Saturday 4 November 2017

मोदी के मंत्रियों व शौर्य डोवाल के फायदे वाला गठजोड़


नई दिल्ली: ‘केरल में चरमपंथी इस्लाम’ और ‘आदिवासियों का बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन’ जैसे विषयों पर विस्तृत आलेख छापने वाले संगठन के तौर पर इंडिया फाउंडेशन का अस्तित्व 2009 से है. लेकिन 2014 से इंडिया फाउंडेशन का जिस तरह उभार हुआ, उसे किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता.

आज यह भारत का सबसे प्रभावशाली थिंक-टैंक है, जो विदेश और भारत के औद्योगिक जगत की प्रमुख हस्तियों को मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठाकर सरकारी नीतियों पर तफसील से बातचीत करने के लिए मंच मुहैया करवाता है. लेकिन इंडिया फाउंडेशन की अपारदर्शी वित्तीय संरचना, इसमें वरिष्ठ मंत्रियों की निदेशकों के तौर पर उपस्थिति और यह तथ्य कि इसके एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (कार्यकारी निदेशक) शौर्य डोभाल का घोषित काम जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज को चलाना है (कंपनी की वेबसाइट यह दावा करती है कि वो ओईसीडी और उभर रही एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच लेन-देन और पूंजी-प्रवाह के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखती है), ये सारे तथ्य मिलकर हितों के टकराव और लॉबीइंग की संभावना को भी जन्म देते हैं. ये वे समस्याएं हैं, जिन्हें सत्ता के गलियारों से हमेशा के लिए मिटा देने का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.

शौर्य डोभाल राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे हैं और यह ‘संयोग’ भारतीय राजनीति और सार्वजनिक जीवन में किसी रोग की तरह फैले वंशवाद की समस्या में एक नया आयाम जोड़ता है.

वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए, इस रिश्ते पर सार्वजनिक तौर पर शायद ही कभी बहस होती है. इस बात का थोड़ा सा अंदाजा लगाने के लिए कि हितों के इस संभावित टकराव को लेकर चुप्पी कितनी अस्वाभाविक है, यह समझने के लिए एक बार को मान लेते हैं कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा सऊदी अरब के एक राजकुमार से जुड़े वित्तीय सेवा फर्म के पार्टनर के तौर पर देश के रक्षा मंत्री और वाणिज्य मंत्री को अपने थिंक टैंक मे शामिल करते हैं और फिर सिलसिलेवार ढंग से कई आयोजन करते हैं. इन आयोजनों के लिए पैसा जिन कंपनियों द्वारा चुकाया जाता है, उनका नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता.

जूनियर डोभाल और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव द्वारा चलाए जाने वाले इंडिया फाउंडेशन के निदेशकों में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु, दो राज्य मंत्रियों- जयंत सिन्हा (नागरिक उड्डयन) और एमजे अकबर (विदेश मंत्रालय) के नाम शामिल हैं.

चार मंत्रियों, संघ परिवार के एक कद्दावर नेता और एक कारोबारी जिनके प्रभावशली पिता प्रधानमंत्री कार्यालय में हैं, इन सबने मिलकर इंडिया फाउंडेशन को इतना जबरदस्त सांस्थानिक वजन देने का काम किया है, जिसके बारे में थिंक टैंक की दुनिया के प्रतिष्ठित खिलाड़ी भी सिर्फ सपने में ही सोच सकते हैं.

फाउंडेशन द्वारा आयोजित किए जाने वाले हर कार्यक्रम में उस क्षेत्र के प्रमुख नीति-निर्माताओं की शिरकत होती है, जिसके कारण न सिर्फ इनमें काफी लोग आते हैं, बल्कि प्रायोजकों की भी कोई कमी नहीं होती- इन प्रायोजकों में भारतीय और विदेशी सरकारी एजेंसियां और प्राइवेट कंपनियां, दोनों शामिल हैं.

लेकिन इंडिया फाउंडेशन की सफलता का राज, जो कि वास्तव में उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है- इन छह लोगों की प्रत्यक्ष उपस्थिति- हितों के टकराव को लेकर कुछ परेशान करने वाले सवाल भी खड़े करती है.

साथ ही इससे इस आशंका को भी बल मिलता है कि क्या विदेशी और भारतीय कंपनियां फाउंडेशन के कार्यक्रमों को समर्थन इसलिए देती हैं, ताकि वैसे मसलों में, जिनमें उनका व्यापारिक हित जुड़ा हो, सरकार की कृपादृष्टि हासिल की जा सके!

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जयपुर में 2016 में संपन्न इंडिया फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंडिया फाउंडेशन के निदेशक राम माधव, राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह. (फोटो साभार: इंडिया फाउंडेशन)
एक ट्रस्ट के तौर पर फाउंडेशन के लिए अपनी बैलेंस शीट और वित्तीय लेन-देन को सार्वजनिक करने की कोई अनिवार्यता नहीं है. इसके बोर्ड में निदेशकों के तौर पर मंत्रियों की उपस्थिति के बावजूद, यह अपने राजस्व के स्रोतों के बारे में कोई जानकारी देने से इनकार करता है.

इस रिपोर्ट के लिए द वायर  ने इन सभी छह निदेशकों को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी थी, लेकिन मंत्रियों ने उसका जवाब नहीं दिया. राम माधव ने यह वादा किया कि कोई ‘उचित व्यक्ति’ इन सवालों का जवाब देगा, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.

इस सवाल पर कि फाउंडेशन के राजस्व का स्रोत क्या है, शौर्य डोभाल भी द वायर  को बस इतना कहने के लिए तैयार हुए: ‘सम्मेलनों से, विज्ञापनों और जर्नल से.’

उन्होंने इस राजस्व के स्रोत को लेकर पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. और न ही इस बात का ही कोई स्पष्टीकरण दिया कि इंडिया फाउंडेशन, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह एक ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड है, आखिर अपने रोज के कामकाज का खर्चा कैसे उठाता है? इस खर्चे में लुटियन दिल्ली के हेली रोड में लिए गए पॉश मकान का किराया और कर्मचारियों के वेतन शामिल हैं.

इंडिया फाउंडेशन को मिलने वाले पैसों के स्रोत की जानकारी देने को लेकर डोभाल का यह संकोच नया नहीं है. 2015 में भी वे द इकॉनमिक टाइम्स  को बस इतना ही कहने को तैयार थे:  

ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड फाउंडेशन की फंडिंग के बारे में पूछे जाने पर डोभाल ने कहा- मासिक जर्नल राजस्व का एक बड़ा स्रोत है.

‘हमें प्रायोजक मिले हुए हैं और हमें विभिन्न स्रोतों से विज्ञापन मिलते हैं. यह सब हमारे द्वारा किए जाने वाले कामों या हमारे द्वारा आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों के इर्द-गिर्द किया जाता है. हम विभिन्न अंशधारकों के साथ साझेदारी करते हैं. हम अपने हिस्से का काम करते हैं और वे अपने हिस्से का.’
ऐसे में जबकि इसके निदेशकों में मंत्रियों के नाम शामिल हैं, इन ‘चंदों’ और ‘स्पॉन्सरशिप’ का स्रोत जनहित से जुड़ा काफी अहम मामला बन जाता है. लेकिन इसके बावजूद इसके बारे में काफी कम या नामालूम-सी जानकारी है. सिवाय उन तस्वीरों के जिसे इंडिया फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट पर डाल रखा है.

(यहां रिकॉर्ड के लिए बता दें कि इंडिया फाउंडेशन जर्नल के जिन अंकों की द वायर  ने जांच की, उनमें विज्ञापनों की भरमार नहीं थी.)

विदेशी रक्षा कंपनियों से स्पॉन्सरशिप

इंडिया फाउंडेशन के दो आयोजन (एक हिंद महासागर पर और दूसरा ‘स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट’ पर) के प्रायोजकों के नाम तस्वीरों में दिखाई दे रहे थे. उदाहरण के लिए बोइंग जैसी विदेशी रक्षा और विमानन कंपनियां और इस्राइली फर्म मागल, साथ ही डीबीएस जैसे विदेशी बैंक और कई निजी भारतीय कंपनियों के नाम इसमें बतौर प्रायोजक लिखे हुए हैं.

लेकिन, इस स्पॉन्सरशिप की प्रकृति, यानी कितना पैसा दिया गया और किसे दिया गया, इंडिया फाउंडेशन को या किसी ‘पार्टनर’ को, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.  

 इंडियन ओसियन कॉन्फ्रेंस 2016. साभार: इंडिया फाउंडेशन
द वायर ने इंडिया फाउंडेशन में निदेशक के तौर पर सेवा देने वाले चार मंत्रियों को चिट्ठी लिखकर फाउंडेशन द्वारा ऐसे आयोजनों की मेजबानी के औचित्य को लेकर सवाल पूछा, जिन्हें ऐसी कंपनियों द्वारा फंड या डोनेशन दिया गया, जिनके कारोबारी मसले उनके मंत्रालयों के साथ जुड़े हुए हो सकते हैं.

निर्मला सीतारमण से यह पूछा गया कि ‘क्या आप यह स्वीकार करेंगी आपके इंडिया फाउंडेशन (जो विदेशी कंपनियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पैसे लेती है, खासकर उन कंपनियों के जिनका आपके द्वारा संभाले गए मंत्रालयों (वाणिज्य एवं उद्योग और अब रक्षा मंत्रालय) से नाता रहा है) के निदेशक के तौर पर काम करने से हितों के टकराव का मामला बनता है?’

ऐसे ही सवाल सुरेश प्रभु, एमजे अकबर और जयंत सिन्हा से भी पूछे गए. इस रिपोर्ट के प्रकाशन के वक्त तक, इनमें से किसी ने भी जवाब देने की जहमत नहीं उठाई थी.

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इंडिया फाउंडेशन की वेबसाइट के निदेशकों से संबंधित पेज से
जब एक पूर्व रक्षा सचिव से द वायर  ने यह पूछा कि क्या रक्षा मंत्री के किसी ऐसे फाउंडेशन के निदेशक के तौर पर काम करने को उचित ठहराया जा सकता है, जिसने उनके मंत्रालय से रिश्ता रखने वाली किसी कंपनी से वित्तीय मदद ली है?, तो उनका जवाब था कि ‘निश्चित तौर पर इससे बचा जाना चाहिए.’

