Monday 4 May 2020

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

Ravikant Singh


[Edited by: Ravikant Singh]29-11-2018 01:48:27 AM

चौकीदार ये ज़ुल्म कर, अपनों  पे रहम किसानों पे सितम 



किसी भोज कार्यक्रम में अतिथियों के खाने के बाद जब भोजन बच जाता है, तो अक्सर आयोजक बचे भोजन को बर्तन साफ करने वाले मजदूरों में बांट देते हैं। भोज के इस कार्यक्रम को सफल बनाने में ऐसे मजदूरों की बड़ी भूमिका होती है पर मजदूर अतिथि नहीं कहलाते। बस देश में, सरकारें किसानों के साथ ऐसा ही करती आयी हैं। राजनेताओं की निगाह में पूंजीपति सरकार में शामिल अतिथि हैं और किसान वो मजदूर जिसके हिस्से में बचाखुचा भोजन बंटता है। किसानों के साथ पूंजीवादियों का ऐसा व्यवहार सदियों से है। आज किसान, क्रांति की दहलीज पर खड़ा है। अपनी ताकत से सत्ता के मद में चुर जुमलेबाज नेताओं के मन में खौफ पैदा करने के लिए किसान  महाराष्ट्र के  पुणे और दिल्ली की सड़कों पर पैदल मार्च कर रहे हैं।  किसानों का नेतृत्व करने वाले नेता बार-बार चुक कर रहे हैं। लेकिन किसान उनका दामन अब भी थामें हैं। आज किसान एक बार फिर क्रांति की दहलीज़ पर खड़ा है।    

किसानों का आन्दोलन देश की आजादी के साथ भी था और आजादी के बाद भी है। ये आन्दोलन देश में नया नहीं है। सदियों से किसानों के साथ सामंत,पूंजीपति छल करते रहे हैं। ऐसा छल जो वन में श्रीराम के साथ रावण ने किया था। सोने का हिरण दिखाकर उनकी पत्नि सीता को हर लेता है, ठीक उसी प्रकार काल्पनिक विकास दिखाकर पूंजीपतियों की सरकार किसानों के साथ छल करती है। और किसान बेआबरु होकर मौत को गले लगा लेता है। कृषि प्रधान देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या कितनी है, अब ये महत्वपूर्ण नहीं रहा, महत्व की बात ये है कि इस सिलसिले को कितनी जल्दी रोका जा सकता है।

राजनीतिक हलकों में शोर-शराबे के बीच लोकतत्र की बातें सुनने को मिल ही जाता है। देश में लोकतंत्र की बातें सुनने से कानों को सुख मिलता है। लोकतंत्र में बड़े ही अरमानों से देश का मतदाता अपना जनप्रतिनिधि (राजनेता)चुनता है। इस विश्वास के साथ कि उनके जीवन को सरल बनाने के लिए ये जनप्रतिनिधि (राजनेता) काम करेंगे। जिससे समाज की प्रगति और उन्नति होगी। तथा संघर्षशील परिश्रमी लोगों के सुख समृद्धि में वृद्धि होगी। आजादी से लेकर अब तक देश स्वतंत्र रुप से राजनेता चुनता रहा है। परन्तु अब तक देश की सामाजिक और आर्थिक स्तर पर गैर बराबरी (असमानता) कम नहीं हुई है। अब भी दलित के बेटे-बेटीयों की बारात ब्राह्मण और ठाकुरों की गलियों से होकर गुजरने नहीं दी जाती। गलति से भी यदि दलित का बच्चा दुल्हा बनकर घोड़े की सवारी कर ली तो बिन पिटे उसे दुल्हन नहीं मिल सकती। आर्थिक स्तर पर तो इस महान देश में खुल्लम-खुल्ला गैर बराबरी है, और ये गैर बराबरी स्वीकार हो या हो हमें इसे जीना पड़ता है। इस गैर बराबरी पर डाक्टर नसीम निखत का एक शेर है कि

अमीरों के लिए सारी रियायत, हर इनायत है।
गरीबों के निवाले भी सियासत, छिन लेती है।

हाड़तोड़ परिश्रम कर लोगों के पेट भरने वाले देश के किसान अब सड़क पर आन्दोलन कर रहे हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रहे अन्नदाता सरकार से कर्जमाफी की मांग कर रहे हैं। किसानों की इच्छा है कि उनकी ऊपज का उचित मूल्य मिले। वे मांग कर रहे हैं कि उन्नत खेती के लिए कृषि यंत्रों-संयत्रों पर उन्हें टैक्स की छूट मिले। उन्हें बिजली, पानी, खाद मिले। वे अपने लिए वही सहुलियतें मांग रहे हैं जो राजनेता उन्हें देने की बात कहकर सत्ता में आते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता। राजनेता किसानों के वोट से सरकार बनाते हैं और पूॅजीपतियों को रियायत देते हैं और उनका कर्ज माफ करते हैं। ऐसा हर बार होता है चाहे सरकार किसी भी दल की रही हो।

