क्षमा करें , लिखवाट के शब्द त्रुटिपूर्ण है
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की एक गाइड
क्या आप अपराध पीड़ित हैं?
क्या आपके विरुद्ध किसी ने कोइ अपराध किया है?
अगर आप किसी अपराध के ग्रसित हैं, तो इसके बारे में अधिकारीयों को सूचित करना आपका अधिकार ही नहीं , दायित्व भी है यह करने के लिए पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट [ प्र.सु.रि./FIR] प्रस्तुत की जा सकती है अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई जा सकती हैI
प्र.सु.रि.(FIR) के बारे में
1. क्या है FIR?
FIR पुलिस द्वारा तेयार किया हुआ एक दस्तावेज है जिसमे अपराध की सुचना वर्णित होती है I सामान्यत: पुलिस द्वारा अपराध संबंधी अनुसंधान प्रारंभ करने से पूर्व यह पहला कदम अनिवार्य है I
अगर कोई अपराध अभी तक अघटित है, परंतु आपको इसके बारे मैं जानकारी है अथवा सुचना है, तो आप पुलिस के पास जाकर यह सुचना दे सकते हैं I अगर यह एक संज्ञेय अपराध है, तो इसे रोकना पुलिस का कर्तव्य है एवं वह अनुरूप कारवाही करेंगे I
2. क्या पुलिस को हर FIR दर्ज करनी होती है?
आप पुलिस के पास किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में जा सकते हैंI अति-आवश्यक एवं गंभीर मामलों मैं पुलिस को FIR तुरंत दर्ज कर अनुसंधान प्रारंभ करना अनिवार्य है I इस प्रकार के अपराध ‘संज्ञेय अपराध’ कहलाते हैं, जैसे की हत्या, बलात्कार, डकेती, इत्यादि I कौनसे अपराध ‘संज्ञेय अपराध’‘ कहलाते हैं यह जाने के लिए यहाँ क्लिक करिए
अन्य, कम गंभीर अपराध जैसे की परगमन (adultery), मानहानि (defamation) इत्यादि में अनुसंधान शुरू करने से पूर्व पुलिस को मजिस्ट्रेट से उचित निर्देश प्राप्त करने होते हैं I इनहे ‘असंज्ञेय अपराध’ कहते हैं I अगर आप किसी असंज्ञेय अपराध के संदर्भ मैं पुलिस के पास जाते हैं, तो उन्हें फिर भी एक “असंज्ञेय अपराध’ रिपोर्ट” दर्ज कर आपको मजिस्ट्रेट के पास भेझ्ना होता है I
यदि मामले की प्रकृति अस्पष्ट है, तो यह पता लगाने के लिए पुलिस एक छोटी प्रारंभिक जाँच कर सकती है I अन्य सभी मामलों में पुलिस को ये अनुसंधान आरंभ करना होता है अथवा आपको मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है I
3. FIR कैसे दर्ज करूँ?
अगर एक अपराध हुआ है, आप भले ही पीड़ित पक्ष हों, अथवा इस अपराध के बारे मैं सुचना रखते हों, आप पुलिस स्टेशन जा कर FIR दर्ज (रजिस्टर) कर सकते हैं I आपको जितना भी पता है आप पुलिस को बताएं, मगर आपको अपराध के बारे मैं विस्तृत या सक्षम ज्ञान होना आवय्श्यक अथवा अनिवार्य नहीं है I उदहारण हेतु, FIR दर्ज करवाने के लिए अपराध करने वाले व्यक्ति का नाम ज्ञात होना जरुरी नहीं है I
पुलिस स्टेशन मैं घुसते ही आपको ड्यूटी ऑफिसर के पास अग्रेषित किया जायेगा I सुचना रिपोर्ट मौखिक अथवा स्वलिखित हो सकती है I अगर आप शिकायत का मौखिक वर्ण करते हैं तो पुलिस को उसे लिख कर, बोल कर आपको सुनना होता है I इसके पश्चात ड्यूटी ऑफिसर स्वागत-कक्ष (रिसेप्शन) में रखे रोजनामचे (General Diary or Daily Diary) मैं संबंधित प्रविषिट करेगा I
अगर आपकी शिकायत लिखित रूप मैं है, तो उसकी दो प्रतिलिपि (copy) ले जायें एवं DO को सौंप दें I दोनों प्रतिलीपियों पर रोजनामचे संदर्भ नंबर (Daily Dairy Reference Number) के अंकन का ठप्पा लगाया जायेगा एवं एक प्रतिलिपि ठ्प्पायुक्य आपको लौटा दी जाएगी I यह ठप्पा इस बात का प्रमाण है कि पुलिस को शिकायत प्राप्त हो चुकी है I
एक बार पुलिस आपकी शिकायत पढ़कर, बोलकर सुनाएगी, अगर संपूर्ण विवरण सही है, आप इस FIR पर अपना हस्ताक्षर कर सकते हैं I FIR की एक मुफ्त प्रतिलिपि प्राप्त करना आपका अधिकार है I FIR का नंबर, दिनांक एवं पुलिस स्टेशन के नाम का एक नोट बना अपने पास रख लें ताकि यदि आपकी कापी गुम जाये तो आप FIR को ऑनलाइन देख सकते हैं I
FIR दर्ज होने के पश्चात उसमे किसी भी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता I परंतु कोई भी अतिरिक्त सुचना आप पुलिस को कभी भी दे सकते हैं I
कुछ राज्य और शेहेरों मैं , निश्चित प्रकार के FIR और शिकायतों को ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है
4. मुझे कैसे पता चले की कौनसा पुलिस स्टेशन जाना है ?
