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रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
नये दौर में भारतीय
संस्कृति का चरित्र चित्रण- 5
''व्यक्ति अपना जीवन
स्वाभिमान से जीना चाहता है। लेकिन, स्वाभिमान को बचाने के लिए व्यक्ति जो अथक प्रयास करता
है अक्सर, उसी प्रयास से उत्पन्न परिस्थिति के कारण व्यक्ति का आचरण बदल जाता है और
वह अपने स्वाभिमान को दांव पर लगा देता है। जब व्यक्ति स्वाभिमान हार जाता है तो, उसे
पुन: पाने का निरन्तर प्रयास करता है।''
इसी प्रयास में श्री
रंजन गोगोई भी आचार संहिता का उलंघन बार- बार उलंघन कर रहे हैं। किसी परिस्थिति के
कारण समझौता कर स्वाभिमान (जमीर) को दांव पर लगाने का कारण ‘भय’ है जबकि स्वाभिमान को
बेचना ‘मोह’है।
किस मोह में फंसकर पूर्व चीफ जस्टीस रंजन गोगोई राज्य सभा की सदस्यता स्वीकार किये
हैं। इसका जबाब पाने के लिए गोगोई के फैसले और उनसे जुड़े विवादों का पुन: अवलोकन करने
की आपको आवश्यकता होगी। ‘द्रष्टा’ इस चरित्र के समतुल्य किसी अन्य व्यक्ति को
खड़ा नहीं कर सकता है। अपने स्वाभिमान का सौदा करने वाले इतिहास में बहुत से चरित्र
हुए और वे, अपनी जिन्दगी जी कर चले गये। लेकिन इस प्रकार से स्वाभिमान का सौदा करने
वालों में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को भारतीय जनमानस के लिए ‘द्रष्टा’ विशेष महत्व का चरित्र
मानता है ।

एक निजी न्यूज चैनल
में इंटरव्यू के दौरान सांसद रंजन गोगोई अपने मन में कैद कुंठा को बाहर निकालते हैं।
सालों से मन की भड़ास निकालने को तरस रहे श्री गोगोई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल पर आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं कि 18 जनवरी 2018 की प्रेस
कांफ्रेंस के बाद कपिल सिब्बल मेरे आवास पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के
खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए सुप्रीम कोर्ट का समर्थन मांगने आये थे। मैंने, उन्हें अपने घर में
आने नहीं दिया था। मैं व्यक्तिगत रुप से कपिल सिब्बल पर टिप्पणी नहीं करना चाहुंगा।
मगर, मुझे नहीं पता कि ''मैंने सही किया या गलत''।
भले ही सांसद बनने
के बाद रंजन गोगोई को ''सही और गलत'' का पता न हो, लेकिन ‘द्रष्टा’ ''सही और गलत'' जानता है।
और उसकी व्याख्या भी कर सकता है। व्यक्ति को 'सही और गलत'' की जानकारी तब तक नहीं हो सकती,
जब तक उसका मन ‘मोह और घृणा’ से भरा रहता है। समाज से प्रेम करने वाले को
‘सही और गलत’
की जानकारी होती है। इंटरव्यू से पता चलता है कि गोगोई के मन में सच की जगह ‘घृणा व
पद के मोह’
ने घर बना रखा है। इसलिए सांसद बनते ही चतुर नेताओं की तरह पैंतरे बदल रहे हैं। मुख्य
न्यायाधीश के तौर पर उनके निर्णयों से देश संतुष्ट नहीं हुआ है। अब शायद, सांसद बनने
के बाद देश को वे संतुष्ट कर सकें इसलिए, इंटरव्यू में ऐसा प्रयास करते दिख रहे हैं।
‘‘मैं
ईश्वर की शपथ लेता हूँ या सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित
भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और
अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा तथा मैं सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा पूरी योग्यता,
ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना
पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा। ’’
यह प्रतिज्ञा समाज
के प्रत्येक व्यक्ति को विश्वास दिलाता है कि प्रतिज्ञा लेने वाला व्यक्ति समाज के
साथ न्याय करेगा। परन्तु, इस प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए व्यक्ति में सम्यक् आचरण
का होना आवश्यक है। श्री रंजन गोगोई का आचरण इस शपथ को तोड़ रहा है। ‘द्रष्टा’ ने बहुत पहले ही ''देश के लिए संक्रांति काल''
शीर्षक में लिखा था कि जब, समाज के लोग सत्यमार्गी लोगों का अपमान करने लगें, अपने
स्वार्थ के लिए शक्तिशाली लोग कुकर्मियों की सहायता करें, बुद्धिमान लोग भय के कारण
मौन हो जायें, न्यायाधीश असुरक्षित महसूस करने लगें, शासन-प्रशासन अनैतिक हो जाये अर्थात्
जब समाज अपने धर्म व संस्कृति की प्रकृति के विपरित आचरण करने लगे तो इसे ही, उस देश
का संक्राति काल कहते है।
जो न्यायधीश यह कहता
हो की ,मुझे पता नहीं कि मैंने ‘सही किया या गलत’तो, राम मंदिर, कश्मीर से धारा 370 हटाने, राफेल
घोटाला आदि अनेकानेक मामलों पर उसके द्वारा दिये गये निर्णय भी दुषित है। न्यायमूर्ति के लज्जाजनक आचरण से देश शर्मसार है। इसलिए राज्य
सभा में शेम... शेम बोलकर सांसदों ने अपनी बिरादरी में रंजन गोगोई का स्वागत किया है।
.....क्रमश: जारी है।
रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884
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