Monday, 27 April 2020

'मर्यादा' विहीन 'पुरुषोत्तम' बनने की चाहत


गृहस्थ का कार्य सन्यासी करे और संन्यासी  का कार्य गृहस्थ करे तो मर्यादा का उलंघन होता है। और सामाजिकता नष्ट हो जाती है। अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का मन्दिर बनवाकर कुछ रहनुमा पुरुषोत्तम बनना चाहते है। ‘द्रष्टा’ ऐसे मर्यादा विहीन रहनुमाओं का चरित्र-चित्रण कर रहा है।


देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, रिजर्ब बैंक आफ इंडिया, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के जज सभी ने अपनी मर्यादा का उलंघन किया है। लेकिन इन सबसे पहले मीडिया,चुनाव आयोग और उन राजनेताओं ने अपनी मर्यादा तोड़ी है जिनके पास इन्हें नियंत्रित करने का सामर्थ्य था। व्यक्ति यदि अमर्यादित हो तो, उसे समाज व संस्थाएं रोकती और दंड देती हैं। संस्थाएं मर्यादा तोड़ती हैं तो उस पर समाज लगाम कसता है। लेकिन जब उसी समाज का नेतृत्व करने वाला राजनेता अपनी मर्यादा का बार-बार उलंघन करे और समाज उसके ‘मन की बात’ सुनता रहे तो, उस समाज का नैतिक पतन हो जाता है। और ये मर्यादा विहीन राजनेता इसी अनैतिक समाज के लिए पुरुषोत्तम बनना चाहते हैं।

इस दौर की भारतीय संस्कृति में ‘द्रष्टा’ को एक ऐतिहासिक परिवर्तन देखने को मिला। भारतीय संस्कृति जिस झूठ को अस्वीकार करती आ रही थी उसे, अब की पीढ़ी ने स्वीकार कर लिया है। हिन्दुत्ववादी भारतीयों ने तो, लोभ मोह, हिंसापूर्ण, असहनशील क्रुर विचारों और घटनाओं को हृदय में स्थान दे दिया है। अब वे कट्टर हिन्दू कहे जाने पर इतराते हैं। ‘द्रष्टा’ को आश्चर्य इस बात पर है कि इन असहनशील, घृणा फैलाने वाले हिंसक विचारों से जो प्रताड़ित हैं वे, इन्हीं प्रणेताओं के सामने अपना दुखड़ा रोते हैं। और ये सब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम पर हो रहा है। गरीब,लाचार, और बेबस के लिए अच्छे दिन आने की इनसे अपेक्षा भी रखते हैं। भारतीय संस्कृति जिन विचारों से घृणा करती थी अब उन विचारों के प्रणेता पूजे जाने लगे हैं। सत्य और अहिंसा के पथमार्गी महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथुराम गोडसे की पूजा होती है। और पुजारियों को समाज अपना रहनुमा बना देता है। ऐसे रहनुमा और प्रणेताओं में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उमा भारती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, प्राची, निरंजना ज्योति, साक्षी महाराज, विनय कटियार तमाम ऐसे नाम हैं जिन्हें इस देश का एक बड़ा वर्ग पुरुषोत्तम मानता है। कुछ जीवन से हारे अवसादी लोग इन अमर्यादित नेताओं को भगवान राम का अवतार भी मानते हैं। 

 ये मर्यादा क्या है?
किसी देश की एक सीमा होती है, वह भारत हो या अमेरीका, वह देश विकासशील हो या विकसित परन्तु उस देश में निवास करने वाले प्रत्येक अमीर, गरीब, स्त्री -पुरुष सभी नागरिकों की समाजिक जीवन यापन की एक मर्यादा होती है। ये शब्द बहुत ही छोटा प्रतीत होता है परन्तु, सम्पूर्ण मानव जीवन और उसका समाज इसमें समाहित है। जब किसी व्यक्ति से आप अनुचित व्यवहार करते हैं तो वह व्यक्ति कहता है कि आप अपनी मर्यादा में रहिए। बोलने वाला और ये जबाब पाने वाला दोनों ही मर्यादा की बातें करते हैं परन्तु वास्तव में क्या विपरित आचरण वाले ये दोनों व्यक्ति इस शब्द का विस्तार व महत्व के बारे में जानते हैं? अधिकांश व्यक्तियों में ये देखने कोे मिलता है कि धमण्ड से उत्पन्न आवेश में आकर वे, एक दूसरे को मर्यादित आचरण सिखाते हैं। जबकि दोनों ही मर्यादा भूल रहे होते हैं। मर्यादा भूल जाना और मर्यादा का उलंघन करने में अन्तर है। भूल होने पर दूसरे पक्ष से क्षमा मांगने व उसके द्वारा क्षमा कर दिये जाने की गुंजाइश होती है। परन्तु उलंघन करने पर केवल पश्चाताप व दंड ही प्राप्त होता है। 

