Tuesday, 29 August 2017

देश के लिए संक्रांति काल


रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
जब समाज के लोग सत्यमार्गी लोगों का अपमान करने लगेंअपने स्वार्थ के लिए शक्तिशाली लोग कुकर्मियों की सहायता करेंबुद्धिमान लोग भय के कारण मौन हो जायेंन्यायाधीश असुरक्षित महसूस करने लगेंशासन-प्रशासन अनैतिक हो जाये अर्थात् जब समाज अपने धर्म  संस्कृति की प्रकृति के विपरित आचरण करने लगे तो इसे ही उस देश का संक्राति काल कहते है।

पिछले पोस्ट में द्रष्टा ने ‘चीखों को दफ्न करता सियासत का ढींढोरा’ औरविकास से विनाश की ओर ले जा रही है संवेदनहीनता के बारे में लिखा जो पाठक पढ़े होंगे उन्हें अब स्पष्ट रुप से समाज और देशकाल को समझने का दृष्टिकोण मिल गया होगा। अब इस लेख को पढ़िए और मोह और घृणा से परे समाज को संपूर्णता में देखिए जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं को आश्ष्चर्य से देखने की भूल करने से आप बच सकें। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि जो व्यक्ति अपने आपको दर्शक मानते रहे हैं उनके लिए ये घटनायें एक आश्ष्चर्य है और जो नागरिक हैं उनके लिए दुख का कारण बन रही है। द्रष्टा ने भय और भ्रम से आपको मुक्त कराने का वचन दिया है, अपने वचन का पालन करते हुए द्रष्टा उसी पथ पर आपको ले जा रहा है।

25 अगस्त को भारत के उत्तरी राज्यों में दुनिया ने भारत के लोकतंत्र को भीड़तंत्र द्वारा विध्वंस करते देखा। लोकतंत्र के रक्षक भीड़तंत्र के आगे बेबस, लाचार होकर भयानक डर से कांप उठे थे जैसे उनकी सूझबूझ लकवाग्रस्त हो गई हो। अज्ञानता से उत्पन्न भक्ति में रमी भीड़ सिपाहियों को खदेड़ रही थी, लोकतंत्र की आवाज बने पत्रकारों के हाथ पांव तोड़ दिये गये, समाचार संकलन करने वाली मीडिया संस्थानों की गाड़ियों को आग लगा दी गई। पंचकुल, सिरसा के लोगों ने अपने खिड़की दरवाजे बंद कर लिए, वहां के निवासियों में डर इतना बढ़ गया कि अपने घरों में जान बचाने के लिए निरपराध लोगों को भी आश्रय नहीं दिया और सरकार बेशर्म दर्शक बनी रही।

भय और भ्रम की जड़ है अज्ञानता
ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि अचानक तैयार नहीं होती यह एक अतिधीमी प्रक्रिया है जिसे हम समझ नहीं पाते है। भय और भ्रम ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि है। भय और भ्रम की जड़ है अज्ञानता। जीवन सरल बनानें के लिए कुछ समस्यों का निराकरण कुछ व्यक्तियों के पास होता है। जिस व्यक्ति की जैसी समस्या होती है वह स्वयं समस्याओं का निवारण करने वाले उन व्यक्तियों का चुनाव कर लेता है। जिसको शारीरिक समस्या है वह चिकित्सक के पास जाता है, जिसे आर्थिक समस्या है वह साहूकार के पास जाता है। जिसका मन भ्रमित है वह आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर समस्याओं का निवारण करता है। तो क्या वास्तव में व्यक्ति को अपनी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है, नहीं। जो व्यक्ति इस भ्रम में जीवन गुजार रहा है कि उसकी सभी समस्याओं का निवारण किसी अन्य के पास ही है यही सोच उस व्यक्ति की अज्ञानता है।
जातिवाद-सम्प्रदायवाद, पूजीवाद क्षेत्रियतावाद की राजनीति के कारण देश में महंगाई, बेरोजगारी धार्मिक उन्माद फैल रहा है। ऐसी परिस्थिति में आमजनों का जीवन जीना कठिन हो गया है।लोगों में असुरक्षा की भावना तीव्रगति से बढ़ रही है। लोग सत्य के निकट आकर भी सत्य का हाथ पकड़ने का साहस नहीं दिखा पा रहे हैं और अपने जीवन के नष्ट हो जाने के भय के कारण ये उन्हीं के साथ हो ले रहे हैं जो इन्हें डरा रहा है। देश में कुछ समय से देख रहे हैं कि राजनीति में जो दल जिन नेताओं को डरा रहा है उसी के पाले में वह नेता बैठ जा रहे हैं, फिर आम नागरिकों की क्या सोच होगी?

