Wednesday 22 January 2020

तुम लोगों का कमरा सजाती हो, कभी हमारा भी सजाओ



रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

मुख्यमंत्री योगी को मालूम ही नहीं ..... शीर्षक से ‘द्रष्टा’ ने पाठकों को जानकारी दी कि किस प्रकार एनएमआरसी पर भ्रष्टाचार ने कब्जा किया है।  इस भाग में एनएमआरसी की नींव में भ्रष्टाचार के कैंसर फैलाने वाले दीमकों की जानकारी दी जा रही है। 


तुम लोगों का कमरा सजाती हो, कभी हमारा भी सजाओ इस बात ने एक लड़की के स्वाभिमान पर चोट कर दिया। उसने अपनी इज्जत की रक्षा के लिए नौकरी को दांव पर लगा दिया और कर दी आयोग में अपने उच्च अधिकारियों की शिकायत। विश्वस्त सुत्रों के अनुसार इसी शिकायत पर 20 जनवरी से नोएडा पुलिस आरोपी अधिकारियों से पूछताछ के लिए गंगा शापिंग कॉम्लेक्स आना-जाना शुरु कर दी है। अपर महाप्रबंधक रजनीश पाण्डेय पर एक लड़की के शोषण का आरोप है। शोषित लड़की नोएडा मेट्रो में ही स्टेशन कंट्रोलर के पद पर कार्य करती है। राष्ट्रीय अनुसुचित जनजाति आयोग में लड़की द्वारा की गयी शिकायत के अनुसार अपर महाप्रबंधक रजनीश पाण्डेय उसके साथ घिनौनी हरकत करता है।
 लड़की शिकायती पत्र में कह रही है कि मुझे 24अप्रैल 2019 को रजनीश पाण्डेय ने अपने कार्यालय में बुलाया और बैठने को कहा। रजनीश ने पूछा कि तुम क्या कर रही थी ? मैंने उन्हें बताया कि फाइलों को व्यवस्थित कर रही थी। रजनीश पाण्डेय ने भद्दी मुस्कुराहट के साथ कहा ‘‘अच्छा-अच्छा तुम लोगों का कमरा सजाती हो, कभी हमारा भी सजाओ’’। मैं तुरन्त रोते हुए केबिन से बाहर निकल गयी। मैं नहीं समझ पा रही थी कि इस परेशानी से कैसे निकला जाय, मैं काफी चिन्तित और डरी थी। 


रजनीश पाण्डेय ने अगले दिन मुझे फिर बुलाया अपर प्रबंधक (संचालन) मनोज कुमार के सामने झल्लाते हुए पूछा कि सारा दिन तुम क्या काम करती हो? मैंने अपने काम के बारे में विस्तार से बताया लेकिन रजनीश पाण्डेय ने मेरा मजाक उड़ाया और मुझे अपमानजनक शब्द कहे। मेरे रोने पर चिल्ला-चिल्ला कर उसने मेरे लिए जातिसूचक अपशब्दों का प्रयोग किया। मैंने कई बार रजनीश पाण्डेय को मेरे चरित्र और जाति के बारे में गलत बोलते हुए सुना है। उनके कार्यालय में मेरे चरित्र को धूमिल करने के लिए अफवाहें फैलाई जा रही हैं। पूर्वाग्रह के कारण रजनीश पाण्डेय का क्रोधपूर्ण व्यवहार मेरे प्रति बढ़ता ही चला गया। उन्होंने मुझे डाक डिस्पैच कार्य, फोटोकॉपी जैसे कार्य देने लगे जो मेरा कार्य नही था। वरिष्ठ अधिकारी के आदेशों की अवहेलना न हो इसलिए मंै सभी प्रकार के कार्य करती रही। रजनीश पाण्डेय द्वारा ऐसे कार्य सौंपे जाने लगे जिससे मुझे देर तक कार्यालय में रुकना पड़े। उनके साथ कार्यालय में अकेले रुकने से मुझे किसी अनहोनी और चरित्रहीनता का डर लगा रहता था। मैं समय से कार्यालय छोड़ने का प्रयास करती रही।

