Tuesday, 14 January 2020

मुख्यमंत्री योगी को मालूम ही नहीं, भ्रष्टाचार ने कर लिया नोएडा मेट्रो पर कब्जा

 रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 



'पत्र योद्धा' अभियान ने खोली नोएडा मेट्रो के घोटालों की पोल 


यूपी में बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही की एक सबसे बड़ी बानगी देखने को मिल रही है। नोएडा मेट्रो रेल कार्पोरेशन (एनएमआरसी) अपने पैरो पर खड़ा भी नहीं हो सका था कि भ्रष्ट अफसरशाही जैसे कैंसर ने अपने चपेट में ले लिया। मुख्यमंत्री को मालूम ही नहीं कि उनके अफसरों और मंत्रियों ने मेट्रो पर कब्जा जमा लिया है। 'द्रष्टा' न्यूज के हाथों लगे महत्वपूर्ण शिकायती दस्तावेजों से यूपी सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था की पोल खुल रही है। सरकारी सम्पत्ति को अपनी बपौती समझकर मेट्रो के भ्रष्ट अफसरों ने नियम-कानून, चरित्र और नैतिकता को सूली पर चढ़ा दिया है। 

नियम और कानून की अर्थी निकालने वाले अफसरों में वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन और पूर्णदेव उपाध्याय शामिल हैं। नोएडा के वर्तमान मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आलोक टंडन, नोएडा मेट्रो रेल कार्पोरेशन के महाप्रबंधक (एमडी) रह चुके हैं। शिकायती कागजातों के अनुसार एनएमआरसी के पूर्व एमडी आलोक टंडन ने पूर्णदेव उपाध्याय पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखाये हैं। आलोक टंडन ने 31 जनवरी 2018 को बिना योग्यता के पूर्णदेव उपाध्याय को महा प्रबंधक वित्त के साथ- साथ कार्यकारी निदेशक भी बनाया। एनएमआरसी में इसके पहले इस पद पर घनश्याम सिंह और शैलेन्द्र कुमार पीसीएस अधिकारी रह चुके हैं। पूर्णदेव उपाध्याय ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर 11 जनवरी 2019 को राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भी अतिरिक्त प्रभार ले लिया है। अब वो दोनों संस्थानों में नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा रहा है।


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पूर्ण देव ने जब काबिल लोगों का अधिकार हड़प लिया

पूर्ण देव उपाध्याय
‘द्रष्टा’ ने जब कागजातों की समीक्षा की तो पता चला कि पूर्णदेव उपाध्याय के भ्रष्टाचारों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है। ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि कोई अधिकारी किसी पद के लिए विज्ञापन दिया हो और वह खुद को ही इंटरव्यू दे और खुद को ही योग्य मानकर स्थायी पद पर नियुक्त हो जाये। कागजातों के अनुसार ऐसा करने वाले विचित्र मानव पूर्ण देव उपाध्याय हैं जो लाखों डिग्रीधारी व्यक्तियों में से एक हैं। विचित्रता इसलिए कि जहॉं देश में उच्च डिग्रीधारी काबिल अभ्यर्थियों  की संख्या बढ़ रही है और सरकारी नौकरीयों में जहां एक-एक खाली पदों पर हजारों व्यक्ति आवेदन कर रहे हैं वहीं कार्यकारी निदेशक पद के लिए केवल पूर्ण देव उपाध्याय का ही बायोडाटा मैच करता है।

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प्रधानमंत्री को भेजे गये दस्तावेजी कागजातों के अनुसार 7 जनवरी 2019 को पूर्णदेव उपाध्याय का स्थानान्तरण राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हो चुका था। लेकिन मेट्रो के तत्कालीन प्रबंध निदेशक आलोक टंडन ने नोएडा मेट्रो का चार्ज बरकरार रखा। कार्यकारी निदेशक की स्थायी नियुक्ति निकालने के लिए बोर्ड की अनुमति के बगैर पद के मानकों से संबंधित नियम एवं शर्तों में बदलाव किया गया। विज्ञापन को देखने से पता चलता है कि वैंकेसी के नियम व शर्ते, जैसे किसी विशेष व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए ही बनाई गईं हो। बोर्ड की बगैर अनुमति के इन नये नियम-शर्तों में स्वयं पूर्णदेव उपाध्याय फिट बैठ रहे थे। इस पद के लिए आईइएस, आईआरटीएस व रेलवे ट्रांसपोर्टेशन के अधिकारियों को वरीयता नहीं दी गयी थी।

कार्यकारी निदेशक विज्ञापन 

फाइनेंस में 23 साल का अनुभव जीएम पद पर 2 साल तक काम किया हो की प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक का अनुभव आदि ऐसा विज्ञापन में लिखा है। विज्ञापन के अनुसार ऐसा बायोडाटा केवल पूर्णदेव उपाध्याय के पास था जो स्वयं विज्ञापन दाता थे।  एनएमआरसी द्वारा 8 फरवरी 2019 को दिये गये इस विज्ञापन की समीक्षा करने पर पता चलता है कि बोर्ड की आज्ञा के बिना ही पूर्ण देव उपाध्याय ने ही कार्यकारी निदेशक का स्थायी पद निकाला। 25 जून 2019 को इंटरव्यू की योजना बना ली। लेकिन शिकायतों के चलते स्थगित हो गया। 

आलोक टंडन ने उड़ाई बोर्ड के नियमों की धज्जियां 


वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन 
शिकायती दस्तावेज के अनुसार 3 जुलाई 2019 को निशा वाधवान ने जो पहले से ही एक विवादित कंपनी सेक्रेटरी हैं। उन्होंने पूर्णदेव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक बनाने के लिए एक फर्जी प्रस्ताव लाया। जिसमें कहा गया कि बोर्ड पूर्ण देव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक स्वीकार करे। लेकिन बोर्ड ने यह कह कर पूर्णदेव की नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया कि अनुबंध को अनुमोदन के लिए बोर्ड के सामने पहले प्रस्तुत नहीं किया गया था। लेकिन तत्कालीन महा प्रबंधक आलोक टंडन ने उत्तर प्रदेश सराकर को बिना सूचित किए पूर्ण देव उपाध्याय को कार्यकारी निदेशक बनाये रखा। 

शिकायती दस्तावेज के अनुसार बहुत ही सुनियोजित तरीके से एनएमआरसी की जड़ें काटी जा रही है। कंपनी सेक्रटरी निशा वाधवान और कार्यकारी निदेशक पूर्णदेव उपाध्याय की नियुक्ति वरिष्ठ आईएएस आलोक टंडन को भ्रष्टाचारी साबित कर रहा है। इस पद के लिए योग्य व्यक्तियों के अधिकारों का हनन कर आलोक टंडन जैसे आईएएस ने पूर्ण देव उपाध्याय का पक्ष क्यों लिया? यह जॉंच का विषय है। 
उत्तर प्रदेश के लिए एनएमआरसी जैसी संस्था वरदान साबित हो सकती थी। लेकिन जन्म के समय ही इस संस्था में भ्रष्टाचार का दीमक प्रवेश कर गया है। यह जानकारी केवल आलोक टंडन, निशा वाधवान और पूर्णदेव उपाध्याय के बारे में नहीं है। बल्कि उन पात्रों के बारे में है जहां से एनएमआरसी में आर्थिक घोटालों की शुरुआत होती है। यह दीमक संस्थाओं को किस प्रकार खा रहा है? और नागरिकों के टैक्स पर अधिकारियों की ऐश को ‘द्रष्टा’ अपने अगले भाग में बतायेगा। ....क्रमश: जारी है।

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रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 

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