1 post-चीखों को दफ्न करता सियासत का ढिंढोरा
नोट के बदले वोट के रुप में बेंचते हैं
भय के कारण व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है जिसे षांत करने के लिए संतो, धर्मगुरुओं की शरण में जाता है। डरा हुआ मन कभी भी सही और गलत का निर्णय नहीं कर पाता है। अस्थिर मन वाला व्यक्ति वास्तव में यह जान ही नहीं पाता कि जिसके पास वह जा रहा है या जिसका भक्त बनने जा रहा है वह वास्तव में कौन है? वह ये भी नहीं जान पाता कि ये धर्मगुरु या संत उनके मन का नाता ईष्वर से जोड़ने वाले हैं या उनके डर का व्यापार करने वाले हैं ? डरे हुए ऐसे ही लोगों को धर्म के नाम पर संगठित कर ये धर्मगुरु नोट के बदले वोट के रुप में राजनेताओं को बेंचते हैं। ऐसे व्यापारी धर्मगुरुओं के पास धर्म का ज्ञान है और ही आत्मा का, ये लोग द्ध ठग हैं। आशाराम, गुरुप्रीत जैसे ठगों का स्वभाव ही है दुष्कर्म करना। भले ही वह साध्वी हो, बहन हो या बेटी इसमें कोई आष्चर्य की बात नहीं है जैसा कि रात-दिन टीवी चैनलों पर नाबालिग पत्रकार दिखा रहे हैं और देश के नागरिकों का भ्रम दूर करने की बजाय उन्हें भयभीत कर रहे हैं। आष्चर्य तब होता जब पहले ऐसी घटनाएं नहीं हुई होती।

