Friday 29 January 2021

किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग

 

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
स्वर्ग की सैर -7

अमीर-गरीब का भेदभाव इन सुविधाभोगी मंत्रियों में मरने के बाद भी विद्यमान है। किसानों के पसीने से इन हरामखोर मंत्रियों को बदबू आती है। ये मंत्री धरती से स्वर्ग में आने वाले दरवाजे को किसानों के लिए बंद कर दिये हैं। जीते जी किसान, धरती के भोग -विलास में डूबे नागरिकों की समस्या हैं और मरने के बाद स्वर्गवासियों की समस्या बन रहे हैं।


...आध्यात्मिक व्यक्ति इस जगत को नश्वर और काल्पनिक मानता है। कल्पनाएं ही उसकी उम्मीदें हैं और उम्मीदों के सहारे ही वह कभी-कभी नश्वर हकीकत से रुबरु हो पाता है। मैं विचारों के प्रवाह में तैर रहा था तभी दो देवदूत देवराज का संदेशा लेकर प्रकट हुए। एक ने कहा कि आप को स्वर्ग की सभा में उपस्थित होने के लिए देवराज ने आदेश दिया है। मैं अपनी कल्पनाओं को हकीकत का रुप दे पाता इससे पहले दूत स्वर्ग में जल्द चलने की बात दोहराने लगे। मैंने दूतों से छण भर रुकने को कहा परन्तु, दूतों ने अपने मन की बात की और दोनों दूतों ने मेरा हाथ पकड़कर स्वर्ग में खड़ा कर दिया....

स्वर्ग में देवराज सहित सभी देवता पहले से ही उपस्थित थे। देवता मुंह लटकाए अपने-अपने आसनों से बंधे थे। गुरु वृहस्पति भी चिन्ता के सागर में गोते लगाते दिखाई पड़ रहे थे। मैं भी अपनी पुरानी टुटी हई कुर्सी पर बैठ गया। मुझे देखते ही देवताओं ने घूरना शुरु कर दिया। देवताओं का तेवर मेरे मन में घबराहट पैदा कर सकती थी लेकिन धरती पर सत्ताधीशों के तेवर की तुलना में मुझे देवताओं का तेवर फिका लग रहा था। मैं कारण समझ रहा था। स्वभावत: द्रष्टा के तौर पर मैं निर्भय हूँ।  

(डैसिंग देवराज और ब्यूटिफूल इंद्राणी का आगमन हुआ। देवराज ने मेरी ओर अपनी नजरें घूमाई और पूछा)

देवराज- कब खत्म होगा ए किसान आन्दोलन? तुम्हारी सरकार निर्णय क्यों नहीं ले पा रही है?

द्रष्टा- देवराज मैं आपके प्रश्नों का जबाब दे दूँगा लेकिन आपको बताना होगा कि ‘‘किसान आन्दोलन से आपका क्या सरोकार है’’?

देवराज- ‘प्रश्न’ का उत्तर ‘प्रश्न’ नहीं होता द्रष्टा। आप मेरे प्रश्नों का सीधा उत्तर दें। 

द्रष्टा-  मैंने कहा न कि ‘‘पहले आपको बताना होगा कि किसान आन्दोलन से आपका क्या सरोकार है।

देवराज-(मुंह बनाते हुए) मेरे स्वर्ग में भी किसान आन्दोलन गति पकड़ रहा है। देवराज मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं। भारतवर्ष की सरकार पर फर्क पड़े या न पड़े परन्तु, मेरी सरकार पर तो फर्क पड़ने लगा है।

द्रष्टा-  वो कैसे?

देवराज- स्वर्ग में अन्नदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। एक से बढ़कर एक किसान नेता पहले से ही स्वर्ग में अड़ी जमाए बैठे हैं। स्वामी सहजानन्द सरस्वती और सबके प्रिय बापू स्वर्गवासियों को स्वच्छता और चरखे से सूत काटना सिखा रहे हैं। भगत सिंह अपने साथियों के साथ इंकलाब के नारे लगा रहे हैं। सुभाष नेता जी अभी भी 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा' की रट लगा रहे हैं। यही नहीं चन्द्रशेखर आजाद मुझे गोली मारने पर आमादा हैं। स्वर्ग में अचानक इन क्रान्तिकारियों का यह तेवर देखकर सभी स्वर्ग के देवता दहशत में हैं।  

इंद्राणी- हां द्रष्टा, देवराज जी को अपनी कुर्सी और जान जाने का डर सता रहा है। 

देवगुरु वृहस्पति-इसीलिए, मैंने स्वर्ग में प्रेस कांन्फ्रैस बुलाई है। 

द्रष्टा - तो यह बात है, देवराज ने कुर्सी और जान जाने के भय के कारण ये प्रेस कांफ्रेंस बुलाई है। तो, देवराज पृथ्वीवासियों की तरह आप भी द्रष्टा के साथ बेवजह का सवाल करने लगे हैं। आपको केवल अपनी समस्या बतानी चाहिए न कि सवाल करना चाहिए। सवाल करना मेरा काम है। आप भी मीडिया को अपने कब्जे में लेने की सोच रहे हैं क्या?

