Monday, 26 October 2020

जनता राम भरोसे, सत्ता नौकरशाह भरोसे

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
 
भाग-1

कोरोना महामारी के दौरान जब देश के नागरिक बदहाली में जीने को मजबूर हो रहे थे, मां अपने बच्चे को सड़कों पर जन्म दे रही थी, हजारों लोग भूख और प्यास से मर रहे थे, आश्रय की खोज में लाखों लोग सड़कों पर भटक रहे थे तब, संवेदनहीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का घर बनाने में जुटे थे।

मान सम्मान, पद-प्रतिष्ठा को जीवन का केन्द्र मानने वाले नागरिक सड़कों पर पीटे जा रहे हैं। नागरिकों को सत्ता बता देना चाहती है कि मान, सम्मान, पद-प्रतिष्ठा का अधिकार केवल सत्ताधीशों का है। बलात्कार, हत्या, दंगा और मॉब लिचिंग से जूूझ रहे भारत के नागरिक अमानवीय राजसत्ता द्वारा प्रशिक्षित हो रहे हैं। बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानन्द, कुलदीप सेंगर जैसे सत्ताधीशों के मामले में देश को अन्यायी राजसत्ता का विभत्स रुप देखने को मिला। 

कोरोना महामारी के नाम पर राजसत्ता ने नागरिकों को भरोसे में लिए बगैर नियम और कानूनों लागू किया और नागरिक अधिकारों को कूचल डाला। बाबा भीमराव अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया के नाम पर संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी बीजेपी से संविधान को खतरा बता रही हैं। संविधान जाति, धर्म व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता है। इसके बावजूद इन दलों को जातिगत राजनीति का तमगा अच्छा लग रहा है।

लॉक डाउन में जीवन गुजार रहे नागरिकों ने देखा कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को राजसत्ता ने कैसे तहस-नहस किया। कोरोना महामारी के नाम पर सत्ताधीशों ने अपने वर्चस्व को कायम रखते हुए बगैर जन भागीदारी के निर्णय लेते रहे। ‘द्रष्टा’ देख रहा है कि भारत में थालियां और मोमबत्तियां भले ही कोरोना का मार्ग न रोक सकीं लेकिन राजनेताओं ने अपने इन हथियारों की धार परख ली है। सत्ता में बैठे नौसीखिए राजनेता इन हथियारों को जनता पर आजमाने के गुर सीख रहे हैं। और कुछ राजनेता अपनी काबिलियत के अनुसार इन हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिये प्राप्त डाटा के सहारे खुराफाती सत्ताधीशों का काम आसान हो रहा है। राजनेता को प्रयोग में यह जानकारी मिल जाती है कि जनता का जातिगत मुद्दों में दिलचस्पी है या जन अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर।

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क्रिया की प्रतिक्रिया एक प्राकृतिक घटना है। जो विश्व के कण-कण में हलचल पैदा करती है। इसी के कारण प्राणियों का स्वभाव बनता है। और इसी स्वभाविक कारण ने बुद्धिमान मानव समाज की सरंचना की व मानव सभ्यताओं को जन्म दिया है। ‘द्रष्टा’ इसी स्वभाव के कारण समाज में होने वाली हलचल को व्यक्त करता है और आपको वर्तमान से भूत व भूत से भाविष्य की घटनाओं की जानकारी देता है। राम की भक्ति करने वाले देश में नरेन्द्र मोदी ने अपने भक्तों की फौज बना ली है। उन्हें राम नहीं बल्कि राम के जरिये सत्ता चाहिए था। अब अयोध्या में राम मन्दिर के वाद-विवाद में सत्ता को रस प्राप्त नहीं हो रहा है। इसलिए सत्ता भक्ति की प्रतिस्पर्धा में मीरा व रसखान को पीछे छोड़कर मथुरा के कृष्ण विवाद से रस प्राप्त करने की इच्छा कर रही है। सत्ताधीशों को यकीन है कि धर्म के आडम्बर में कृष्ण को शामिल कर मोदी भक्त रसपान करेंगे। 


बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले के आरोपी बरी हो चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने नई परम्परा को जन्म दिया है। उच्चतम न्यायालय ने पहले भी कई मामलों में न्याय न करके निर्णय दिये हैं। देश के जागरुक लोग न्यायालय के इन कार्यों पर टिप्पणी भी किये लेकिन नतीजा दमनकारी रहा। जिस व्यक्ति, समाज व संस्था का दमन होता है उसी को तो न्याय चाहिए। न्यायालय को स्पष्ट होना चाहिए और न्यायधीशों को निर्णय की जगह न्याय करने चाहिए। यदि न्यायाधीश ऐसा नहीं कर पाते तो, उनकी न्याय करने की काबिलियत संदेहपूर्ण है। न्यायमूर्तियों पर एक पक्ष आरोप लगाता ही है परन्तु, पक्ष-विपक्ष से परे रहकर ही न्याय होता है। क्रिया की प्रतिक्रिया से उठने वाली हलचल से न्यायमूर्ति प्रभावित होते रहे हैं। ‘द्रष्टा’ देख रहा है कि बहुमत आधारित राजनीति बहुसंख्यावादी हो गयी है। प्रकाश से अंधकार की तरफ तेजी से भागते लोग मानव जाति के टुकड़े कर देना चाहतें है। व्यक्ति विस्तार की जगह संकीर्ण होने के लिए लालायित हो रहे हैं। 




सत्ता का सूख भोग रहे नेता अपने बतुके बयानों से जनता में ईष्या द्वेष की अग्नि भड़का रहे हैं। और इस उठती अग्नि की लपटों से नौकरशाह अपना भोजन पका रहे हैं। सत्ता ने जनता से दुर्व्यहार करने की उन्हें खुली छूट है। न उन्हें मीडिया का भय है और न ही सत्ता का। ऐसा तब होता था जब हम गुलाम थे। आज हम आजाद हैं और इस देश के भाग्य विधाता हैं लेकिन, नौकरशाह अब भी अपना मालिक राजनेताओं को ही समझते हैं। गुण्डे, बलात्कारी, डकैत, घोटालेबाजों को सल्यूट करने वाले नौकरशाह, संविधान में जिस सबसे कमजोर व्यक्ति का जिक्र है उसके प्रति नौकरशाहों का आचरण क्रूर और भयानक है। राजनेता भी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कमजोर व्यक्तियों का दमन करके सत्ता में बने रहने के लिए नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं। 

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देश की 80 प्रतिशत आबादी आर्थिक रुप से गरीब है। 40 करोड़ की आबादी कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगार हो गयी। बहुसंख्यक आबादी रोजी-रोटी के लिए समय और राजसत्ता से जूझ रही है। ऐसे समय में लोकतांत्रिक देश के नेताओं को बहुमत की जगह बहुसंख्यावाद का डर सताता है। धन और बाहुबल पर बहुमत जुटाने में नेता कामयाब हो जाते हैं लेकिन बहुसंख्यक लोगों पर नियंत्रण करने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है। इसीलिए सत्ता जाति, धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर नागरिकों को वर्गों में बांटती है। जिससे जनता का राजनीतिक दलों के लिए धु्रवीकरण आसान हो जाय। महज 40 प्रतिशत वोट के आधार पर बनने वाली राजसत्ता देश के शत्प्रतिशत लोगों का भाग्य निर्धारित करने का गर्व लिए घूम रही है और तिकड़मबाजी कर निकम्मेपन से तैयार मलाई खाने वाले नौकरशाह भी ऐसी सत्ता को बनाए रखना चाहते हैं। इसीलिए विकास के नाम पर षड़्यंत्रकारी योजनाएं बनाने में माहिर नौकरशाहों पर राजनेता भरोसा करते हैं।

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कोरोना महामारी के दौरान जब देश के नागरिक बदहाली में जीने को मजबूर हो रहे थे, मां अपने बच्चे को सड़कों पर जन्म दे रही थी, हजारों लोग भूख और प्यास से मर रहे थे, आश्रय की खोज में लाखों लोग सड़कों पर भटक रहे थे तब, संवेदनहीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का घर बनाने में जुटे थे। सत्ता को मालूम था कि राम ही नरेन्द्र मोदी का बेड़ापार कर सकते हैं। लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और अनियंत्रित अपराधियों के प्रति बढ़ रहे जनआक्रोश से राजसत्ता डर गयी। जनता के ऊपर शासन करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी का रास्ता राजसत्ता को आवश्यक लगा। इसीलिए देश की 65 प्रतिशत किसान और 20 प्रतिशत शुद्ध कृषि व्यवसायियों की आर्थिक रीढ़ को तोड़ देने के लिए राजसत्ता ने कृषि बिल 2020 को मंजूरी दे दी। अब जनता को राम भरोसे छोड़कर सरकार नौकराशाहों के भरोसे चलने को तैयार है।

शेष अगले भाग में.......

