-जनप्रतिनिधि के चुनाव के लिए दो से कम बच्चे और शैक्षणिक योग्यता ही केवल मानदण्ड नहीं हो सकता है। कोई जरुरी नहीं है कि शैक्षणिक योग्यता रखने वाला ही जनप्रतिनिधि चरित्रवान, विवेकी, कर्तव्यनिष्ठ और सही और गलत में अन्तर जानने वाला हो।
- केन्द्रिय मंत्री संजीव बालियान की अधुरी सलाह त्रिस्तरीय पंचायत और केन्द्र सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को बर्बाद कर सकती है।’’
रविकांत सिंह |
यह एक कॉमन फैक्टर है कि मतदाता उसी उम्मीदवार को अपना मत देता है जिसका नजरिया समाजहित और देशहित में होता है। इसी आधार पर भारत में विधान सभा, लोक सभा, ग्राम पंचायत और नगर पंचायत के जनप्रतिनिधियों का चुनाव होता है। राज्य सरकार नहीं तय कर सकती की इस गॉव के पंचायत चुनाव में उम्मीदवार कौन होगा और उसकी शैक्षणिक योग्यता कितनी होनी चाहिए? अगर यह सरकारें तय करेंगी तो चुनाव मात्र एक आडम्बर और महत्वहीन हो जायेगा। इस तरह देखा जाये तो, पंचायती चुनाव का अधिकार यूपी सरकार ग्रामीणों से छिन रही है। सरकार की प्रक्रिया असंवैधानिक है। ’’
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महात्मा गॉंधी ने कहा था कि ‘‘आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक जीवन में नागरिक समान अधिकार भोगेगा, जिसमें न तो कोई शोषण का स्थान होगा और न सामाजिक ऊंच-नीच की भावना होगी। और अधिकार व सत्ता चाहे वह आर्थिक हो या राजनीतिक समाज के चन्द हाथों में नहीं होगी। वह एक वर्गहीन जातिहीन समाज होगा।’’
रविकांत सिंह ने कहा कि ‘‘ महात्मा गॉंधी के ग्राम स्वराज्य की संकल्पना को ख़त्म करने की सोच वाले वाले इस बात को नहीं समझ पायेंगे। भविष्य से डरे लोग अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए ऐसे दिशाहीन और विवेकहीन मंत्रियों की सलाह को महत्व देते होंगे। पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों की योग्यता का निर्धारण ग्राम सभा का अधिकार है। इसके लिए सरकार को अपने संवैधानिक टकराव वाले अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अभी मुख्य मंत्री ने निर्णय नहीं लिया है लेकिन इस बाबत जल्द ही अखिल भारतीय पंचायत परिषद् राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में राज्य प्रतिनिधियों के साथ बैठक करेगी और उत्तर प्रदेश सरकार की इस दिशाहीन कृत्य को रोकने के लिए केन्द्र सरकार के पंचायतीराज मंत्रालय से बात करेगी। और सरकार को बतायेगी कि किस प्रकार केन्द्रिय मंत्री संजीव बालियान की सलाह केन्द्र सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को बर्बाद कर सकती है।’’
केन्द्रिय मंत्री संजीव बालियान |
जनप्रतिनिधि के चुनाव के लिए दो से कम बच्चे और शैक्षणिक योग्यता ही केवल मानदण्ड नहीं हो सकता है। कोई जरुरी नहीं है कि शैक्षणिक योग्यता रखने वाला ही जनप्रतिनिधि चरित्रवान, विवेकी, कर्तव्यनिष्ठ और सही और गलत की समझ रखने वाला हो। और ऐसे जनप्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिए संसद में मौजूद 30 फीसदी अपराध के आरोपी सांसदों और यूपी के 26 फीसदी विधायकों ने क्या कानून पारित किया है ? जनसंख्या नियंत्रण व उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता की आड़ में सरकार ग्रामीणों के अधिकार नहीं छिन सकती है। मेरी सलाह है कि यदि सरकार के पास निर्णय लेने की क्षमता है तो यह तय करे की चरित्रहीन उम्मीदवार, भ्रष्टाचार का दोषी, हत्या के अपराधी और उनके परिवार वाले चुनाव नहीं लड़ सकते हैं ।
समाज को संगठित होने नहीं दिया
महात्मा गॉंधी के ग्राम स्वराज्य की संकल्पना से प्रेरित होकर भारत सरकार ने सन् 2 अक्टूबर 1956 में त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की थी। महात्मा गॉधी का मानना था कि गॉव के लोग आपस में मिलजुलकर, संगठित होकर जीवन को सरल बनाये। अशान्ति पैदा करने वाले गैरजरुरी संघर्षों से मुक्त होकर देश के चहुंमुखी विकास के लिए ग्रामीण अपना योगदान दें। लेकिन घृणा, द्वेष और स्वार्थ से भरे व्यक्तियों ने समाज को संगठित होने ही नहीं दिया। और आज भी वे अशान्ति और गैरजरुरी बातों को समाज पर थोप रहे हैं। ऐसे व्यक्ति सभी राजनीतिक दलों और समाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं।
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अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के संस्थापक बलवंत राय मेहता और लोक नायक जय प्रकाश नारायण के अथक प्रयासों के बाद 24 अप्रैल 1992 को पंचायतों को संवैधानिक दर्जा हासिल हुआ। पंचायतीराज की जनक और संवैधानिक दर्जा दिलाने वाली अखिल भारतीय पंचायत परिषद् को भी ऐसे ही लोगों ने महत्वहीन करने की कोशिश की है। लेकिन हम संभल गये है। अब इनकी दाल गलने नहीं देंगे। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘आत्मनिर्भर भारत ’अभियान की सफलता के लिए गॉंवो को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते है तो, वहीं उनके मंत्री और राज्य सरकारें ग्राम सभा के अधिकारों का दमन करने वाली षड़यंत्रकारी योजना बना रहे हैं।
अधिकतर गॉवों में अशिक्षित लोग हैं
महासचिव ने कहा कि भ्रष्ट अफसरशाही लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करने की सदैव से कोशिश करते रहे हैं। पंचायतें और ग्राम सभा को अधिकार उनके लूट-खसोट में बाधक हैं। इसलिए अभी तक भ्रष्ट नेता और अफसर ग्राम सभाओं के अधिकारों का दमन करते रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये ऐसे मंत्री भी गॉवों की सामाजिक स्थिति जानने में असक्षम साबित हो रहे है।
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यूपी के 4 जिलों की ग्रामीण आबादी की साक्षरता दर लगभग 30-40 और 15 जिलों की 41-49 प्रतिशत है। कई ब्लाकों (खण्ड) के अधिकतर गॉवों में अशिक्षित लोग हैं। ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार ये बताये कि ‘‘क्या ग्राम प्रधान का उम्मीदवार भी सरकार के लोग तय करेंगे और गॉव वालों को उसका चुनाव करने के लिए विवश किया जायेगा? गॉव वालों को शिक्षित और जागरुक करने में ऐसे असफल राजनेता ग्रामीणों पर ठीकरा फोड़ने की आदत से बाज नहीं आ रहे हैं।’’
(यह संस्थागत प्रतिनिधि का बयान है कृपया पाठक द्रष्टा न्यूज़ से न जोड़ें )