गृहस्थ का कार्य सन्यासी करे और संन्यासी का कार्य गृहस्थ करे तो मर्यादा का उलंघन होता है। और सामाजिकता नष्ट हो जाती है। अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का मन्दिर बनवाकर कुछ रहनुमा पुरुषोत्तम बनना चाहते है। ‘द्रष्टा’ ऐसे मर्यादा विहीन रहनुमाओं का चरित्र-चित्रण कर रहा है।
देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, रिजर्ब बैंक आफ इंडिया, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के जज सभी ने अपनी मर्यादा का उलंघन किया है। लेकिन इन सबसे पहले मीडिया,चुनाव आयोग और उन राजनेताओं ने अपनी मर्यादा तोड़ी है जिनके पास इन्हें नियंत्रित करने का सामर्थ्य था। व्यक्ति यदि अमर्यादित हो तो, उसे समाज व संस्थाएं रोकती और दंड देती हैं। संस्थाएं मर्यादा तोड़ती हैं तो उस पर समाज लगाम कसता है। लेकिन जब उसी समाज का नेतृत्व करने वाला राजनेता अपनी मर्यादा का बार-बार उलंघन करे और समाज उसके ‘मन की बात’ सुनता रहे तो, उस समाज का नैतिक पतन हो जाता है। और ये मर्यादा विहीन राजनेता इसी अनैतिक समाज के लिए पुरुषोत्तम बनना चाहते हैं।
इस दौर की भारतीय संस्कृति में ‘द्रष्टा’ को एक ऐतिहासिक परिवर्तन देखने को मिला। भारतीय संस्कृति जिस झूठ को अस्वीकार करती आ रही थी उसे, अब की पीढ़ी ने स्वीकार कर लिया है। हिन्दुत्ववादी भारतीयों ने तो, लोभ मोह, हिंसापूर्ण, असहनशील क्रुर विचारों और घटनाओं को हृदय में स्थान दे दिया है। अब वे कट्टर हिन्दू कहे जाने पर इतराते हैं। ‘द्रष्टा’ को आश्चर्य इस बात पर है कि इन असहनशील, घृणा फैलाने वाले हिंसक विचारों से जो प्रताड़ित हैं वे, इन्हीं प्रणेताओं के सामने अपना दुखड़ा रोते हैं। और ये सब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम पर हो रहा है। गरीब,लाचार, और बेबस के लिए अच्छे दिन आने की इनसे अपेक्षा भी रखते हैं। भारतीय संस्कृति जिन विचारों से घृणा करती थी अब उन विचारों के प्रणेता पूजे जाने लगे हैं। सत्य और अहिंसा के पथमार्गी महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथुराम गोडसे की पूजा होती है। और पुजारियों को समाज अपना रहनुमा बना देता है। ऐसे रहनुमा और प्रणेताओं में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उमा भारती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, प्राची, निरंजना ज्योति, साक्षी महाराज, विनय कटियार तमाम ऐसे नाम हैं जिन्हें इस देश का एक बड़ा वर्ग पुरुषोत्तम मानता है। कुछ जीवन से हारे अवसादी लोग इन अमर्यादित नेताओं को भगवान राम का अवतार भी मानते हैं।
ये मर्यादा क्या है?
किसी देश की एक सीमा होती है, वह भारत हो या अमेरीका, वह देश विकासशील हो या विकसित परन्तु उस देश में निवास करने वाले प्रत्येक अमीर, गरीब, स्त्री -पुरुष सभी नागरिकों की समाजिक जीवन यापन की एक मर्यादा होती है। ये शब्द बहुत ही छोटा प्रतीत होता है परन्तु, सम्पूर्ण मानव जीवन और उसका समाज इसमें समाहित है। जब किसी व्यक्ति से आप अनुचित व्यवहार करते हैं तो वह व्यक्ति कहता है कि आप अपनी मर्यादा में रहिए। बोलने वाला और ये जबाब पाने वाला दोनों ही मर्यादा की बातें करते हैं परन्तु वास्तव में क्या विपरित आचरण वाले ये दोनों व्यक्ति इस शब्द का विस्तार व महत्व के बारे में जानते हैं? अधिकांश व्यक्तियों में ये देखने कोे मिलता है कि धमण्ड से उत्पन्न आवेश में आकर वे, एक दूसरे को मर्यादित आचरण सिखाते हैं। जबकि दोनों ही मर्यादा भूल रहे होते हैं। मर्यादा भूल जाना और मर्यादा का उलंघन करने में अन्तर है। भूल होने पर दूसरे पक्ष से क्षमा मांगने व उसके द्वारा क्षमा कर दिये जाने की गुंजाइश होती है। परन्तु उलंघन करने पर केवल पश्चाताप व दंड ही प्राप्त होता है।
स्वयं के साथ दूसरों से जिस व्यवहार की अपेक्षा रखते हो, वही व्यवहार दूसरों के साथ करने को उचित व्यवहार माना जाता है। मर्यादा में कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण, धैर्य, तन,मन, और धन सम्पत्ति समाहित है। अर्थात् व्यक्ति का सामर्थ्य ही उसकी मर्यादा है। योग्यता होते हुए भी अयोग्य निर्णय ले, पद की गरिमा के विपरित आचरण करे, कार्य से अधिक बातें करे, अपने मार्गदर्शकों व गुरु की अवज्ञा करे, झूठे वायदे करे, सामर्थ्य होते हुए कमजोर से प्रतियोगिता करे, अपराध रोकने की शक्ति होने के बावजूद अपराधी का बहिष्कार न करे, पद के लिए प्रलोभन दे, देशहित में त्याग न करे,धर्म में जिसकी निष्ठा न हो अर्थात् जो कर्तव्यपरायण न हो वह अमर्यादित व्यक्ति पुरुषोत्तम नहीं कहलाता है। रामायण में राम मर्यादित आचरण रखने वाले पात्र हैं। उनका मन, वचन और कर्म कभी कर्तव्यों का उलंघन नहीं करता है। यही उनकी मर्यादा है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मर्यादा होती है और उसे यह जानकारी होनी चाहिए।