जनसँख्या, क्षेत्रफल आदि के आधार पर किसी भी पुलिस स्टेशन का क्षेत्राधिकार निर्धारित होता है I एक PS के क्षेत्राधिकार मैं सर्कार द्वारा निर्धारित क्षेत्र आते हैं I जैसे की PS करोल बाग का खेत्राधिकार केवल अपने निर्धारित क्षेत्र मैं घटित अपराध का होगा I अन:, जिस जगह अपराध घटित हुआ है, उस जगह के निकटतम PS पर रिपोर्ट देना उचित है I PS का सटीक ज्ञान होना आवश्यक नहीं है I आप किसी भी PS जायें, यदि वह आपकी शिकायत दर्ज करने मैं असमर्थ हैं, तो वह आपको उपयुक्त PS के बारे मैं बता देंगे I आप पुलिस आपातकालीन नंबर “१००” पर भी इस बात की जानकारी ले सकते हैं I
5. यदि पुलिस ऑफिसर FIR दर्ज करने से मना कर दे तो?
अगर अपराध संज्ञेय है, पुलिस का उसे दर्ज करना कानूनन अनिवार्य है I यदि वह एसा न करे, तो आप निम्नलिखित अधिकार रखते हैं :-
अपनी शिकायत का विवरण स्तानीय पुलिस अधीक्षक/ पुलिस उपयुक्त को भेज सकते हैं I अगर उन्हें यह प्रतीत होता है की संज्ञेय अपराध घटित हुआ है, तो उन्हें या तो स्वयं अनुसंधान शुरू करना होता है अथवा अनुसुंधन आरंभ करने का निर्देश अधीनस्थ पुलिस को देना होता है I
यदि SP/DCP के समक्ष जाने के बावजूद कोई कारवाही नहीं की गयी है, तो आप स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर पुलिस को अनुसंधान प्रारंभ करने का आदेश प्राप्त कर सकते हैं I
राज्य मानव अधिकार आयोग को शिकायत कर सकते हैं I
अगर आपके राज्य में ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ स्थापित है तो आप वहां भी पुलिस अधिकारीयों की शिकायत कर सकते हैंI
आवयश्क सूचना
यदि पुलिस आपकी FIR पर कारवाही करने से मना कर दे तो आपके पास अपने कारवाही करने के प्रयास का प्रमाण पत्र होना चाहिए I यहाँ पर पुलिस द्वारा ठप्पायुक्त सुचना की प्रतिलित्प अत्यंत महत्वपूर्ण है I यह एक प्रणित रसीद जैसी है I आपको अपने हर आगमि पत्र अथवा शिकायतों पर रोजनामचा संदर्भ नंबर जो की पहली शिकायत करने पर दिया गया था को अंकित करना चाहिए I
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मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद- पीड़ित के दृष्टिकोण से
Published on: May 16, 2017
1. मैं मजिस्ट्रेट को शिकायत किस स्तिथि मैं कर सकती हूँ?
आप मजिस्ट्रेट को एक निजी शिकायत कर सकती हैं I इस प्रक्रिया के लिए एक वकील का उपसस्थित होना उचित है I मजिस्ट्रेट परिवाद पेश करने वाले व्यक्ति एवं गवाहों को परीक्षित करेगी I परिवाद पेश करते समय इसके समर्थन मैं जो भी सामग्री उपलब्ध है उसे शिकायत में शामिल करें I
2. किस मजिस्ट्रेट के पास जाऊं ?
