Tuesday, 15 December 2020

किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

गरीबों के निवाले भी, सियासत छिन लेती है- 7

किसान नेता और सरकार दोनों को नहीं मालूम की संविधान के 73 वें संशोधन 1992 के अनुसार कृषि कृषि विस्तार से जुड़े मामले ग्राम सभा (पंचायत)का विषय है। संविधान की 11 वीं अनुसूची की 29 विषयों में स्पष्ट रुप से कृषि कृषि विस्तार शामिल है। लेकिन सरकार एक ही तीर से अपनी राजसत्ता और कारपोरेट को जनहितों से ऊपर रखकर पंचायतों किसानों के अधिकारों का दमन करना चाहती है।

केन्द्र सरकार द्वारा लाए गये कृषि बिल 2020 के उद्देश्यों उसके दूरगामी परिणामों पर वाद-विवाद का दौर जारी है। किसानों का मानना है कि सत्ता मेंं बैठे बेकार और नक्कारे किस्म के नेता और चाटुकार नौकरशाह हरामखोर पूॅजीपतियों के लिए संसाधन जुटा रहे हैं। कोरोना महामारी का भय दिखाकर केन्द्र सरकार राज्य सरकारें गैरजरुरी कामों को अंजाम देती गयीं। एक ओर गलत नियत वालों को बेहतर फायदा पहुंचाने के लिए किसानों की भलाई के नाम पर कृषि बिल 2020 को केन्द्र सरकार जबरन जनता पर थोपना चाहती है। वहीं दूसरी ओर पंचायतों को मिले संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण भी कर दी। पंचायतीराज की विकेन्द्रित व्यवस्था को कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित कर रही है।

किसान क्रांति : प्रधानमंत्री का जुमला बना सरकार की फजीहत


द्रष्टाकृषि बिल 2020 के संबंध में जब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह से बातचीत करनी चाही तो उन्होंने गुस्से से अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि सरकार और आन्दोलित किसान नेता दोनों ही बेपटरी होकर फालतु की बहस में उलझे हैं। चुंकि इस बहस को पूरी दुनिया सुन रही है इसलिए उनकी बहसों से पूरा विश्व भ्रमित है। सरकार डर रही है कि विपक्षी राजनीतिक दलों के भ्रामक प्रचार में फंसकर किसान सत्ता परिवर्तन का दबाव बना रहे है। और किसान नेता डर रहे हैं कि इस कानून से पॅूजीपति किसानों की कृषि व्यापार को छिनकर जमीने हड़प लेंगे। और किसानों को उनके ही खेतों में गुलाम बना देंगे। किसान नेता और सरकार दोनों को नहीं मालूम की संविधान के 73 वें संशोधन 1992 के अनुसार कृषि कृषि विस्तार से जुड़े मामले ग्राम सभा (पंचायतका विषय है। संविधान की 11 वीं अनुसूची की 29 विषयों में स्पष्ट रुप से कृषि कृषि विस्तार शामिल है। लेकिन सरकार एक ही तीर से अपनी राजसत्ता और कारपोरेट को जनहितों से ऊपर रखकर पंचायतों किसानों के अधिकारों का दमन करना चाहती है।

संविधान की 11 वीं अनुसूची

1. कृषि, कृषि विस्तार सहित।

2. भूमि सुधार, भूमि सुधारों का कार्यान्वयन, भूमि समेकन औरं मिट्टी संरक्षण।

3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और वाटरशेड विकास।

4. पशुपालन, डेयरी और मुर्गी पालन।

5. मत्स्य।

6. सामाजिक वानिकी और कृषि वानिकी।

7. लघु वनोपज।

8. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों सहित लघु उद्योग।

9. खादी, गाँव और कुटीर उद्योग।

10. ग्रामीण आवास।

11. पीने का पानी।

12. ईंधन और चारा।

13. सड़कें, पुलिया, पुल, घाट, जलमार्ग और संचार के अन्य साधन।

14. बिजली के वितरण सहित ग्रामीण विद्युतीकरण।

15. गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत।

16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।

17. प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों सहित शिक्षा।

18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।

19. वयस्क और गैर-औपचारिक शिक्षा।

20. पुस्तकालय।

21. सांस्कृतिक गतिविधियाँ।

22. बाजार और मेले।

23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिसमें अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय शामिल हैं।

