Thursday, 24 September 2020

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने के लिए इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना बनाने वाले सांसद भला कैसे कृषि बिल का विरोध कर पाते? 

सरकार ने कृषि विधेयक 2020 को संसद के दोनों सदनों ने हंगामे के बीच पारित कर दिया है। कृषि विधेयक की खामियों को लेकर कुछ किसान आन्दोलन कर रहे हैं तो, कुछ किसान विधेयक का समर्थन। इस बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसानों के लिये फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था जारी रहेगी। इसके अलावा, प्रस्तावित कानून राज्यों के कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानूनों का अतिक्रमण नहीं करता है। ये विधेयक यह सुनिश्चित करने के लिये हैं कि किसानों को मंडियों के नियमों के अधीन हुए बिना उनकी उपज के लिये बेहतर मूल्य मिले। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिले, इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और निजी निवेश के साथ ही कृषि क्षेत्र में अवसंरचना का विकास होगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

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किसान भ्रम में हैं कि 30 प्रतिशत अपराध में लिप्त सांसद उनके हितों की लड़ाई लड़ेंगे। पूँजीवादी सत्ता से लड़ने के लिए आत्मबल की आवश्यकता होती है। मनी और मसल पावर के जरिये प्राप्त सत्ता के मद में चूर सांसदों ने जनता के सूख-दुख से दूरी बना रखी है। सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के नागरिकों से एक बार भी यह कह सकने की हिम्मत नहीं जुटा सकते कि आप मेरे कार्यों को कितना पसंद करते हैं?  सांसद जनता का सामना करने से डरते हैं। संसद में उछल-कूद से अधिक जनसमर्थ सांसद के लिए जरुरी है। जनता से दूर सांसद अपना जनाधार खो चुके हैं। जनाधार खो देने वाले नेता के पास आत्मबल नहीं होता है। और आत्मबल के बगैर विजय नहीं मिलती है। 

‘द्रष्टा’ ने  ‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’ शीर्षक लेख में स्पष्ट बताया था कि  इलेक्टोरल बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा 210 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। भाजपा की आॅडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में उसकी 2,410 करोड़ रुपये की आमदनी में से 1,450 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए आए। ये भाजपा की कुल आय का लगभग 60 प्रतिशत है। जबकि कांग्रेस को 2017-18 की पाप की कमाई हासिल करने वाली प्रतियोगिता में मात्र पांच करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त हुए थे। साल 2018-19 में चुनावी बॉन्ड के जरिए कांग्रेस को 383 करोड़ रुपये की आय हुई जो कुल आय की लगभग 48 प्रतिशत है।  


किसान को वास्तव में यह खेल समझ में नहीं आ रहा है या वह अपनी अज्ञानता के कारण खेल को समझने का सिर्फ दिखावा कर रहे हैं। 65 प्रतिशत किसान परिवार से आने वाले सांसदों का पूॅजीवादी ताकत के आगे घूटने टेकना पूर्व से ही निश्चित है। करोड़ों रुपये खर्च कर चुनाव में जीते सांसदों को गरीब किसान भला क्या दे सकते हैं? राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपये के चुनावी चन्दा किसान नहीं देते यह स्पष्ट है। कॉग्रेस और बीजेपी ने चुनावी बॉंड के जरिये करोड़ों का चन्दा पूँजीपतियों से हासिल किया है। उपरोक्त जानकारी को खुद राजनीतिक दलों ने देश को बताया है। ‘द्रष्टा’ इस विषय पर कई बार लिख चुका है। पूँजीपतियों का करोड़ों रुपये चन्दा खाकर भला किसानों की लड़ाई सांसद कैसे लड़ेंगे? किसान वाकई में बहुत भोले हैं या उन्हें भी सत्ता का खेल मनोरंजक लग रहा है? 

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राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने के लिए इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना बनाने वाले सांसद भला कृषि बिल का कैसे विरोध कर पाते? कुछ सांसदों ने विरोध किया तो उन्हें उप सभापति ने निलंबित कर दिया। सत्ता ने देश की आम आवाम को धर्म और जाति के नाम पर लड़ाकर कृषि बिल पर बेवकूफ बनाया। आन्दोलन के झण्डे और और मॉंगपत्र बांटने वाले सत्ता के पिछलग्गु किसान नेता और उनके रहनुमाओं ने कृषि बिल 2020 को कारपोरेट की झोली में डाल दिया। देश की 65 प्रतिशत आबादी खेती करती है और उपभोग भी करती है। कारपोरेट कम्पनियां जिसके पास अकूत दौलत है वे किसानों से खरीदकर उन्हें और अकृषक वर्ग को मनमाने तरीके से खाद्यान्न बेचेंगे। गरीब और पूँजीवादियों की इस प्रतियोगिता में जमाखोरी और कालाबाजारी जमकर होगा।  बहरहाल, सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना। सत्ता ने व्यापार की एक असंतुलित व्यवस्था की  शुुुरुआत कर दी है। जो देश की भावी पीढ़ी को अन्धकार में ढकेल देगा।

----- क्रमशः जारी है.........

