Saturday, 30 May 2020

ज़ाम्बिया में फंसे भारतीयों को वापस लाने में मोदी सरकार असमर्थ

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

अपनी मेहनत और कौशल के बल पर विदेशों से लाखों डालर कमाई कर भारत भेजने वाले नागरिकों का अपने देश की सरकारी व्यवस्था ऐसा हाल करेगी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा।
नई दिल्ली / लुसाका 
विदेशों में डंका बजाने वाली मोदी सरकार के विदेश मंत्रालय ने मुसीबत के समय पत्र लिखकर असमर्थता जाहिर कर दी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के कार्यकाल में विदेशों में फंसे अपने नागरिकों को देश में सुरक्षित एयरलिफ्ट कराने वाली सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में रास्ता भटक गयी है। देश में न केवल रेलवे मंत्रालय के रास्ता भटकने की घटना हुयी है बल्कि समूचा सरकारी तंत्र रास्ता भटक चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक पकड़ कमजोर हो चुकी है। अब देशवासियों को भी अहसास हो रहा है कि वह अपने मन में प्रधानमंत्री के प्रति गलतफहमी पाल रखे थे। समय बहुत आगे निकल चुका है और देश की लगभग 98 प्रतिशत की आबादी आर्थिक गुलाम बन चुकी है। अवश्य ही पेट की आग उन्हें इस गुलामी से मुक्त होने से रोक रही है। 

बहरहाल, ‘द्रष्टा’ सरकारी तंत्र के इस भटकाव पर विस्तार से चर्चा करेगा। इससे पहले उस तथ्य की जानकारी देगा जिसके आधार पर सरकर को निर्णय लेना आवश्यक है। पूर्वी अफ्रीका के ज़ाम्बिया से तीन भारतीयों ने मुझे सामुहिक पत्र के साथ 193 लोगों की सूचि भेजी है। सूचि में भारतीयों के नाम व पासपोर्ट संख्या दर्ज है। पत्र भारत सरकार व इंटक के  नाम है। पत्र भेजने वाले ने संदीप जायसवाल ने बताया है कि लगभग 250 भारतीय ज़ाम्बिया में फंसे हैं। हम सभी स्वदेश वापस लौटना चाहते हैं। ज़ाम्बिया के लुसाका स्थित भारतीय दूतावास हमारी मदद नहीं कर रहा है।

संदीप जायसवाल
सामूहिक पत्र लिखने वाले संदीप व श्यामसुन्दर जायसवाल ने बताया है कि 20 मार्च को उड़ान रद्द हो जाने की वजह से वे और उनके मित्र का परिवार ज़ाम्बिया में फंसा है। उन्होंने भारतीय दूतावास और विदेश मंत्रालय को कई पत्र मेल किये लेकिन उनकी ओर से कोई सकारात्मक जवाब अब तक उन्हें नहीं मिला है। श्यामसुन्दर जायसवाल बताते हैं कि ‘‘22 अप्रैल को भारतीय दूतावास को दोबारा पत्र लिखकर उन्होंने औपचारिकता पूरी की है। हम चाहते हैं कि विदेशों में फंसे भारतीयों के लिए सरकार विमान सेवा उपलब्ध कराये। आर्थिक, मानसिक, भावनात्मक और स्वास्थ्य के लिहाज से हमारी स्थिति दयनीय है।  हमने बहुत धैर्य के साथ काम लिया है अब सरकार हमारी हालात को समझे और सरकार हमें तत्काल वापस भारत भेजे।’’

भारत में रह रहे अन्य प्रवासी भारतीयों के परिजनों व दोस्तों ने भी अपनी ओर से विदेश मंत्रालय को पत्र भेजा है । अभय जायसवाल ने 7 मई को मेल द्वारा मंत्रालय से पूछा है कि ‘‘मंत्रालय को डाटा शीट (वापसी के लिए यात्रियों के नाम व पासपोर्ट की जानकारी) दिये एक सप्ताह हो गया है। हम भारतीय दूतावास से संपर्क कर रहे हैं, मेल भेज रहे हैं, फॉलोअप ले रहे हैं लेकिन कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं की जा रही है। उनके भारत वापसी के संम्बंध में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। अब हम सभी अपना धैर्य खो रहे हैं। 
मंत्रालय के संवेदनहीनता पर अभय जायसवाल ने विदेश मंत्रालय से पूछा है कि ‘‘क्या आप समझते हैं कि अब हम किस तरह के आघात का सामना कर रहे हैं? क्या आपके पास कोई विचार है कि हम अपने वित्त का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं? दूतावास अपने देश के लोगों की मदद के लिए बनाया गया है, लेकिन ऐसा लगता है कि कोई भी मदद करने के लिए इच्छुक नहीं है। 