2 अगस्त 2018 को उन्होंंने मुझे दूसरे मंजिल पर स्थित केबिन में बुलाया और पूर्व सहायक प्रबंधक तिरेन्द्र कुमार भाटी के बारे में बहुत से सवाल पूछे गये। मुझे रजनीश पाण्डेय ने बताया कि तिरेन्द्र कुमार भाटी ने महाप्रबंधक की कोई शिकायत एनएमआरसी में दी है उसे बेअसर करने के लिए तुम्हें भाटी के खिलाफ लिखित शिकायत करनी है। मैंने उन्हें शिकायत देने से मना कर दिया। रजनीश पाण्डेय ने मुझ पर काफी दबाव बनाया। उसने मुझे कहा कि तुमको इस कार्यालय से हटा दिया जायेगा। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन लगातार स्थानान्तरिक किया जायेगा। तुम्हारी एन्यूअल परफार्मेस रिपोर्ट(एपीआर)को खराब कर दिया जायेगा। तुम्हें जीवन में कभी न भुलने वाला सबक सिखा दिया जायेगा। रजनीश पाण्डेय ने कहा कि तुमको सोचने के लिए दो दिन का समय दिया जाता है। दो दिन बाद मैंने झूठी शिकायत देने से साफ मना कर दिया। 6 अगस्त 2018 को मुझे संचालन अनुभाग द्वारा बताया गया कि मेरी आवश्यकता एनएमआरसी मुख्यालय में नहीं है। 7अगस्त से तुम्हे स्टेशन पर रिपोर्ट करना होगा।  इस प्रकार मुझे मौखिक निर्देश देकर स्टेशन पर ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया गया।

अपर महाप्रबंधक रजनीश पाण्डेय  एनएमआरसी में मुख्य सतर्कता अधिकारी व एचआर भी है। लड़की का अरोप है कि रजनीश पाण्डेय अपने अधिकारों का दूरुपयोग कर्मचारियों को आतंकित करता है। वह नियमोंं का पालन करने में नहीं, नियमों को तोड़ने में माहिर है। मेरी तरह कई महिलाएं वहां काम करती हैं लेकिन उसने केवल मुझे ही निशाना बनाया है। रजनीश द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष तरीके से मेरा करियर खराब करने की कोशिश की जा रही है। 

शिकायत करने वाली लड़की अभी अविवाहित है। उसे अपनी इज्जत भी बचानी है और नौकरी भी करनी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ योजना शुरु किये ताकि बेटियां अपने सामर्थ्य के अनुसार उपलब्धि हासिल कर सकें। एक लड़की अपनी मेहनत काबिलियत और जज्बे से स्टेशन कंट्रोलर के पद पर नौकरी हासिल की। लेकिन लड़की की ईमानदारी और उसका स्वाभिमानी भ्रष्ट अधिकारियों को खलने लगा। ये चरित्रहीन अधिकारी कभी कमरे सजाने की बात करते हैं तो कभी तेरिन्दर भाटी जैसे ईमानदार अधिकारियों के खिलाफ लिखित शिकायत देने का दबाव डालते हैं। ये नीची मानसिकता के भ्रष्ट अधिकारी स्वाभिमानी लड़की को नीची जाति बताकर फब्तियां कसते है। नोएडा मेट्रो रेल कार्पोरेशन की जड़ोें को भ्रष्टाचार का कीड़ा खाना शुरु कर दिया है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री मोदी की ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ योजना का मान रखना चाहिए। और अपर महा प्रबंधक रजनीश पाण्डेय पर लगे आरोपों की जड़ तलाशी की जॉंच कर दोषियों को दण्डित करना चाहिए। नहीं तो एनएमआरसी जैसी संस्था भ्रष्टाचार की दलदल में समा सकती है।


यह जानकारी केवल रजनीश पाण्डेय पर लगे चरित्रिक दोष के बारे में नहीं है। बल्कि उन पात्रों के बारे में है जहां से एनएमआरसी में आर्थिक घोटालों की शुरुआत होती है। जिसे आलोक टंडन, निशा वाधवान और पूर्णदेव उपाध्याय संचालित करते हैं। भ्रष्टाचार का यह दीमक संस्थाओं को किस प्रकार खा रहा है? और जनता के टैक्स पर अधिकारियों की ऐश को ‘द्रष्टा’ अपने अगले भाग में बतायेगा। ....क्रमश: जारी है। 


रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

Tuesday 14 January 2020

मुख्यमंत्री योगी को मालूम ही नहीं, भ्रष्टाचार ने कर लिया नोएडा मेट्रो पर कब्जा

 रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 



'पत्र योद्धा' अभियान ने खोली नोएडा मेट्रो के घोटालों की पोल 


यूपी में बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही की एक सबसे बड़ी बानगी देखने को मिल रही है। नोएडा मेट्रो रेल कार्पोरेशन (एनएमआरसी) अपने पैरो पर खड़ा भी नहीं हो सका था कि भ्रष्ट अफसरशाही जैसे कैंसर ने अपने चपेट में ले लिया। मुख्यमंत्री को मालूम ही नहीं कि उनके अफसरों और मंत्रियों ने मेट्रो पर कब्जा जमा लिया है। 'द्रष्टा' न्यूज के हाथों लगे महत्वपूर्ण शिकायती दस्तावेजों से यूपी सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था की पोल खुल रही है। सरकारी सम्पत्ति को अपनी बपौती समझकर मेट्रो के भ्रष्ट अफसरों ने नियम-कानून, चरित्र और नैतिकता को सूली पर चढ़ा दिया है। 

नियम और कानून की अर्थी निकालने वाले अफसरों में वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन और पूर्णदेव उपाध्याय शामिल हैं। नोएडा के वर्तमान मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आलोक टंडन, नोएडा मेट्रो रेल कार्पोरेशन के महाप्रबंधक (एमडी) रह चुके हैं। शिकायती कागजातों के अनुसार एनएमआरसी के पूर्व एमडी आलोक टंडन ने पूर्णदेव उपाध्याय पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखाये हैं। आलोक टंडन ने 31 जनवरी 2018 को बिना योग्यता के पूर्णदेव उपाध्याय को महा प्रबंधक वित्त के साथ- साथ कार्यकारी निदेशक भी बनाया। एनएमआरसी में इसके पहले इस पद पर घनश्याम सिंह और शैलेन्द्र कुमार पीसीएस अधिकारी रह चुके हैं। पूर्णदेव उपाध्याय ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर 11 जनवरी 2019 को राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भी अतिरिक्त प्रभार ले लिया है। अब वो दोनों संस्थानों में नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा रहा है।


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पूर्ण देव ने जब काबिल लोगों का अधिकार हड़प लिया

पूर्ण देव उपाध्याय
‘द्रष्टा’ ने जब कागजातों की समीक्षा की तो पता चला कि पूर्णदेव उपाध्याय के भ्रष्टाचारों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है। ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि कोई अधिकारी किसी पद के लिए विज्ञापन दिया हो और वह खुद को ही इंटरव्यू दे और खुद को ही योग्य मानकर स्थायी पद पर नियुक्त हो जाये। कागजातों के अनुसार ऐसा करने वाले विचित्र मानव पूर्ण देव उपाध्याय हैं जो लाखों डिग्रीधारी व्यक्तियों में से एक हैं। विचित्रता इसलिए कि जहॉं देश में उच्च डिग्रीधारी काबिल अभ्यर्थियों  की संख्या बढ़ रही है और सरकारी नौकरीयों में जहां एक-एक खाली पदों पर हजारों व्यक्ति आवेदन कर रहे हैं वहीं कार्यकारी निदेशक पद के लिए केवल पूर्ण देव उपाध्याय का ही बायोडाटा मैच करता है।

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प्रधानमंत्री को भेजे गये दस्तावेजी कागजातों के अनुसार 7 जनवरी 2019 को पूर्णदेव उपाध्याय का स्थानान्तरण राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हो चुका था। लेकिन मेट्रो के तत्कालीन प्रबंध निदेशक आलोक टंडन ने नोएडा मेट्रो का चार्ज बरकरार रखा। कार्यकारी निदेशक की स्थायी नियुक्ति निकालने के लिए बोर्ड की अनुमति के बगैर पद के मानकों से संबंधित नियम एवं शर्तों में बदलाव किया गया। विज्ञापन को देखने से पता चलता है कि वैंकेसी के नियम व शर्ते, जैसे किसी विशेष व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए ही बनाई गईं हो। बोर्ड की बगैर अनुमति के इन नये नियम-शर्तों में स्वयं पूर्णदेव उपाध्याय फिट बैठ रहे थे। इस पद के लिए आईइएस, आईआरटीएस व रेलवे ट्रांसपोर्टेशन के अधिकारियों को वरीयता नहीं दी गयी थी।

