रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है- पार्ट 3
महामारी और
आपदा प्रबंधन अधिनियम की
जिम्मेदारी ग्राम सभा को
सौंप कर ही
गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाया जा
सकता है।
कोरोना महामारी संकट के
दौर में किसान और मजदूरों का हाथ पकड़कर व्यापारी उन्हें गरीबी से बाहर निकालें,ऐसी बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय -समय पर करते रहें हैं। पूँजीवादी
नौकरशाही का प्रबंधन
और कारपोरेट का
प्रधानमंत्री के खिलाफ
असहयोग देश को
बर्बादी के कगार
पर ला खड़ा
कर दिया है।
आज के परिवेश में प्रधान मंत्री के अपील को कारपोरेट द्वारा नकारना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है।‘द्रष्टा’ ने देखा
था कि कुंभ
मेले के दौरान
मजदूरों का पॉव
पखारकर प्रधानमंत्री ने आशीर्वाद
लिया था। श्रम
शक्ति की महिमा
गाकर भी दुनिया
को सुनाया था।
आज वही श्रम
शक्ति ट्रेनों के
निचे कुचल दी
गईं। और अपने
दमनकारी प्रशिक्षण को नौकरशाह
किसान और मजदूरों
पर आजमा रहे
हैं। केन्द्र और
राज्य सरकारों के
मंत्री भी किसान
और मजदूरों का
उपहास कर रहे
हैं।
तमाम मजदूर यूनियनों ने
सरकार पर दमनकारी
और असंवेदनशील होने
का आरोप लगाया
है। इस बीच
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन
कॉग्रेस (इंटक) ने किसान
और मजदूरों के
साथ-साथ सभी
मजदूर यूनियनों से
भ्रष्ट सरकारी तंत्र को
लॉक डाउन करने
की अपील की
है। ‘इंटक’ के
अध्यक्ष प्रदीप कुमार ने
अपील पत्र में
लिखा है कि
‘‘ कोरोना महामारी के कारण
दुनियां में जो
कठिन परिस्थिति पैदा
हुयी है।
उससे हमें जल्द से जल्द निपटना होगा। इसके लिए हमें संगठित होने की आवश्यकता है। जो वर्ग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रुप से सक्षम नहीं है उस वर्ग का जीवन जीना कठिन हो गया है। हमारे देश की सरकार के विभागों में संकट के समय आपसी सामंजस्य की कमी साफ देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री के कथनी और सरकार की करनी में कोई तालमेल नहीं है। इसका अर्थ साफ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा कह रहे हैं वैसा करने की इच्छा नहीं रखते है। पूॅजीवादी और सरकारें हमें एक दूसरे से लड़ाकर, लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजतंत्र की तरह अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती है। उन्होंने यूनियनों को सुझाव देते हुए कहा है कि सभी किसान और मजदूर यूनियन के पदाधिकारी व सभी इंडस्ट्री की यूनियन को संगठित होकर इनकी साजिश को बेनकाब करना है।’’
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1
उससे हमें जल्द से जल्द निपटना होगा। इसके लिए हमें संगठित होने की आवश्यकता है। जो वर्ग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रुप से सक्षम नहीं है उस वर्ग का जीवन जीना कठिन हो गया है। हमारे देश की सरकार के विभागों में संकट के समय आपसी सामंजस्य की कमी साफ देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री के कथनी और सरकार की करनी में कोई तालमेल नहीं है। इसका अर्थ साफ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा कह रहे हैं वैसा करने की इच्छा नहीं रखते है। पूॅजीवादी और सरकारें हमें एक दूसरे से लड़ाकर, लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजतंत्र की तरह अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती है। उन्होंने यूनियनों को सुझाव देते हुए कहा है कि सभी किसान और मजदूर यूनियन के पदाधिकारी व सभी इंडस्ट्री की यूनियन को संगठित होकर इनकी साजिश को बेनकाब करना है।’’
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1
प्रधानमंत्री
ने 24 अप्रैल को
पंचायती राज स्थापना
दिवस पर कहा
है कि गॉंवों
को आत्मनिर्भर बनाना
सरकार की प्राथमिकता
है। उनके इस
पहल का अखिल
भारतीय पंचायत परिषद् ने
सराहना भी की।
लेकिन इस बीच
बेलगाम नौकरशाही और मंत्रियों
के लापरवाही भरे
काम प्रधानमंत्री को
ठेंगा दिखा रहे
हैं। शुरुआत हुयी
मजदूरों को राज्यों
से उनके गॉंव भेजने की। केन्द्र
सरकार ने राज्यों
से संपर्क कर
रेल मंत्रालय को
व्यवस्था सौंपी। सुखी रोटी
खाकर पेट भरने