कालनेमी की तरह राम नाम जपने वाले राक्षसों की संख्या अनगिनत..
हिन्दू ग्रंथ रामायण में एक चरित्र है रावण के साथी कालनेमी राक्षस का, जो कुछ क्षण के लिए श्री राम नाम लेकर बुद्धिमान हनुमान जी को भी भ्रमित कर देता है। रावण जैसे त्रिलोक विजयी बनने की महत्वाकांक्षा लिए आज भी कुछ राजशाही प्रवृत्ति के नेता अशाराम, गुरुप्रीत जैसे रामरहीम नाम रखने, भजने वाले कालनेमी राक्षसों का सहारा लेते रहे हैं। जो राजनेता इनकी सहायता से सत्ता में जाते हैं वे इनको पालते पोसते हैं जिस नेता की सत्ता छिन जाती है वे अगली बार सहायता की आस में इन कालनेमी राक्षसों के चरणों में करबद्ध दण्डवत पड़े रहते हैं। रामायण कथा के अनुसार हनुमान जी ने अपनी तार्किक बुद्धि से कालनेमी को पहचान लिया और अंधभक्ति के भ्रम से मुक्त हो गये लेकिन आज के समय में कालनेमी जैसे चरित्र वालों की संख्या अनगिनत है और हनुमान जी जैसे बुद्धिमानों की संख्या के बराबर। रावण जैसी महत्वकांक्षा रखने वाले राजशाही प्रवृत्ति के नेताओं और उन्हें सहायता देने वाले कालनेमी राक्षसों के विरोध में जो बुद्धिमान बोलता है उसे ये नेता देशद्रोही घोषित कर देते हैं।
विचलित मन का भ्रम
विचलित मन वाले व्यक्तियों को यह भ्रम है कि धर्मगुरु हमारी समस्या का निवारण कर हमें सुरक्षा देंगे। इसी सोच के कारण व्यक्ति स्वयं को शक्तिशाली बनाकर अपने निहित स्वार्थ के लिए कालनेमी जैसे धर्मगुरुओं के कंधो को आधार बनाकर जी रहा है जो धर्मगुरु स्वयं भयभीत भ्रमित हैं। व्यक्ति का यह भ्रम उस वक्त दूर होता है जब देश में अपने वर्चस्व के लिए शक्तिप्रदर्शन करने वाले कुकर्मी, आतंकी कालनेमी कानून के फंदे में आते हैं और हाथ जोड़ कॉपते, गिड़गिड़ाते हुए न्यायाधीश के सामने रहम की भीख मांगने लगते हैं।     
आशाराम, संत रामकृपाल, नारायण साईं, स्वामी भीमानन्द, परमानन्द, नित्यानन्द आदि धर्म का चोला ओढ़े कालनेमी राक्षस आज जेलों में हैं। जेल जाना बुराई नहीं है, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से अपने देश की आबरु बचाने के लिए क्रांतिवीर जेल जाते थे। कुछ लोग दूसरों को अधिकार दिलाने के लिए जेल जाते हैं, तो कुछ अपनी वासना के लिए। आजादी के बाद आज उसी देश में स्वयं को धर्मरक्षक बताने वाले अपने ही लोगों की बहन-बेटियों को बेआबरु कर उनकी अस्मत लूटते हैं और विरोध करने पर हत्या कर देते हैं। इसी प्रकार का कुकर्म बाबा गुरुमीत ने किया और राम रहीम के देश को कलंकित कर दिया। अपनी वासनापूर्ति के लिए तांडव करने वाला आतातायी बाबा अब जेल में है।
किसी घटना के लिए दोषी अपराधी को दंण्ड देना केवल उस देश के विधान के अनुसार न्याय है, समय का न्याय नहीं है। ऐसी अपराधिक घटनाओं की पुनावृत्ति हो, लोग अपराध करने से डरें अपराधी का बहिष्कार करें तब उसे समय का न्याय कहते हैं। देश के विधान के अनुसार न्याय में मिले दण्ड की मात्रा कम से कम अधिक से अधिक में निष्चित होती है लेकिन जब समय का विधान न्याय करता है तो दण्ड की मात्रा का ज्ञान आप के ईष्वर को भी नहीं हो पाता है।
डराने में मिली सफलता
25 अगस्त की यह घटना देश में एक बार फिर लोगों को डराने में सफल रही है। डरना बुरी बात नहीं है, डर कर भागना बुराई है। डर मानव समाज को गतिषील बनाने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है। ज्ञानी भी डरता है और अज्ञानी भी। ज्ञानी डर को समझ लेता है और उससे मुक्त होने का मार्ग खोज लेता है। अज्ञानी डर में ही जीवन गुजारता है इसे ही अपनी नीयति मान लेता है। अब आप देखीए और समझने की कोषिश करिये कि देश में डर को अपनी नीयति मानकर जीवन गुजारने वालों की संख्या कितनी है? इसी से आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं का रुप देखने को मिलेगा।
विपत्ति से पार पाने की जो भी पतवार सही लगे
अपने कार्य व्यवहार से समाज को दूषित करने वाले ऐसे कालनेमी राक्षसों को तो जगदीप सिंह जैसे सत्यनिष्ठ न्यायाधीश दण्ड तो देंगे ही लेकिन उन दो महिलाओं की तरह सत्यमार्गी बनने का साहस आप कब और कैसे दिखाओगे?, इन महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए लड़ने वाले उन वकीलों की तरह निडर होना आप कब सिखोगे? इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन पुलिस कर्मियों की तरह निर्भिक निष्पक्ष कब बनोगे? यह समय तय कर रहा है। इस प्रकार की घटनाओं से, मानव समाज पर आनेवाली विपत्तियों की समय सूचना दे रहा है और समाज के प्रभावशाली, शक्तिशाली बुद्धिमानों से पूछ रहा है कि आप किस पक्ष में खड़े रहेंगे? देश में संक्राति काल है इस विपत्ति से पार पाने की जो भी पतवार सही लगे उसे जल्द ही पकड़ लिजिए। ........ जारी है
   


फांट की वजह से ब्दों में गलतियां सम्भव है इसके लिए मुझे खेद है





रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
(स्वतंत्र पत्रकार)
drashtainfo@gmail.com
7011067884 



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