स्वयं के साथ दूसरों से जिस व्यवहार की अपेक्षा रखते हो, वही व्यवहार दूसरों के साथ करने को उचित व्यवहार माना जाता है। मर्यादा में कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण, धैर्य, तन,मन, और धन सम्पत्ति समाहित है। अर्थात् व्यक्ति का सामर्थ्य ही उसकी मर्यादा है। योग्यता होते हुए भी अयोग्य निर्णय ले, पद की गरिमा के विपरित आचरण करे, कार्य से अधिक बातें करे, अपने मार्गदर्शकों व गुरु की अवज्ञा करे, झूठे वायदे करे, सामर्थ्य होते हुए कमजोर से प्रतियोगिता करे, अपराध रोकने की शक्ति होने के बावजूद अपराधी का बहिष्कार न करे, पद के लिए प्रलोभन दे, देशहित में त्याग न करे,धर्म में जिसकी निष्ठा न हो अर्थात् जो कर्तव्यपरायण न हो वह अमर्यादित व्यक्ति पुरुषोत्तम नहीं कहलाता है। रामायण में राम मर्यादित आचरण रखने वाले पात्र हैं। उनका मन, वचन और कर्म कभी कर्तव्यों का उलंघन नहीं करता है। यही उनकी मर्यादा है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मर्यादा होती है और उसे यह जानकारी होनी चाहिए।

द्वाविमौ न विराजेते विपरितेन कर्मणा।
गृहस्थश्च निरारम्भ: कार्यवॉंश्चैव भिक्षुक:।।

अपनी मर्यादा के विपरित कार्य करने वाले ये दो प्रकार के मनुष्य संसार में सुशोभित नहीं होते। पहला पुरुषार्थहीन व उदासीन गृहस्थ और दूसरा सांसारिक प्रपंच में लिप्त सन्यासी। गृहस्थ को रोजी रोटी कमाना चाहिए और सन्यासी को लोक कल्याण के लिए अत्मचिंतन में तत्पर रहना चाहिए। अर्थात् गृहस्थ का कार्य सन्यासी करे और सन्यासी का कार्य गृहस्थ करे तो मर्यादा का उलंघन होता है। और सामाजिकता नष्ट हो जाती है।

अब आप विचार करिये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ गोरखनाथ पीठ के महन्त हैं। उन्होंने न विवाह किया है और न ही गृहस्थी बनाई है। ऐसा उनके बारे में कहा जाता है। और वे खुद को योगी कहते है और नाम के आगे योगी लिखते भी हैं। परन्तु उन्होंने दलगत राजनीति का रास्ता चुना। आदित्यनाथ ने धर्म का चोला ओढ़ पक्षपाती विचारधारा को हृदय में स्थान दिया। उसी समय उनके सन्यास का धर्म उनसे छूट गया। उन्होंने अपने दल को मजबूत करने के लिए हिन्दू समाज के अबोध युवाओं को ईर्ष्या-द्वेष और घृणा, की शिक्षा दी। अर्थात् जहां सन्यासी को लोककल्याण करना था वहीं स्वार्थी बने। योगी मृदुभाषी और शिष्ट होता है वहीं उनके सार्वजनिक भाषणों में ईर्ष्या, द्वेष और क्रोध से भरे हिंसक विचारों के अतिरिक्त कुछ भी सुनने को नहीं मिलता। और ये सब बातें आदित्यनाथ पूरे मानव समाज को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का नाम लेकर सुनाते हैं। परन्तु समाज ने उन्हें योगी और सन्यासी के रुप में स्वीकृति दे दी है। इस तरह समाज ने अपनी मर्यादा भूली। जिसका परिणाम समाज भूगत रहा है।

सनातन धर्म की संत परम्परा का ये अजूबा इस वक्त दुनिया में हिन्दू आतंकी सरगना के नाम से विख्यात हो रहा है। अर्थात् इनके रवैये से हिन्दू खतरे में है। भारत में लगभग एक दशक से यह व्यक्ति हिन्दू समाज के कुछ अबोध लोगों के तारणहार बनें हैं। सन्यासी तो उसे कहते हैं जो काम, क्रोध, मोह और लोभ को त्याग कर मानव कल्याण हेतु मर्यादाओं से इतर जीवन जीता है। परन्तु ये कैसा संन्यास जो किसी से लाभ लेने की अपेक्षा रखता हो। प्राण जाने का जिसे भय सताता हो। जिसे राम पर नहीं, बन्दूकबाजों पर भरोसा हो। जो प्रतिदिन मन, वचन और कर्म से सामाजिक मर्यादाओं का उलंघन करे और वो भी राम का नाम लेकर। इस ढोंगी ने मर्यादा का उलंघन करते हुए समूची सनातन परम्पराओं का विनाश कर दिया। आदित्यनाथ ने हिन्दू धर्म और समाजिक मर्यादा का उलंघन किया है। इतिहास में पुरुषोत्तम बनना दूर की बात ये व्यक्ति साधारण जन भी न बन सका। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में आदित्यनाथ जैसा भी कर्म करें पर ‘द्रष्टा’ की नजर में आदित्यनाथ ‘योगी’ के रुप में एक ढोंगी संन्यासी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।

शक्ति , सामर्थ्य और सद्गुणों का मेल ही किसी व्यक्ति, समाज और देश की मर्यादा होती है। शक्ति तोड़ती है और सामर्थ्य निर्माण करता है। इसलिए शक्ति से अधिक सामर्थ्य का महत्व है। यही सामर्थ्य समाज को गति देता है। व्यक्ति, समाज और देश अपनी शक्ति, सामर्थ्य को बगैर जाने जब अनुचित व्यवहार करता है तो उसे अमर्यादित आचरण कहते हैं।  ज्ञान, गुणधर्म, धैर्य और साहसिक कार्यों से व्यक्ति का सामर्थ्य जाना जा सकता है। यही सामर्थ्य ही उसे शक्ति देता है। जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है। और ऐसे व्यक्ति को समाज मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है।

देश में विचारों की आंधी चल रही है। आंधी में विचार मानव कल्याण के रास्ते से भटक जाते है। जिसके पास शक्ति है उसकी ओर से विचारों की आंधी तीव्र है। और जिसके पास सामर्थ्य है वह एकजूटता से रोकने की बजाय हाथ पर हाथ रखे समय की प्रतिक्षा कर रहे हैं। शक्ति और सामर्थ्य वाले दोनों ही मर्यादाओं का उलंघन कर रहे हैं। ऐसे मर्यादा विहीन पुरुषोत्तम बनने की इच्छा रखने वाले आपके रहनुमाओं की जानकारी क्रमश: जारी है.......

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com



Tuesday, 7 April 2020

वायरस और वैश्वीकरण में कौन जीतेगा!

डाॅ0 राकेश राणा
 इतना तो तय है कि आपकी स्वतंत्रता और सुविधाएं निरन्तर कम होती जायेगी। यह आपकी इच्छा पर निर्भर नहीं करेगा। दुनियां के ताकतवर देश बाजार के साथ मिलकर आपकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और निजताओं को गिरवी रखेगें।


    यह कहना अभी मुश्किल है कि वायरस और वैश्वीकरण में कौन जीतेगा। दुनियां देर-सबेर कोरोना महामारी के इस संकट से तो उभर ही जायेगी। इसके बाद समूचे संसार के सम्मुख जो नए ढंग के संकट खड़े होगें उनके संकेत अभी से मिलने लगे है। दुनियां के बाजार और सरकार इसे एक अवसर में बदल लेने की हर संभव कोशिश करेगें। जिसका परिणाम होगा दुनियां शायद पूरी तरह बदल जाए। यह ठीक वैसे ही घटित होने वाली स्वभाविक प्रक्रिया में सब कुछ घटित होता जायेगा, जैसे किसी भयानक तूफान के बाद सब बदल चुका होता है। मै उन सियासी कयासों में सीधे हस्तक्षेप नहीें कर रहा हूं जो सोशल मीडिया की सुर्खियां बने हुए है। यह अमेरिका का कोई अमानवीय कूटनीतिक कृत्य है या स्वयं चीन की कोई चाल है या चूक। लेकिन दुनियायी अनुभव बताते है कि साम्राज्यवादी ताकतें अपनी ताकत के बल पर चुनौतियों को अवसरों में बदल लेने के हथकंडों में माहिर रही है। अंर्तद्वंद वाजिब है दुनियां में महाशक्तियों के पास जैविक हथियारों का जमा जखीरा किस लिए है? ये मानवता के उपासक है या सत्ता के भूखे? क्या मानवीय मास्क पहनकर बाजार के खिलाड़ी कोई बडा गेम तो नहीं खेल रहे है? इन तमाम शंकाओं से कैसे आश्वस्त हुआ जाए? भय, अफवाह और हक़ीक़त  मौजूदा परिदृश्य पर कहां कितनी है कहना मुश्किल है।