प्रदीप कुमार(राष्ट्रीय अध्यक्ष-इंटक)
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप कुमार ने कहा कि मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के अधिकारी जांबिया में फंसे नागरिकों को लाने में असमर्थता जाहिर कर रहे हैं लेकिन विदेश मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से हम लोग उम्मीद लगाए हैं। हमारी टीम को आश्वासन मिल रहा है कि जल्द ही जांबिया में फंसे नागरिकों को वापस भारत बुलाया जा सकता है। अपने देश के नागरिकों को सुरक्षित लाना केवल सरकार की नहीं बल्कि हमारी भी जिम्मेदारी है। हम लगातार विदेश में फंसे प्रवासी भारतीयों और देश के मजदूरों को उनके घर भेजने का प्रयास कर रहे है।   

नागपुर के हरीश शाह और हरियाणा में रहने वाले हैप्पी चौहान ने बताया कि ज़ाम्बिया में फंसे साथियों की वापसी का कोई सकारात्मक जबाब भारत सरकार नहीं दे पा रही है। 27 अप्रैल को लुसाका  दूतावास पर साथियों ने धरना भी दिया है। कुछ प्रवासी भारतीयों की वीजा अवधि भी समाप्त हो रही है। भारतीय दूतावास की उदासीनता उनके र्धर्य को तोड़ रही है। विदेशी धरती पर अनहोनी होने की आशंका से उनके परिवार वाले भयभीत हैं।

 ‘द्रष्टा’ ने जब इस बाबत मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर से जानकारी चाही तो, उन्होंने कहा कि दूतावास अपने देश के लोगों के सहयोग के लिए बना है। आप हमें शिकायती पत्र भेज दिजिए। 27 अप्रैल ‘द्रष्टा’ने उसी पत्र को दोबारा jsafr@mea.gov.in, fsoffice@mea.gov.in मेल आईडी पर भेजा और फोन पर संम्पर्क किया। बातचीत में मंत्रालय ने कहा कि उन्हें यहां बुलाने की व्यवस्था में यहां भारी कमी है। हम अपनी तैयारी कर रहे हैं तब तक के लिए फंसे लोग धैर्य बनाये रखें। अब विदेश में फंसे साथी कितने दिन धैर्य बनाकर रहेंगे यह स्पष्ट नहीं किया है। 

इससे पहले 14 मई को मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर मुसीबत में फंसे साथियों से सहयोग और समझ के लिए आभार व्यक्त करते हुए धैर्य बनाये रखने के लिए कहा है। इस प्रकार देश के नागरिकों को मंत्रालय ने मेल आईडी covid19@mea.gov.in द्वारा संदेश भेजकर असमर्थता जाहिर करते हुए दूतावास के संपर्क में रहने की सलाह दी थी। अपनी मेहनत और कौशल के बल पर विदेशों से लाखों डालर कमाई कर भारत भेजने वाले नागरिकों का अपने देश की सरकारी व्यवस्था ऐसा हाल करेगी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा। खैर उन्हें देश के हालात के बारे में शायद अधिक जानकारी नहीं होगी। जब उन्हें पता चलेगा कि उनकी गाढ़ी कमाई के टैक्स पर ऐश करने वाले नेताओं और अधिकारियों ने आधारभूत आवश्यकताओं के लिए बनी व्यवस्था को भी ध्वस्त कर रखा है तो, उन्हें बड़ा अफसोस होगा। और यह सोचकर वे अपना गम भूल जायेंगे।   



Wednesday, 20 May 2020

मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ आर्थिक गुलामी की ओर

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है- पार्ट 4
रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

‘आत्मनिर्भर’ एक आध्यात्मिक ज्ञान है। जिसका तात्पर्य है स्वस्थ मन और विवेक से स्वतंत्र निर्णय लेना। बस केवल इतना ही। अर्थात् व्यक्ति का जीवन, उसकी कलात्मकता किसी अन्य के निर्णय से दबाव मुक्त हो। निर्णय ये लेना कि हमें अपने स्वाभिमान को मारकर जीवन निर्वाह नहीं करना है। 