इंद्राणी- (देवराज के भय का भेद खोलते हुए)वो क्या है न द्रष्टा, धरती पर गंदी राजनीति करने वाले कुछ सत्ताधीशों ने स्वर्ग में सीट रिजर्ब कराने के लिए प्रभु से संपर्क किया था। बगैर लेनदेन के स्वर्ग में भी सुनवाई नहीं होती है। और बद्दिमाग सत्ताधीश धरती की मुद्रा स्वर्ग में ला भी नहीं सकते। तो, प्रभु ने प्रपंची राजनेताओं से सत्ता में बने रहने का गुरुमंत्र सीखने का सौदा कर लिया। अब इन्हीं प्रपंची ढोंगी सत्ताधीशों और अपने सहयोगी प्रशासनिक अधिकारियों के बल पर सत्ता बचाना चाहते हैं। 

द्रष्टा- मंत्री परिषद् क्या कर रही है। मंत्री देवराज का विरोध क्यों नहीं कर  रहे हैं?

(नारायण...नारायण ब्रह्मर्षि नारद जी स्वर्ग में प्रकट हुए। देवता अपने आसनों को छोड़ खड़े हो गये और नारद जी का स्वागत किया। मैं हैरान था कि स्वर्ग में अभी भी पत्रकारों का सम्मान बरकरार है। हमारे यहां तो सत्ताधीश और वैमनस्यता के भाव में डूबी जनता दोनों पक्ष पत्रकारों को आतंकवादी, भड़वा और संस्थानों को गोदी मीडिया बोलती है। मैं भी अपने वरिष्ठ साथी नारद जी को प्रणाम किया और अपने आसन पर बैठ गया।)

नारद- किसान स्वर्ग में आने वाले रास्ते को घेर क्यों बैठे हैं देवराज? उनकी सुनवाई क्यों नहीं हो रही है?

देवराज को घूस देकर स्वर्ग में आए एक उचक्का मंत्री उचक-उचक के नारद को जबाब देने के लिए लालायित हो रहा था। 

मंत्री- आल देज आर फेक फार्मरस्? दे आर टेररिस्ट।  इट इज डीसोल्वींग द पीस आॅफ अवर सीटीस् पीपूल। 

द्रष्टा- मंत्री जी, आप कह रहे हैं कि ये सभी नकली किसान और आतंकवादी हैं और आपके शहर की शान्ति भंग कर रहे हैं।  आप आन्दोलनकारियों के खिलाफ ऐसी वाहियात बात किस आधार पर कह रहे हैं। 

दूसरा मंत्री- लगता है द्रष्टा, ‘‘आप न्यूज चैनल नहीं देख रहे हैं। आपकी जानकारी में बता दूं कि ये ब्रांडेड जींस कपड़े पहनते है और महंगी गाड़ियॉं और सुख सुविधाओं का अम्बार है। आप ही बताओं भला किसान गरीब कैसे है’’?

द्रष्टा - मंत्री जी, आप धरती से स्वर्ग में भी आकर नहीं सुधरे। गधे तब भी थे और अब भी हो। 

(मेरा जबाब सूनकर स्वर्ग सभा में उपस्थित हरामखोर मंत्री आग बबूला हो गया और बोला,‘‘ये क्या बदतमीजी है’’?

वृहस्पति- ‘‘शांत हो जाइए मंत्री महोदय, शांत... द्रष्टा क्रिया और प्रतिक्रया को केवल अभिव्यक्त करता है। ‘एकोद्रष्टासि सर्वस्य’.... इसलिए आप सभी द्रष्टा को सूनों’’।


द्रष्टा- स्वर्ग की सभा को मालूम होना चाहिए कि आन्दोलन करने वाले पेशे से किसान और मजदूर हो सकते हैं लेकिन भिखारी नहीं हो सकते हैं। सबकी अपनी मेहनत की कमाई है वह अपना शौक पूरा कर सकते हैं। किसानों के ठाट- बाट से आपको ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। वे भ्रष्ट अफसरशाही और उनके द्वारा बनाये गये कृषि कानून को लेकर अपने भविष्य से चिन्तित है। इसलिए कृषि बिल 2020 को खत्म करने की बात कर रहे हैं। बस, केवल इतनी ही बात है। और हां मंत्री परिषद् के लोग बताइए कि ऐसा कौन सा काम आप करते हैं कि आपके खजाने की दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी होती है।

नारद- द्रष्टा सही कह रहा है देवराज, इन मंत्री साहब के दोस्त मंत्री भी जो कल तक किसानों को खलिस्तानी आतंकी और न जाने क्या-क्या बकवास कर रहे थे। मैंने देखा कि इन्हीं किसानों के लंगर में ये मंत्री लोग प्लेट चाट रहे थे।