द्वाविमौ न विराजेते विपरितेन कर्मणा।
गृहस्थश्च निरारम्भ: कार्यवॉंश्चैव भिक्षुक:।।
अपनी मर्यादा के विपरित कार्य करने वाले ये दो प्रकार के मनुष्य संसार में सुशोभित नहीं होते। पहला पुरुषार्थहीन व उदासीन गृहस्थ और दूसरा सांसारिक प्रपंच में लिप्त सन्यासी। गृहस्थ को रोजी रोटी कमाना चाहिए और सन्यासी को लोक कल्याण के लिए अत्मचिंतन में तत्पर रहना चाहिए। अर्थात् गृहस्थ का कार्य सन्यासी करे और सन्यासी का कार्य गृहस्थ करे तो मर्यादा का उलंघन होता है। और सामाजिकता नष्ट हो जाती है।
अब आप विचार करिये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ गोरखनाथ पीठ के महन्त हैं। उन्होंने न विवाह किया है और न ही गृहस्थी बनाई है। ऐसा उनके बारे में कहा जाता है। और वे खुद को योगी कहते है और नाम के आगे योगी लिखते भी हैं। परन्तु उन्होंने दलगत राजनीति का रास्ता चुना। आदित्यनाथ ने धर्म का चोला ओढ़ पक्षपाती विचारधारा को हृदय में स्थान दिया। उसी समय उनके सन्यास का धर्म उनसे छूट गया। उन्होंने अपने दल को मजबूत करने के लिए हिन्दू समाज के अबोध युवाओं को ईर्ष्या-द्वेष और घृणा, की शिक्षा दी। अर्थात् जहां सन्यासी को लोककल्याण करना था वहीं स्वार्थी बने। योगी मृदुभाषी और शिष्ट होता है वहीं उनके सार्वजनिक भाषणों में ईर्ष्या, द्वेष और क्रोध से भरे हिंसक विचारों के अतिरिक्त कुछ भी सुनने को नहीं मिलता। और ये सब बातें आदित्यनाथ पूरे मानव समाज को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का नाम लेकर सुनाते हैं। परन्तु समाज ने उन्हें योगी और सन्यासी के रुप में स्वीकृति दे दी है। इस तरह समाज ने अपनी मर्यादा भूली। जिसका परिणाम समाज भूगत रहा है।
सनातन धर्म की संत परम्परा का ये अजूबा इस वक्त दुनिया में हिन्दू आतंकी सरगना के नाम से विख्यात हो रहा है। अर्थात् इनके रवैये से हिन्दू खतरे में है। भारत में लगभग एक दशक से यह व्यक्ति हिन्दू समाज के कुछ अबोध लोगों के तारणहार बनें हैं। सन्यासी तो उसे कहते हैं जो काम, क्रोध, मोह और लोभ को त्याग कर मानव कल्याण हेतु मर्यादाओं से इतर जीवन जीता है। परन्तु ये कैसा संन्यास जो किसी से लाभ लेने की अपेक्षा रखता हो। प्राण जाने का जिसे भय सताता हो। जिसे राम पर नहीं, बन्दूकबाजों पर भरोसा हो। जो प्रतिदिन मन, वचन और कर्म से सामाजिक मर्यादाओं का उलंघन करे और वो भी राम का नाम लेकर। इस ढोंगी ने मर्यादा का उलंघन करते हुए समूची सनातन परम्पराओं का विनाश कर दिया। आदित्यनाथ ने हिन्दू धर्म और समाजिक मर्यादा का उलंघन किया है। इतिहास में पुरुषोत्तम बनना दूर की बात ये व्यक्ति साधारण जन भी न बन सका। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में आदित्यनाथ जैसा भी कर्म करें पर ‘द्रष्टा’ की नजर में आदित्यनाथ ‘योगी’ के रुप में एक ढोंगी संन्यासी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।
शक्ति , सामर्थ्य और सद्गुणों का मेल ही किसी व्यक्ति, समाज और देश की मर्यादा होती है। शक्ति तोड़ती है और सामर्थ्य निर्माण करता है। इसलिए शक्ति से अधिक सामर्थ्य का महत्व है। यही सामर्थ्य समाज को गति देता है। व्यक्ति, समाज और देश अपनी शक्ति, सामर्थ्य को बगैर जाने जब अनुचित व्यवहार करता है तो उसे अमर्यादित आचरण कहते हैं। ज्ञान, गुणधर्म, धैर्य और साहसिक कार्यों से व्यक्ति का सामर्थ्य जाना जा सकता है। यही सामर्थ्य ही उसे शक्ति देता है। जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है। और ऐसे व्यक्ति को समाज मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है।
देश में विचारों की आंधी चल रही है। आंधी में विचार मानव कल्याण के रास्ते से भटक जाते है। जिसके पास शक्ति है उसकी ओर से विचारों की आंधी तीव्र है। और जिसके पास सामर्थ्य है वह एकजूटता से रोकने की बजाय हाथ पर हाथ रखे समय की प्रतिक्षा कर रहे हैं। शक्ति और सामर्थ्य वाले दोनों ही मर्यादाओं का उलंघन कर रहे हैं। ऐसे मर्यादा विहीन पुरुषोत्तम बनने की इच्छा रखने वाले आपके रहनुमाओं की जानकारी क्रमश: जारी है.......
रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
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