कार्यकारी निदेशक विज्ञापन 

फाइनेंस में 23 साल का अनुभव जीएम पद पर 2 साल तक काम किया हो की प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक का अनुभव आदि ऐसा विज्ञापन में लिखा है। विज्ञापन के अनुसार ऐसा बायोडाटा केवल पूर्णदेव उपाध्याय के पास था जो स्वयं विज्ञापन दाता थे।  एनएमआरसी द्वारा 8 फरवरी 2019 को दिये गये इस विज्ञापन की समीक्षा करने पर पता चलता है कि बोर्ड की आज्ञा के बिना ही पूर्ण देव उपाध्याय ने ही कार्यकारी निदेशक का स्थायी पद निकाला। 25 जून 2019 को इंटरव्यू की योजना बना ली। लेकिन शिकायतों के चलते स्थगित हो गया। 

आलोक टंडन ने उड़ाई बोर्ड के नियमों की धज्जियां 


वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन 
शिकायती दस्तावेज के अनुसार 3 जुलाई 2019 को निशा वाधवान ने जो पहले से ही एक विवादित कंपनी सेक्रेटरी हैं। उन्होंने पूर्णदेव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक बनाने के लिए एक फर्जी प्रस्ताव लाया। जिसमें कहा गया कि बोर्ड पूर्ण देव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक स्वीकार करे। लेकिन बोर्ड ने यह कह कर पूर्णदेव की नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया कि अनुबंध को अनुमोदन के लिए बोर्ड के सामने पहले प्रस्तुत नहीं किया गया था। लेकिन तत्कालीन महा प्रबंधक आलोक टंडन ने उत्तर प्रदेश सराकर को बिना सूचित किए पूर्ण देव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक बनाये रखा। 

शिकायती दस्तावेज के अनुसार बहुत ही सुनियोजित तरीके से एनएमआरसी की जड़ें काटी जा रही है। कंपनी सेक्रटरी निशा वाधवान और कार्यकारी निदेशक पूर्णदेव उपाध्याय की नियुक्ति वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन को भ्रष्टाचारी साबित कर रहा है। इस पद के लिए योग्य व्यक्तियों के अधिकारों का हनन कर आलोक टंडन जैसे आईएएस ने पूर्ण देव उपाध्याय का पक्ष क्यों लिया? यह जॉंच का विषय है। 
उत्तर प्रदेश के लिए एनएमआरसी जैसी संस्था वरदान साबित हो सकती थी। लेकिन जन्म के समय ही इस संस्था में भ्रष्टाचार का दीमक प्रवेश कर गया है। यह जानकारी केवल आलोक टंडन, निशा वाधवान और पूर्णदेव उपाध्याय के बारे में नहीं है। बल्कि उन पात्रों के बारे में है जहां से एनएमआरसी में आर्थिक घोटालों की शुरुआत होती है। यह दीमक संस्थाओं को किस प्रकार खा रहा है? और नागरिकों के टैक्स पर अधिकारियों की ऐश को ‘द्रष्टा’ अपने अगले भाग में बतायेगा। ....क्रमश: जारी है।

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रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

Saturday 11 January 2020

आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी


रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने वाले इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना का विरोध भला, वो किस प्रकार कर पाते ? इस योजना पर कुछ नेताओं ने बोलने की कोशिश की लेकिन नैतिक बल के अभाव में उनकी सांसे टूट गयीं।

देश के किसान गरीबी से तंग आकर स्वहत्या कर रहे हैं। बिहार- झारखण्ड के आदिवासी दिल्ली जैसे महानगरों में अमीरों की गुलामी कर पेट पाल रहे हैं। छात्र-छात्रायें फीस वृद्धि के खिलाफ सरकार की लाठियां खा रहे हैं। बेरोजगार युवा नौकरी की तलाश में ठगे जा रहे हैं। असंवैधानिक कानून एनआरसी और कैब के विरोध में आम नागरिक सड़कों पर खून बहा रहे है। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र के अधिकतर आदिवासियों की प्रति व्यक्ति आय जहाँ औसतन 20 रुपये प्रतिदिन है। देश का आम नागरिक जिस आर्थिक मंदी से जूझ रहा है उसी आर्थिक मंदी के दौरान भाजपा की दुगनी और कांग्रेस पार्टी की चौगुनी आय बढ़ जाती है।

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नोटबंदी के बाद साल 2017-18 में भाजपा की कुल आय 1,027 करोड़ रुपये थी। 2018-19 में भाजपा की आय बढ़कर 2,410 करोड़ हो गयी। यानि भाजपा की आय में 134 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी। कांग्रेस पार्टी जो सत्ता में नहीं है उसकी 2018-19 की कमाई में चार गुना बढ़ोत्तरी हो गयी। 2017-18 में कांग्रेस की  आय 199 करोड़ रुपये थी। जो 2018-19 में बढ़कर 918 करोड़ हो गयी। यानि कांग्रेस की आय में 361 प्रतिशत की वृद्धि हुयी।