द्रष्टा- देवराज, किसानों की मांग पूरी हो या न हो। मंत्रियों के इस करतूत को थूक के चाटना कहते हैं। देवराज इन मंत्रियों और नौकरशाहों के प्रपंच में 65 दिनों से धरनारत 160 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है और अब वे सभी एक-एक कर स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। अमीर-गरीब का भेदभाव इन सुविधाभोगी मंत्रियों में मरने के बाद भी विद्यमान है। किसानों के पसीने से इन हरामखोर मंत्रियों को बदबू आती है। ये मंत्री धरती से स्वर्ग में आने वाले दरवाजे को किसानों के लिए बंद कर दिये हैं। जीते जी किसान, धरती के भोग -विलास में डूबे नागरिकों की समस्या हैं और मरने के बाद स्वर्गवासियों की समस्या बन रहे हैं।

देवराज दरअसल, यही आप की भी समस्या है। आप चाहते हैं कि धरती पर जो आन्दोलन हो रहा है उसमें किसान न मरे, नहीं तो धर्मयुद्ध में मरने की वजह से किसानों को सीधा स्वर्ग में जगह प्राप्त होगा। किसानों के साथ न्याय कैसे और कब होगा? वे अपने अस्तित्व की रक्षा कर पायेंगे कि नहीं? यह प्रश्न न पूछकर आप किसान आन्दोलन खत्म कब होगा? यह पूछ रहे हैंं। 

इंद्राणी- सही पकड़े हैं। इन्होंने असली-नकली किसान परखने के चक्कर में घनघोर बारिश कर दी थी। कुछ किसान स्वर्ग में शहीद होकर और आ गये हैं। किसानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 

द्रष्टा- देवराज, अब किसान और सरकार के बीच रण भीषण होगा। सत्ताधीशों के चक्रव्यूह में किसान नेता फंस चुके हैं। किसान आन्दोलन अपने चरम पर है। किसानों ने लठ्ठ गाड़ दी है। देखा जाय तो, किसानों को झूकाना सरकार के बलबूते का नहीं हैं। सभा को मैं बताना चाहता हॅूं कि यह नौबत स्वर्ग में आये इससे पहले देवराज को मेरी सलाह है कि ‘‘वे चापलूसी पसंद और प्रपंची मंत्रियों को पदमुक्त कर दें। किसानों को हृदय से स्वीकार करें।’’ 

(सभा में देवगण और गुरु वृहस्पति देवराज को समझाने में लग गये और मैंने स्वर्ग सभा को प्रणाम किया और अपने घर लौट आया।)

...............(व्याकरण की त्रुटिपूर्ण दोष के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

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Thursday 28 January 2021

किसान क्रान्ति: सत्ता के चक्रव्यूह में किसान नेता और षड्यंत्र में फंसा आन्दोलन

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो ,कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

देश के किसानों के साथ धोखा है, अत्याचार है। बीजेपी के विधायक 300 लोगों के साथ लाठियों डंडों के साथ मौजूद हैं। बीजेपी के लोग साजिश कर रहे हैं। बीजेपी किसानों को मरवाना चाहती है। ये उक्त बातें किसान नेता राकेश टिकैत ने प्रेस के सामने भावूक होकर रोते हुए कही। राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद दो किसान संगठनों ने आंदोलन खत्म करने की घोषणा की है।

भारतीय किसान यूनियन (भानु) और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने बुधवार को आंदोलन खत्म कर दिया और प्रदर्शनकारी किसान धरना स्थल से चले गए।इसके साथ ही चिल्ला बॉर्डर से किसान वापस चले गए हैं। यहां करीब 58 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा था। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने आंदोलन वपास लेने की वजह ट्रैक्टर परेड के दौरन हुई हिंसा को बताया है।

किसान नेता राकेश टिकैत

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‘द्रष्टा’ देख रहा है कि देश के किसान और मजदूर आर्थिक तंगी और बदहाली से लाखों किसान बेमौत मारे गये। कृषि कानून 2020 आर्थिक गुलामी की तरफ झोंक देगा इस आशंका से आन्दोलन कर रहे हैं। मीडिया उन्हें आतंकी व असली-नकली किसान बताकर भेद पैदा करने में कामयाब रहा है। देश के लोग जरा भी भावूक नहीं हो रहे। लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो , कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

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गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड सुखदायक और ऐतिहासिक होने वाला था। लेकिन परेड में घात लगाकर पहले से ही मौजूद अराजक तत्वों ने किसानों को गुमराह कर दिया। पुलिस की गुनाहगारों के प्रति नरमी और किसान नेताओं के प्रति सख्ती ने ट्रैक्टर परेड को हिंसक बना दिया। अब इसी हिंसक घटना के सहारे सरकार किसान आन्दोलन को नाकाम बताकर खत्म करवाना चाहती है। साल भर पहले नागरिकता कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को भी रक्त रंजित करवाकर खत्म करवाया गया था। देश के नागरिकों के लिए यह सब मनोरंजन की घटनाएं हैं या उन्हें भूलने की बीमारी। सत्ता ने जो उनकी आँखें बंद कर रखी है वह कब खुलेंगी? यह भी प्रश्न समय पर छोड़ते हैं। 



