दर्शकों में भ्रम और भय पैदा हो जाता है। इस तरह पिछले 20 सालों से प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों निजी टीवी चैनलों पर प्रसारित हुए बहसों ने पाठकों और दर्शकों के दिमाग में तर्क की जगह कुतर्क का बीजारोपण कर दिया है। कुतर्क से उत्पन्न भ्रम को दूर कर ‘द्रष्टा’ अपने पाठकों को भय मुक्त करेगा।
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