     कुछ साल पहले स्वाइन फ्लू और अब कोरोना संकट के दौरान टी0वी0 चैनलों की जो गैर-जिम्मेदाराना भूमिका नजर आयी यह भी, कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। डर का व्यापार इस दौर की मुख्य प्रवृत्ति है। दहशत दीजिए टी0आर0पी0 लिजिए। वहीं चिकित्सा क्षेत्र में सक्रिय मल्टीनेशनल कम्पनियां अपने बाजार का विस्तार विश्व भर में करने पर आमादा दिखती हैं। यह डर से उपजे लॉक डाउन  की अंदरुनी सच्चाई है। कुछ साल पहले फैला स्वाइन फ्लू  इसका पुख्ता प्रमाण है। अमेरिका ने स्वाइन फ्लू की दवा के साइड इफेक्ट के खिलाफ किसी भी किस्म के अदालती आग्रहों से उन दवा कंपनियों को मुक्त कर दिया था। जबकि उन दवाओं के साइड इफेक्ट अभी भी हैं। स्वाइन फलू की दवाओं के खिलाफ अमेरिका में जबरदस्त आक्रोश आज भी है। कंपनियों को उपभोक्ता्ओं के मुकदमों से बचाने के लिए अमेरिका ने दवा कंपनियों को मुकदमेबाजी के दायरे के बाहर क्यों किया? यह सब उस वक्त की इमरजेंसी के नाम पर दुनियां के उपर थोपा गया। जिस तरह की अफवाहे अभी सुर्खिया पा रहीे है, वे निराधार नहीं है। उस समय भी स्वाइन फ्लू के लिए एक दवा कंपनी अमेरिका में अपनी दवा का पेटेंट करा चुकी थी। जो अब तक दुनियां के बाजार से अरबों बटोर चुकी है।और दुनियां अभिशप्त है इन स्थितियों में जीने के लिए। वायरस आते रहेंगे, फिर उनकी दवा आयेगी, हम सब खायेगें, हमारे आने वाली नस्ले उनके टीका लगवायेगी। यह क्रम जारी रहने वाला है, क्योंकि दुनियां के पास जैविक हथियारों का एक बड़ा जखीरा मौजूद है। साम्राज्यवादी राष्ट्र सेना और सरहदों पर नहीं लडते हैं उनको अपने वर्चस्व स्थापित करने के लिए बाजार माकूल जगह मिलती है। जहां जोखिम कम है और आमदनी ज्यादा। 
 
  दो बड़ी नायाब तकनीके आज दुनियां के शक्तिशाली देशों के पास जमा हो चुकी है-इंफाॅरमेशन टैक्नोलाॅजी और बायो-टैक्नोलाॅजी। यह सभ्यताओं के विकास और मानव-कल्याण के लिए करिश्माई परिदृश्य का निर्माण कर सकती है। पर जब दुनियां वर्चस्व की होड़ में शामिल हो जाए तो, यह कल्याण नहीं खात्मा भी कर सकती है। इस खतरे का अगर इतना अतिरेकी आंकलन ना भी किया जाए। तब भी इतना तो तय है कि आपकी स्वतंत्रता और सुविधाएं निरन्तर कम होती जायेगी। यह आपकी इच्छा पर निर्भर नहीं करेगा। दुनियां के ताकतवर देश बाजार के साथ मिलकर आपकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और निजताओं को गिरवी रखेगें। यह सब कैसे ठीक होगा वैसे ही जैसे सब कुछ खुशी-खुशी समारोहात्मक समर्थन में आप अचेत से तालियां बजाते हुए होने देते हो। वैसे ही धीरे-धीरे होता जायेगा। 