26 जनवरी से सरकार का पक्ष रखने वाली मीडिया अपने दर्शकों को यह समझाने में कामयाब रही कि किसान गलत हैं। किसान नेताओं ने भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गलती स्वीकार की। किसान नेता शायद ये भूल गये कि सत्ता में बैठे नेताओं ने अपनी बड़ी से बड़ी गलती कभी भी स्वीकार नहीं की। पूलवामा हमले में मारे गये जवानों की साजिश पर मौन रहने वाली जनता 26 जनवरी की घटना पर आक्रोशित हो गई। सत्ताधीशों के दरबारी मीडिया में रात-दिन किसानों को गलत ठहरा कर समाचार प्रस्तुत किया। और इस तरह मीडिया के माध्यम से अपने विचार बनाने वाली आमजनता और किसान नेता सत्ता की साजिशों का शिकार हो गयी। 

गण और तंत्र का शक्ति प्रदर्शन

किसान क्रान्ति के बीच गणतंत्र दिवस का महत्व अधिक बढ़ जाता है। आज गण और तंत्र का ऐतिहासिक टकराव हुआ। किसानों का आक्रोश पुलिस जवानों पर कहर ढा रहा था। किसानों ने अपने रास्तों के पत्थरों और बैरिकेटिग को तोड़ दिया। एहतियातन पुलिस प्रशासन और किसान नेताओं ने जो ऐलान किया था उसकी मर्यादा दोनों ओर से टूटी। किसानों ने अनुशासन में बंधे अपने ही जवानों पर आक्रामकता दिखाई। पुलिस के जवान कहीं भीड़ गये तो, कहीं पीछे हट गये। भूखे प्यासे जवानों को पानी और भोजन खिलाने वाले किसानों का यह तांडव देख कर सरकार सकते में है। जाहिर है किसानों की जज्बाती आक्रामकता का भय उन्हें नहीं होगा परन्तु कुर्सी का भय अवश्य सता रहा होगा। ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाने वाला कृषि कानून 2020 को रद्द करें या रोक के रखें, सत्ताधीश इसी ऊहापोह की स्थिति में हैं।


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पाण्डव नगर थाने के जवानों ने एनएच 24 के मण्डावली फूटब्रीज पर बैरिकेटिंग कर मोर्चा संभाल रखा था। डीटीसी की बसों व ट्रकों को रास्ते से हटाने के लिए किसानों ने तोड़फोड़ कर दी। इस घटना से पार पाते इससे पहले पूलिस के जवान आन्दोलित किसानों से घिर चुके थे। महिला पुलिसकर्मी किसानों के आगे बेबस लाचार दिख रही थी। इसके बावजूद वे डटी रहीं और अपने साथियों की मदद करती रहीं। किसानों का जत्था सत्ता की चुनौति को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ गये। ऐसी क्रान्तियां नई पीढ़ी को सबक सीखाने के लिए काफी हैं बशर्ते उनका स्पष्ट मन और मत हो। पक्षपाती विचारधारा वाले सबक नहीं सीख सकते है। कोई नई पीढ़ी को सिखाए इससे अच्छा है स्वयं में जिज्ञासु प्रवृत्ति पैदा करें व सीखें। 

सरकार वह सभी संशाधनों को अपने हाथों में रखना चाहती है जो नागरिकों को मौलिक अधिकार कर्तव्य पूरा करने के लिए मिले हैं। सत्ताधीशों को सत्ता जाने का भय सताने लगा है। प्रेस सूचनाओं पर नियंत्रण इस बात का स्पष्ट संकेत है। इलेक्ट्रानिक मीडिया को ध्वस्त करने के लिए इंटरनेट सेवा आज के दिन ठप कर दी गयी। संविधान व उपभोक्ता कानूनों की धज्जियां उड़ाकर प्रशासन ने रख दी है। प्रभावित नागरिक यदि कोर्ट चले गये तो, इसका दण्ड भी सरकार को भुगतना पड़ेगा। 

‘द्रष्टा’ आन्दोलन के महतवपूर्ण घटनाओं को एकटक होकर देख रहा है। आन्दोलन के साथ ऐसी नाइंसाफी सत्ता ने कई बार की है। अब चक्रव्यूह में किसान नेता फंसे है और षड्यंत्र में फंसा है किसान आन्दोलन। देश के नौजवानों के लिए सबक बनने वाले इस आन्दोलन की परिणति क्या होगी? इस प्रश्न को समय पर छोड़ देते हैं।


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Saturday 23 January 2021

किसान क्रान्ति: सरकार के हितकारी कानून को किसानों ने क्यों नहीं स्वीकार किया?