इस साल मई में, सीबीआई ने मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत द्वारा बोइंग एयरक्राफ्ट की खरीद की प्राथमिक पड़ताल शुरू की.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने सीबीआई के प्रवक्ता आरके गौड़ के हवाले से लिखा था, ‘इसमें लगाए गए आरोप 70,000 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय एयरलाइंस के लिए 111 एयरक्राफ्ट की खरीद से संबंधित हैं. ऐसा विदेशी एयरक्राफ्ट निर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया. ऐसी खरीद के कारण पहले से ही खस्ताहाल राष्ट्रीय विमानन कंपनी को और वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा.’  

फाउंडेशन के एक निदेशक (जयंत) सिन्हा विमानन राज्य मंत्री हैं. एक ऐसे थिंक टैंक का सदस्य होना, जो एक ऐसी कंपनी से फंड लेता है, जिसके एयरक्राफ्ट की बिक्री पर जांच चल रही है, स्पष्ट तौर पर हितों के टकराव का मामला बनता है.

द वायर  ने एक पूर्व कैबिनेट सचिव से मंत्रियों के इंडिया फाउंडेशन के बोर्ड में बतौर निदेशक काम करने के औचित्य के बारे में सवाल पूछा. उनका जवाब था, ‘अगर मंत्री फाउंडेशन के निदेशक हैं और फाउंडेशन उनसे जुड़े विषयों पर कॉन्फ्रेंस करता है- मसलन, भारत को कैसी रक्षा अधिग्रहण रणनीति अपनानी चाहिए- तब निश्चित तौर पर यह हितों के टकराव का मामला है और इससे परहेज किया जाना चाहिए.’

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यहां तक कि कंपनियों द्वारा फाउंडेशन की फंडिंग में भी हितों के टकराव का मामला बन सकता है, अगर कॉन्फ्रेंस का संबंध ऐसी नीति से हो जिसमें कॉरपोरेट का हित हो.’   

हमारे चार्टर में लॉबीइंग शामिल नहीं है: डोभाल

इंडिया फाउंडेशन आधिकारिक तौर पर अपने आपको ‘भारतीय राजनीति के मुद्दों, चुनौतियों और संभावनाओं पर केंद्रित एक स्वतंत्र रिसर्च सेंटर’ कहता है.  लेकिन, शौर्य डोभाल एक वीडियो इंटरव्यू में काफी साफगोई से इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि फाउंडेशन ‘हमारे नीति-निर्माण से जुड़े कई आयामों पर काफी नजदीकी ढंग से भाजपा और सरकार के साथ मिलकर काम करता है.’

इस स्वीकृति को थिंक टैंक के मुखिया के तौर पर पारदर्शिता बरतने की कोशिश भी कहा जा सकता है, या ‘कॉरपोरेट फाइनेंस और सलाह’ के व्यापार से जुड़े किसी व्यक्ति का सत्ता से नजदीकी का विज्ञापन भी कहा जा सकता है.

जाहिर है, यह अकारण नहीं है कि इस इंटरव्यू को जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज की वेबसाइट पर लगाया गया है.

इससे पहले एक प्राइवेट इक्विटी फर्म जीअस कैपिटल चलाने वाले डोभाल ने 2016 में अपनी कंपनी का विलय जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (जीएफएस) के साथ कर दिया.

जीएफएस के चेयरमैन प्रिंस मिशाल बिन अब्दुल्लाह बिन तुर्की बिन अब्दुल्लाज़ीज़ अल-साऊद, सऊदी अरब के शासक परिवार के सदस्य हैं और अब्दुल्लाह बिन तुर्की बिन अब्दुल्लाज़ीज़ अल-साऊद के बेटे हैं.

जेमिनी का होम पेज संभावित ग्राहकों से कहता है,

‘हम मामले के हिसाब से अपने ग्राहकों के लिए रणनीतिक सलाहकार के तौर पर काम करते हैं.’ साथ ही इसमें यह भी जोड़ा गया है कि ‘सामान्य तौर पर ये गैर-परंपरागत स्थितियां हैं, जिनमें कॉरपोरेट विवाद समाधान, नए/कठिन बाजारों और जॉइंट वेंचरों में दाखिला (या उससे बाहर निकलना) शामिल है.’

जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज की कोर टीम: संस्थापक पार्टनर प्रिंस मिशाल बिन अब्दुल्लाह बिन तुर्की बिन अब्दुल्लाज़ीज़ अल साऊद (बाएं) शौर्य डोभाल (बीच में), सैयद अली अब्बास (दाएं).
जेमिनी के कार्यक्षेत्र को देखते हुए द वायर  ने डोभाल से यह पूछा कि क्या इंडिया फाउंडेशन के निदेशक के तौर पर उनकी भूमिका में- जहां साफ तौर पर कैबिनेट मंत्रियों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों तक उनकी विशेष पहुंच है, जिनमें से कई नाश्ते की बैठकों और थिंक टैंक द्वारा आयोजित दूसरे कार्यक्रमों में नियमित तौर पर शिरकत करते हैं- और एक फर्म के पार्टनर के तौर पर उनकी भूमिका में, जो विदेशी और देशी निवेशकों के साथ कारोबार करती है- हितों के टकराव का मामला बनता है?

उनका जवाब था, हितों के टकराव का सवाल ही नहीं पैदा होता, क्योंकि इंडिया फाउंडेशन न तो खुद से, न ही किसी दूसरे की ओर से कोई व्यापारिक लेन-देन करता है.’

साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘इंडिया फाउंडेशन एक थिंक टैंक है, जिसका अस्तित्व 2009 से है. इसकी गतिविधियों में रिसर्च, राष्ट्रीय महत्व के मसले पर एक दृष्टिकोण को एकत्र करना और उसका प्रसार करना, शामिल है. इसके चार्टर में लॉबीइंग या इससे जुड़ी कोई अन्य गतिविधि शामिल नहीं हैं.’

भले प्रकटरूप में फाउंडेशन लॉबीइंग में शामिल न होता हो, लेकिन इसके आयोजनों को साफ तौर पर कॉरपोरेटों और दूसरे हितधारकों को अहम अधिकारियों के साथ मिलने का मौका देने के वादे के इर्द-गिर्द तैयार किया जाता है.

साफ तौर पर इन अधिकारियों को अपनी व्यस्तताओं को बीच में छोड़कर इंडिया फाउंडेशन के निमंत्रण पर आना पड़ता है, क्योंकि इसकी पहुंच सरकार के सबसे ऊंचे स्तरों तक है.

जरा इंडिया फाउंडेशन द्वारा फिक्की के साथ मिलकर ‘स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट’ विषय पर कराए गए एक आयोजन की प्रचार बुकलेट की भाषा पर ध्यान दीजिए:

‘आप किससे मिलने की उम्मीद करते हैं’. यह अपने संभावित क्लाइंटों से व्याकरण की चूकों के साथ पूछता है और उसके बाद मंत्रियों और विभागों की पूरी सूची प्रदर्शित करता है, जो वहां आने वाले हैं.

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स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस की बुकलेट से. (साभार: इंडिया फाउंडेशन)
सरकारी अधिकारी और निजी क्षेत्र के खिलाड़ी कॉन्फ्रेंसों और दूसरे आयोजनों में अक्सर एक-दूसरे से मिलते-जुलते रहते हैं. लेकिन, मंत्रियों का निदेशक होना, इंडिया फाउंडेशन को अतिरिक्त वजन देता है.

इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या मंत्रियों के पदों का इस्तेमाल एक थिंक टैंक की साख और पहुंच को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, जो अपने राजनीतिक जुड़ाव को किसी से छिपाता नहीं है?

विदेशी पैसे से ‘भारतीय राष्ट्रवादी दृष्टिकोण’ का विकास

इसकी वेबसाइट के मुताबिक इंडिया फाउंडेशन, ‘भारतीय राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट’ करना चाहता है. इंडिया फाउंडेशन का विजन एक शीर्ष थिंक टैंक बनने का है, जिसकी मदद से भारतीय सभ्यता के समकालीन समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने में मदद मिल सकती है.’

लेकिन, दूसरे स्वयंसेवी संगठनों की ही तरह, जिन पर भाजपा और मोदी सरकार अक्सर ‘राष्ट्रद्रोही’ होने का आरोप लगाती है, इंडिया फाउंडेशन भी अपनी गतिविधियों के लिए विदेशी पैसों पर निर्भर है.

एक ट्रस्ट यानी गैर सरकारी संगठन के तौर पर इंडिया फाउंडेशन की हैसियत को देखते हुए, इसके द्वारा विदेशी चंदे का इस्तेमाल फॉरेन कंट्रीब्यूशंस रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) के अधीन है.

हालांकि, डोभाल, माधव और चार मंत्री-निदेशकों ने फाउंडेशन को विदेशों से मिलने वाले पैसों को लेकर द वायर  द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब नहीं देने का फैसला किया, मगर गृह मंत्रालय द्वारा संचालित fcraonline.nic.in वेबसाइट इस बात की पुष्टि करती है कि इंडिया फाउंडेशन के पास 2022 तक के लिए वैध एफसीआरए सर्टिफिकेट है और इसका नवीकरण (रिन्यू) 6 जून, 2017 को किया गया.

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एफसीआरए वेबसाइट से हालांकि यह पता नहीं चलता कि इंडिया फाउंडेशन को पहली बार एफसीआरए सर्टिफिकेट कब दिया गया?

‘रिन्यू की आखिरी तारीख’ का उल्लेख यह दिखाता है कि फाउंडेशन के पास पहले भी एफसीआरए सर्टिफिकेट था, लेकिन एफसीआरए लाइसेंसधारक सभी गैर सरकारी संगठनों के लिए पिछले चार वर्षों के लिए अनिवार्य ‘विदेशी मुद्रा रिटर्न’ फाइलिंग के डेटाबेस की जांच करने पर शौर्य डोभाल के इंडिया फाउंडेशन की कोई एंट्री नहीं मिली.