सामान्यतः, जिस मजिस्ट्रेट के स्थानीय क्षेत्र मैं अपराध घटित हुआ है उसे मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होगा I अगर घटना एक क्षेत्र मैं करीत की गई है परंतु उसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों मैं महसूस होता है, ऐसी स्तिथि मैं दोनो क्षेत्रों के मजिस्ट्रेट मामले की सुनवाई कर सकते हैं I उदहारण के लिए, यदि हरि को गुरुग्राम मैं गोली मारी गई है पर उसका देहांत अस्पताल जाते वक्त दिल्ली मैं हो जाता है, तब दोनो गुरुग्राम व् दिल्ली के मजिस्ट्रेट का श्रवण अधिकार हो सकता है I जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष आप उपसिथ हुए हैं, यदि उसे मामले की सुनवाई करने की शक्ति प्राप्त नहीं है तो वह शिकायत को अनुमोदन कर उचित मजिस्ट्रेट के पास भेज सकती हैं I
3. मेरे शिकायत करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट क्या कदम उठाएगी?
परिवाद सम्बन्धी परिक्षण करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट निमंलिखित मैं से कोई भी एक कदम ले सकती हैं :
समन या वारंट जारी कर अपराधिक विचारण (ट्रायल) की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं, अथवा
इन्क्वारी संचालित कर सकती हैं, स्वयं द्वारा अथवा पुलिस के माध्यम से, अथवा
परिवाद को ख़ारिज कर शिकायत का उत्सादन कर सकती हैं I
मजिस्ट्रेट उपरोक्त मैं से कोई भी कदम ले सकते हैं I परंतु मामला यदि गंभीर प्रकृति का है एवं सेशन न्यायलय द्वारा विचारणीय है, तो उन्हें स्वयं हे “ इन्क्वारी” का सञ्चालन करना अनिवार्य है-वह पुलिस को इस बाबत निर्देश नहीं दे सकती है I इन मामलों मैं अक्सर ७ वर्ष अधिक कारावास का प्रावधान होता है, जैसे की हत्या या दुष्कर्म I
4. आगे क्या होगा?
अगर उन्हें ऐसा प्रतीत हो की मामले मैं अन्य तथ्य उजागर होने की संभावना है, तो मजिस्ट्रेट एक ‘ इन्क्वारी’ का निर्देश पारीत कर स्वयं अथवा पुलिस द्वारा इसे संचालित कर सकती हैI अगर मजिस्ट्रेट ने यह निर्देश पुलिस को दिया है की पुलिस अनुसंधान कर मजिस्ट्रेट के समक्ष एक प्रतिवेदन (रिपोर्ट) पेश करेगी I यह रिपोर्ट ‘ आरोप-पत्र’ नहीं है I यह रिपोर्ट या तो आपके परिवाद का समर्थन करेगी अथवा उसका खंडन करेगी , (‘ कोई अपराध कारित नहीं’ रिपोर्ट इस स्तिथि मैं पेश होगी )
पपूछताछ एवं परिक्षण करने के पश्चात मजिस्ट्रेट परिवादी को सुनवाई का अवसर देंगी I अभी तक कहीं भी आरोपी उपस्थिति नहीं है I इस सुनवाई का उद्देश्य यह निर्धारित करना है की क्या अभियुक्त को न्यायालय मैं उपस्थिति करने के लिए ‘समन’ जरी करना चाहिए I अगर न्यायालय के मन मैं आगे और कारवाही करने का कोई ओचित्य नहीं है; परिवाद को ख़ारिज कर निस्तारित कर दिया जाएगा I
पुलिस केस – पीड़ित के दृष्टिकोण से
1. पुलिस अनुसंधान प्रारम्भ कब कर सकती है?
एक संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना मिलते ही पुलिस द्वारा अनुसंधान शुरू किया जा सकता है यदि उन्हें अपराध होने का पता हो तो वह FIR के आभाव मैं भी जाँच शुरू कर सकती है I यधपि अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व पुलिस को एक रिपोर्ट, FIR सहित, मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी ताकि वह इस मामले मैं अवगत रहे I
2. क्या पुलिस को हर अपराध मैं अनुसंधान करना होता है?