वाले मजदूरों से
मंत्रालय के किराया
वसूलने के निर्दयी
आदेश ने अमानवीयता
की सारी हदें
पार कर दी।एक महिला को हिन्दू धर्म में
लिए महत्वपूर्ण मंगलसूत्र और पायल को गिरवी रखकर
रेलवे को किराया
चुकाना पड़ा। और
रेलवे मंत्रालय के बेशर्म अधिकारीयों ने
प्रधानमंत्री के'मन की बात' भी सुनने से इंकार कर दिया।
जन आन्दोलनों से जुड़े
अशोक मिश्रा ने
कहा कि सरकार
को नौकरशाहों का
हाल पता है।
कुछ नौकरशाह कामचोर
तो कुछ असंवेदनशील
हैं। ऐसे में
केन्द्र सरकार को मेहनतकश
नागरिकों का जीवन
इन भ्रष्ट अधिकारियों
के हवाले नहीं
करना चाहिए। सरकार
की महामारी और
आपता नियंत्रण की
व्यवस्था इनकी हमेशा
फेल होती रही
है। वहीं महामारी
और आपता के
समय में गॉंवों
ने अपने सीमित
संसाधन में अच्छी
तरह इन विपदाओं
से निपटा है।
उन्होंने कहा कि
केन्द्र सरकार को आपदा
अधिनियम और महामारी
अधिनियम के तहत
आने वाली जिम्मेदारी
को ग्राम सभा
को सौंप देनी
चाहिए। इसके लिए
जो भी बजट
अधिकारियों के जरिये
खर्च होता है
वह सीधा ग्राम
सभा को दिया
जाना चाहिए। तभी
गॉव आत्मनिर्भर बनेगा।
कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया
गॉंधी संवेदनशीलता का
परिचय देते हुए
ऐलान किया कि
मजदूरों का किराया
उनकी पार्टी भरेगी।
मजदूरों की मदद
के लिए व्यवस्था
को विकेन्द्रित करते
हुए पार्टी के
राज्य ईकाईयों को
जिम्मेदारी सौंपी। इसी बीच
मजदूरों को बंधुआ
बनाने की कोशिशे
शुरु हो गयी।
-कर्नाटक की भाजपा
सरकार ने भी
प्रधानमंत्री को ठेंगा
दिखाते हुए प्रवासी
मजदूरों की ट्रेन
को रद्द कर
दिया। और राज्य
के मुख्यमंत्री बीएस
येदुरप्पा ने भी
इस बात की
पूष्टि करते हुए
कहा कि ‘‘बिल्डरों
के साथ बैठक
हुयी है निर्माण
कार्य शुरु होने
वाला है और
उनके पास श्रमिक
नहीं हैं।’’
- इससे पहले एसोसीएशन
फॉर डेमोके्रटिक रिफॉर्म
(एडीआर) के संस्थापक
प्रो.जगदीप एस
छोकर मजदूरों को
न्याय दिलाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट
में जनहित याचिका
दाखिल कर चुके
हैं। लेकिन सुप्रीम
कोर्ट से निराशा
उन्हें मिली।
-5 मई को देश
के प्रमुख मीडिया
संस्थान के हवाले
से खबर मिली
कि चीन छोड़ने
जा रही कंपनीयों
को भारत की
तरफ आकर्षित करने
के लिए मोदी
सरकार 4 लाख 61 हजार हेक्टेयर
उन्हें जमीन देगी।
- मध्य प्रदेश, 5 मई को
उत्तर प्रदेश और
गुजरात की भाजपा
सरकार ने तो,
हद ही कर
दी, मजदूर अधिकार
की रक्षा करने
वाले ‘श्रम कानून’
को ही 3 सालों
के लिए निष्प्रभावी
बना दिया है।
सरकारों ने उद्योगपतियों
को मजदूरों का
शोषण करने की
एक तरह से
मंजूरी दे दी
है। हालांकि यह
असंवैधानिक कदम है।
कुछ यूनियन कोर्ट
का भी रुख
कर रहे हैं।
-7 मई को सुप्रीम
कोर्ट से रिटायर
जज दीपक गुप्ता
ने कहा कि
देश की कानून
व्यवस्था अमीरों और ताकतवरों
के पक्ष में
हो गई है।
ज्यूडीशियरी की दिक्कतें
समझकर इनसे निपटना
चाहिए।
शहरों में काम
करने वाले मजदूरों
को उनके मालिक
मजदूरी नहीं दे
रहे हैं। कई
दिनों तक मजदूरी
की आस में
बैठे मजदूरों के
रुपये खत्म हो
गये थे। अपने
मालिकों और सरकार
की असंवेदनशीलता को
मजदूर भांप रहे
थे। मजदूरों ने
अपने क्षमता पर
भरोसा किया और
पैदल ही अपने
गांव की तरफ
निकल पड़े। आसमान
से ऊंचा हौसला
रखने वाले मजदूरों
का जिस्म थक
कर टूट गया और कुछ मजदूरों ने
सड़क पर ही
दम तोड़ दिया।
एक मजदूर महिला ने
सड़क पर ही
अपने बच्चे को
जन्म दिया। राजनेताओं
के अपने नागरिकों
से किये वायदे,
झूठी फरेबी व्यवस्था
के समन्दर में
डूब गया है।
रईश बाबूओं की
नई पीढ़ी को
मजदूरों के अद्भुत
धैर्य को जीवंत
देखने का अवसर
मिला है।
इन घटनाओं से पता
चलता है कि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के
‘मन की बात’
उनके मातहत मंत्री,
अधिकारी और व्यापारी
दोस्त नहीं सुनते
है। देश के
प्रधानमंत्री ने 24 अप्रैल को
पंचायती राज स्थापना
दिवस के मौके
पर कबूल किया
कि गॉवों को
आत्मनिर्भर बनाना उनकी सरकार
की प्राथमिकता है।
पंचायती राज के
संवैधानिक अधिकार के अनुसार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को
भ्रष्ट अधिकारी तंत्र से
अधिकार छिनकर गॉंवों को
दे देनी चाहिए.....क्रमशः अगले भाग में
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