हालांकि, वहां हर साल के लिए एक इंडिया फाउंडेशन का जिक्र जरूर था, लेकिन वह राजदूत सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा रजिस्टर्ड इंडिया फाउंडेशन है, जो मुख्य तौर पर सड़कों पर घूमनेवाले बच्चों को भोजन और आश्रय और गरीबों को स्वास्थ्य सेवा देने के क्षेत्र में काम करता है.

यह माना जा सकता है कि एफसीआरए की वेबसाइट ने इंडिया फाउंडेशन के सर्टिफिकेट को गलती से नवीकरण के तौर पर दिखा दिया है. द वायर ने जिस चार्टर्ड अकाउंटेंट से संपर्क किया, उसने सीरियल नंबर के आधार पर बताया कि संभवतः यह सर्टिफिकेट नया है.

इसलिए एफसी रिटर्न का न होना अपने आप में समस्या नहीं है. लेकिन, एक नए एफसीआरए रजिस्ट्रेशन से यह सवाल जरूर पैदा होता है कि आखिर यह एनजीओ अब तक विदेशी पैसा हासिल करने में किस तरह कामयाब रहा.

गृह मंत्रालय गैर सरकारी संगठनों के लिए खास गतिविधियों के लिए विदेशी फंड का इस्तेमाल करने के संबंध में ‘पूर्व अनुमति’ लेने का प्रावधान करता है, लेकिन दिल्ली क्षेत्र के लिए ऐसी इजाजत दिए जाने संबंधी एफसीआरए वेबसाइट के डेटाबेस में 2015 तक इंडिया फाउंडेशन के नाम के आगे कुछ नहीं मिलता. 2015 के बाद की कोई जानकारी यहां उपलब्ध नहीं है.

द वायर  ने शौर्य डोभाल से इंडिया फाउंडेशन के एफसीआरए आवेदन का ब्यौरा मांगा और साथ ही यह मानते हुए कि एफसीआरए का डेटाबेस अपूर्ण हो सकता है, यह सवाल भी पूछा कि क्या इसने ‘पूर्व अनुमति’ के रास्ते से कोई विदेशी पैसा प्राप्त किया है? लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

गैर सरकारी संगठन कभी-कभी वाणिज्यिक सेवा करारों (कॉमर्शियल सर्विस काॅन्ट्रैक्ट) के रास्ते से भी विदेशी पैसा प्राप्त करते हैं.

लेकिन डोभाल ने अपने पहले के जवाब में यह कहा था कि इंडिया फाउंडेशन ‘किसी तरह का वाणिज्यिक लेनदेन नहीं करता है’ यानी विदेश से पैसा हासिल करने का यह रास्ता भी पहले से ही बंद दिखाई देता है.

एक ऐसे समय में जब मोदी सरकार ने एफसीआरए के उल्लंघन- चाहे वह वास्तविक हो या काल्पनिक- का इस्तेमाल गैर सरकारी संगठनों के बैंक खातों पर ताला जड़ने के लिए किया है, यह तथ्य कि एक थिंक टैंक जिसके निदेशकों में मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता शामिल हैं, विदेशी फंड के इस्तेमाल को लेकर पारदर्शिता नहीं बरत रहा है, दोहरे मानदंडों के आरोपों को दावत देने वाला है.   

प्रधानमंत्री कार्यालय की चुप्पी

द वायर  ने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा से पूछा कि क्या उन्होंने और मोदी ने उन निदेशकों के संभावित हितों के टकराव की ओर ध्यान दिया है, जो मंत्रियों के तौर पर भी काम कर रहे हैं?

साथ ही इस तथ्य की ओर भी कि शौर्य डोभाल के पिता पीएमओ के शीर्ष अधिकारी हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में ऐसी वार्ताओं का हिस्सा होना शामिल है, जिनका सरोकार ऐसे फैसलों से हो सकता है, जो इंडिया फाउंडेशन के आयोजनों को प्रायोजित करने वाली कंपनियों से ताल्लुक रखते हों?

इस संबंध में भी कोई जवाब नहीं आया.

इन चार मंत्रियों और माधव एवं डोभाल के अलावा के अलावा इंडिया फाउंडेशन के अन्य निदेशक भी भाजपा प्रतिष्ठान के भीतरी गलियारे से जुड़े रहे हैं- स्वप्न दासगुप्ता, पूर्व स्तंभकार और नामांकित कोटे से राज्यसभा सदस्य, सेवानिवृत्त आईएएस और अब नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के निदेशक शक्ति सिन्हा, प्रसार भारती बोर्ड के चेयरमैन ए. सूर्य प्रकाश.

इनके अलावा अन्य निदेशक हैं भारतीय सेना के थिंक टैंक सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज के पूर्व निदेशक ध्रुव सी. कटोच, पूर्व नौसैना अधिकारी आलोक बंसल, जिन्होंने इससे पहले इडसा में काम किया, अशोल मित्तल जो खुद को एक स्टूडेंट मेंटरिंग कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बताते हैं, आईसीडब्ल्यूए के पूर्व अध्यक्ष चंद्र वाधवा और कोलकाता के बावरी ग्रुप के चेयरमैन बिनोद भंडारी.

'द वायर' के सौजन्य से -
(स्वाति चतुर्वेदी पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं.)

Sunday 29 October 2017

कानून को आसान भाषा में जानो

क्षमा करें , लिखवाट के शब्द  त्रुटिपूर्ण है

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की एक गाइड 

क्या आप अपराध पीड़ित हैं? 

क्या आपके विरुद्ध किसी ने कोइ अपराध किया है?

अगर आप किसी अपराध के ग्रसित हैं, तो इसके बारे में अधिकारीयों को सूचित करना आपका अधिकार ही नहीं , दायित्व भी है  यह करने के लिए पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट [ प्र.सु.रि./FIR] प्रस्तुत की जा सकती है अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई जा सकती हैI



प्र.सु.रि.(FIR) के बारे में




1. क्या है FIR?

FIR पुलिस द्वारा तेयार किया हुआ एक दस्तावेज है जिसमे अपराध की सुचना वर्णित होती है I सामान्यत: पुलिस द्वारा अपराध संबंधी अनुसंधान प्रारंभ करने से पूर्व यह पहला कदम अनिवार्य है I

अगर कोई अपराध अभी तक अघटित है, परंतु आपको इसके बारे मैं जानकारी है अथवा सुचना है, तो आप पुलिस के पास जाकर यह सुचना दे सकते हैं I अगर यह एक संज्ञेय अपराध है, तो इसे रोकना पुलिस का कर्तव्य है एवं वह अनुरूप कारवाही करेंगे I

2. क्या पुलिस को हर FIR दर्ज करनी होती है?

आप पुलिस के पास किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में जा सकते हैंI अति-आवश्यक एवं गंभीर मामलों मैं पुलिस को FIR तुरंत दर्ज कर अनुसंधान प्रारंभ करना अनिवार्य है I इस प्रकार के अपराध ‘संज्ञेय अपराध’ कहलाते हैं, जैसे की हत्या, बलात्कार, डकेती, इत्यादि I कौनसे अपराध ‘संज्ञेय अपराध’‘ कहलाते हैं यह जाने के लिए यहाँ क्लिक करिए

अन्य, कम गंभीर अपराध जैसे की परगमन (adultery), मानहानि (defamation) इत्यादि में अनुसंधान शुरू करने से पूर्व पुलिस को मजिस्ट्रेट से उचित निर्देश प्राप्त करने होते हैं I इनहे ‘असंज्ञेय अपराध’ कहते हैं I अगर आप किसी असंज्ञेय अपराध के संदर्भ मैं पुलिस के पास जाते हैं, तो उन्हें फिर भी एक “असंज्ञेय अपराध’ रिपोर्ट” दर्ज कर आपको मजिस्ट्रेट के पास भेझ्ना होता है I

यदि मामले की प्रकृति अस्पष्ट है, तो यह पता लगाने के लिए पुलिस एक छोटी प्रारंभिक जाँच कर सकती है I अन्य सभी मामलों में पुलिस को ये अनुसंधान आरंभ करना होता है अथवा आपको मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है I

3. FIR कैसे दर्ज करूँ?

अगर एक अपराध हुआ है, आप भले ही पीड़ित पक्ष हों, अथवा इस अपराध के बारे मैं सुचना रखते हों, आप पुलिस स्टेशन जा कर FIR दर्ज (रजिस्टर) कर सकते हैं I आपको जितना भी पता है आप पुलिस को बताएं, मगर आपको अपराध के बारे मैं विस्तृत या सक्षम ज्ञान होना आवय्श्यक अथवा अनिवार्य नहीं है I उदहारण हेतु, FIR दर्ज करवाने के लिए अपराध करने वाले व्यक्ति का नाम ज्ञात होना जरुरी नहीं है I

पुलिस स्टेशन मैं घुसते ही आपको ड्यूटी ऑफिसर के पास अग्रेषित किया जायेगा I सुचना रिपोर्ट मौखिक अथवा स्वलिखित हो सकती है I अगर आप शिकायत का मौखिक वर्ण करते हैं तो पुलिस को उसे लिख कर, बोल कर आपको सुनना होता है I इसके पश्चात ड्यूटी ऑफिसर स्वागत-कक्ष (रिसेप्शन) में रखे रोजनामचे (General Diary or Daily Diary) मैं संबंधित प्रविषिट करेगा I

अगर आपकी शिकायत लिखित रूप मैं है, तो उसकी दो प्रतिलिपि (copy) ले जायें एवं DO को सौंप दें I दोनों प्रतिलीपियों पर रोजनामचे संदर्भ नंबर (Daily Dairy Reference Number) के अंकन का ठप्पा लगाया जायेगा एवं एक प्रतिलिपि ठ्प्पायुक्य आपको लौटा दी जाएगी I यह ठप्पा इस बात का प्रमाण है कि पुलिस को शिकायत प्राप्त हो चुकी है I

एक बार पुलिस आपकी शिकायत पढ़कर, बोलकर सुनाएगी, अगर संपूर्ण विवरण सही है, आप इस FIR पर अपना हस्ताक्षर कर सकते हैं I FIR की एक मुफ्त प्रतिलिपि प्राप्त करना आपका अधिकार है I FIR का नंबर, दिनांक एवं पुलिस स्टेशन के नाम का एक नोट बना अपने पास रख लें ताकि यदि आपकी कापी गुम जाये तो आप FIR को ऑनलाइन देख सकते हैं I

FIR दर्ज होने के पश्चात उसमे किसी भी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता I परंतु कोई भी अतिरिक्त सुचना आप पुलिस को कभी भी दे सकते हैं I

कुछ राज्य और शेहेरों मैं , निश्चित प्रकार के FIR और शिकायतों को ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है


4. मुझे कैसे पता चले की कौनसा पुलिस स्टेशन जाना है ?