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
‘लोकसम्मति के बगैर कानून सफल नहीं हो सकता है। कानून की अपनी मर्यादा होती है। वह स्वत: खड़ा नहीं हो सकता है। कानून अधिकार दे सकता है, अवसर दे सकता है लेकिन वह साधारण नागरिकों तक नहीं पहुंच सकता। वह कभी भी प्रेरणादायि नहीं हो सकता अगर सामान्य नागरिक के अभिमत का अधिष्ठान उसे प्राप्त न हो।’’


- सत्ताधीश व्यवहारिक कानून न बनाकर नागरिकों के शोषण और पूॅजीपतियों को लाभान्वित करने की नियत वाला कानून क्यों बनाना चाहते हैं? सत्ता से इस प्रश्न के जबाब पूछने की आवश्यकता है।

आमसहमति के बगैर बनने वाले कानूनों का सत्ता और नागरिकों के लिए क्रियान्वयन कितना दुखदायक होता है इसे देश समझ रहा है। एक तरफ सत्ता सरकारी योजनाओं को प्रत्येक नागरिकों तक पहुंचाने के लिए बनी संस्थाओं के अधिकारों का हनन कर रही है तो, दूसरी तरफ योजनाओं का लॉलीपॉप दिखाकर सत्ता नागरिकों को उलझा रही है। सीएए और एनआरसी पहले से ही विवादों में उलझा है। देश के जागरुक नागरिक इस सीएए कानून को संविधान का उलंघन करने वाला कानून मान रहे हंै। जो भारतीय नागरिकों के अधिकारों व उनके स्वाभिमान का गला घोंट रहा है।



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आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसु) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की असम की यात्रा से ठीक पहले अपनी मांगों के समर्थन में 22 जनवरी को मशाल जुलूस निकाला। साथ ही, आसु ने 24 जनवरी को शाह की यात्रा के दौरान सीएए की प्रतियां जला कर काला दिवस मनाने की घोषणा की है। आसु पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिनियम रद्द करने और असम संधि की धारा छह पर समिति की रिपोर्ट का क्रियान्वयन करने के भी पक्ष में है। यह धारा मूल निवासियों के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण करती है।", 

के.एन. गोविन्दाचार्य

इस विवादित कानूनों से नागरिक झुलस रहे थे कि इसी बीच कृषि कानून 2020 देश की 90 फीसदी आबादी की रोजी-रोजगार को हड़पने के लिए बना दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के नेता व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से ताल्लुक रखने वाले चिन्तक व विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य ने ‘द्रष्टा’ को बताया कि किसानों का विश्वास पुन: अर्जित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारण्टी कानून बनाने की केंद्र सरकार घोषणा करे। किसानों के आंदोलन को लगभग दो महीने होने आए हैं। हजारों किसान 58 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। लगभग 150 किसानों का दिल्ली सीमा पर बलिदान हो चुका है। अब तक आंदोलन में सहभागी किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 11 बार बातचीत हो चुकी है। किसानों और केंद्र सरकार के बीच आपसी अविश्वास के कारण अब तक की बातचीत बेनतीजा रहीं हैं।

गोविन्दाचार्य ने कहा कि किसान संगठनों की दो प्रमुख मांगें हैं। पहला- केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी कानून बनाए और दूसरा नये बनाए तीन कृषि कानूनों को केन्द्र सरकार वापस ले। 20 जनवरीको किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच हुई बातचीत में सरकार ने इन विषयों में दो प्रस्ताव किसान संगठनों के सामने रखे हैं।  पहली न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विचार के लिए केंद्र सरकार एक 11 सदस्यों की समिति बनाने के लिए तैयार है और दूसरी मांग के लिए अगले डेढ़ या दो वर्ष तक केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों को स्थगित रखने को तैयार है। 

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‘द्रष्टा’ से उन्होंने कहा कि किसानों में केंद्र सरकार के प्रति इतना अविश्वास व्याप्त है कि इन दोनों प्रस्तावों को वे आंदोलन को भटकाने या भरमाने की चालबाजी मान रहें हैं। सरकारों ने अबतक किसानों के अनेक आंदोलनों को इसी प्रकार के आश्वासन देकर तोड़ा है। बाद में सरकारें अपने वादे से मुकर जाती है या उसे एक और समिति के हवाले करके अंतहीन प्रक्रिया बना देती है। दोनों में से एक भी मांग को मनाए बिना अगर किसान संगठनों के नेता केंद्र सरकार के उपरोक्त दोनों प्रस्तावों को मान कर आंदोलन स्थगित कर देते हैं तो उनकी साख संदेह के घेरे में आ सकती है। उस कारण फिर नजदीक भविष्य में किसानों का प्रभावी आंदोलन खड़ा करना कठिन हो जाएगा। केंद्र सरकार को इस प्रकार से किसान संगठनों और उनके नेताओं को संकट में नहीं फंसाना चाहिए।

इसमें सबसे बेहतर मार्ग है कि केंद्र सरकार किसानों की जायज मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी का कानून बनाने की घोषणा करके किसानों का विश्वास पुन: अर्जित कर ले। इसी प्रकार तीन कृषि कानूनों पर पुनर्विचार के लिए एक समिति बनाए। उस समिति के निर्णय तक तीन कृषि कानूनों को स्थगित कर दे। ऐसा करने से केंद्र सरकार के प्रति किसानों में व्याप्त अविश्वास भी दूर होगा, किसान नेताओ की साख पर भी प्रश्न नहीं लगेगा और अभी चल रहे आंदोलन को स्थगित करने का मार्ग निकल सकेगा।