किसान खाद्य मंडियों पर और व्यापारी किसानों पर। मजदूर उद्योगों पर और उद्योगपति मजदूरों पर। बेरोजगार अभिभावकों पर और नेता बेरोजगारों पर। नौकर घरेलु कामों पर और अमीरों की बीबीयां नौकरों पर। इस प्रकार देश के सामान्य नागरिक सरकारी बाबुओं और नेताओं पर निर्भर है। तो, क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वास्तव में ऐसी निर्भरता को खत्म करके आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते हैं? या उनका ये पैकेज देश के नागरिकों को आर्थिक गुलाम बना रहा है।
 
‘द्रष्टा’ कुछ तथ्यों का अवलोकन कर रहा है। पहला ये कि क्या व्यक्ति, संस्थाएं और सरकारें कर्ज लेकर आत्मनिर्भर बन सकती हैं? और कर्ज में डूबोकर सरकार कैसे नागरिकों को आत्मनिर्भर बना सकती है? नागरिकों के अधिकारों का हनन कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्री कैसे भारत को आत्मनिर्भर बना सकते है।  


भारतीय अरबपतियों की संम्पत्ति 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपये बढ़ रही थी। इस दौरान देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संम्पत्ति में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 50 प्रतिशत गरीब आबादी की संम्पत्ति में महज 3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। ऑक्सफेम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के शीर्ष 9 अमीरों की संम्पत्ति 50 प्रतिशत गरीब आबादी के बराबर हैं। ऑक्सफेम ने 2017 में भी यह कहा था कि भारत के कुल संपत्ति के सृजन का 73 प्रतिशत हिस्सा केवल एक प्रतिशत अमीर लोगों के हाथों में है। और देश के एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति बढ़कर 20.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई।

ऑक्सफेम  के साथ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की उसी समय की रिपोर्ट है जब नोटबंदी के बाद साल 2017-18 में भाजपा की कुल आय 1,027 करोड़ रुपये थी। 2018-19 में भाजपा की आय बढ़कर 2,410 करोड़ हो गयी। यानि भाजपा की आय में 134 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी। कांग्रेस पार्टी जो सत्ता में नहीं है उसकी 2018-19 की कमाई में चार गुना बढ़ोत्तरी हो गयी। 2017-18 में कांग्रेस की आय 199 करोड़ रुपये थी। जो 2018-19 में बढ़कर 918 करोड़ हो गयी। यानि कांग्रेस की आय में 361 प्रतिशत की वृद्धि हुयी थी। कर्ज में डूबकर किसान और मजदूर आत्महत्या कर रहे थे। और अमीरों के साथ देश के प्रमुख दलों की दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की हो रही थी।
इस साल संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस कर उनका जीवन नरकीय हो जायेगा। देश में किसान और मजदूर स्वतंत्र निर्णय न ले सकें इसके लिए 2014 से सरकारों की प्राथमिकता किसान और मजदूरों को भिखारी और पूँजीवादियों पर आश्रित बनाने की रही है। ताकि किसान और मजदूरों से स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार छिनने वाली दुष्ट शक्तियां पूॅजीवादी कॉरपोरेट और राजनेताओं के गठबंधन से बने बाजार में 40 करोड़ किसान और मजदूर को आसानी से बेच सकें।


 विजय जावंदिया 
ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग साल 2004 से ही कर्जदार बने हुए हैं। दुनिया के सबसे बेरोजगार, कर्जदार देश की आर्थिक हालात को सुधारने के नाम पर एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने किसान और मजदूरों को कर्जदार बनाने के लिए एक बार फिर 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर चुके हैं। आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ते ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आर्थिक विशेषज्ञों ने इस चमक-दमक के लिफाफे में बंद पैकेट का पोस्टमार्टम कर मोदी सरकार के पैकेज की पोल खोलकर रख दी। 


किसान नेता और कृषि अर्थशास्त्री विजय जावंदिया का मानना है कि सरकार के सुधार के ऐलान बेतुका और गैरजरुरी हैं। इसके पीछे कॉरपोरेट का बहुत बड़ा हित दिपा है। कारोबारियों और जमाखोरों से हो रहे किसानों के शोषण को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम (एएमपीसी) कानून लाया गया था। जो, अनाज बर्बाद होने के डर से किसान जल्दबाजी में अपना पैदावार बेच देते थे। आवश्यक वस्तु अधिनियम हट जाने से न केवल किसानों का शोषण बढ़ेगा बल्कि देश के सामने कालाबाजारी, महंगाई और भुखमरी का खतरा पैदा हो जायेगा। 