जनसँख्या, क्षेत्रफल आदि के आधार पर किसी भी पुलिस स्टेशन का क्षेत्राधिकार निर्धारित होता है I एक PS के क्षेत्राधिकार मैं सर्कार द्वारा निर्धारित क्षेत्र आते हैं I जैसे की PS करोल बाग का खेत्राधिकार केवल अपने निर्धारित क्षेत्र मैं घटित अपराध का होगा I अन:, जिस जगह अपराध घटित हुआ है, उस जगह के निकटतम PS पर रिपोर्ट देना उचित है I PS का सटीक ज्ञान होना आवश्यक नहीं है I आप किसी भी PS जायें, यदि वह आपकी शिकायत दर्ज करने मैं असमर्थ हैं, तो वह आपको उपयुक्त PS के बारे मैं बता देंगे I आप पुलिस आपातकालीन नंबर “१००” पर भी इस बात की जानकारी ले सकते हैं I

5. यदि पुलिस ऑफिसर FIR दर्ज करने से मना कर दे तो?

अगर अपराध संज्ञेय है, पुलिस का उसे दर्ज करना कानूनन अनिवार्य है I यदि वह एसा न करे, तो आप निम्नलिखित अधिकार रखते हैं :-

अपनी शिकायत का विवरण स्तानीय पुलिस अधीक्षक/ पुलिस उपयुक्त को भेज सकते हैं I अगर उन्हें यह प्रतीत होता है की संज्ञेय अपराध घटित हुआ है, तो उन्हें या तो स्वयं अनुसंधान शुरू करना होता है अथवा अनुसुंधन आरंभ करने का निर्देश अधीनस्थ पुलिस को देना होता है I

यदि SP/DCP के समक्ष जाने के बावजूद कोई कारवाही नहीं की गयी है, तो आप स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर पुलिस को अनुसंधान प्रारंभ करने का आदेश प्राप्त कर सकते हैं I

राज्य मानव अधिकार आयोग को शिकायत कर सकते हैं I

अगर आपके राज्य में ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ स्थापित है तो आप वहां भी पुलिस अधिकारीयों की शिकायत कर सकते हैंI

आवयश्क सूचना 

यदि पुलिस आपकी FIR पर कारवाही करने से मना कर दे तो आपके पास अपने कारवाही करने के प्रयास का प्रमाण पत्र होना चाहिए I यहाँ पर पुलिस द्वारा ठप्पायुक्त सुचना की प्रतिलित्प अत्यंत महत्वपूर्ण है I यह एक प्रणित रसीद जैसी है I आपको अपने हर आगमि पत्र अथवा शिकायतों पर रोजनामचा संदर्भ नंबर जो की पहली शिकायत करने पर दिया गया था को अंकित करना चाहिए I


मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद- पीड़ित के दृष्टिकोण से

Published on: May 16, 2017
1. मैं मजिस्ट्रेट को शिकायत किस स्तिथि मैं कर सकती हूँ?

आप मजिस्ट्रेट को एक निजी शिकायत कर सकती हैं I इस प्रक्रिया के लिए एक वकील का उपसस्थित होना उचित है I मजिस्ट्रेट परिवाद पेश करने वाले व्यक्ति एवं गवाहों को परीक्षित करेगी I परिवाद पेश करते समय इसके समर्थन मैं जो भी सामग्री उपलब्ध है उसे शिकायत में शामिल करें I

2. किस मजिस्ट्रेट के पास जाऊं ?

सामान्यतः, जिस मजिस्ट्रेट के स्थानीय क्षेत्र मैं अपराध घटित हुआ है उसे मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होगा I अगर घटना एक क्षेत्र मैं करीत की गई है परंतु उसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों मैं महसूस होता है, ऐसी स्तिथि मैं दोनो क्षेत्रों के मजिस्ट्रेट मामले की सुनवाई कर सकते हैं I उदहारण के लिए, यदि हरि को गुरुग्राम मैं गोली मारी गई है पर उसका देहांत अस्पताल जाते वक्त दिल्ली मैं हो जाता है, तब दोनो गुरुग्राम व् दिल्ली के मजिस्ट्रेट का श्रवण अधिकार हो सकता है I जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष आप उपसिथ हुए हैं, यदि उसे मामले की सुनवाई करने की शक्ति प्राप्त नहीं है तो वह शिकायत को अनुमोदन कर उचित मजिस्ट्रेट के पास भेज सकती हैं I

3. मेरे शिकायत करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट क्या कदम उठाएगी?

परिवाद सम्बन्धी परिक्षण करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट निमंलिखित मैं से कोई भी एक कदम ले सकती हैं :

समन या वारंट जारी कर अपराधिक विचारण (ट्रायल) की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं, अथवा

इन्क्वारी संचालित कर सकती हैं, स्वयं द्वारा अथवा पुलिस के माध्यम से, अथवा

परिवाद को ख़ारिज कर शिकायत का उत्सादन कर सकती हैं I

मजिस्ट्रेट उपरोक्त मैं से कोई भी कदम ले सकते हैं I परंतु मामला यदि गंभीर प्रकृति का है एवं सेशन न्यायलय द्वारा विचारणीय है, तो उन्हें स्वयं हे “ इन्क्वारी” का सञ्चालन करना अनिवार्य है-वह पुलिस को इस बाबत निर्देश नहीं दे सकती है I इन मामलों मैं अक्सर ७ वर्ष अधिक कारावास का प्रावधान होता है, जैसे की हत्या या दुष्कर्म I

4. आगे क्या होगा?

अगर उन्हें ऐसा प्रतीत हो की मामले मैं अन्य तथ्य उजागर होने की संभावना है, तो मजिस्ट्रेट एक ‘ इन्क्वारी’ का निर्देश पारीत कर स्वयं अथवा पुलिस द्वारा इसे संचालित कर सकती हैI अगर मजिस्ट्रेट ने यह निर्देश पुलिस को दिया है की पुलिस अनुसंधान कर मजिस्ट्रेट के समक्ष एक प्रतिवेदन (रिपोर्ट) पेश करेगी I यह रिपोर्ट ‘ आरोप-पत्र’ नहीं है I यह रिपोर्ट या तो आपके परिवाद का समर्थन करेगी अथवा उसका खंडन करेगी , (‘ कोई अपराध कारित नहीं’ रिपोर्ट इस स्तिथि मैं पेश होगी )

पपूछताछ एवं परिक्षण करने के पश्चात मजिस्ट्रेट परिवादी को सुनवाई का अवसर देंगी I अभी तक कहीं भी आरोपी उपस्थिति नहीं है I इस सुनवाई का उद्देश्य यह निर्धारित करना है की क्या अभियुक्त को न्यायालय मैं उपस्थिति करने के लिए ‘समन’ जरी करना चाहिए I अगर न्यायालय के मन मैं आगे और कारवाही करने का कोई ओचित्य नहीं है; परिवाद को ख़ारिज कर निस्तारित कर दिया जाएगा I



पुलिस केस – पीड़ित के दृष्टिकोण से

1. पुलिस अनुसंधान प्रारम्भ कब कर सकती है?

एक संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना मिलते ही पुलिस द्वारा अनुसंधान शुरू किया जा सकता है यदि उन्हें अपराध होने का पता हो तो वह FIR के आभाव मैं भी जाँच शुरू कर सकती है I यधपि अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व पुलिस को एक रिपोर्ट, FIR सहित, मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी ताकि वह इस मामले मैं अवगत रहे I

2. क्या पुलिस को हर अपराध मैं अनुसंधान करना होता है?

नहीं I यदि पुलिस को यह प्रतीत हो की अनुसुंधन जारी रखने के पयार्प्त कारण नहीं हैं, वह इसे रोक सकते हैं I तथापि, अनुसंधान करने से पहले ही यदि मामले को बन्द किया जाता है, तो पुलिस का तर्क सहित मजिस्ट्रेट एवं शिकायत करता को इस बारे मैं रिपोर्ट करना अनिवार्य है I इस समय आप इस समापित रिपोर्ट के विरुद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकते हैं I

3. अनुसंधान मैं क्या-क्या- कदम होते हैं?

एक अनुसुंधन मैं पुलिस विभिन कदम ले सकती है:

अपराध के घटना स्थल का मुआयना,

लोगों की तलाश एवम वस्तुओं की जब्ती

लोगों से अन्वेषण ( सवाल जवाब)

शव परिक्षण का आयोजन I

4. क्या पुलिस मेरे घर की तलाशी ले सकती है?

यदि अनुसुंधन में आवश्यक हो तो पुलिस किसी भी जगह की तलाशी ले सकती है I आम तौर पर उन्हें एक अधिपत्र (वारंट) की आवश्यकता होती है, जोकि न्यायालय द्वारा तलाशी लेने की आज्ञा है I बिना वारंट भी तलाशी ली जा सकती है, यदि;

उन्हें विश्वास है की आपके पास अनुसंधान मैं अपेक्षित कुछ ऐसा है जिसका तुरंत मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है I

मजिस्ट्रेट ने तलाशी हेतु उचित आगेश पारित किया है एवं वह तालाशी के लिए स्वयं साथ आये I

5. क्या पुलिस मुझे पुलिस स्टेशन जाने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपको पुलिस स्टेशन आने का एवं सवालों का जवाब देने का आदेश दे सकती है I यथापि, अगर आप

एक महिला हैं, अथवा

१५ वर्ष से कम अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं, अथवा

मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं I

तब पुलिस आप को कहीं भी आने का आदेश नहीं दे सकती, उन्हें आप से स्वयं के घर मैं ही पूछताछ करनी होगी I

याद रखें, हमेशा पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का प्रमाण उत्पन्न करने का प्रयास करें I अगर आप को पुलिस द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है, तो उसे नष्ट न करें I इसी तरह, पुलिस के समक्ष उपस्थित होते समय एक पत्र उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें एवं प्रतिलिपि मैं इस बाबत अभिस्विक्र्ती प्राप्त करें I यह उनके द्वारा उल्त्मोड़ अथवा सच को तोड़ने-मरोरने के परयास पर रोक लगाएगा I

6. क्या पुलिस मुझे सवालों का जवाब देने एवं हस्ताक्षर करने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपसे अपराध अथवा उसकी सुचना बाबत पूछताछ कर सकती है I सच्चाई से जवाब देना आपका दायित्व है I तथापि “क्या आप अपराध के दोषी हैं?” जैसे सवाल यदि किये जायें तो आप चुप रहने का अधिकार रखते हैंI

आप पुलिस को जो कुछ भी बताते हैं, वह उसे लिखित मैं उतार सकते हैं अथवा उसकी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं I पुलिस आप को कथन देने के लिए न धमका सकती है न छल का प्रयोग कर सकती है I

7. क्या यह जानकारी लेने का अधिकार मुझे प्राप्त है की मामले मैं क्या चल रहा है?