गोविन्दाचार्य जी की सुझाव पर सरकार कितना ध्यान देती है। इसे समय तय करेगा। सत्ताधीश व्यवहारिक कानून न बनाकर नागरिकों के शोषण और कुछ पूॅजीपतियों को लाभान्वित करने की नियत वाला कानून क्यों बनाना चाहते हैं? सत्ता से इस प्रश्न के जबाब पूछने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अपने प्रश्नों की पोटली दुनिया के सामने खोल दी है। कमेटी ने किसानों से 20 सवाल पूछ हैं और एमएसपी से एपीएमसी तक किसानों की समझ को परख रही है। समिति के वेबपेज पर मौजूद फीडबैक फॉर्म में 20 सवाल हैं, जिन्हें 5 खंडों में बांटा गया है।

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द्रष्टा का मानना है कि ‘‘लोकसम्मति के बगैर कानून सफल नहीं हो सकता है। कानून की अपनी मर्यादा होती है। वह स्वत: खड़ा नहीं हो सकता है। कानून अधिकार दे सकता है, अवसर दे सकता है लेकिन वह साधारण नागरिकों तक नहीं पहुंच सकता। वह कभी भी प्रेरणादायि नहीं हो सकता अगर सामान्य नागरिक के अभिमत का अधिष्ठान उसे प्राप्त न हो।’’ अब द्रष्टा कमेटी के एक-एक प्रश्नों व किसानों के उत्तर पर दृष्टि जमाए है। सरकार अब तक किसानों के लिए हितकारी कानून साबित करने में जुटी है लेकिन किसानों ने इसे नकार दिया है। सरकार को कानून बनाते समय किसान नेताओं और ग्राम पंचायतों से राय नहीं ली। 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च गणतंत्र परेड का डर सरकार को दिखने लगा तो, किसानों की हर बात को कान घूमाकर कबूल करने लगी। सत्ताधीशों का दम्भ अब भी कायम है। लेकिन किसान सत्तामद के इस दम्भ को निगल जायेंगे। 


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Thursday 21 January 2021

किसान क्रांन्ति : सरकार का दम्भ बनाम किसानों की मांग और सुप्रीम कोर्ट की दखल

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

एमएसपी के लिए एक कानून बनाने की बात पर किसान कायम

किसान आन्दोलन के 58 दिनों में 148 किसान अब तक शहीद हो चुके है। सरकार और लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 11 वें दौर की बैठक होनी है। 10 वें दौर की बातचीत के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार ने एक से डेढ़ साल तक इन कृषि कानूनों को निलंबित करने का प्रस्ताव किसानों समक्ष रखा है। साथ ही उन्होंने कहा कि ‘जिस दिन किसानों का आंदोलन समाप्त होगा, वह भारतीय लोकतंत्र के लिये जीत होगी’। इससे पहले 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए चार सदस्यों की समीति बनाई थी। जिस पर किसानों ने आपत्ति जताते हुए समीति के सदस्यों को पक्षपाती बताया था और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत न होने का फैसला लिया था। अब 20जनवरी को मुख्य न्यायाधीश किसानों पर भड़कते हुए बोल रहे हैं कि ‘कमेटी के पास कोई पावर ही नहीं, तो वे पक्षपाती कैसे हो गये’? आप समीति के समक्ष पेश नहीं होना चाहते तो, हम आपको बाध्य नहीं करेंगे। लेकिन आप समीति पर आरोप नहीं लगा सकते हैं। किसानों का कहना है कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक एमएसपी के लिए एक कानून बनाने की बात पर वह कायम हैं।

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‘द्रष्टा’ देख रहा है कि पूरजोर व पूरअमन तरीके से चल रहे किसान आन्दोलन-2020-21 के परिणाम की घोषणा होने वाली है। समय की परीक्षा में सरकार के मंत्री, किसान और सर्वोच्च न्यायालय शामिल हैं। किसानों का यह आन्दोलन नौजवान पीढ़ियों में जोश भर रहा है और खेती-किसानी में उन्हें जागरुक कर रहा है। किसानों को पहले आतंकवादी और नकली किसान बोलकर बेदिल, संकीर्ण मानसिकता के धनी, लोग उन पर थूक रहे थे। अब उन्हें आसमान पर थूकने का दण्ड मिल रहा है। पलटकर आसमान से गिरे अपने थूक को अब वे चाटने में लग गये हैं। कृषि बिल 2020 को सरकार के मंत्री अपनी निजी सम्पत्ति मानते हुए दुर्योधन की तरह हठ कर रहे हैं। अब हालत यह है कि जिन मंत्रियों के सिर किसानों के सामने झूकने को तैयार नहीं था अब वे कह रहे हैं कि दो साल के लिए हम अपना सिर झूका रहे हैं। सत्ताधीशों के गैर जिम्मेदाराना बयान किसानों को आक्रोशित कर रहा था। 



बंगाल चुनाव और 26 जनवरी को किसानों का दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की घोषणा, सरकार के मंत्रियों की धड़कने बढ़ा रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की किसानों ने धज्जियां उड़ा रखी है। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन सब हराम हो रखा है। किसानों का कहना है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने सरकार की तौहीन खुद कराई है।