आक्सफेम की सीईओ निशा अग्रवाल नें भी कहा था कि 'यह अत्यंत चिंता का विषय है कि देश की अर्थव्यवस्था में हुई वृद्धि का फायदा मात्र कुछ लोगों के हाथों के सिमटा जा रहा है। अरबपतियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था की नहीं बल्कि एक विफल अर्थव्यवस्था की निशानी है। जो मेहनत कर रहे हैं, देश के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, मकान व इमारतों का निर्माण कर रहे हैं, कारखानों में काम कर रहे हैं, वें अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए, दवाओं को खरीदने व अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी तक जुटा पाने के लिए अत्यंत संघर्ष कर रहे हैं। यह बढ़ती खाई, लोकतंत्र को खोखला बनाती है और भ्रष्टाचार व पक्षपात को बढ़ावा देती है।'

किसानों को एक बार फिर कर्ज में दबाकर है और मजदूरोें के जीवन रक्षक अधिकार ‘श्रम एक्ट’ को निष्प्रभावी कर सरकारें शोषण करने के लिए पूॅजीवादियों के सामने किसानों और मजदूरों को परोस रही हैं। ‘द्रष्टा’ देख रहा है कि कोरोना संकट में सरकारें, अपना दायित्व निभाने में फेल हो गयी हैं। मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और न्यायाधीश नागरिकों के प्रति सभी अपने दायित्व निभाने की शपथ लेते हैं। नागरिकों की जानमाल की रक्षा करना सरकारों का दायित्व है। लेकिन इनकी व्यवस्थाएं हादसा का नाम देकर नागरिकों की सड़कों पर हत्याएं कर रही है। अब सरकार से उम्मीद लगाये किसान और मजदूर इस आर्थिक गुलामी की ओर ले जाने वाले पैकेज की चिता सजा रहे हैं और मातम गीत गा रहे हैं।  

 ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के राष्ट्रीय महासचिव हैं )

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बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

डॉ मोहम्मद आरिफ

राजीव गांधी: तुमसा नहीं देखा
पुण्यतिथि 21मई पर विशेष

 नेहरू ने जिस आत्मनिर्भर एवं समाजवादी भारत की परिकल्पना की थी राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उसे मूर्त रूप प्रदान करने की कोशिश की। आज जिस डिजिटल इंडिया की चर्चा है उसकी संकल्पना उन्होंने ही तैयार की थी, इसीलिए उन्हें डिजिटल इंडिया का आर्किटेक्ट एवं सूचना तकनीक और दूर संचार क्रांति का जनक भी कहा जाता है।युवाओं के सशक्तिकरण एवं सियासत तथा राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए  मताधिकार की उम्र 21 से हटाकर 18 करने का श्रेय भी राजीव गांधी के हिस्से में ही जाता है। उन्होनें कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत कर उसकी पहुंच आमजन तक कर दी जिसका लाभ आज कोविड 19 संकट काल में पूरा देश उठा रहा है। विरोधी पार्टियों के  कम्प्यूटरीकरण के  विरोध एवं भारत बंद के आवाहन के बावजूद 1988 में दिल्ली में पहला ए टी एम राजीव गांधी ने ही उद्घाटित किया था। आज बिना इसके सामान्य जीवन की कल्पना ही बेमानी है।

इसे भी पढ़ें: सरकार की उदासीनता, स्थानीय प्रशासन और भू-माफिया का गठजोड़ बन रही पंचायती राज की बाधा

ये वही राजीव गांधी है जिन्होंने 'पंचायती राज' व्यवस्था का पूरा प्रस्ताव नए तरीके से इस मकसद के लिए  तैयार कराया जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण हो गरीब, मजलूम व वंचित समुदाय को अधिकतम लाभ मिल सके। इस वैज्ञानिक शिक्षा और सोंच की बात हम करते है उसे विस्तारित और आधुनिकीकृत करने की योजना 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा राजीव गांधी ने ही की। राजीव गांधी वो सीढ़ी है जिस पर चढ़कर भारत न केवल दूरदराज गांव तक पहुंचा बल्कि अति आधुनिक भी हुआ। आज उनके इन्ही कामों का श्रेय लेने की होड़ सरकारों में देखी जा सकती है।