दुर्भाग्यवश, विधि मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आप को मामले के संदर्भ में सूचित रखने पर पुलिस को विवश करे I पर एक बार अनुसुंधन पूर्ण होने के पश्चात पुलिस को FIR पेशकर्ता को यह बताना होता है कि मामले मैं क्या कारवाही की गई I ( उधारंग्त्या, यदि आरोपत्र पेश किया गया है ?) कई पुलिस वेबसाइट FIR की वर्तमान स्थिथि पर नज़र रखने की सम्भावना प्रदान करती है I यह ‘ कंप्लेंट ट्रैकिंग सिस्टम’ (CCTNS) से संभव है I हालांकि हमेशा नवीनतम स्थिथि उपलब्ध नहीं होती है, पर फिर भी आप अपनी स्थानिक अथवा राज्य पुलिस की वेबसाइट इस बाबत जानकारी हेतु देख सकते हैं I

8. अनुसंधान पूर्ण होने के पश्चात क्या होता है?

अनुसंधान पूर्ण कर लेने के बाद पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को एक ‘अंतिम रिपोर्ट’ भेजी जाती है, ऐसे मैं दो परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं:

पुलिस के पास अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य है ; ऐसी अवस्था मैं पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘ अंतिम रिपोर्ट’ पेश करेगी जिसे ‘ आरोप पत्र’ अथवा ‘चालान’ कहते हैं I इस रिपोर्ट मैं अपराध संबंधी सम्पूर्ण साक्ष्य का उल्लेख होता है I अभियुक्त यदि पुलिस अभिरक्षा मैं है, तोह उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष न्यायालय द्वारा मामले के विचारण हेतु भेजा जाएगा

पुलिस ने ‘समापित रिपोर्ट’ पेश की है: इसका अर्थ है की पुलिस के मन मैं न्यायालय को मामला विचरण हेतु नहीं लेना चाहिए I यहाँ या तो पुलिस को लगता है की कोई अपराध घटित हुआ ही नहीं है, अथवा अनुसंधान मैं आरोपी के विरुद्ध प्रयाप्त सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है I यदि आरोपी अभिरक्षा मैं ही, तो उसे एक ‘बांड’ निष्पादित करने के प्रश्चात रिहा कर दिया जाएगा I इस स्तिथि मैं प्रथम सूचक को एक नोटिस भेजा जाएगा I आप पुलिस की इस कदम का ‘ प्रोटेस्ट पेटिशन’ द्वारा विरोध कर सकते हैं I

विधि का यह सुस्थाप्ती आश्वासन है की पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करते समय पीड़ित अथवा किसी भी गवाह को न्यायालय मैं उपस्थित होने के लिए विवश नहीं कर सकती. तथापि, पुलिस आप को पीड़ित अथवा गवाह के रूप मैं मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे सकती है I यह बांड न्यायालय मैं निष्पद्नकर्ता की साक्ष्य हेतु उपस्थिति सुनिश्चित करता है I

-----क्रमशः
http://nyaaya.in 

Friday 27 October 2017

बेरोजगारों को ठगते बेरोजगार

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

देश में सरकार की आंकड़े बाजी वाली नीतियों के चलते बेरोजगार नौजवानों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। 2013 से 2016 के बीच बेरोजगारों की संख्या 37 लाख से बढ़कर 57 लाख हो गई है। केन्द्र व राज्य की सरकारों की राजनीति ने जिस प्रकार के हालात देश में बनाये हैं उससे यह बेरोजगारी के आंकड़े सुधरते हुए नहीं दिखाई दे रहे।
कुछ दिनों पूर्व कनॉट प्लेस में एक युवक से मुलाकात हुयी। उसने बताया कि वह हरियाणा का रहने वाला है और वह इस समय काफी परेशान है। पूछने पर युवक ने बताया कि वह नौकरी के लिए इंटरव्यु देने आया था, पास में ही योगेश्वर बिल्डिंग में उसे मोबाईल कॉल कर बुलाया गया था। वहां पर कई लड़के लड़कियां इंटरव्यू देने आईं थी। बिल्डिंग के गेट पर मौजूद एक लड़के ने आईडी के रुप में मेरा आधार कार्ड मांगा और एक मशीन पर फिंगर प्रिंट लेकर अन्दर ले गया। बिल्डिंग के कई कमरों में नौकरी के लिए आये लड़के-लड़कियों का एक साथ इंटरव्यू चल रहा था। कुछ देर बाद मुझे भी एक कमरे में जाने को कहा गया। कमरे में एक खूबसूरत लड़की मेरा इंटरव्यू लेने बैठी थी। उसने मेरा रेज्यूम देखने के बाद बोली कि आपको 12 से 18 हजार रुपये तक की सैलरी मिल सकती है। आपको, 750 रुपये जमानत के तौर पर अभी देने होंगे। जब मैंने पूछा कि जमानत राशि किसलिए? लड़की ने बोला कि यदि आप बीच में नौकरी छोड़ दिये तो कम्पनी को नुकसान होगा, भरपाई के लिए कम्पनी आपकी जमानत राशि जब्त कर लेगी। 
 
हरियाणा के छोरे ने आगे बताया कि उसे जब इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो, कॉल करने वाली लड़की ने कहा कि मैं जीयो कम्पनी की एचआर हूं, आपको अपनी आईडी, 2 फोटो लेकर लेकर 10 से 12 बजे तक पते पर पहुंचना है। मैं आपको पता एसएमएस कर रही हॅंू। उसने किसी भी प्रकार का शुल्क न देने की बात कही थी, और मैंने भी नौकरी पाने के लिए रुपये देने में असमर्थता जताई थी। इसके बावजूद उन लोगों ने मुझे झांसा देकर यहां बुलाया। अब यहां इंटरव्यू लेने वाली लड़की बोल रही है कि हमारे नियम, फोन करने वालों को नहीं पता होता है, उनका काम केवल इंटरव्यू के स्थान व समय की जानकारी देना होता है। बात करते हुए उसका हलक सूख रहा था, उसने मेरी पानी की बोतल मांगी, और अपनी प्यास बुझाई। उसने आगे बताया कि वह सुबह चार बजे घर से झोला उठाकर निकल गया था। जो कुछ उसके पास रुपये थे वह किराये में खर्च हो गया , अभी उसने नास्ता भी नहीं किया है।
यह साफ दिखाई दे रहा था कि अच्छा, खासा, तगड़ा नौजवान ठगी का शिकार हुआ है। मैंने उसे पुलिस में शिकायत करने की सलाह दे दी। उसने मेरी तरफ ऐसे देखा, जैसे मैंने उसके जले पर नमक डाल दिया हो। उसने बोला लैंग्वेज से तो आप यूपी के रहने वाले लगते हो, लगता है दिल्ली पुलिस के बारे में जानकारी नहीं है। पुलिस मामला सुलझाती नहीं, उलझाती है। मुझे उलझना नहीं है भाई। मुझे नहीं करनी है शिकायत, मुझे घर जाना है, और वह फिर चला गया।  
इस हरियाणा के छोरे की कहानी की तरह देश के लाखों बेरोजगार युवकों की कहानी है। दिल्ली व एनसीआर में ठगी का करोबार फलफूल रहा है। पुलिस कहती है कि जब तक कोई लिखित शिकायत नहीं देगा, तब तक हम ऐसे मामले में किसी से पूछताछ नहीं कर सकते हैं। पुलिस का यह रवैया, ठगी के कारोबार का आधार है। पुलिस अपना हिस्सा लेती है और बदले में ठगों को सुरक्षा देती है। 
कनॉट प्लेस, लक्ष्मी नगर, करोलबाग, राजेन्द्र नगर, जनकपुरी, गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव आदि दिल्ली व एनसीआर के कोने-कोने में बेरोजगारों को नौकरी देने व लोन दिलाने का कारोबार चल रहा है। ऐसा सालों से हो रहा है, देश के लाखों नौजवान प्रतिदिन ठगे जाते हैं। बकायदा अख़बारों में वर्गीकृत विज्ञापन छपवाये जाते हैं यानि खुल्लम खुल्ला नौकरी देने के नाम पर ठगी करेंगे, क्योंकि कोई नौजवान उनकी पुलिस में शिकायत नहीं करता।
कौन और कैसे फंसते हैं नौजवान
आज के नौजवानों की कुछ कॉमन परेशानियां सामने दिखने लगी है। लड़के अपनी गर्लफ्रेंड की जरुरतों के लिए, लड़कियां अपने मेकप के लिए दोस्तों से अनबन, मॉ-बाप, भाई से चिकचिक करते रहते हैं। ऐसे नौजवानों की जरुरतें पूरी नहीं होती क्योंकि वह स्वयं कोई काम करके नहीं कमाते। मध्यम वर्ग के वो नौजवान जो दुनिया की चकाचौंध को वास्तविक जीवन मान बैठे हैं या फिर वो जो, काबिल होने के बावजूद अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। कुछ नौजवान ऐसे भी होते हैं जो अपने काम से समाज व देश-दुनिया में प्रसिद्धि पाना चाहते हैं। 
बेरोजगार नौजवानों में तीन श्रेणीयां हैं। 
पहला- जो पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए रोजगार की तलाश करता है।
दूसरा-जो स्वयं आरामदायक जीवन जी सके वह, ऐसी नौकरी ढूंढता है। 
तीसरा- जो अपनी काबिलियत से अपने परिवार, समाज, देश-दुनिया में प्रसिद्धि पा सके वह ऐसे काम की तलाश में रहता है। ऐसे नौजवान बेरोजगारों की संख्या बहुत कम है।
देश में तेजी से बदल रहे परिवेश में लड़के-लड़कियों ने स्वयं के लाभ को इतना महत्व दे दिया है कि वे अब गलत काम करने से भी नहीं झिझकते। वे दूसरों को पीड़ा पहुंचाकर स्वयं को सुखी रखने का जरिया तलाश लेते हैं। वे अपनी जरुरत पूरी न होने पर दुखी रहते हैं और अपने दुख को दूर करने के लिए रोजगार तलाशते हैं। वे कभी अख़बार में छपे विज्ञापनों को देखते हैं तो कभी इंटरनेट पर मौजूद नौकरी देने वाले वेबसाईटों को टटोलते हैं। इन माध्यमों से कभी-कभी फर्जी फर्मों के झांसे में आ जाते हैं। जब इन फर्मों में बेरोजगार नौजवान उसी हरियाणे के छोरे की तरह पहुंचता है तो, इंटरव्यू के नाम पर रुपये ऐंठने के लिए खूबसूरत लड़कियां बैठी मिलती हैं और दरवाजे के बाहर दरबान बनकर हट्टे कट्टे लड़के खड़े मिलते हैं। जो लड़का या लडकी इंटरव्यू लेने वाले से हाजिर जबाबी करता है उसे ये दरबान धक्के मारकर बाहर निकालने का काम करते हैं।
ये ठगी का कारोबार करने वाले वही दूसरे श्रेणी के बेरोजगार युवा होते हैं जिनकी जरुरतें दूसरों को लूटकर, पीड़ा देकर पूरी होती हैं। इस प्रकार एक नौजवान की बेरोजगारी दूसरे नौजवान का रोजगार बन जाता है। इस प्रकार बेरोजगार को एक बेरोजगार नौजवान ही ठग रहा है।