नहीं I यदि पुलिस को यह प्रतीत हो की अनुसुंधन जारी रखने के पयार्प्त कारण नहीं हैं, वह इसे रोक सकते हैं I तथापि, अनुसंधान करने से पहले ही यदि मामले को बन्द किया जाता है, तो पुलिस का तर्क सहित मजिस्ट्रेट एवं शिकायत करता को इस बारे मैं रिपोर्ट करना अनिवार्य है I इस समय आप इस समापित रिपोर्ट के विरुद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकते हैं I
3. अनुसंधान मैं क्या-क्या- कदम होते हैं?
एक अनुसुंधन मैं पुलिस विभिन कदम ले सकती है:
अपराध के घटना स्थल का मुआयना,
लोगों की तलाश एवम वस्तुओं की जब्ती
लोगों से अन्वेषण ( सवाल जवाब)
शव परिक्षण का आयोजन I
4. क्या पुलिस मेरे घर की तलाशी ले सकती है?
यदि अनुसुंधन में आवश्यक हो तो पुलिस किसी भी जगह की तलाशी ले सकती है I आम तौर पर उन्हें एक अधिपत्र (वारंट) की आवश्यकता होती है, जोकि न्यायालय द्वारा तलाशी लेने की आज्ञा है I बिना वारंट भी तलाशी ली जा सकती है, यदि;
उन्हें विश्वास है की आपके पास अनुसंधान मैं अपेक्षित कुछ ऐसा है जिसका तुरंत मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है I
मजिस्ट्रेट ने तलाशी हेतु उचित आगेश पारित किया है एवं वह तालाशी के लिए स्वयं साथ आये I
5. क्या पुलिस मुझे पुलिस स्टेशन जाने के लिए विवश कर सकती है?
पुलिस आपको पुलिस स्टेशन आने का एवं सवालों का जवाब देने का आदेश दे सकती है I यथापि, अगर आप
एक महिला हैं, अथवा
१५ वर्ष से कम अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं, अथवा
मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं I
तब पुलिस आप को कहीं भी आने का आदेश नहीं दे सकती, उन्हें आप से स्वयं के घर मैं ही पूछताछ करनी होगी I
याद रखें, हमेशा पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का प्रमाण उत्पन्न करने का प्रयास करें I अगर आप को पुलिस द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है, तो उसे नष्ट न करें I इसी तरह, पुलिस के समक्ष उपस्थित होते समय एक पत्र उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें एवं प्रतिलिपि मैं इस बाबत अभिस्विक्र्ती प्राप्त करें I यह उनके द्वारा उल्त्मोड़ अथवा सच को तोड़ने-मरोरने के परयास पर रोक लगाएगा I
6. क्या पुलिस मुझे सवालों का जवाब देने एवं हस्ताक्षर करने के लिए विवश कर सकती है?
पुलिस आपसे अपराध अथवा उसकी सुचना बाबत पूछताछ कर सकती है I सच्चाई से जवाब देना आपका दायित्व है I तथापि “क्या आप अपराध के दोषी हैं?” जैसे सवाल यदि किये जायें तो आप चुप रहने का अधिकार रखते हैंI
आप पुलिस को जो कुछ भी बताते हैं, वह उसे लिखित मैं उतार सकते हैं अथवा उसकी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं I पुलिस आप को कथन देने के लिए न धमका सकती है न छल का प्रयोग कर सकती है I
7. क्या यह जानकारी लेने का अधिकार मुझे प्राप्त है की मामले मैं क्या चल रहा है?
दुर्भाग्यवश, विधि मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आप को मामले के संदर्भ में सूचित रखने पर पुलिस को विवश करे I पर एक बार अनुसुंधन पूर्ण होने के पश्चात पुलिस को FIR पेशकर्ता को यह बताना होता है कि मामले मैं क्या कारवाही की गई I ( उधारंग्त्या, यदि आरोपत्र पेश किया गया है ?) कई पुलिस वेबसाइट FIR की वर्तमान स्थिथि पर नज़र रखने की सम्भावना प्रदान करती है I यह ‘ कंप्लेंट ट्रैकिंग सिस्टम’ (CCTNS) से संभव है I हालांकि हमेशा नवीनतम स्थिथि उपलब्ध नहीं होती है, पर फिर भी आप अपनी स्थानिक अथवा राज्य पुलिस की वेबसाइट इस बाबत जानकारी हेतु देख सकते हैं I
8. अनुसंधान पूर्ण होने के पश्चात क्या होता है?