'द्रष्टा' संवाददाता ने ‘किसानों का आक्रोश और खतरे में खट्टर सरकार’ नामक शीर्षक में सरकार को सचेत करने की कोशिश की थी। समाचार प्रकाशन के लगभग एक माह बाद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं को समझ आया कि खतरे में है खट्टर सरकार। सत्ता और सत्ताधीश होने के दंभ ने मुख्यमंत्री को बेपरवाह बना दिया। वे नकली किसान सभाएं करने लगे। मुख्यमंत्री के इस चरित्र की जानकारी मिलते ही किसानों ने सभा का टेंट उखाड़ दिया। उनके सहयोगी पार्टी के विधायक बदहवास होकर सरकार गिराने की बात करने लगे। हरियाणा सीएम की केन्द्रिय नेताओं से वार्तालाप शुरु हो गयी। 

तीन नए कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए बुधवार को मोदी सरकार द्वारा थोड़ी नरमी दिखाते हुए कानूनों को डेढ़ वर्ष तक निलंबित रखे जाने के प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया है। लगभग साढ़े पांच घंटे चली 10वें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि आपस में चर्चा जारी रख सकें और दिल्ली की विभिन्न  सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान इस कड़ाके की ठंड में अपने घरों को लौट सकें। नरेन्द्र सिंह तोमर के इन बातों को बेअसर करते हुए किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है।
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सरकार का षड्यंत्र असली और नकली किसानों का भेद जानने के लिए था या कारपोरेट से किये वादे को निभाने की जिद। सरकार के मंत्री इस काम में फेल साबित हो रहे थे तो,केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की शरण में चली गयी। सत्ता ने अपने नागरिकों को कोर्ट में घसीट कर चुनौती दी। सरकार के चाल-चलन से बाकायदा वाकिफ किसान नेताओं को ऐसी ही उम्मीद थी। दोनों पक्ष कोर्ट में भीड़ गये।

कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश शरद अरविन्द बोबडे छाये रहे। नागरिक और सरकार के इस जंग में जजों ने न्यायायिक मर्यादा का ख्याल नहीं रखा। परन्तु, नागरिकों का यह आन्दोलन इस जज की इस गुस्ताखी को भी मान गया। ‘द्रष्टा’ विशेष समय पर उनके प्रत्येक वाक्यों का विश्लेषण करेगा। बहरहाल, सत्ताधीश और न्यायाधीश अपनी ताकत जनता जनार्दन को दिखाने में कामयाब हुए। सरकार ने अब डेढ़ साल के लिए कृषि कानून 2020 पर रोक लगाने का किसानों को प्रस्ताव भेजा है। जिसे किसान नेताओं ने खारिज करते हुए एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं।


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Sunday 10 January 2021

किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

‘धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’- भाग 1

-‘नागर’ शब्द का  संस्कृत में अर्थ है जो दूसरे के साथ रह सकता है। अर्थात् नागरिक वह है जो एक दूसरे के साथ रह सके। अगल-बगल, पास पड़ोस में नहीं बल्कि एक दूसरे के सूख-दुख में सहयोगी बनकर रहना ही नागरी जीवन है। 

-बाजार केवल आर्थिक लाभ-हानि को व्यापार का आधार मानता है न कि नागरिक मूल्यों को।

किसान और सरकार के बीच 8 वें दौर की बैठक खत्म हो चुकी है। 60 से अधिक किसानों की शहादत के बाद भी सरकार ने किसानों की मांग अब तक पूरी नहीं की है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी को सुनवाई होनी है। वहीं किसानों के साथ बैठकों के बीच सरकार के मंत्री कृषि बिल 2020 को वापस न लेने की बात लगातार कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि किसानों के साथ सरकार की जो बैठक हो रही थी वह केवल प्रपंच है। षड्यंत्र में 6 प्रकार के प्रपंच होते हैं। द्रष्टा जानता है कि यह बैठकें तो, षड्यंत्रों का भंवर है जिसमें समूचे भारतीय नागरिकों को डूबा देने की शक्ति है। यह सारा सरकारी षड्यंत्र आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने की है। 

कृषि बिल 2020 का विरोध करने वाले किसानों का कहना है कि अपनी पूँजीवादी सोच की शक्ति से कारपोरेटर हमारे नागरिक अधिकारों का दमन कर कर रहे हैं और उपभोक्ता समझ रहे हैं। सरकार जानती है कि भारतीय नागरिकों की क्रय शक्ति क्या है? इसके बावजूद कारपोरेट के इशारे पर हमें असंतुलित बाजार में सरकार झोंक रही है। बेलगाम पूॅजीवादी प्रतियोगिता में हमें निचोड़ा जा रहा है। केंद्र से आया प्रस्ताव ठुकराने के साथ ही किसानों ने गौतम आडानी-अंबानी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। किसानों ने अंबानी के पुतले जलाए, भारी संख्या में जियो के सिम तोड़ी और अपने नंबर अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वे ‘सरकार की असली मजबूरी, अडानी-अंबानी जमाखोरी’ जैसे नारों को अब जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे और इन दोनों कॉरपोरेट घरानों के तमाम प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट पूरे देश में किया जाएगा।