 राजीव गांधी बेहतरीन प्रधानमंत्री के साथ साथ बेहतर इंसान और आकर्षक व्यक्तित्व के भी धनी और सामाजिक सद्भावना तथा सहअस्तित्व के सिद्धांत के हामी थे। जो भी उनसे मिलता था उनके, मृदुल व्यवहार एवं सहजता का मुरीद हुए बिना नही रहता था। इसीलिये सरकार ने उनकी याद में सद्भावना पखवाड़ा मनाना तय किया था पर आजकल इस पखवाड़े को भी ग्रहण लग गया है।
           बात राजीव गांधी के प्रधानमंत्री  कार्यकाल के अंतिम दिनों की है। सुल्तानपुर का निवासी होने के कारण उनसे मिलना बड़ा आसान  था और कई बार तो उनका सहृदय और निर्छल होना भी मुलाकात में बहुत सहायक साबित होता था। ऐसे ही एक बार सुल्तानपुर डाक बंगले में उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ और बातों बातों में जब उन्हें पता चला कि मैं इतिहास का विद्यार्थी हूँ और मेरी रुचि और अध्ययन आजादी के आंदोलन में है तो बरबस उन्होंने कहा कि क्यों न 1857 की क्रांति में उत्तर प्रदेश की जनता की भागीदारी का पुनर्मूल्यांकन किया जाए। उन्होंने ये भी कहा कि सुल्तानपुर के गाँव 1857 लोगों के संस्मरणो में भरा पड़ा है। मैंने कई बार अपने मंचो पर इसका बखान सुना है और कुछ जानने की कोशिश भी की है बहुत बार सोंचा की इस पर कुछ करना चाहिए लेकिन व्यस्तता के कारण ये मेरी प्राथमिकता में न आ सका ,आपसे मुलाकात से फिर मेरी ये ख्वाहिश जाग उठी। आप कोई योजना बनाएं और विद्वानों से बात करें, किसी तरह की कमी आड़े हाथों नही आएगी। मैंने कहा कि एक विनम्र सुझाव देना चाहता हूँ कि 1857 की क्रांति में मुसलमानों के रोल पर बातें करें तो कैसा रहेगा क्योंकि आज़ादी की लड़ाई में उनकी भागीदारी पर इतिहासकारों ने बहुत ही कम फोकस किया है।   
    राजीव जी का बड़ा ही वैज्ञानिक और सधा हुआ जवाब था कि डॉक्टर साहब देश की कोई भी ऐसी विधा नही है जो मुसलमानों के योगदान के बगैर मुकम्मल हो सके और आज़ादी की लड़ाई तो बिल्कुल नहीं। आधुनिक भारत की जो परिकल्पना है वो, उनके बगैर अधूरी है। परन्तु, हमें इतिहास को समग्रता में देखना होगा कि कैसे धर्म,जाति और भाषा की विभिन्नता के बावजूद सब लोग संकट का सामना एक साथ मिलकर करते है और यही साझी विरासत हमारी ताकत और दुनिया में भारत की पहचान है। इसे बचाये रखने का मतलब, भारतीयता को बचाये रखना है।ये थी उनकी भारतीय समाज और इतिहास की समझ । मैं मंत्रमुग्ध होकर उनकी बात सुनता रहा और अब मेरे पास जवाब देने के लिए शब्द ही नही बचे थे।


हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।

     फिर राजीव जी के एक प्रस्ताव से में चौक पड़ा कि इसे जिलेवार लिखा जाए और सुल्तानपुर का इतिहास लेखन आपके हवाले। हमने इसपर काम करना शुरू किया पर समय की गति कौन जानता है,राजीव जी नही रहे। 21 मई 1991को उनकी हत्या हो गयी। मैं भी अपनी रोजी रोटी कमाने की व्यस्तता में इतना खो गया की यह काम अधूरा रह गया। इधर कुछ दिनों से हमने इस काम की नए सिरे से रूपरेखा बनानी शुरू की है क्योंकि मुझे लगता है कि राजीव गांधी की पैनी निगाहों ने ये भांप लिया था कि आने वाला वक़्त तथ्यपरक इतिहास लेखन के लिए संकट भरा होगा। उनकी ये सोंच आज सच साबित हो रही है और ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने की प्रवित्ति तेजी से बढ़ रही है। उनकी सोंच को अमल के लाना एक कर्ज़ है मुझ पर राजीव जी का, जिसे उतारने के लिए मैं आजकल काम कर रहा हूँ।

  मेरी तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी  इस महान भारतीय सपूत को-------
    
     
(लेखक जाने-माने इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।) 


Monday, 11 May 2020

पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?


रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है- पार्ट 3

 महामारी और आपदा प्रबंधन अधिनियम की जिम्मेदारी ग्राम सभा को सौंप कर ही गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

कोरोना महामारी संकट के दौर में किसान और मजदूरों का हाथ पकड़कर व्यापारी उन्हें गरीबी से बाहर निकालें,ऐसी बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय -समय पर करते रहें हैं।  पूँजीवादी नौकरशाही का प्रबंधन और कारपोरेट का प्रधानमंत्री के खिलाफ असहयोग देश को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा कर दिया है। आज के परिवेश में प्रधान मंत्री के अपील को कारपोरेट द्वारा नकारना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है।‘द्रष्टाने देखा था कि कुंभ मेले के दौरान मजदूरों का पॉव पखारकर प्रधानमंत्री ने आशीर्वाद लिया था। श्रम शक्ति की महिमा गाकर भी दुनिया को सुनाया था। आज वही श्रम शक्ति ट्रेनों के निचे कुचल दी गईं और अपने दमनकारी प्रशिक्षण को नौकरशाह किसान और मजदूरों पर आजमा रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्री भी किसान और मजदूरों का उपहास कर रहे हैं। 

तमाम मजदूर यूनियनों ने सरकार पर दमनकारी और असंवेदनशील होने का आरोप लगाया है। इस बीच इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कॉग्रेस (इंटक) ने किसान और मजदूरों के साथ-साथ सभी मजदूर यूनियनों से भ्रष्ट सरकारी तंत्र को लॉक डाउन करने की अपील की है।इंटकके अध्यक्ष प्रदीप कुमार ने अपील पत्र में लिखा है कि ‘‘ कोरोना महामारी के कारण दुनियां में जो कठिन परिस्थिति पैदा हुयी है।
उससे हमें जल्द से जल्द निपटना होगा। इसके लिए हमें संगठित होने की आवश्यकता है। जो वर्ग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रुप से सक्षम नहीं है उस वर्ग का जीवन जीना कठिन हो गया है। हमारे देश की सरकार के विभागों में संकट के समय आपसी सामंजस्य की कमी साफ देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री के कथनी और सरकार की करनी में कोई तालमेल नहीं है। इसका अर्थ साफ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा कह रहे हैं वैसा करने की इच्छा नहीं रखते है। पूॅजीवादी और सरकारें हमें एक दूसरे से लड़ाकर, लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजतंत्र की तरह अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती है। उन्होंने यूनियनों को सुझाव देते हुए कहा है कि सभी किसान और मजदूर यूनियन के पदाधिकारी सभी इंडस्ट्री की यूनियन को संगठित होकर इनकी साजिश को बेनकाब करना है।’’ 

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1


प्रधानमंत्री ने 24 अप्रैल को पंचायती राज स्थापना दिवस पर कहा है कि गॉंवों को आत्मनिर्भर बनाना सरकार की प्राथमिकता है। उनके इस पहल का अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने सराहना भी की। लेकिन इस बीच बेलगाम नौकरशाही और मंत्रियों के लापरवाही भरे काम प्रधानमंत्री को ठेंगा दिखा रहे हैं। शुरुआत हुयी मजदूरों को राज्यों से उनके गॉंव भेजने की। केन्द्र सरकार ने राज्यों से संपर्क कर रेल मंत्रालय को व्यवस्था सौंपी। सुखी रोटी खाकर पेट भरने वाले मजदूरों से मंत्रालय के किराया वसूलने के निर्दयी आदेश ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी।एक महिला को हिन्दू धर्म में लिए महत्वपूर्ण मंगलसूत्र और पायल को गिरवी रखकर रेलवे को किराया चुकाना पड़ा। और रेलवे मंत्रालय के बेशर्म अधिकारीयों ने प्रधानमंत्री के'मन की बात' भी सुनने से इंकार कर दिया।  