अनुसंधान पूर्ण कर लेने के बाद पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को एक ‘अंतिम रिपोर्ट’ भेजी जाती है, ऐसे मैं दो परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं:
पुलिस के पास अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य है ; ऐसी अवस्था मैं पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘ अंतिम रिपोर्ट’ पेश करेगी जिसे ‘ आरोप पत्र’ अथवा ‘चालान’ कहते हैं I इस रिपोर्ट मैं अपराध संबंधी सम्पूर्ण साक्ष्य का उल्लेख होता है I अभियुक्त यदि पुलिस अभिरक्षा मैं है, तोह उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष न्यायालय द्वारा मामले के विचारण हेतु भेजा जाएगा
पुलिस ने ‘समापित रिपोर्ट’ पेश की है: इसका अर्थ है की पुलिस के मन मैं न्यायालय को मामला विचरण हेतु नहीं लेना चाहिए I यहाँ या तो पुलिस को लगता है की कोई अपराध घटित हुआ ही नहीं है, अथवा अनुसंधान मैं आरोपी के विरुद्ध प्रयाप्त सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है I यदि आरोपी अभिरक्षा मैं ही, तो उसे एक ‘बांड’ निष्पादित करने के प्रश्चात रिहा कर दिया जाएगा I इस स्तिथि मैं प्रथम सूचक को एक नोटिस भेजा जाएगा I आप पुलिस की इस कदम का ‘ प्रोटेस्ट पेटिशन’ द्वारा विरोध कर सकते हैं I
विधि का यह सुस्थाप्ती आश्वासन है की पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करते समय पीड़ित अथवा किसी भी गवाह को न्यायालय मैं उपस्थित होने के लिए विवश नहीं कर सकती. तथापि, पुलिस आप को पीड़ित अथवा गवाह के रूप मैं मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे सकती है I यह बांड न्यायालय मैं निष्पद्नकर्ता की साक्ष्य हेतु उपस्थिति सुनिश्चित करता है I
-----क्रमशः
http://nyaaya.in
पुलिस केस – पीड़ित के दृष्टिकोण से
1. पुलिस अनुसंधान प्रारम्भ कब कर सकती है?
एक संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना मिलते ही पुलिस द्वारा अनुसंधान शुरू किया जा सकता है यदि उन्हें अपराध होने का पता हो तो वह FIR के आभाव मैं भी जाँच शुरू कर सकती है I यधपि अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व पुलिस को एक रिपोर्ट, FIR सहित, मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी ताकि वह इस मामले मैं अवगत रहे I
2. क्या पुलिस को हर अपराध मैं अनुसंधान करना होता है?
नहीं I यदि पुलिस को यह प्रतीत हो की अनुसुंधन जारी रखने के पयार्प्त कारण नहीं हैं, वह इसे रोक सकते हैं I तथापि, अनुसंधान करने से पहले ही यदि मामले को बन्द किया जाता है, तो पुलिस का तर्क सहित मजिस्ट्रेट एवं शिकायत करता को इस बारे मैं रिपोर्ट करना अनिवार्य है I इस समय आप इस समापित रिपोर्ट के विरुद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकते हैं I
3. अनुसंधान मैं क्या-क्या- कदम होते हैं?
एक अनुसुंधन मैं पुलिस विभिन कदम ले सकती है:
अपराध के घटना स्थल का मुआयना,
लोगों की तलाश एवम वस्तुओं की जब्ती
लोगों से अन्वेषण ( सवाल जवाब)
शव परिक्षण का आयोजन I
4. क्या पुलिस मेरे घर की तलाशी ले सकती है?
यदि अनुसुंधन में आवश्यक हो तो पुलिस किसी भी जगह की तलाशी ले सकती है I आम तौर पर उन्हें एक अधिपत्र (वारंट) की आवश्यकता होती है, जोकि न्यायालय द्वारा तलाशी लेने की आज्ञा है I बिना वारंट भी तलाशी ली जा सकती है, यदि;
उन्हें विश्वास है की आपके पास अनुसंधान मैं अपेक्षित कुछ ऐसा है जिसका तुरंत मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है I
मजिस्ट्रेट ने तलाशी हेतु उचित आगेश पारित किया है एवं वह तालाशी के लिए स्वयं साथ आये I
5. क्या पुलिस मुझे पुलिस स्टेशन जाने के लिए विवश कर सकती है?
पुलिस आपको पुलिस स्टेशन आने का एवं सवालों का जवाब देने का आदेश दे सकती है I यथापि, अगर आप
एक महिला हैं, अथवा
१५ वर्ष से कम अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं, अथवा
मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं I
तब पुलिस आप को कहीं भी आने का आदेश नहीं दे सकती, उन्हें आप से स्वयं के घर मैं ही पूछताछ करनी होगी I
याद रखें, हमेशा पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का प्रमाण उत्पन्न करने का प्रयास करें I अगर आप को पुलिस द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है, तो उसे नष्ट न करें I इसी तरह, पुलिस के समक्ष उपस्थित होते समय एक पत्र उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें एवं प्रतिलिपि मैं इस बाबत अभिस्विक्र्ती प्राप्त करें I यह उनके द्वारा उल्त्मोड़ अथवा सच को तोड़ने-मरोरने के परयास पर रोक लगाएगा I
6. क्या पुलिस मुझे सवालों का जवाब देने एवं हस्ताक्षर करने के लिए विवश कर सकती है?
पुलिस आपसे अपराध अथवा उसकी सुचना बाबत पूछताछ कर सकती है I सच्चाई से जवाब देना आपका दायित्व है I तथापि “क्या आप अपराध के दोषी हैं?” जैसे सवाल यदि किये जायें तो आप चुप रहने का अधिकार रखते हैंI
आप पुलिस को जो कुछ भी बताते हैं, वह उसे लिखित मैं उतार सकते हैं अथवा उसकी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं I पुलिस आप को कथन देने के लिए न धमका सकती है न छल का प्रयोग कर सकती है I
7. क्या यह जानकारी लेने का अधिकार मुझे प्राप्त है की मामले मैं क्या चल रहा है?
दुर्भाग्यवश, विधि मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आप को मामले के संदर्भ में सूचित रखने पर पुलिस को विवश करे I पर एक बार अनुसुंधन पूर्ण होने के पश्चात पुलिस को FIR पेशकर्ता को यह बताना होता है कि मामले मैं क्या कारवाही की गई I ( उधारंग्त्या, यदि आरोपत्र पेश किया गया है ?) कई पुलिस वेबसाइट FIR की वर्तमान स्थिथि पर नज़र रखने की सम्भावना प्रदान करती है I यह ‘ कंप्लेंट ट्रैकिंग सिस्टम’ (CCTNS) से संभव है I हालांकि हमेशा नवीनतम स्थिथि उपलब्ध नहीं होती है, पर फिर भी आप अपनी स्थानिक अथवा राज्य पुलिस की वेबसाइट इस बाबत जानकारी हेतु देख सकते हैं I
8. अनुसंधान पूर्ण होने के पश्चात क्या होता है?
अनुसंधान पूर्ण कर लेने के बाद पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को एक ‘अंतिम रिपोर्ट’ भेजी जाती है, ऐसे मैं दो परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं:
पुलिस के पास अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य है ; ऐसी अवस्था मैं पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘ अंतिम रिपोर्ट’ पेश करेगी जिसे ‘ आरोप पत्र’ अथवा ‘चालान’ कहते हैं I इस रिपोर्ट मैं अपराध संबंधी सम्पूर्ण साक्ष्य का उल्लेख होता है I अभियुक्त यदि पुलिस अभिरक्षा मैं है, तोह उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष न्यायालय द्वारा मामले के विचारण हेतु भेजा जाएगा
पुलिस ने ‘समापित रिपोर्ट’ पेश की है: इसका अर्थ है की पुलिस के मन मैं न्यायालय को मामला विचरण हेतु नहीं लेना चाहिए I यहाँ या तो पुलिस को लगता है की कोई अपराध घटित हुआ ही नहीं है, अथवा अनुसंधान मैं आरोपी के विरुद्ध प्रयाप्त सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है I यदि आरोपी अभिरक्षा मैं ही, तो उसे एक ‘बांड’ निष्पादित करने के प्रश्चात रिहा कर दिया जाएगा I इस स्तिथि मैं प्रथम सूचक को एक नोटिस भेजा जाएगा I आप पुलिस की इस कदम का ‘ प्रोटेस्ट पेटिशन’ द्वारा विरोध कर सकते हैं I
विधि का यह सुस्थाप्ती आश्वासन है की पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करते समय पीड़ित अथवा किसी भी गवाह को न्यायालय मैं उपस्थित होने के लिए विवश नहीं कर सकती. तथापि, पुलिस आप को पीड़ित अथवा गवाह के रूप मैं मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे सकती है I यह बांड न्यायालय मैं निष्पद्नकर्ता की साक्ष्य हेतु उपस्थिति सुनिश्चित करता है I
-----क्रमशः
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