24. परिवार कल्याण।

25. महिला और बाल विकास।

26. विकलांगों और मानसिक रूप से मंद लोगों के कल्याण सहित सामाजिक कल्याण।

27. कमजोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण।

28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

29. सामुदायिक संपत्ति का रखरखाव।

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अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते है। उनकी यह बात प्रशंसनीय  देशहित में है परन्तु, इसके लिए आत्मनिर्भर भारत बनाने का जो रास्ता है गॉवों से होकर गुजरता है। और गॉंवों की व्यवस्था गॉंव की सरकार पंचायती राज चलाती है। अखिल भारतीय पंचायत परिषद् पंचायतीराज की जनक संस्था है। जब-जब सरकार और अजागरुक जनता रास्ता भूल जाती है तब-तब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् उनका मार्ग बताता रहा है। लगभग 2 दशक से जोरों पर सत्ता में बैठे नेता और नौकरशाह अपनी हरामखोरी की दुकान चलाने के लिए पूँजीपतियों से साठगॉंठ कर पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन कर रही हैं।
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द्रष्टादेख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में भी कारपारेट के पक्ष में स्पष्ट संकेत देते हुए किसानों को खुली चुनौती दे रहे हैं। लेकिन किसान राजनीतिक दल के नेताओं के मायाजाल में उलझता चला जा रहा है। किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों कृषि बिल 2020 को रद्द करने की अपनी मागों पर नजर गड़ाये हैं लेकिन अपने संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि सरकार नाजायज तरीके से कानून बनाकर देश की आम आवाम पर थोपे जा रही है। कृषि बिल 2020 के तीनों विधेयकों के वापसी के लिए किसान दिल्ली पहुंचने का रास्ता रोककर बैठे हैं। सरकार के सिपाही और किसान दोनों लाठियां लेकर आमने-सामने खड़े है। किसान नेताओं और मंत्रियों के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी है। सरकारी तंत्र का प्रपंच और किसानों का जबाब दोनों की कार्यशैली को जानने वालों में यह चर्चाएं भ्रांति पैदा कर रही है।

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अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के राष्ट्रीय सलाहकार रविकांत सिंह का कहना है कि ''यह केवल किसानो का मसला नहीं है बल्कि देश के आम नागरिकों को आर्थिक समस्यायों में उलझने का मामला है ।  सरकार जो आज चन्द किसान नेताओं को ठेके पर बुलाकर कृषि बिल पर जो चर्चा कर रही है वही पहले ग्राम सभा से चर्चा करके कृषि बिल तैयार करती तो आज किसान आन्दोलन होता और ही हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचती। लगता है सत्ता को जनता पर भरोसा नहीं है इसलिए वह जबरन ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है।'' रविकांत सिंह ने आगे कहा कि ''अब भी सरकार की नियत किसानों को फायदा पहुंचाने की है तो, कम से कम एक कृषि कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम एक्ट 1955 को यथास्थिति रखते हुए ग्राम सभा के बीच जाना चाहिए। और अखिल भारतीय पंचायत परिषद् को निगरानी की जिम्मेदारी देनी चाहिए। ग्राम सभा के हित में जो होगा वह वैसा कानून बनाने का प्रस्ताव दे देगी। इससे पंचायतीराज के संवैधानिक अधिकारों का भी दमन नहीं होगा''।

बहरहाल,पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों के मसले पर बेहतर अनुभव रखने वाले नेता नीतिन गडकरी को अब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् को शामिल कर लेना चाहिए। कृषि बिल 2020 को ग्राम सभाओं से पास कराकर ही संसद को कानून बनाना चाहिए यही एक मात्र किसान आन्दोलन को रोकने की कारगर व्यवस्था है'।

                                        क्रमशजारी है....अगले भाग में

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