  अब बहुराष्ट्रीय निगमों के आर0एण्ड डी0 खेमें दिन रत जुटेंगें। अपनी उन तकनीकियों के बाजार विस्तार में, जिन्हें इस डर ने जरुरी बना दिया है। ऑनलाइन  टैक्नोलाॅजी का बाजार बढ़ेगा। उन्हें शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं नजर आएंगी। यह कोरोना बहुत कुछ कर जायेगा। गरीब से गरीब देशों की सरकारें भी बायो-टैक्नोलाॅजी के बडे़ बज़ट पास करेंगी। इनफार्मेशन  टैक्नोलाॅजी निगरानी और निजता से जुड़े क्षेत्रों में प्रवेश के निर्बाध अधिकार पा जायेगी। आपका मानवीय स्वतांत्रय बीते दिनों की बात हो जायेगा। सबके भले और आपात आवश्यकता के नाम पर यह अवसर बाजार भी भुनायेगा और सरकारे तो तलाश में रहती ही है कि कब लोगों की स्वतंत्रता को कम करने के नियम-कानून हमारे हाथ मे आए। कोरोना-क्राइसिस के नाम पर दुनियां भर की सरकारों ने यह सब करना शुरु भी कर दिया है। बाजार तो पहले से ही मुस्तैद रहता है ऐसे मौकों की तलाश में। कोरोना किट, केरोना वैक्सीन, कोराना मैडिसीन सब तैयार है। भारतीय अखबारों में तो केरोना बेड तक के विज्ञापन छप रहे है। वहीं इस क्राइसिस के साथ दुनियां में निगरानी-तंत्र से जुड़े उपकरणों का बाजार तेजी से बढ़ेगा। स्वास्थ्य क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी बहुराष्ट्रीय निगम किस तरह विकासशील देशों को इसके खतरों से सुरक्षित करने के नाम पर अपनी गिरफ्त  में लेगी, यह खेल शुरु हो चुका है। यह बड़ा संकट गरीब देशों के आर्थिक तंत्र को लील जायेगा। जिससे उभरना बड़ी चुनौती होगी।

     कोरोना-क्राइसिस जैसी घटनाएं इस छद्म वैश्वीकरण की कलई खोलती है। पूरी दुनियां अपनी-अपनी दाढ़ी की आग बुझाने में मगशूल दिखती है। हर तरफ लाॅकडाउन है, मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे सब बंद है। सब सबसे कट जाना चाहते है अपने-अपने घरों में कैद हो जाना चाहते है। हवाई यात्राओं की आवा-जाही रोक सीमाएं सील कर दी गई। गजब का नजारा है दुनियां का। संकट से जूझने की ये शैली समाज ने विकसित की होती तो, इसमें साझे प्रयास दिखते। चूंकि यह बाजार का सुझाया उपचार है इसलिए डरे रहो। एक-दूसरे का सहयोग नहीं संघर्ष करो, प्रतिस्पर्धा करो। तभी बाजार गुलजार होगा।

   इस वैश्विक संकट से दुनियां आपसी सहयोग से बहुत आसानी से पार पा सकती थी। पूरे विश्व को मिलजुल कर एक इको-सिस्टम बनाना चाहिए था। वायरस संक्रमण से जुड़ी सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान करना चाहिए था। विश्व बंधुत्व का संदेश देकर संकट में एकजुटता का परिचय देना चाहिए था। इस संकट पर काबू पाने के लिए किस देश को क्या जरुरत है। इसका पूरा मैकेनिज्म बनाना चाहिए था। कहां डॉक्टरों की कमी है, कहां दवाएं नहीं है, कहां संसाधनों का अभाव है। इस वैश्विक महामारी को मिलकर हराने की जरुरत थी। जिसके लिए कोई वैश्विक रणनीति नजर नहीं आयी। अफ़सोस है! हम कैसे वैश्वीकरण के दौर में है? यह सुर-असुर का संघर्ष अभी जारी है वायरस जीतेगा या वैश्वीकरण अभी देखना बाकी है।                      

लेखक युवा समाजशास्त्री है!
mail:ranarakesh@gmail.com#9958396195

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