Sunday, 11 October 2020

जेपी के नजरों में लोकतंत्र, ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भर पंचायत

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'  

जब ऐसी कठिन परिस्थिति में लोग दूसरों से मदद की अपेक्षा रखते हैं और स्वार्थ से भरी मित्रता करना चाहते हैं तब पुरुषार्थी जय प्रकाश ने अमेरीका के बागानों, कसाईखानों में काम किया। होटलों में बर्तन धोये, वेटर का काम किया, जूते साफ किये होटलों के पखाने साफ किये। और अपने स्वाभिमान को जिन्दा रखा।


  


  मॉं फूलरानी के ‘बउल’ पिता हरसू दयाल के लाल, प्रभावती के पति, महात्मा गॉधी के शिष्य, जनता के नायक जय प्रकाश नारायण (जेपी) का 118 वॉं जन्म दिवस अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के प्रांगण में मनाया गया। 11 अक्टूबर 1902 को जन्में जय प्रकाश नारायण अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के पूर्व अध्यक्ष रह चुके थे। इस अवसर पर जेपी के नजरों में ‘लोकतंत्र, ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भर पंचायत’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्था से जुड़े हुए चिन्तकों, विचारकों ने जोर दिया कि कैसे संस्था के लोग संकल्पित होकर युवाओं को अपना ‘योगक्षेम’ स्वयं अर्जित करने के लिए जागरुक कर सकते हैं।  


दिल्ली के मयूर विहार फेस वन में स्थित अखिल भारतीय पंचायत परिषद् का राष्ट्रीय कार्यालय भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों के पचड़े में फंसा है। लगभग दस वर्षों से नेतृत्व विहीन होकर अपने मूल उद्देश्यों से भटके इस संस्था को देश में पंचायती राज स्थापित करने के लिए जाना जाता है। ऐसे समय में पंचायत परिषद् के सदस्यों और पदाधिकारियों द्वारा जय प्रकाश नारायण को याद करना महत्वपूर्ण है। दिवंगत जय प्रकाश जी ने तमाम संस्थाएं बनाई जिसमें कुछ काम कर रही हैं और कुछ का वजूद मिट गया। कारण, बाजार ने नागरिकों की एक ऐसी पीढ़ी को प्रशिक्षित किया जो संवेदनहीनता की दलदल में समाता चला गया। जब नागरिकों में ऐसी मान्यता हो चली है कि राजसत्ता ही सबकूछ है, और प्रत्येक राजनेता इसके मोह में फंसा है तब जेपी को याद करना अतिमहत्वपूर्ण हो जाता है।

23 जुलाई 1975 को जेल की अपनी डायरी में लोकनायक जय प्रकाश ने लिखा था-

सफलता और विफलता की परिभाषाएं भिन्न हैं मेरी


इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
बन नहीं सकता प्रधानमंत्री क्या?
किन्तु मुझ क्रांति-शोधक के लिए
कुछ अन्य पथ ही मान्य,उद्य्ष्टि थे,
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
पथ संघर्ष के, सम्पूर्ण क्रान्ति के,
जग जिसे कहता विफलता
थीं शोध की वे मंजिलें!
मंजिले वे अनगिनत हैं!
गन्तव्य भी अति दूर है,
रुकना नहीं मुझको कहीं
अवरुद्ध जितना मार्ग हो!

 28 मार्च1968 को अमेरिका के विदेश मंत्री डीन रस्क ने वाशिंगटन में जब जयप्रकाश से भेंट की, तो जय प्रकाश ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा कि ‘‘मुझे बड़ी खुशी है कि मैं किसी पद पर नहीं, फिर भी आपने मुलाकात की।’’ रस्क ने जबाब दिया कि ‘‘मैं जानता हूँ कि आप क्या हैं!’’ अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के सह संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष लोकनायक जयप्रकाश नारायण सत्ता के मोह से ऊपर थे। देश की जनता उन्हें 1959 से ही लोकनायक कहती है। लेकिन 9 अप्रैल 1974 को पटना के गांधी मैदान में जुटी लाखों की जनता ने लोकनायक जय प्रकाश जिन्दाबाद कहा। 

