Saturday, 14 December 2019

नागरिकता संशोधन कानून अखण्ड भारत को खण्ड-खण्ड कर देगा - अखिल भारतीय पंचायत परिषद


अखिल भारतीय पंचायत परिषद ने नागरिकता संशोधन कानून -2019 को बताया असंवैधानिक

महात्मा गांधी ने कहा था कि धर्माश्रित राष्ट्र भावना मुझे मंजूर नहीं है। दो अलग-अलग धर्मों के लोग एक साथ नहीं रह सकते यह सिद्धांत मुझे मंजूर नहीं है। यह अमानवीय है। 


यह केवल महात्मा गांधी का कथन नहीं है बल्कि यह मानव मूल्य है। गांधी से नफरत करने वाले व उन्हें सम्मान देने वाले दोनों को मुसीबत में इसकी आवश्कता पड़ती है। यह एक ऐसा सत्य है जिसे दुनिया स्वीकार करती है। इसी मानव मूल्यों पर घण्टों भाषण दे कर प्रधान मंत्री मोदी दुनिया में शोहरत पा रहे थे। आज इसी मानव मूल्यों को कुचलने पर संयुक्त राष्ट्र संघ उन्हें और उनकी सरकार को भारतीय संस्कृति से खिलवाड़ करने वाला अमानवीय बता रहा है। पूर्वोत्तर में मशाल जुलूस निकल रहे हैं। आर्थिक मंदी से जुझ रहे देश में धार्मिक उन्माद और असहनशीलता चरम पर है। राजनेताओं द्वारा बेटियों पर हमले हो रहे हैं। देश में हैवानियत ताण्डव मचा रहा है। एक दूसरे को सम्मानपूर्वक लोग सूनने को तैयार नही हैं। 

देश में अराजकता के माहौल पर अखिल भारतीय पंचायत परिषद ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की है।  केन्द्र सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए पंचायत परिषद के अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह ने विज्ञप्ति में कहा है कि वर्तमान सरकार ने भारत के स्वाभिमान और गौरव को खत्म करने का काम किया है। हम आस्तिक हैं सभी धर्म के लोगों का सम्मान करते है उनके साथ रहते है। हम ‘सर्वधर्म समभाव’ की बात करने वाले लोग हैं। केन्द्र सरकार ने इस बात को पूरी तरह से नकारते हुए धार्मिक भेदभाव पर आधारित नागरिकता संशोधन कानून पारित किया है। यह विधेयक असंवैधानिक इसलिए है कि इसे पारित करने की प्रक्रिया ही असंवैधानिक है। यदि देश के सांसदो को लगता है कि लोग धार्मिक आधार पर भेदभाव रखते हैं तो संसद एक मसौदा तैयार कर 2,40]000 ग्राम सभाओं, नगर पंचायतों  व मोहल्ला सभाओं से सहमति लें । इसमें समस्त भारतवासियों की भागीदारी होगी। सांसद औसतन 30 प्रतिशत वोट पाकर यह अराजनीतिक फैसला नहीं कर सकते है।

President AIPP-Balmiki Prasad Singh
पंचायत परिषद के अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह ने कहा कि इस देश में संविधान सम्मत पंचायती राज व्यवस्था भी है। जिसे पूरी तरह से केन्द्र ने नजरअंदाज किया है। सांसदों ने नागरिकों की भावनाओं, अकांक्षाओं और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया है। लोगों को एकजूट रखने उनके मौलिक अधिकारों का रक्षण करने के लिए जय प्रकाश नारायण, बलवंत राय मेहता, लाल बहादुर शास्त्री जैसे अखिल भारतीय नेताओं ने पंचायती राज की व्यवस्था दी। इन्हीं नेताओं ने पंचायती राज को मजबूत बना कर भारत में गॉंधी के स्वराज को स्थापित करने के लिए अखिल भारतीय पंचायत परिषद स्थापना की है। यही नेता जो पूर्व में पंचायत परिषद के पदाधिकारी रहे इनका अनुसरण करते हुए सरकार से पूछ रहा हॅूं कि इस विधेयक में हमारा मौलिक अधिकार कहा हैं? हमारी भागीदारी इस कानून में कैसे है? यह कौन बतायेगा हमें? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर हम केन्द्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट में लेंगे। 

राष्ट्रीय सलाहकार रविकांत सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार का नागरिकता संशोधन कानून -2019 अखण्ड भारत को खण्ड-खण्ड कर देगा। कानून की अपनी कुछ मर्यादा है। लोकसम्मति के बिना कानून कामयाब नहीं हो सकता। कानून अधिकार व अवसर देता है। लेकिन वह सामान्यजनों तक नहीं पहुंच सकता है। कोई व्यक्ति यह कहकर भी कानून के चंगुल से नहीं बच सकता कि उसे कानून नहीं मालूम था। सत्य यह भी है कि हर कोई कानून नहीं जानता है। यही अज्ञानता सामान्य नागरिकों की मुसीबत है। इसी अज्ञानता के चलते अपराध बढ़ रहा है। कानून व संविधान के प्रति सामान्य नागरिकों की अज्ञानता ही अपराधी प्रवृत्ति के अफसर और राजनेताओं को पाल-पोष रही है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार कानून के क्षेत्र में हर व्यक्ति के लिए समानता होगी। जिससे नागरिकों को समान सुअवसर मिल सके इसके बगैर समानता की बात करना बेमानी है। 

रविकांत सिंह ने कहा कि व्यक्ति किसी भी धर्म में विश्वास करने वाला हो सकता है, उसकी कोई भी जाती हो सकती है। वह किसी भी प्रदेश या शहर का हो सकता है। लेकिन वह केवल भारतीय नागरिक है। और हम सभी धर्म, वर्ग, जाति, लिंग का भेदभाव किये बिना निरपेक्ष मतदान में भाग लेते हैं। और हम सभी भारतीय नागरिकों के मत का मूल्य भी एक ही होता है। इसलिए हमारे द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधि इस संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ नहीं जा सकते ऐसी संवैधानिक बाध्यता है। और न ही वह सरकार खिलाफ जा सकती है जो ऐसे जन प्रतिनिधियों के समर्थन से नागरिक संशोधन विधेयक पास की है। संवैधानिक पद पर बैठा वह राष्ट्रपति भी अयोग्य है जिसने इस विधेयक पर बिना विचारे अन्तिम मुहर लगाई। ये सभी हमारे जनप्रतिनिधि हैं कोई विधाता नहीं है। इनके अविवेकपूर्ण, द्वेष और घृणा से युक्त फैसले को हम स्वीकार नहीं करेंगे।

रविकांत सिंह ने कहा कि लोकतंत्र की इस व्यवस्था में लोक नहीं है केवल तंत्र है। अल्पमत का आदर और उनकी अस्मिता का संरक्षण ही लोकतंत्र है। सांसद या विधायक भारतीय नागरिक के रुप में हमारा वोट पाकर हमसे ही धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। इसलिए धार्मिक भेदभाव पर आधारित यह नागरिकता संशोधन कानून  ही असंवैधानिक है। ‘अखिल भारतीय पंचायत परिषद’ न केवल सरकार के नागरिकता संशोधन कानून -2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी बल्कि इसे समर्थन देने वाले सांसदो के खिलाफ परिषद आन्दोलन भी खड़ा करेगी। । 



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