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Tuesday, 8 September 2020

गजनवी की नाजायज औलादें -1

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

हमें कोरोना और साहेब से नहीं, भविष्य के प्रश्नों से डरना चाहिए.....

नेता कर्ज माफ कर कमीशन की बख्शीश (टिप ऑफ़ ) लेने के लिए व्यापारियों के  पीछे चक्कर लगाते रहते हैं। सीधा-साधा किसान ऐसी चालाकी न ही कर पाता है और न ही समझ पाता है। 

पंजाब नेशनल बैंक से लगभग 1,40,00 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी कर विदेश भाग जाने वाले नीरव मोदी की ब्रिटेन की अदालत में 7 सितंबंर से प्रत्यर्पण की सुनवाई चल रही है। वह मार्च में गिरफ्तारी के बाद से ही वह लंदन की जेल में है। भारत सरकार ने नीरव के प्रत्यर्पण को लेकर लंदन स्थित वेस्टमिंस्टर अदालत में मुकदमा दायर किया हुआ है। नीरव मोदी के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई कर रही ब्रिटेन की एक अदालत ने सोमवार को मुंबई की आर्थर रोड जेल के एक नए वीडियो की समीक्षा की है। भारत सरकार द्वारा लगाए गए धनशोधन और धोखाधड़ी के आरोपों में अगर भगोड़े हीरा कारोबारी का प्रत्यर्पण होता है तो उसे उसी जेल में रखा जाएगा। शराब का धन्धेबाज विजय माल्या को भी सुप्रीम कोर्ट ने 5 अक्टूर को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। ललित मोदी, डॉन दाऊद इब्राहिम के प्रत्यर्पण पर सरकार अभी भी गंभीर नहीं है। 

‘                                           द्रष्टा’ देख रहा है कि किस प्रकार विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी, सुब्रत रॉय जैसे गजनवी की नाजायज औलादें देश को खोखला करने में जुटी हैं। देश की अर्थव्यवस्था में हुई वृद्धि का फायदा मात्र कुछ लोगों के हाथों के सिमटा जा रहा है। अरबपतियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था की नहीं बल्कि एक विफल अर्थव्यवस्था की निशानी है। जो मेहनत कर रहे हैं, देश के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, मकान व इमारतों का निर्माण कर रहे हैं, कारखानों में काम कर रहे हैं, वें अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए, दवाओं को खरीदने व अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी तक जुटा पाने के लिए अत्यंत संघर्ष कर रहे हैं। यह बढ़ती खाई, लोकतंत्र को खोखला बनाती है और भ्रष्टाचार व पक्षपात को बढ़ावा देती हैं। सत्ता और व्यापार का ये गठबंधन भारत की आम आवाम के जीवन को जल्द से जल्द अपनी मुठ्ठी में कर लेना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कथनी भारत को आत्मनिर्भर बनाने की है लेकिन उनकी सरकार की करनी देश की संम्पदा और मानव संसाधन को गजनवी की नाजायज औलादों के हवाले कर रही है।

महात्मा गॉंधी का एकमात्र लक्ष्य लोगों को आत्मनिर्भर बनाना था। उनका मानना था कि आत्मनिर्भर व्यक्ति गुलामी स्वीकार नहीं करता है। महात्मा गॉंधी का स्वच्छता अभियान और चरखा द्वारा खादी कपड़े बनाना आत्मनिर्भरता की ओर प्रमुख कदम था। महात्मा गॉंधी, अंग्रेजी हुकुमत को बताना चाहते थे कि देश के लोग दैनिक जरुरतों के लिए ईस्ट इंडिया कंम्पनी पर निर्भर नहीं हैं। इसीलिए उन्होंने चरखा आन्दोलन, स्वच्छता अभियान, दाण्डी मार्च किया और नमक बनाकर अंग्रेजी कानून तोड़ा। फिर असहयोग आन्दोलन छेड़ा। महात्मा गॉंधी ब्रिटिश हुकुमत की रिढ़ तोड़ देने के लिए भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अब न देश में अंग्रेजों की हुकुमत है न ईस्ट इंडिया कंम्पनी और न ही महात्मा गॉंधी जैसा नेतृत्व है। 

ऐसे चोर धोखेबाजों से प्रधानमंत्री मोदी का क्या सरोकार है ?