Wednesday 11 October 2017

क्या पत्रकारों के प्रति बदल रहा है देश का नज़रिया?

पत्रकार अर्थात् सर्वोच्च मानवीय दृष्टिकोण वह है जो, दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा सही और गलत का अन्तर त्वरित जान लेता है। 

-रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 




‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी तक नहीं मिल श पायी है। भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा है। पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली सीपीजे एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्था है। 2011-2015 में आयी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘‘ 1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में कत्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है। संस्था के रिपोर्ट में उस समय तीन भारतीय पत्रकारों जगेन्द्र सिंह, अक्षय सिंह और उमेश राजपूत का भी जिक्र था। सीपीजे की रिपोर्ट के पहले, साल 2015 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के एक अध्ययन में कहा गया था कि ,‘पत्रकारों की हत्याओं के पीछे जिनका हाथ होता है वे बिना सजा के बच कर निकल जाते हैं’। इन प्रतिष्ठित संस्थाओं की रिपोर्टों के बाद भी देश में लगातार हो रही पत्रकारों की हत्या पर सरकारों की चुप्पी से, देश के नज़रिये में हो रहे बदलाव को देखा जा सकता है।  

आज देश के नागरिकों के मन में एक साथ तमाम विचारों की आंधी चल रही है। धर्म, जाति, देशभक्ति, देशद्रोह, राष्ट्रवाद-राष्ट्रगीत, इस प्रकार के राजनीतिक विषय समाचार माध्यमों से लोगों के विचारों में स्थापित हो गये हैं। कुछ इस आंधी को भांप कर अपने विचार व्यक्त कर पा रहे हैं तो, कुछ नहीं। देश में इस तरह का दौर आजादी के बाद से ही शुरु है। पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्या इस आंधी की गति को तेज कर रहे हैं। किसान, जो लोगों के भूखे पेट को भरता है, पत्रकार जो व्यक्ति की जिज्ञासा को शान्त करता है। उस किसान की आत्महत्या और पत्रकार की हत्या यह केवल लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है, यह मानवीय दृष्टिकोण में हो रहे बदलाव को भी व्यक्त कर रहा है।
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक रत्नाकर नाम का दस्यु (डाकू) था जो अपने इलाके से आने-जाने वाले यात्रियों को लूटकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार नारद मुनि भी इस दस्यु के शिकार बने। जब रत्नाकर ने उन्हें मारने का प्रयत्न किया तो नारद जी ने पूछा कि तुम यह अपराध क्यूं करते हो? रत्नाकर ने कहा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए? नारद मुनि बोले अच्छा तो क्या जिस परिवार के लिए तुम यह अपराध करते हो वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार है ? इसको सुनकर रत्नाकर ने नारद मुनि को पेड़ से बांध दिया और प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर चला गया। घर जाकर उसने अपने परिवार वालों से यह सवाल किया लेकिन, उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई भी उसके पाप में भागीदार नहीं बनना चाहता। घर से लौटकर उसने नारद जी को स्वतंत्र कर दिया। रत्नाकर सत्यमार्ग दिखाने के लिए, नारद को धन्यवाद देता है और ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप करता है। इसी डकैत को आज हम महर्षि वाल्मीकि के रुप में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद की उस वक्त जो भूमिका थी वही, आज के पत्रकारों की मानी जाती है। गौर से देखा जाय तो इस प्रकार के प्रसंग हमारे सामने प्रतिक्षण उपस्थित होते रहते हैं। हाल ही में दिवंगत हुई पत्रकार गौरी लंकेश इसका उदाहरण हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में अपने अधिकारों के लिए हथियारों से लड़ रहे नक्सलियों को गौरी लंकेश सही और गलत का फर्क समझाती थीं। उनसे प्रभावित होकर कई नक्सलियों ने हिंसात्मक लड़ाई छोड़कर, वैचारिक लड़ाई लड़ना शुरु कर दिया। क्या आज नागरिकों में पत्रकारों के प्रति वही नजरिया और सम्मान है, जो हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक नारद का था, नहीं। आज पत्रकारों के प्रति देश का नज़रिया बदल रहा है। देश के नागरिक पत्रकार व पेशेवर पत्रकारिता के अन्तर को समझ नहीं पा रहे हैं। इसे जानने वाले बोल नहीं पा रहे और समझने वाले सोच नहीं पा रहे हैं। कुछ बौद्धिक सोच वाले सरकारी समाचार चैनलों पर मीडिया मंथन भी कर रहे हैं। लेकिन क्या परिणाम निकल पा रहा है? 


अपनी कलम की शक्ति का लोहा मनवाने वाले एमएम कालबूर्गी, नरेन्द्र दाभोलकर, जगेन्द्र सिंह, अक्षय सिंह, राजदेव रंजन, गौरी लंकेश आदि तमाम पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। गौरी लंकेश की हत्या, मीडिया में चर्चा का विषय बन जाती है। सोशल मीडिया में मानव समाज को कलंकित करने वाले शब्द पोस्ट किये जाते हैं और उस हत्या पर ‘कुतिया’ लिखने वाले ऐसे वाहियात व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री अनुसरण करता है। इसी बीच गौरी लंकेश के बारे में मनगढंत बातों की आंधी बहने लगती है और हत्या की वजह को छोड़कर सोशल मीडिया में फैल रहे झूठ से जंग छिड़ जाती है। देश के जानेमाने पत्रकार इस जंग में कूद पड़ते हैं परिणाम, गौरी लंकेश के विचारों का विस्तार देश जान ही नहीं पाता। 

देश के आम नागरिकों में जो देखा, वह यह कि एक पत्रकार की हत्या हो गयी है जिसको कुछ लोग हिन्दू विरोधी लेखक बोल रहे हैं। हत्या के विरोध में दिल्ली के प्रेस क्लब सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ पत्रकार प्रदर्शन कर रहे हैं। लूटपाट में, गैंगवार के दौरान, प्रेम प्रपंच के चलते, जायदाद के लिए, वर्चस्व खत्म करने के लिए हुयी हत्याओं की तरह ही, पत्रकारों की हत्या को भी देश के अधिकांश लोगों ने केवल एक सामान्य घटना माना है।
पत्रकार का न तो जीवन सामान्य है न ही, आम नौकरियों की तरह किसी मीडिया संस्थान में पत्रकारिता करना। पत्रकार हर क्षण अपने निजी जीवन, पेशे व कार्यक्षेत्र की चुनौतियों से लगातार जुझता है। वह अपनी रोजी-रोटी विचारों से ही कमाता है। उसका रहन-सहन वैसा ही है जैसे निर्धन व धनवान रहते है, लेकिन वह पलपल दूसरों के सूख के लिए जीता है। वह अपनी शिक्षा, ज्ञान, सामर्थ्य के अनुसार समाज को देखता है, उसे परखता है। निर्धन, धनवान, बलवान के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित हो, मानवीय संतुलन बना रहे वह इस बात पर विचार करता है। वह राजनीतिज्ञों और सरकारों की, अपने नज़रिये के मुताबिक आलोचना करता है ताकि नागरिकों के जीवन में सुधार हो सके। वह खाते-पीते, सोते-जागते, उठते बैठते केवल यही विचार करता है कि लोगों को तार्किक व जागरुक कैसे बनाया जाय। वह स्वयं किस परिस्थिति में है ये कम सोचता है और शोषित समाज की दशा कैसे सुधरे इस पर अधिक समय देता है। वह दबे कुचले लोगों के विकास में ही अपने विचारों का विकास देखता है। भला ऐसे पत्रकारों की हत्या को अन्य हत्याओं की तरह कैसे माना जा सकता है।


''एक राजनेता सत्ता के लिए समाज से छल कर सकता है, एक व्यापारी अपने लाभ के लिए देश को ठग सकता है, एक नौकरशाह सरकार के इशारे पर जनता के लिए दमनकारी हो सकता है, आम व्यक्ति भय के कारण अपनी रोजी-रोटी के लिए अमानवीयता को सहन कर सकता है लेकिन एक पत्रकार किसी भी परिस्थिति में अमानवीय और देशद्रोही नहीं हो सकता।''
आज से हजारों साल पहले आदिकाल में मानव गुफाओं मेंरहता था। उसने अपनी जीवनशैली को चट्टानों पर चित्र बनाकर व्यक्त करता था ताकि वहां से गुजरने वाले यह जान सकें की वह कैसे रहता था। धिरे-धिरे बोली और बाद में लिपी का मानव ने विकास किया। पाली, ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि भाषाओं सहित आज हम संस्कृत अंग्रेजी आदि सैकड़ों भाषाओं को जानते और बोलते हैं। अर्थात् आदिकाल से ही मानव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राकृतिक है। समग्र विश्व  के लोग इसकी स्वतंत्रता को लेकर सहमत हैं। हमारे देश के संविधान में इसका ही महत्व है विद्वान इसी को लोकतंत्र मानते है। विश्व का कोई भी देश हो, उस देश का सत्ताधीश यदि किसी वस्तु से डरता है तो, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से डरता है। इसी से सत्ता छिन जाने का उसे भय सताता रहता है। किसी भी देश का संविधान अपने नागरिक को अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता देता है यह एक अलग विषय है लेकिन यही स्वतंत्रता उस देश की परम्पराओं को जन्म देती है। यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानव में प्राकृतिक नहीं होता तो, आज हम अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ रहे होते और न ही हमें आजादी मिलती। हम भी राजशाही परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े होते।
हमारे देश के संविधान में शासन किया कैसे जाय इससे ज्यादा महत्व व्यक्ति की प्राकृतिक स्वतंत्रताओंको दिया गया है, ताकि लोगों में भाईचारा, एकता बनी रहे। संविधान बनाने वालों को यह पता था कि इस देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं, उनकी जीवनशैली, भाषा, बोलीयां एक दूसरे से भिन्न है। इन्हें एकजूट रखने के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है। किसी भी देश के शक्तिशाली होने का प्रमाण उस देश में नागरिकों की एकता होती है। आम नागरिक को जो संवैधानिक अधिकार प्राप्त है वही पत्रकारों को भी प्राप्त है। आज सोशल मीडिया में जो कुछ लिखा जा रहा है इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की देन है। कुछ लोग इस मुफ्त की जगह का दुरुपयोग कर रहे हैं तो, कुछ प्रयोग और उपयोग।
पत्रकारों के प्रति बदल रहे देश के नज़रिये में सोशल मीडिया का भी योगदान है। अराजकता फैलाने वाले सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर कुछ गैर व नौसिखिए पत्रकारों की बात करके, सादगीपूर्ण बेदाग छवि के पत्रकारों को भी उसी जमात में खड़ा कर दे रहे हैं। मीडिया संस्थानों में पत्रकारिता का चोला ओढ़कर घूस आये, मुनाफाखोर गैर पत्रकारों को मीडिया घरानों द्वारा तवज्जो देने से पत्रकारों की छवि व पेशा  बदनाम हो रहा है। कई बार देश ने प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के ख्यातिलब्ध पत्रकारों को दलाली करते हुए देखा है। संस्थानों द्वारा उन पर कार्रवाई करने की बजाय, पत्रकारिता को दूषित करने वाले ऐसे पत्रकारों के वेतन को बढ़ाकर मीडिया संस्थान उन्हें अपने साथ रखते हैं और पहले से अधिक महत्व देते हैं।
मीडिया संस्थानों द्वारा राजनीतिक दलगत प्रेम को भी देशवासी समझ रहे हैं। पत्रकारों के प्रति देश के नजरिये में बदलाव की ये मुख्य वजह है। पत्रकारों के साथ हो रही बर्बरता और उनकी हत्या का विरोध देश के नागरिक उसी एकजूटता से क्यों नहीं कर रहे हैं जैसे, निर्भया को न्याय दिलाने के लिए एकजूट हुए थे। पत्रकार तो ज्यादातर आम लोगों के हितों के लिए ही लिखता है फिर आम नागरिक इनके साथ क्यों नहीं खड़ा होता है? क्या राजनीतिक खेमेबंदी के नजरिये से लोग पत्रकारों को भी देखना शुरु कर दिये हैं? बहरहाल पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमले और इस पर आम नागरिकों का मौन, मीडिया संस्थानों का सरकारी अप्रत्यक्ष गठबंधनों से कहा जा सकता है कि देश की सोच बदल रही है।  ..क्रमशः जारी है.... 

    
रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

Monday 18 September 2017

किसान एकजूट नहीं हुए तो पूंजीपति आपकी पीढ़ी को गुलाम बना लेंगे-संतोष भारतीय

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

वाराणसी। किसानों के हित में लगातार लिखने व मुखर होकर बोलने वाले संतोष भारतीय ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियों ने देश  की 80 फीसदी आबादी को विकास से बाहर रखा है। सरकार ऐसी नीतियां बना रही हैं जिससे किसानों की जमीन छिन ली जा रही है जिसके कारण देश में अपराध बढ़ा है। किसान का सवाल अब राजनीतिक सवाल है। संतोष भारतीय राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में आयोजित तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय किसान परिसंवाद’ के समापन समारोह में किसानों को संबोधित कर रहे थे। 
उन्होंने कहा कि अब किसानों का भरोसा संगठनों से खत्म हो रहा है ऐसे में ‘किसान मंच’ किसानों के हितों के लिए लगातार काम कर रहा है। किसान मंच के संस्थापक पूर्व प्रधान मंत्री वीपी सिंह के सपने को आज साकार होते हुए देख रहा हॅूं। किसान मंच के अनुभवी लोग किसानों को एकजूट करेंगे और लड़ाई जारी रखेंगे। किसान किसी भी प्रांत में आत्महत्या कर लेता है अपने अधिकार के लिए लड़ता है तो कम से कम उसके प्रति लोगों की संवेदना होनी चाहिए। उन्होंने अपने पत्रकारिता के अनुभव से किसानों को बताया कि यदि किसान एकजूट नहीं हुए तो आपकी पीढ़ी को पूंजीपति गुलाम बना लेंगे। उन्होंने कहा कि किसानों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि जो पैदा करता है वह उचित दर पर बिकता नहीं है उसे सड़क पर फेंकना पड़ता है। किसानों के उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिए  किसान मंच फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए किसानों को जागरुक करेगा।यदि किसान अपने उत्पादन का प्रोसेसिंग करे तो प्रशासन मांनिटर करे रोके नहीं। किसान मंच सरकार को प्रस्ताव भेजेगा।
किसान मंच की ओर से वरिष्ठ पत्रकार संजय अस्थाना ने तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय किसान परिसंवाद’ के समापन अवसर पर 15 सुत्रीय प्रस्ताव को पढ़ा जिसे आयोजन में शामिल किसान नेताओं ने अपनी सहमति दी। प्रस्ताव में प्रमुख रुप से आत्महत्या कर रहे किसानों के लिए जिले स्तर पर कमेटी बनाई जाये और जबाबदेही तय की जाय। ग्राम स्तर पर फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाई जाय। सरकार जब डब्ल्यूटीओ पर हस्ताक्षर करे तो किसानों से राय ली जाये आदि 15 सुत्रीय प्रस्तावों पर विचार कर कुछ और किसानों की मांगो को जोड़कर किसान मंच केन्द्र सरकार को भेजेगा।
किसान मंच की ओर से राजेश  जायसवाल व मनोज वर्मा ने विभिन्न प्रांतों से आये किसान चिंतको को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। लगातार तीनों दिन किसान चिंतक सर्वसेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महादेव विद्रोही, महाराष्ट्र के किसान नेता विजय जावंदिया, गांधी विचारक विजय नारायण, विदर्भ के प्रताप गोस्वामी आदि लोग उपस्थित रहे। इस अवसर पर किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह, उपाध्यक्ष निशा  वर्मा, प्रदेश अध्यक्ष उत्तर प्रदेश  देवेन्द्र तिवारी ने किसानों को एकजूट करने व इस प्रकार के आयोजनों को गति देने के लिए किसानों को संदेश  भी दिया।


Tuesday 29 August 2017

देश के लिए संक्रांति काल


रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
जब समाज के लोग सत्यमार्गी लोगों का अपमान करने लगेंअपने स्वार्थ के लिए शक्तिशाली लोग कुकर्मियों की सहायता करेंबुद्धिमान लोग भय के कारण मौन हो जायेंन्यायाधीश असुरक्षित महसूस करने लगेंशासन-प्रशासन अनैतिक हो जाये अर्थात् जब समाज अपने धर्म  संस्कृति की प्रकृति के विपरित आचरण करने लगे तो इसे ही उस देश का संक्राति काल कहते है।

पिछले पोस्ट में द्रष्टा ने ‘चीखों को दफ्न करता सियासत का ढींढोरा’ औरविकास से विनाश की ओर ले जा रही है संवेदनहीनता के बारे में लिखा जो पाठक पढ़े होंगे उन्हें अब स्पष्ट रुप से समाज और देशकाल को समझने का दृष्टिकोण मिल गया होगा। अब इस लेख को पढ़िए और मोह और घृणा से परे समाज को संपूर्णता में देखिए जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं को आश्ष्चर्य से देखने की भूल करने से आप बच सकें। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि जो व्यक्ति अपने आपको दर्शक मानते रहे हैं उनके लिए ये घटनायें एक आश्ष्चर्य है और जो नागरिक हैं उनके लिए दुख का कारण बन रही है। द्रष्टा ने भय और भ्रम से आपको मुक्त कराने का वचन दिया है, अपने वचन का पालन करते हुए द्रष्टा उसी पथ पर आपको ले जा रहा है।