‘द्रष्टा’ का मानना है कि हम किस वस्तु का उपभोग करेंगे यह प्रत्येक नागरिक का अपना अधिकार है। बाजार नागरिक की इच्छा के विपरित व्यवहार करता है। बाजारु लोगों की प्रकृति है कि वह हमें नागरिक न समझकर अपना उपभोक्ता समझते हैं। मानव सभ्यता फले -फूले इसके लिए मनुष्यों ने बाजार का निर्माण किया। मानव जीवन सरल और सुव्यवस्थित हो इसके लिए बाजार को संतुलित रखने व उच्च प्रबंधन पर जोर दिया। एक दूसरे से लेन-देन के लिए उत्पादित वस्तुओं का विनिमय अदला-बदली करना ही मानव के द्वारा शुरुआती व्यवसाय था। मानव सभ्यता के विकास के क्रम में उसने इसे जटिल बनाना शुरु कर दिया। जाहिर है मानव ने स्वार्थवश लोभ में आकर ऐसा किया है। और इस तरह लोभ और स्वार्थ को व्यवसाय से जोड़कर मानव ने एक गैर बराबरी वाली प्रतियोगिता की परम्परा बना दी। आज उसी परम्परा का विभत्स रुप आप देख रहे है। 

अडानी  और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं?


धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’ पंजाबी भाषा में कहे गए इस नारे का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी न तो धर्म से सरोकार रखते हैं और न ही विज्ञान से, वे सिर्फ रिलायंस (कॉरपोरेट) से सरोकार रखते हैं। इन दोनों कॉरपोरेट घरानों का ये विरोध सिर्फ नारों और सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पंजाब के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रिलायंस के पेट्रोल पंप से रिलायंस के तमाम स्टोर्स और अडानी ग्रुप के एग्रो आउटलेट्स का बहिष्कार किया है, मुकेश अंबानी के पुतले जलाए हैं और भारी संख्या में जियो के सिम तोड़े हैं और अपने नंबर किसी अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। इसी तरह के विरोध को अब पूरे देश में फैलाने की बात किसान कर रहे हैं। किसान तमाम कॉरपोरेट घरानों में से सिर्फ अदाणी और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल कहते हैं, ‘ये सरकार पूरे देश को कॉरपोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है। अडानी -अंबानी कॉरपोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं जो पिछले थोड़े ही समय में बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं और मुख्य कारण यही है कि राजसत्ता और पूंजी साथ-साथ चल रहे हैं। ये दोनों ही ग्रुप मौजूदा सत्ता के बेहद करीब हैं और ये किसी से छिपा नहीं है।

इसके अलावा इन दोनों घरानों का नाम प्रतीकात्मक रूप से भी इस्तेमाल होता है। हमने इनके अलावा अन्य कॉरपोरेट घरानों का भी विरोध किया है जिसमें एस्सार ग्रुप जैसे नाम भी हैं। उनके पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार पंजाब में हुआ है। ये विरोध किसी व्यक्ति या एक-दो कॉरपोरेट घरानों का नहीं बल्कि पूरे कॉपोर्रेट के हवाले जाते संसाधनों का विरोध है। इसलिए हमने सबसे से मांग की है कि कॉरपोरेट घरानों के तमाम उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार किया जाए।’


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इस रुप से द्रष्टा अनजान नहीं है। भारत ने सभ्यता के विकास में पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। आज हम सतही बातों का समना कर रहे हैं। जो महत्वहीन है सभ्य तो, बिल्कुल नहीं। देश जब आजाद हुआ और हमने अपना संविधान बनाया तो, उसमें प्रान्तीय नागरिक नहीं बल्कि हम अखिल भारतीय नागरिक बने। ‘नागर’ शब्द का  संस्कृत में अर्थ है जो दूसरे के साथ रह सकता है। अर्थात् नागरिक वह है जो एक दूसरे के साथ रह सके। अगल-बगल, पास पड़ोस में नहीं बल्कि एक दूसरे के सूख-दुख में सहयोगी बनकर रहना ही नागरी जीवन है। यह सहअस्तित्व की बात है। उपभोक्ता के रुप में हमारी पहचान यह है कि हम स्वेच्छा से, अपनी मनपसन्द, जरुरत व सहुलियत के अनुसार वस्तुओं का उपभोग करते हैं। इस संदर्भ में हम उपभोक्ता है। जबकि व्यापारी अपनी सहुलियत के अनुसार ऐसे बाजार का निर्माण करते हैं जिनके उत्पाद में नागरिकों की कोई रुचि नहीं होती है। अधिकतर उत्पाद उनके क्रयशक्ति से बाहर के होते है। वह जिसे शुद्ध मानकर खरीदते हैं वह शुद्ध नहीं होता है। बाजार केवल आर्थिक लाभ-हानि को व्यापार का आधार मानता है न कि नागरिक मूल्यों को। इसलिए किसान नागरिक जियो रिलायंश, पतंजलि, गौतम अडानी और अम्बानी बन्धुओं का विरोध कर रहे हैं।

क्रमशजारी है....अगले भाग में

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