इलेक्टोरल बांड यानि पाप की कमाई को कानूनी मान्यता

इलेक्टोरल बांड अर्थात् हिन्दी में ‘चुनावी बंधन’ पत्र के जरिये पाप की कमाई को राजनीतिक दल खुलेआम चंदा के रुप में लेते है। चुनावी चंदा की व्यवस्था में सुधार के नाम पर फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा इलेक्टोरल बांड योजना मोदी सरकार द्वारा लाया गया था। जिसे तत्कालीन एनडीए की मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। देश की जहां अधिकतर योजनाएं कागजों पर सफल हो रही हैं वहीं राजनीतिक दलों के लिए ‘चुनावी बंधन’ पत्र नरेन्द्र मोदी सरकार की सबसे व्यवहारिक, निर्विवाद और एक सफल योजना साबित हो रही है। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भूनाकर रकम हासिल करते हैं। महज 1 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टियां भी इस योजना का लाभ उठा सकती हैं यदि उनका साठगांठ देशी-विदेशी पूंजीपतियों से हो तो। राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने वाले इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना का विरोध भला, वो किस प्रकार कर पाते ? इस योजना पर कुछ नेता बोलने की कोशिश किये लेकिन नैतिक बल के अभाव में उनकी सांसे टूट गयी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है ' । 
पिछले साल से अब तक देश के 16 राज्यों में भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भूनाने के लिए अधिकृत किया गया। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 12 चरणों में कुल 6,128 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं। इसमें से सबसे ज्यादा 1879 करोड़ रुपये के बॉन्ड मुंबई में बेचे गए हैं। दिल्ली में सबसे ज्यादा 4,917 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए गए हैं। रिटायर्ड कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दाखिल आरटीआई आवेदन के जवाब में यह जानकारी मिली है। इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा 30.67 फीसदी हिस्सा मुंबई में बेचा गया। इनका सबसे ज्यादा 80.50 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया। 
इसी साफ सुथरी योजना इलेक्ट्रोरल बांड के जरिये सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिला। चुनाव आयोग ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा 210 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। भाजपा की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में उसकी 2,410 करोड़ रुपये की आमदनी में से 1,450 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए आए। ये भाजपा की कुल आय का लगभग 60 प्रतिशत है। जबकि कांग्रेस को 2017-18 की पाप की कमाई हासिल करने वाली प्रतियोगिता में मात्र पांच करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त हुए थे। साल 2018-19 में चुनावी बॉन्ड के जरिए कांग्रेस को 383 करोड़ रुपये की आय हुई जो कुल आय की लगभग 48 प्रतिशत है। 
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एडीआर की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण का भी  यही तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से कॉरपोरेट और उद्योग जगत को फायदा हो रहा है और ऐसे बॉन्ड से मिले चंदे का 95 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है। बाकी सारे दल मिलाकर भी इस बॉन्ड से सिर्फ 11 करोड़ रुपये का चंदा हासिल कर पाए थे। चुनाव आयोग ने इस मामले में चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी। 

द्रष्टा मानता है कि जो सत्ता में रहता है वो दिन का द्योतक है और जो विपक्षी पार्टी सत्ता से बेदखल होती है वह रात की द्योतक है। देश के नागरिकों को मनन, मंथन, चिंतन करने की आवश्यकता है कि क्यों सत्ता में रहने वाली पार्टी बीजेपी की दिन दुगनी आमदनी बढ़ती है। और सत्ता से बेदखल कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी बढ़ती है? पार्टीयों की खेमेबंदी में बंटकर रोटी, कपड़ा और मकान की प्राथमिकता को भूल जाना आप पर कितना भारी पड़ा है इस खबर से सबक सीख सकते हैं। सोशल मिडिया पर पार्टियों की भक्ति  और ‘आई सपोर्ट.. फलाने’ लिखने वाले विचार करें कि पिछले चार सालों में उन्होंने कितना विकास लक्ष्य प्राप्त किया? बेरोजगार युवक पता करें कि उनके अगल-बगल रहने वाले कितने दोस्तों को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी मिली है। परिवार का मुखिया यह तय करें कि उनके परिवार की आमदनी दुगनी हुयी या चौगुनी बढ़ी।

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