जन आन्दोलनों से जुड़े अशोक मिश्रा ने कहा कि सरकार को नौकरशाहों का हाल पता है। कुछ नौकरशाह कामचोर तो कुछ असंवेदनशील हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार को मेहनतकश नागरिकों का जीवन इन भ्रष्ट अधिकारियों के हवाले नहीं करना चाहिए। सरकार की महामारी और आपता नियंत्रण की व्यवस्था इनकी हमेशा फेल होती रही है। वहीं महामारी और आपता के समय में गॉंवों ने अपने सीमित संसाधन में अच्छी तरह इन विपदाओं से निपटा है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को आपदा अधिनियम और महामारी अधिनियम के तहत आने वाली जिम्मेदारी को ग्राम सभा को सौंप देनी चाहिए। इसके लिए जो भी बजट अधिकारियों के जरिये खर्च होता है वह सीधा ग्राम सभा को दिया जाना चाहिए। तभी गॉव आत्मनिर्भर बनेगा।

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गॉंधी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए ऐलान किया कि मजदूरों का किराया उनकी पार्टी भरेगी। मजदूरों की मदद के लिए व्यवस्था को विकेन्द्रित करते हुए पार्टी के राज्य ईकाईयों को जिम्मेदारी सौंपी। इसी बीच मजदूरों को बंधुआ बनाने की कोशिशे शुरु हो गयी।
-कर्नाटक की भाजपा सरकार ने भी प्रधानमंत्री को ठेंगा दिखाते हुए प्रवासी मजदूरों की ट्रेन को रद्द कर दिया। और राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने भी इस बात की पूष्टि करते हुए कहा कि ‘‘बिल्डरों के साथ बैठक हुयी है निर्माण कार्य शुरु होने वाला है और उनके पास श्रमिक नहीं हैं।’’
- इससे पहले एसोसीएशन फॉर डेमोके्रटिक रिफॉर्म (एडीआर) के संस्थापक प्रो.जगदीप एस छोकर मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर चुके हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से निराशा उन्हें मिली।

-5 मई को देश के प्रमुख मीडिया संस्थान के हवाले से खबर मिली कि चीन छोड़ने जा रही कंपनीयों को भारत की तरफ आकर्षित करने के लिए मोदी सरकार 4 लाख 61 हजार हेक्टेयर उन्हें जमीन देगी।

- मध्य प्रदेश, 5 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात की भाजपा सरकार ने तो, हद ही कर दी, मजदूर अधिकार की रक्षा करने वालेश्रम कानूनको ही 3 सालों के लिए निष्प्रभावी बना दिया है। सरकारों ने उद्योगपतियों को मजदूरों का शोषण करने की एक तरह से मंजूरी दे दी है। हालांकि यह असंवैधानिक कदम है। कुछ यूनियन कोर्ट का भी रुख कर रहे हैं। 

-7 मई को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर जज दीपक गुप्ता ने कहा कि देश की कानून व्यवस्था अमीरों और ताकतवरों के पक्ष में हो गई है। ज्यूडीशियरी की दिक्कतें समझकर इनसे निपटना चाहिए।

शहरों में काम करने वाले मजदूरों को उनके मालिक मजदूरी नहीं दे रहे हैं। कई दिनों तक मजदूरी की आस में बैठे मजदूरों के रुपये खत्म हो गये थे। अपने मालिकों और सरकार की असंवेदनशीलता को मजदूर भांप रहे थे। मजदूरों ने अपने क्षमता पर भरोसा किया और पैदल ही अपने गांव की तरफ निकल पड़े। आसमान से ऊंचा हौसला रखने वाले मजदूरों का जिस्म थक कर टूट गया और कुछ मजदूरों ने सड़क पर ही दम तोड़ दिया। एक मजदूर महिला ने सड़क पर ही अपने बच्चे को जन्म दिया। राजनेताओं के अपने नागरिकों से किये वायदे, झूठी फरेबी व्यवस्था के समन्दर में डूब गया है। रईश बाबूओं की नई पीढ़ी को मजदूरों के अद्भुत धैर्य को जीवंत देखने का अवसर मिला है

इन घटनाओं से पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केमन की बातउनके मातहत मंत्री, अधिकारी और व्यापारी दोस्त नहीं सुनते है। देश के प्रधानमंत्री ने 24 अप्रैल को पंचायती राज स्थापना दिवस के मौके पर कबूल किया कि गॉवों को आत्मनिर्भर बनाना उनकी सरकार की प्राथमिकता है। पंचायती राज के संवैधानिक अधिकार के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भ्रष्ट अधिकारी तंत्र से अधिकार छिनकर गॉंवों को दे देनी चाहिए.....क्रमशः अगले भाग में   


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द्रष्टा देगा मुक्ति

संपादकीय देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों...