रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
भाग-1
कोरोना महामारी के दौरान जब देश के नागरिक बदहाली में जीने को मजबूर हो रहे थे, मां अपने बच्चे को सड़कों पर जन्म दे रही थी, हजारों लोग भूख और प्यास से मर रहे थे, आश्रय की खोज में लाखों लोग सड़कों पर भटक रहे थे तब, संवेदनहीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का घर बनाने में जुटे थे।
मान सम्मान, पद-प्रतिष्ठा को जीवन का केन्द्र मानने वाले नागरिक सड़कों पर पीटे जा रहे हैं। नागरिकों को सत्ता बता देना चाहती है कि मान, सम्मान, पद-प्रतिष्ठा का अधिकार केवल सत्ताधीशों का है। बलात्कार, हत्या, दंगा और मॉब लिचिंग से जूूझ रहे भारत के नागरिक अमानवीय राजसत्ता द्वारा प्रशिक्षित हो रहे हैं। बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानन्द, कुलदीप सेंगर जैसे सत्ताधीशों के मामले में देश को अन्यायी राजसत्ता का विभत्स रुप देखने को मिला।
कोरोना महामारी के नाम पर राजसत्ता ने नागरिकों को भरोसे में लिए बगैर नियम और कानूनों लागू किया और नागरिक अधिकारों को कूचल डाला। बाबा भीमराव अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया के नाम पर संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी बीजेपी से संविधान को खतरा बता रही हैं। संविधान जाति, धर्म व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता है। इसके बावजूद इन दलों को जातिगत राजनीति का तमगा अच्छा लग रहा है।
लॉक डाउन में जीवन गुजार रहे नागरिकों ने देखा कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को राजसत्ता ने कैसे तहस-नहस किया। कोरोना महामारी के नाम पर सत्ताधीशों ने अपने वर्चस्व को कायम रखते हुए बगैर जन भागीदारी के निर्णय लेते रहे। ‘द्रष्टा’ देख रहा है कि भारत में थालियां और मोमबत्तियां भले ही कोरोना का मार्ग न रोक सकीं लेकिन राजनेताओं ने अपने इन हथियारों की धार परख ली है। सत्ता में बैठे नौसीखिए राजनेता इन हथियारों को जनता पर आजमाने के गुर सीख रहे हैं। और कुछ राजनेता अपनी काबिलियत के अनुसार इन हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिये प्राप्त डाटा के सहारे खुराफाती सत्ताधीशों का काम आसान हो रहा है। राजनेता को प्रयोग में यह जानकारी मिल जाती है कि जनता का जातिगत मुद्दों में दिलचस्पी है या जन अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर।क्रिया की प्रतिक्रिया एक प्राकृतिक घटना है। जो विश्व के कण-कण में हलचल पैदा करती है। इसी के कारण प्राणियों का स्वभाव बनता है। और इसी स्वभाविक कारण ने बुद्धिमान मानव समाज की सरंचना की व मानव सभ्यताओं को जन्म दिया है। ‘द्रष्टा’ इसी स्वभाव के कारण समाज में होने वाली हलचल को व्यक्त करता है और आपको वर्तमान से भूत व भूत से भाविष्य की घटनाओं की जानकारी देता है। राम की भक्ति करने वाले देश में नरेन्द्र मोदी ने अपने भक्तों की फौज बना ली है। उन्हें राम नहीं बल्कि राम के जरिये सत्ता चाहिए था। अब अयोध्या में राम मन्दिर के वाद-विवाद में सत्ता को रस प्राप्त नहीं हो रहा है। इसलिए सत्ता भक्ति की प्रतिस्पर्धा में मीरा व रसखान को पीछे छोड़कर मथुरा के कृष्ण विवाद से रस प्राप्त करने की इच्छा कर रही है। सत्ताधीशों को यकीन है कि धर्म के आडम्बर में कृष्ण को शामिल कर मोदी भक्त रसपान करेंगे।
बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले के आरोपी बरी हो चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने नई परम्परा को जन्म दिया है। उच्चतम न्यायालय ने पहले भी कई मामलों में न्याय न करके निर्णय दिये हैं। देश के जागरुक लोग न्यायालय के इन कार्यों पर टिप्पणी भी किये लेकिन नतीजा दमनकारी रहा। जिस व्यक्ति, समाज व संस्था का दमन होता है उसी को तो न्याय चाहिए। न्यायालय को स्पष्ट होना चाहिए और न्यायधीशों को निर्णय की जगह न्याय करने चाहिए। यदि न्यायाधीश ऐसा नहीं कर पाते तो, उनकी न्याय करने की काबिलियत संदेहपूर्ण है। न्यायमूर्तियों पर एक पक्ष आरोप लगाता ही है परन्तु, पक्ष-विपक्ष से परे रहकर ही न्याय होता है। क्रिया की प्रतिक्रिया से उठने वाली हलचल से न्यायमूर्ति प्रभावित होते रहे हैं। ‘द्रष्टा’ देख रहा है कि बहुमत आधारित राजनीति बहुसंख्यावादी हो गयी है। प्रकाश से अंधकार की तरफ तेजी से भागते लोग मानव जाति के टुकड़े कर देना चाहतें है। व्यक्ति विस्तार की जगह संकीर्ण होने के लिए लालायित हो रहे हैं।
सत्ता का सूख भोग रहे नेता अपने बतुके बयानों से जनता में ईष्या द्वेष की अग्नि भड़का रहे हैं। और इस उठती अग्नि की लपटों से नौकरशाह अपना भोजन पका रहे हैं। सत्ता ने जनता से दुर्व्यहार करने की उन्हें खुली छूट है। न उन्हें मीडिया का भय है और न ही सत्ता का। ऐसा तब होता था जब हम गुलाम थे। आज हम आजाद हैं और इस देश के भाग्य विधाता हैं लेकिन, नौकरशाह अब भी अपना मालिक राजनेताओं को ही समझते हैं। गुण्डे, बलात्कारी, डकैत, घोटालेबाजों को सल्यूट करने वाले नौकरशाह, संविधान में जिस सबसे कमजोर व्यक्ति का जिक्र है उसके प्रति नौकरशाहों का आचरण क्रूर और भयानक है। राजनेता भी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कमजोर व्यक्तियों का दमन करके सत्ता में बने रहने के लिए नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं।
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देश की 80 प्रतिशत आबादी आर्थिक रुप से गरीब है। 40 करोड़ की आबादी कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगार हो गयी। बहुसंख्यक आबादी रोजी-रोटी के लिए समय और राजसत्ता से जूझ रही है। ऐसे समय में लोकतांत्रिक देश के नेताओं को बहुमत की जगह बहुसंख्यावाद का डर सताता है। धन और बाहुबल पर बहुमत जुटाने में नेता कामयाब हो जाते हैं लेकिन बहुसंख्यक लोगों पर नियंत्रण करने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है। इसीलिए सत्ता जाति, धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर नागरिकों को वर्गों में बांटती है। जिससे जनता का राजनीतिक दलों के लिए धु्रवीकरण आसान हो जाय। महज 40 प्रतिशत वोट के आधार पर बनने वाली राजसत्ता देश के शत्प्रतिशत लोगों का भाग्य निर्धारित करने का गर्व लिए घूम रही है और तिकड़मबाजी कर निकम्मेपन से तैयार मलाई खाने वाले नौकरशाह भी ऐसी सत्ता को बनाए रखना चाहते हैं। इसीलिए विकास के नाम पर षड़्यंत्रकारी योजनाएं बनाने में माहिर नौकरशाहों पर राजनेता भरोसा करते हैं।
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कोरोना महामारी के दौरान जब देश के नागरिक बदहाली में जीने को मजबूर हो रहे थे, मां अपने बच्चे को सड़कों पर जन्म दे रही थी, हजारों लोग भूख और प्यास से मर रहे थे, आश्रय की खोज में लाखों लोग सड़कों पर भटक रहे थे तब, संवेदनहीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का घर बनाने में जुटे थे। सत्ता को मालूम था कि राम ही नरेन्द्र मोदी का बेड़ापार कर सकते हैं। लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और अनियंत्रित अपराधियों के प्रति बढ़ रहे जनआक्रोश से राजसत्ता डर गयी। जनता के ऊपर शासन करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी का रास्ता राजसत्ता को आवश्यक लगा। इसीलिए देश की 65 प्रतिशत किसान और 20 प्रतिशत शुद्ध कृषि व्यवसायियों की आर्थिक रीढ़ को तोड़ देने के लिए राजसत्ता ने कृषि बिल 2020 को मंजूरी दे दी। अब जनता को राम भरोसे छोड़कर सरकार नौकराशाहों के भरोसे चलने को तैयार है।
शेष अगले भाग में.......