25 अगस्त को भारत के उत्तरी राज्यों में दुनिया ने भारत के लोकतंत्र को भीड़तंत्र द्वारा विध्वंस करते देखा। लोकतंत्र के रक्षक भीड़तंत्र के आगे बेबस, लाचार होकर भयानक डर से कांप उठे थे जैसे उनकी सूझबूझ लकवाग्रस्त हो गई हो। अज्ञानता से उत्पन्न भक्ति में रमी भीड़ सिपाहियों को खदेड़ रही थी, लोकतंत्र की आवाज बने पत्रकारों के हाथ पांव तोड़ दिये गये, समाचार संकलन करने वाली मीडिया संस्थानों की गाड़ियों को आग लगा दी गई। पंचकुल, सिरसा के लोगों ने अपने खिड़की दरवाजे बंद कर लिए, वहां के निवासियों में डर इतना बढ़ गया कि अपने घरों में जान बचाने के लिए निरपराध लोगों को भी आश्रय नहीं दिया और सरकार बेशर्म दर्शक बनी रही।

भय और भ्रम की जड़ है अज्ञानता
ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि अचानक तैयार नहीं होती यह एक अतिधीमी प्रक्रिया है जिसे हम समझ नहीं पाते है। भय और भ्रम ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि है। भय और भ्रम की जड़ है अज्ञानता। जीवन सरल बनानें के लिए कुछ समस्यों का निराकरण कुछ व्यक्तियों के पास होता है। जिस व्यक्ति की जैसी समस्या होती है वह स्वयं समस्याओं का निवारण करने वाले उन व्यक्तियों का चुनाव कर लेता है। जिसको शारीरिक समस्या है वह चिकित्सक के पास जाता है, जिसे आर्थिक समस्या है वह साहूकार के पास जाता है। जिसका मन भ्रमित है वह आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर समस्याओं का निवारण करता है। तो क्या वास्तव में व्यक्ति को अपनी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है, नहीं। जो व्यक्ति इस भ्रम में जीवन गुजार रहा है कि उसकी सभी समस्याओं का निवारण किसी अन्य के पास ही है यही सोच उस व्यक्ति की अज्ञानता है।
जातिवाद-सम्प्रदायवाद, पूजीवाद क्षेत्रियतावाद की राजनीति के कारण देश में महंगाई, बेरोजगारी धार्मिक उन्माद फैल रहा है। ऐसी परिस्थिति में आमजनों का जीवन जीना कठिन हो गया है।लोगों में असुरक्षा की भावना तीव्रगति से बढ़ रही है। लोग सत्य के निकट आकर भी सत्य का हाथ पकड़ने का साहस नहीं दिखा पा रहे हैं और अपने जीवन के नष्ट हो जाने के भय के कारण ये उन्हीं के साथ हो ले रहे हैं जो इन्हें डरा रहा है। देश में कुछ समय से देख रहे हैं कि राजनीति में जो दल जिन नेताओं को डरा रहा है उसी के पाले में वह नेता बैठ जा रहे हैं, फिर आम नागरिकों की क्या सोच होगी?

1 post-चीखों को दफ्न करता सियासत का ढिंढोरा
नोट के बदले वोट के रुप में बेंचते हैं
भय के कारण व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है जिसे षांत करने के लिए संतो, धर्मगुरुओं की शरण में जाता है। डरा हुआ मन कभी भी सही और गलत का निर्णय नहीं कर पाता है। अस्थिर मन वाला व्यक्ति वास्तव में यह जान ही नहीं पाता कि जिसके पास वह जा रहा है या जिसका भक्त बनने जा रहा है वह वास्तव में कौन है? वह ये भी नहीं जान पाता कि ये धर्मगुरु या संत उनके मन का नाता ईष्वर से जोड़ने वाले हैं या उनके डर का व्यापार करने वाले हैं ? डरे हुए ऐसे ही लोगों को धर्म के नाम पर संगठित कर ये धर्मगुरु नोट के बदले वोट के रुप में राजनेताओं को बेंचते हैं। ऐसे व्यापारी धर्मगुरुओं के पास धर्म का ज्ञान है और ही आत्मा का, ये लोग द्ध ठग हैं। आशाराम, गुरुप्रीत जैसे ठगों का स्वभाव ही है दुष्कर्म करना। भले ही वह साध्वी हो, बहन हो या बेटी इसमें कोई आष्चर्य की बात नहीं है जैसा कि रात-दिन टीवी चैनलों पर नाबालिग पत्रकार दिखा रहे हैं और देश के नागरिकों का भ्रम दूर करने की बजाय उन्हें भयभीत कर रहे हैं। आष्चर्य तब होता जब पहले ऐसी घटनाएं नहीं हुई होती।

कालनेमी की तरह राम नाम जपने वाले राक्षसों की संख्या अनगिनत..
हिन्दू ग्रंथ रामायण में एक चरित्र है रावण के साथी कालनेमी राक्षस का, जो कुछ क्षण के लिए श्री राम नाम लेकर बुद्धिमान हनुमान जी को भी भ्रमित कर देता है। रावण जैसे त्रिलोक विजयी बनने की महत्वाकांक्षा लिए आज भी कुछ राजशाही प्रवृत्ति के नेता अशाराम, गुरुप्रीत जैसे रामरहीम नाम रखने, भजने वाले कालनेमी राक्षसों का सहारा लेते रहे हैं। जो राजनेता इनकी सहायता से सत्ता में जाते हैं वे इनको पालते पोसते हैं जिस नेता की सत्ता छिन जाती है वे अगली बार सहायता की आस में इन कालनेमी राक्षसों के चरणों में करबद्ध दण्डवत पड़े रहते हैं। रामायण कथा के अनुसार हनुमान जी ने अपनी तार्किक बुद्धि से कालनेमी को पहचान लिया और अंधभक्ति के भ्रम से मुक्त हो गये लेकिन आज के समय में कालनेमी जैसे चरित्र वालों की संख्या अनगिनत है और हनुमान जी जैसे बुद्धिमानों की संख्या के बराबर। रावण जैसी महत्वकांक्षा रखने वाले राजशाही प्रवृत्ति के नेताओं और उन्हें सहायता देने वाले कालनेमी राक्षसों के विरोध में जो बुद्धिमान बोलता है उसे ये नेता देशद्रोही घोषित कर देते हैं।
विचलित मन का भ्रम
विचलित मन वाले व्यक्तियों को यह भ्रम है कि धर्मगुरु हमारी समस्या का निवारण कर हमें सुरक्षा देंगे। इसी सोच के कारण व्यक्ति स्वयं को शक्तिशाली बनाकर अपने निहित स्वार्थ के लिए कालनेमी जैसे धर्मगुरुओं के कंधो को आधार बनाकर जी रहा है जो धर्मगुरु स्वयं भयभीत भ्रमित हैं। व्यक्ति का यह भ्रम उस वक्त दूर होता है जब देश में अपने वर्चस्व के लिए शक्तिप्रदर्शन करने वाले कुकर्मी, आतंकी कालनेमी कानून के फंदे में आते हैं और हाथ जोड़ कॉपते, गिड़गिड़ाते हुए न्यायाधीश के सामने रहम की भीख मांगने लगते हैं।     
आशाराम, संत रामकृपाल, नारायण साईं, स्वामी भीमानन्द, परमानन्द, नित्यानन्द आदि धर्म का चोला ओढ़े कालनेमी राक्षस आज जेलों में हैं। जेल जाना बुराई नहीं है, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से अपने देश की आबरु बचाने के लिए क्रांतिवीर जेल जाते थे। कुछ लोग दूसरों को अधिकार दिलाने के लिए जेल जाते हैं, तो कुछ अपनी वासना के लिए। आजादी के बाद आज उसी देश में स्वयं को धर्मरक्षक बताने वाले अपने ही लोगों की बहन-बेटियों को बेआबरु कर उनकी अस्मत लूटते हैं और विरोध करने पर हत्या कर देते हैं। इसी प्रकार का कुकर्म बाबा गुरुमीत ने किया और राम रहीम के देश को कलंकित कर दिया। अपनी वासनापूर्ति के लिए तांडव करने वाला आतातायी बाबा अब जेल में है।
किसी घटना के लिए दोषी अपराधी को दंण्ड देना केवल उस देश के विधान के अनुसार न्याय है, समय का न्याय नहीं है। ऐसी अपराधिक घटनाओं की पुनावृत्ति हो, लोग अपराध करने से डरें अपराधी का बहिष्कार करें तब उसे समय का न्याय कहते हैं। देश के विधान के अनुसार न्याय में मिले दण्ड की मात्रा कम से कम अधिक से अधिक में निष्चित होती है लेकिन जब समय का विधान न्याय करता है तो दण्ड की मात्रा का ज्ञान आप के ईष्वर को भी नहीं हो पाता है।
डराने में मिली सफलता
25 अगस्त की यह घटना देश में एक बार फिर लोगों को डराने में सफल रही है। डरना बुरी बात नहीं है, डर कर भागना बुराई है। डर मानव समाज को गतिषील बनाने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है। ज्ञानी भी डरता है और अज्ञानी भी। ज्ञानी डर को समझ लेता है और उससे मुक्त होने का मार्ग खोज लेता है। अज्ञानी डर में ही जीवन गुजारता है इसे ही अपनी नीयति मान लेता है। अब आप देखीए और समझने की कोषिश करिये कि देश में डर को अपनी नीयति मानकर जीवन गुजारने वालों की संख्या कितनी है? इसी से आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं का रुप देखने को मिलेगा।
विपत्ति से पार पाने की जो भी पतवार सही लगे
अपने कार्य व्यवहार से समाज को दूषित करने वाले ऐसे कालनेमी राक्षसों को तो जगदीप सिंह जैसे सत्यनिष्ठ न्यायाधीश दण्ड तो देंगे ही लेकिन उन दो महिलाओं की तरह सत्यमार्गी बनने का साहस आप कब और कैसे दिखाओगे?, इन महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए लड़ने वाले उन वकीलों की तरह निडर होना आप कब सिखोगे? इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन पुलिस कर्मियों की तरह निर्भिक निष्पक्ष कब बनोगे? यह समय तय कर रहा है। इस प्रकार की घटनाओं से, मानव समाज पर आनेवाली विपत्तियों की समय सूचना दे रहा है और समाज के प्रभावशाली, शक्तिशाली बुद्धिमानों से पूछ रहा है कि आप किस पक्ष में खड़े रहेंगे? देश में संक्राति काल है इस विपत्ति से पार पाने की जो भी पतवार सही लगे उसे जल्द ही पकड़ लिजिए। ........ जारी है
   


फांट की वजह से ब्दों में गलतियां सम्भव है इसके लिए मुझे खेद है





रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 



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