 बाजार की चकाचौंध वाली लुभावनी दुनिया में रचने -बसने वाले बेरोजगार युवा जहां ब्राण्डेड लंगोटी खरीदने और पहनने के लिए समाज के प्रति संवेदनहीन हो जाते हों वहां जयप्रकाश का जीवन भटके युवाओं को पथ प्रदर्शित करता है। असहयोग आन्दोलन से निबटने के बाद जय प्रकाश अमेरिका में पढ़ाई करने की इच्छा रखते थे। उनके पिता जी की आर्थिक हैसियत उन्हें अमेरिका में पढ़ाने की नहीं थी। तब उन्होंने तय किया कि अमेरिका में मैं मजदूरी करके अपनी पढ़ाई कर सकता हूँ। जब ऐसी कठिन परिस्थिति में लोग दूसरों से मदद की अपेक्षा रखते हैं और स्वार्थ से भरी मित्रता करना चाहते हैं तब पुरुषार्थी जय प्रकाश ने अमेरीका के बागानों, कसाईखानों में काम किया। होटलों में बर्तन धोये, वेटर का काम किया, जूते साफ किये होटलों के पखाने साफ किये। और अपने स्वाभिमान को जिन्दा रखा। जय प्रकाश नारायण अपने जीवन संघर्ष के कटु अनुभवों से सीखते हुए प्रेम, करुणा के आधार पर संवेदनशील समाज के निर्माण को महत्व दिया।

‘द्रष्टा’ देख रहा है कि कोरोना महामारी और पूॅजीवादियों का बाजार जड़ जमा चुका है। भारतवासियों की स्वतंत्रता और अधिकारों का अपहरण, गरीबों के रक्त-शोषण, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से देश का नाश करने वाली शक्तियों से समाजवादी विचारक चिन्तित हैं। हाल ही में केन्द्र सरकार देश की 65 प्रतिशत आबादी जो, खेती करती और उपभोक्ता भी है बिना, उसकी सलाह के कृषि कानूनों में बदलाव कर देती है। देखा जाय तो खुद को जयप्रकाश नारायण का अनुयायी बताने वाले राजसत्ता के मोह में फंसे मंत्रियों ने ही इस विधेयक को किसान हित में बताया है। जबकि जय प्रकाश नारायण ने कहा है कि समाज के उत्पादक वर्गों के हाथ में सत्ता आनी चाहिए। उत्पादन, वितरण और विनिमय के सभी साधनों का धीरे-धीरे राष्ट्रीयकरण होना चाहिए। तों, वर्तमान सत्ता निजीकरण पर जोर दे रही है और उत्पादक वर्गों से सत्ता कैसे दूर रहे इसके लिए षड़यंत्रकारी कानून और योजनाएं बना रही है। 

जेपी ने कहा है कि  सहकारिता का विकास होना चाहिए। जागीरों, जमींदारियों को बिना मुआवजा दिये समाप्त कर देना चाहिए। किसानों को नये सिरे से जमीन वितरण होना चाहिए। सामूहिक और सहयोगी खेती पर जोर देना चाहिए। एक गॉंव की ही ईकाई बननी चाहिए। लेकिन उसके लिए किसानों पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। उन्हें समझा-बुझाकर इस दिशा में लाना चाहिए। उद्योगों का गॉंव-गॉंव में विकास होना चाहिए। खास-खास जगहों पर उद्योगों का जमाव करना ठीक नहीं।  लेकिन सरकार जेपी के विचारों के उलट काम कर रही है जैसे वह पूरी तरह समाजवाद का खात्मा चाहती हो। जायज मांगों के लिए आंदोलित किसानों पर डंडे मारने वाली सरकार के कार्यकाल में टाटा, अंबानी आडानी के ही चर्चें जोरों पर चल रहे हैं। उद्योग और देश की आधी दौलत देश के एक प्रतिशत अमीरोंं के हाथ में जा चुकी है। 

जय प्रकाश को उनके दिवंगत होने के बाद हर साल जन्मदिवस सैकड़ों संस्थाएं मनाती है। लोग उनकी मूर्ति और फोटो पर पूष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनके राजनीतिक सफर पर भाषण दिये जाते है। परन्तु, लोगों में सामाजवाद और आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोगों में संकल्पका अभाव होता है। इसीलिए अब भी देश लोकतंत्र, स्वराज और आत्मनिर्भरता की परिभाषा में उलझा है। अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के सदस्यों ने अपने सहसंस्थापक व पूर्व अध्यक्ष लोकनायक जय प्रकाश नारायण को याद करते हुए उनके सपनों को पूरा करने व भारत आत्म निर्भर बनाने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वाल्मीकि प्रसाद सिंह व मंच संचालन महासचिव रविकांत सिंह ने किया। इस अवसर पर संस्था के सदस्यों ने गर्मजोशी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। महासचिव मनोज जादौन, प्रोफेसर वीएस भदौरिया, संदीप राठौर, नीतु त्यागी, साकेतमनी,राजेन्द्र कुमार शर्मा, सत्यभामा त्रिपाठी, डा.सुरेश कुमार सिंह, प्रकाश, आदि लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया।




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