मनोज सिन्हा जम्मू कश्मीर के नए उप राज्यपाल होंगे, इस खबर से एक तरफ जहाँ उनके चाहने वालों की खुशी का ठिकाना नहीं , वहीं दूसरी ओर जानकार लोग उनको यह दायित्व सौंपे जाने के मायने भी तलाश रहे हैं । ऐसे लोगों का अंदाजा है कि नरेंद्र मोदी ने उन पर भरोसा जताने के साथ ही एक तीर से कई निशाना साधा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के बेहद करीब पहुँचने के बाद भी उन्हें रोकने और गाजीपुर से लोकसभा की सीट हारने के बाद मनोज सिन्हा के समर्थक मायूस जरूर थे पर उन्हें लगता था कि हाईकमान राज्य सभा के जरिये उनकी केंद्रीय मंत्रिमंडल में वापसी जरूर करेगा , पर दिन बीतने और तमाम अवसरों के गुजरने के साथ ही उनकी उम्मीदें टूटने लगीं थीं ।
ऐसे में मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का उप राज्यपाल बना कर नरेंद्र मोदी ने यह संदेश दिया कि उन्हें मनोज सिन्हा की योग्यता पर भरोसा है अब गेंद श्री सिन्हा के पाले में है । उन्हें राज्य में केंद्र की निदेर्शों और नीतियों को कुशलता के साथ कार्यान्वित कर हाईकमान की कसौटी पर खुद को खरा साबित करना होगा । वहीं यह भी कहा जा रहा हर कि इस नए दायित्व से मनोज सिन्हा के जनराजनीति की संभावनाओं पर विराम लग गया है । साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में सम्भावित मुख्यमंत्री के दावेदारों में से एक चेहरा कम हो गया। तात्कालिक तौर पर यह बात भले ही मायने रखती हो पर राजनीति के मौजूदा वक्त में इन बातों का विशेष अर्थ निकालना सही न होगा , क्योंकि आज की राजनीति में जो दिखता है वह नहीं होता और जो नहीं दिखता वो होता है ।
ऐसा कई बार देखने में आया है कि ऐसे दायित्व सम्भालने के बाद भी लोगों कि सक्रिय राजनीति में ठीक ठाक ढंग से वापसी हुई है , फिर मनोज सिन्हा के पास कम उम्र और लंबे अनुभव का मजबूत आधार भी है । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से की । शायद यह कहना गलत न होगा कि उन्होंने राजनीति का ककहरा सुरेश अवस्थी जैसे बौद्धिक दिग्गज के सानिध्य में सीखा और दल और उसके बाहर के असदार माने जाने वालों को किनारे लगाते हुए छात्र संघ अध्यक्ष की कुर्सी तक सफलता पूर्वक पहुँचे । उसके बाद से उनके राजनीतिक करियर का ग्राफ लगातार चढ़ता ही रहा ।
1989 से 1996 तक भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे । 1996 में में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और उंन्होने 1999 में दोबारा जीत हासिल की । वह 2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने पर तीसरी बार निचले सदन के लिए चुने गए। वह रेल राज्य मंत्री रहे हैं और बाद में उन्हें संचार मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी सौंपा गया । अपने समर्थकों के बीच उनकी पहचान गाजीपुर के विकास पुरुष के रुप में है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अब वह केवल गाजीपुर ही नहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भाजपा के मजबूत स्तम्भ के रूप में स्थापित हो चुके हैं ।
नया दायित्व उनके इम्तिहान की घड़ी है एक तरफ उनके सामने होगी केंद्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती तो दूसरी ओर पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार के बीच अपने नायकत्व की छवि को बनाये रखना । क्योंकि सक्रिय राजनीति में वापसी के लिए इसी छवि और जमीन की जरूरत होगी। अब यह देखने वाली बात होगी कि मनोज सिन्हा जम्मू कश्मीर के तार पूर्वी उत्तरप्रदेश से जोड़ने में कितने कामयाब होंगे । वैसे धारा 370 हटाये जाने के यएक साल बीतने के बाद भी राज्य में चुनौती का जंगल जस का तस बना हुआ है बल्कि उसमें कुछ पहाड़ भी उगने लगे हैं जिन पर चर्चा फिर कभी , आज तो मनोज सिन्हा को नए पद और दायित्व की बधाई , बीएचयू और पूर्वांचल दोनों की तरफ से ■ ■
(लेखक जाने-माने पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं )
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