लेकिन बदली परिस्थितियां अंग्रेजी सरकार से भी भयावह है। अब लड़ाई अपनों से है। अंग्रेजी हुकुमत जैसी सोच रखने वाले, गजनवी जैसी लुटेरी भारतीय कंम्पनियों से है। अब दूसरे गुजराती नेता व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मनिर्भर भारत बनाकर किसकी रिढ़ तोड़ना चाहते हैं? गजनवी की उन नाजायज औलादों की जिन्होंने धोखा देकर करोड़ो रुपये बैंको से हड़प लिये और भाग गये अपने बाप अंग्रेजों की शरण में। उन अंग्रेजों के पास जिनके पूर्वजों ने हमारे देश को गुलाम बनाया था। ऐसे चोर धोखेबाजों से प्रधानमंत्री मोदी का क्या सरोकार है जो, इनके धोखे से लिए कर्ज को उनकी सरकार ने माफ कर दिये? नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या जैसे सैकड़ों लुटेरों की रीढ़ प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं तोढ़ी? 

साल 2018 में दावोस के मंच से  ऑक्सफेम  इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानिमा ने राजनीतिक और व्यवसायिक नेताओं से आग्रह किया था कि अमीर और गरीब लोगों के बीच बढ़ रही खाईं को पाटने के लिए तत्काल कदम उठाएं क्योंकि यह अर्थव्यवस्थाओं को चौपट कर रही है और विश्व भर में जनाक्रोश पैदा कर रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि 2018 से 2022 के बीच भारत में रोजाना 70 नये करोड़पति बनेंगे।


किसान खेती करने के लिए कर्ज लेता है। कर्ज की भरपाई करने में देर होती है तो, सरकारी तंत्र किसानों की जान ले लेता है। बैंको के कर्ज न चुका पाने के कारण ही भारतीय किसान खुदकुशी करते हैं। यदि किसान सरकार पर भरोसा कर बैंक में लोन के लिए आवेदन भी कर दें तो, क्या उन्हें बैंक बिना गारंटी लिए कर्ज दे देगा? बैंको की निगाहें किसान की जमीनों पर है। बैंक अपनी वसूली के लिए उनकी जमीन और मकान गारंटी के तौर पर रख लेंगे। लोन के लिए कमीशन भी लेंगे और फिर उसी दुष्चक्र में किसान फंस जायेंगे जहां से, सरकार उन्हें निकालने की बात कर रही है। इस प्रकार के कर्ज देकर सरकार की नीयत किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की है या गुलाम बनाने की। 

पूूँजीपति चुनावी बॉंड के जरिये अपनी मर्जी की पार्टी को चंदा देते हैं।

'रिवॉर्ड वर्क, नॉट वेल्थ' शीर्षक से जारी सर्वेक्षण पर आक्सफेम ने कहा कि कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था अमीरों को और अधिक धन एकत्र करने में सक्षम बनाती है और वहीं लाखों करोड़ों लोग जिंदगी जीने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। इस सर्वेक्षण में 10 देशों के 70,000 लोगों को शामिल किया गया है। डब्ल्यूईएफ की बैठक में शामिल


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आक्सफेम इंडिया ने आग्रह किया था कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था सभी के लिए काम करती है न कि सिर्फ चंद लोगों के लिए. उन्होंने सरकार से श्रम आधारित क्षेत्रों को प्रोत्साहित करके समावेशी वृद्धि को बढ़ावा देने, कृषि में निवेश करने और सामाजिक योजानाओं का प्रभावी तरह से क्रियान्वयन करने के लिए कहा है।

कर्ज लेने के मामले में उद्योगपति बहुत चालाक हैं। मोदी सरकार में खासकर गौतम अडानी, मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी प्रधानमंत्री के आँखों के तारे बनकर रहते हैं। ऐसे पूूँजीपति चुनावी बॉंड के जरिये अपनी मर्जी की पार्टी को चंदा देते हैं। उन्हें राजनीतिक ओहदा दिलवाते हैं। और फिर उनके जरिये अपना करोड़ों रुपये का कर्ज आसानी से माफ करा लेते हैं। बल्कि नेता कर्ज माफ कर कमीशन की बख्शीश (टिप ऑफ़  लेने के लिए व्यापारियों के  पीछे चक्कर लगाते रहते हैं। सीधा-साधा किसान ऐसी चालाकी न ही कर पाता है और न ही समझ पाता है। और नेता भी उनकी कोई मदद नहीं करते है। किसानों से नेता को वोट के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होता है। नेता हवाई बातों से ही किसानों और मजदूरों के वोट हासिल कर लेतें है। इसलिए सरकारें उन्हें आत्मनिर्भर नहीं होने देती हैं। इस प्रकार गजनवी की नाजायज औलादें देश को लुटती रहती हैं और किसान आत्महत्या करता रहता है।

............क्रमशः जारी है


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