गौ प्रेम कथा -1
रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
- शिकायत करने पर किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष देवेन्द्र तिवारी को मिल रही है धमकी
-गौशालाओं के बारे में उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यूपी सरकार से पूछे हैं कई सवाल
-बीमारी और कुपोषण से गौवंश की मौत से इंकार कर चुके हैं उत्तर प्रदेश केपशुधन मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े बीजेपी नेताओं का गौ प्रेम हर रोज टेलिविजन के खबरिया चैनलों पर देखने को मिलने लगा। गौमुत्र को गंगाजल से भी पवित्र बताने की परम्परा विकसित कर दी गयी। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, रामदेव ने गाय को सहलाने से कैंसर तक ठीक होने के दावे करने लगीं। गोबर का भाव किसान के प्याज से भी आगे बढ़ गया। गडकरी जी ने गोबर और गौमुत्र से साबुन, अगरबत्ति, बर्तन न जाने क्या-क्या लांच कर एमएसएमई से जोड़ दिया। तथाकथित गौसेवकों ने गाय का महत्व जानने के बाद आसमान सर पर उठा लिया जैसे उन्हें हीरे की खान की जानकारी हो गयी हो। बैसाखनन्दन गौमाता के इन मतवाले बछड़ों ने नागरिकों पर कहर बरसाना शुरु कर दिया। गौरक्षा के नाम पर अपनी सामाजिक वैमनस्यता का प्रमाण देते हुए न जाने कितनों के घर तबाह किये। किसी मां के बेटे को तो किसी के बाप, भाई को पीट-पीटकर दिनदहाड़े भरी भीड़ में मार डाले। अधिकारी भी सत्ता के डर से या सत्ता के संरक्षण में अपनी मलाई तैयार करने लगे।
किसान मंच के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष देवेन्द्र तिवारी |
गौशालाओं के लिए सरकारों ने खजाने का मुंह खोल दिया। बगैर विकसित प्रबंधनतंत्र के मनमाने तौर-तरीके से गौशालाएं संचालित होने लगीं। और इस प्रकार गौरक्षा और गौसंवर्धन के नाम पर गौ तस्करी, लूट-खसोट और घपले-घोटाले शुरु हो गये। गौसंवर्धन के इस खेल को समझने के लिए किसान मंच के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष देवेन्द्र तिवारी ने निरीक्षण कर लोगों को जागरुक करने संकल्प लिया और कूद पड़े इस खतरनाक खेल के गौशाला मैदान में।
गौशालाओं की सुरक्षा को लेकर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर चुके देवेन्द्र तिवारी ने ‘द्रष्टा’ से कहा कि गौ- रक्षा के काम में प्रशासन सहयोग नहीं कर रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गौ-वंश की सेवा और उनके प्रेम को देखते हुए मैं भी उत्साह में सरकार की मदद के लिए जुट गया। लेकिन जैसे ही मैंने गौशालाओं का निरीक्षण और जागरुकता अभियान में जनता को जोड़ने लगा तो, प्रशासनिक अधिकारी मदद की बजाय विरोधी तेवर दिखाने लगे। मुख्यमंत्री योगी की पकड़ प्रशासनिक व्यवस्था पर ढीली है इस बात की मुझे जानकारी नहीं थी। गौ-वंश की रक्षा एक पुण्य का काम है और मैं निर्णय ले चुका था। इसलिए अब मैं गौवंश के तस्करों, माफियाओं और प्रशासन के भ्रष्ट अधिकारियों के डराने से पीछे नहीं हट सकता।
अक्टूबर 2019 में गौशालाओं में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने के बाद सरकार ने जॉच करायी। महाराजगंज के जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय, एसडीएम देवेन्द्र कुमारव सदमा सत्यम मिश्रा तथा मुख्य पशु अधिकारी वीके मौर्या को निलंबित कर दिया। उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के भी निर्देश दिये गये। मुख्य सचिव आरके तिवारी ने बताया कि मधुबलियां गोसदन में गोवंश के रखरखाव में अभियान के अनुसार 2500 गोवंश होने चाहिए लेकिन निरीक्षण में मात्र 900 गोवंश पाये गये। 500 एकड़ जमीन पर पशु पालन विभाग का कब्जा था जबकि समिति ने गैरकानूनी ढंग से 380 एकड़ जमीन निजी व्यक्ति को लीज पर दे दी। बगैर विधिक प्रक्रिया अपनाए अधिकारी मनमानी करते रहे और गायों के मुंह का निवाला खाते रहे। उनके हिस्से की जमीन किराये पर दे दिये।
उत्तर प्रदेश में गौवंश की रक्षा के नाम पर राजनेताओं की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है। सरकार किसी भी दल की रही हो लेकिन गौ तस्करी धड़ल्ले से होती रही है। कुछ जगहों पर भ्रष्ट पुलिस तंत्र की कमाई का स्रोत ही पशु तस्करी है। यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में पशु तस्करों की पैठ है। मिर्जापुर के मड़िहान थाना, सोनभद्र के सुकृत चौकी क्षेत्र के रास्ते चन्दौली में कैमूर के जंगलों से होते हुए बिहार के रास्ते गोवंश तस्करी किये जाते हैं। 200 से 250 रुपये प्रति पशु प्रत्येक थाना क्षेत्रों की पुलिस और स्थानीय चरवाहों को देकर पशु तस्कर घृणित कार्य को अंजाम देते हैं। अहरौरा थाना क्षेत्र के लखनिया में वाराणसी के नामी प्रतिष्ठित व्यवसायी के गौशाला में भी पशुओं को काटा जाता है और उनकी हड्डीयों का व्यवसाय किया जाता है।
यूपी में गौशालाओं के जरिये हो रहे घोटालों और गौ-वंश की तस्करी को रोकने का अभियान चलाने वाले देवेन्द्र तिवारी को तस्करों द्वारा लगातार धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि उच्च प्रशासनिक अधिकारीयों और आईबी को जानकारी दे दी गई है। इससे पहले भी प्रशासन को अवगत कराया जा चूका है लेकिन उदासीन सरकार और प्रशासन आपराधिक घटनाओं पर तत्पर नहीं है।बहरहाल, देश भर में पशु तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। शहरों में आवारा घूमने वाले गोवंश को प्रशासन पकड़कर गौशालाओं में दे देते हैं। वहां उचित देखभाल न होने व चारा पानी न मिलने के कारण पशु धीरे-धीरे कमजोर होकर मरने लगते हैं। जो गायें दुधारु नहीं होतीं गौशालाओं के प्रबंधक उनकी पशु तस्करों से सौदेबाजी कर लेते हैं। गौशालाओं में जमा किये गये गाय और बैल का कोई मालिक होने का दावा नहीं करता है और गौशालाओं के प्रबंधन की निगरानी भी प्रशासनिक तंत्र नहीं करता है। इसलिए गौ तस्करी का सारा खेल निर्बाध गति से चलता रहता है।
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