टैक्स छूट एक कारोबार

राज्य सभा में जनता दल यूनाइटेड के सांसद पवन वर्मा मई 2016 में बैंकों के औद्योगिक घरानों पर बकाए कर्ज का मुद्दा उठाते है और कहते हैं कि सरकार किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रही है। सरकार का 72 हजार करोड़ तो केवल अडानी समूह ही दबा रखा है। लेकिन दो महिने बाद जुलाई 2016 में सांसद की आवाज और गरीब किसानों का मजाक बनाते हुए,अडानी समूह पर मेहरबान मोदी सरकार, 200 करोड़ का जुमार्ना माफ कर देती है। पवन वर्मा ने संसद को बताया था कि 'सरकारी बैंकों पर ऐसे लोगों को लोन देने के लिए दबाव डाला जाता है जो कर्ज चुका पाने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि सरकारी बैंकों का लगभग 5 लाख करोड़ रुपये बकाया है। इसमें से करीब 1.4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज तो पांच कंपनियों पर है। उन्होंने कंपानियों लेंको, जीवीके, सुजलोन एनर्जी, हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी और खास तौर पर अडाणी ग्रुप अडाणी पावर का नाम बताया था।

 मशहूर लेखक और वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ का कहना है कि सरकार ने पिछले नौ सालों में कंपनियों को 365 खरब रुपए की टैक्स छूट दी है। इसका एक बड़ा हिस्सा तो हीरे और सोने जैसी चीजों पर टैक्स छूट में दिया गया। साईनाथ का मानना है कि सरकार अगर ये रकम टैक्स छूट में नहीं देती तो इससे लंबे समय तक मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का खर्च उठाया जा सकता था। उनका कहना है कि टैक्स छूट एक कारोबार बन गया है।

यूपीए सरकार के साल 2005-06 के मुकाबले साल 2013-14 में माफ की गई रकम में 132 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। बिजिनेस घरानों (कॉरपोरेट) का 365 खरब रुपए सरकार ने माफ किया। यूपीए की मनमोहन सरकार के इसी रवैये को कोसते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता हासिल की। और अमीरों को रियायत थोड़ा बढा-चढा कर दिया। वर्तमान में सरकार सोने पर 10800 करोड़ की सब्सिडी दे रही है, जो रेलवे को दी जा रही सब्सिडी से ज्यादा है। 2014 से लेकर अब तक एनडीए की मोदी सरकार ने तो अमीरों के लिए खजाना ही लुटा दिया। जिसकी भरपाई देशवासी अपनी जमापूँजी से कर रहे हैं।

किसानस्वामीनाथन आयोगकी सिफारिशें लागू करने की सरकार से मांग कर रहे हैं। पूरे भारत के किसान संगठनों की ये जायज मांगे हैं। जिसे सरकार भी नाजायज नहीं कहती। लेकिन सरकार लागु नहीं करती, कारण विश्व व्यापार संगठन (डब्लुटीओ) से किया गया समझौता है। ये दुनिया भर के पूंजीपतियों का वह संगठन है जो किसानों को बदहाल ही रखना चाहता है। राजनेता वोट मांगते समय किसानों को इसके बारे में बताते नहीं है। इस मुद्दे पर बड़े राजनेता तो किसानों के साथशब्दछलकरते हैं। इस मुद्दे पर बेबाक बोलने की औकात राजनेता में नहीं है। नेताओं को सैर-सपाटे के लिए चार्टर प्लेन किसान तो देता नहीं। फाईवस्टार होटलों में ठहरा नहीं सकता। मंहगे मशरुम और काजू की रोटी खिला नहीं सकता। तो भला कौन सा राजनेता प्याज और सुखी रोटी खाने के लिए किसानों के घर में जायेगा। ऐसे में पूंजीपतियों के चन्दे पर ऐश करने वाले राजनेताओं की औकात अपने आकाओं से दुश्मनी मोल लेने की नहीं है।

जगजाहिर है कि अंबानी परिवार, गौतम अडानी, विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी तमाम विवादित कारपोरेट घरानों पर सरकार ने खजाने लुटाए हैं। जब कोई व्यक्ति पिता बनता है तो, जिस प्रकार अपने बच्चों पर तन, मन, धन न्योछावर करता है। ठीक उसी प्रकार कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों ने मेहनतकश देशवासियों का धन पूंजीपतियों को न्योछावर किया है। दोनों दलों को पता है कि आज मेरी बारी, कल तेरी बारी है। कांग्रेस और बीजेपी में इस काम की प्रतियोगिता भी खुब होती है कि कौन इन कारपोरेट घरानों को सबसे अधिक दुलार करता है। और कौन नेता ज्यादा अमीरों के तलवे चाट कर इतिहास बनायेगा? दोनों दलों का लाडला रंगीन मिजाज विजय माल्या आज भी हसीनाओं के साथ मौज कर रहा है, और किसान रुखी-सुखी खाकर सरकार से अपने अधिकारों की मांग कर रहा है।   





No comments:

Post a Comment

Featured post

द्रष्टा देगा मुक्ति

संपादकीय देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों...