विचित्र मानव भाग-1
25 जुलाई 2020 की सुबह 9 बजे ‘द्रष्टा’ को एक कॉल आती है। ''भैया, पापा को पुलिस उठा कर ले गयी। आप बचा लो। पापा की दवाई यहीं छूट गयी है। उनकी तबियत खराब चल रही है। मेरे बूढ़े पापा पर पुलिसवालों ने रहम भी नहीं खाया'...
25 जुलाई 2020 की सुबह 9 बजे ‘द्रष्टा’ को एक कॉल आती है। ''भैया, पापा को पुलिस उठा कर ले गयी। आप बचा लो। पापा की दवाई यहीं छूट गयी है। उनकी तबियत खराब चल रही है। मेरे बूढ़े पापा पर पुलिसवालों ने रहम भी नहीं खाया'...
दिनेश तेजस |
ये थाना पाण्डव नगर के इन्सपेक्टर दिनेश तेजवान हैं शक्ल से भोले ,अक्ल से मक्कार (छलिया)। न्याय देने या दिलाने के लिए कभी-कभी ऐसा बनना पड़ता है। लेकिन ये सब गैरमाफी गुस्ताखियां इन्होंने अन्याय स्थापित करने के लिए की। इन्होंने ऐसा षड़यंत्र रचा कि ‘द्रष्टा’ भी समझ नहीं पाया। ‘द्रष्टा’ भला कैसे समझता? शान्ति, सेवा और न्याय की बात करने वाली दिल्ली पुलिस के वादे पर पहली बार फंसा था। कहावत सुनी थी कि दिल्ली के ठग बड़े मशहुर हुआ करते हैं। इस विचित्र मानव की षड़यत्र का न केवल मैं ‘द्रष्टा’ हूँ बल्कि शिकार भी हुआ हूँ। ‘द्रष्टा’ आपको पुलिस तंत्र के गिरते मानवीय स्तर का विश्लेषण कर रहा है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है। बल्कि वो सच्चाई है जिसे ऐसे विचित्र मानव स्वीकार नहीं करते है।
द्रष्टा हैरान था। इस बात से नहीं की पुलिस पकड़कर ले गयी और न ही इस बात से की उनकी दवाई घर पर छूट गयी है। ‘द्रष्टा’ हैरान इस बात पर था कि पुलिस के एक वरिष्ठ निरीक्षक (सीनियर इंसपेक्टर) ने ऐसा षड़यंत्र करने की कैसे सोची? कल रात को ही तो, उसने कहा था कि आपके कागजातों से मैं संतुष्ट हूं। फिर अचानक कौन सी शक्ति ने उसके दिमाग को खुराफाती बना दिया। 80 साल के वृद्ध के साथ इस तरह की गुण्डागर्दी करके इंस्पेक्टर ने तो हद ही कर दी।
बाल्मीकी प्रसाद सिंह |
तारीख गवाह है कि जब-जब ऐसी घटनाएं होती हैं तब-तब हमें अपने पुरखों की क्रांति याद आती है। यह वयोवृद्ध भी तो इन्हीं क्रांतिकारी जय प्रकाश नारायण और बलवंत राय मेहता की धरोहर को संभालकर रखने वाले बाल्मीकी प्रसाद सिंह हैं। आज एक क्रान्ति का फिर आगाज हुआ है। जो, इतिहास लिखा जायेगा कि जेपी के बाद भी कोई क्रांन्तिवीर है। जो, शन्ति, सेवा और न्याय के भ्रष्ट पथिकों को सबक सिखायेगा।
‘द्रष्टा’ ने पुलिस उपायुक्त(डीसीपी) को फोन किया, डीसीपी ने कोई जबाब नहीं दिया। थाने के एसएचओ रतनपाल को फोन किया वहां से भी जबाब नहीं मिला। द्रष्टा ने सोचा कि सुबह-सुबह की बात है शायद पुलिस अधिकारी अलसियाये रहते हैं। उनकी स्फूर्ति केवल षड़यंत्रकारी कार्यों में दिखती है। और आज भारी षड़यंत्र है।
कल 24 जुलाई को इंस्पेक्टर तेजस ने क्यों कहा कि आपके कागजात ठीक हैं और हम आपके द्वारा की गई बहस से संतुष्ट हैं। आप दोनों पक्षों को प्रेम पूर्वक समझाकर विवाद खत्म कर सकते हैं। इंस्पेक्टर के इस सौहार्दपूर्ण प्रस्ताव पर द्रष्टा भावनाओं में डूब गया था। द्रष्टा ने इंस्पेक्टर के पीछे लगे दिल्ली पुलिस का स्लोगन शान्ति, सेवा और न्याय की बात को सच मान बैठा। और इंस्पेक्टर की न्याय की समझ पर विचार कर बाल्मीकी प्रसाद सिंह को बता दिया कि पाण्डव नगर थाना पक्षपात नहीं करेगा। और हमें अपनी बात रखने का समय देगा।
द्रष्टा ने भोली शक्ल में छिपे मक्कार बहुरूपिये को पहचानने में भारी चुक कर दी। द्रष्टा से यह चुक हर बार होती है जब वह मानवीय देह में होता है और भावनाओं में बहता है। जब तक वह ‘एको द्रष्टा सी सर्वस्य’ अर्थात् ‘वह एक मात्र द्रष्टा है’ तब तक वह ऐसी चूक नहीं कर सकता है।
द्रष्टा निकल पड़ा पाण्डव नगर थाने की अंग्रेजियत पुलिस की नालायक पीढ़ी से पूछने कि आखिर ऐसा षड़यंत्र करने की क्या आवश्यकता पड़ी? कानूनन कोई गलती थी तो, प्रेम पूर्वक एक बार बता दिया होता, द्रष्टा पुलिस का सहयोग करने का वादा कर चुका था। फिर आपने एक शरीर से निर्बल व्यक्ति को उसके परिजनों और सहयोगियों को बिना बताये, चुपके से डकैतों की तरह बदमाशों की शैली में अगवा क्यों किया?
द्रष्टा जैसे ही थाने के भवन के प्रथम तल पर पहुंचा,अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के अध्यक्ष 80 वर्षीय बाल्मीकी प्रसाद सिंह को पुलिस ने फर्श पर अपराधियों जैसे बिठा रखा था। द्रष्टा का प्रेम वाला हृदय धधक उठा, उसकी आवाज कर्णप्रिय नहीं रही। शायद बहुतों को द्रष्टा का यह परिवर्तन अच्छा न लगे। इस बात से द्रष्टा को फर्क नहीं पड़ा। इंस्पेक्टर का चेहरा बता रहा था कि वह भारी दबाव में है। और वह अपने स्वभाव के विरूद्ध घृणित कर्म कर रहा था। इंस्पेक्टर ने द्रष्टा से फिर कागजात मांगे और फिर वह सुराख खोजने लगा जहां से द्रष्टा को गलत साबित कर सके। पंचायत सदस्यों से बातचीत के दौरान उनके बॉस का बार-बार फोन आने से इंस्पेक्टर साहब और भी परेशान थे। इंस्पेक्टर का हावभाव बता रहा था कि जैसे वही विपक्षी पार्टी हो। बाल्मीकी प्रसाद सिंह के खिलाफ शिकायतकर्ताओं के पक्के कागजात पंचायत परिषद के सदस्यों द्वारा मांगने पर इंस्पेक्टर तेजस ने मना कर दिया। अब इंस्पेक्टर की कुतर्क की इंतेहा हो गयी थी। द्रष्टा उठा और कमरे से बाहर जाकर गृह मंत्री (राज्य) को फोन कर घटना की जानकारी दे दी। इंस्पेक्टर साहब को उनके बॉस का फोन आया और फिर एक बार उनका सुर बदला। बाल्मीकी प्रसाद सिंह को उसी इज्जत के साथ पंचायत धाम उन्होंने सुरक्षा की गारण्टी देकर भेज दिया।
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द्रष्टा को दिखा कि जैसे इंस्पेक्टर साहब के मन का बोझ हल्का हुआ है और वे थोड़ा दबाव मुक्त लग रहे है। फिर भी गलती बॉस के दबाव में की गयी हो या जानबुझकर जो, अपनी मर्यादा भूलता है उसे दण्ड जरुर मिलता है। पुलिस इंस्पेक्टर की मर्यादा शान्ति, सेवा और न्याय की भावना होनी चाहिए। जो उनके कर्म में यह भावना नहीं दिखी। बहरहाल, इंस्पेक्टर साहब को अपनी मर्यादा भूलने का दण्ड समय अवश्य देगा।
क्रमश: जारी है......
पढ़ें अगले भाग में-
बाल्मीकी प्रसाद सिंह कौन है? और अखिल भारतीय पंचायत परिषद् क्या है?