रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
किसान नेताओं का कहना है कि ‘‘हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी। सरकार की नीयत में खोंट है। सरकार हमारी आने वाली नस्ल को कारपोरेट का गुलाम बनाना चाहती है। कम्पनीयों के पास बहुत पूँजी है वे हमारे व्यवसाय को हड़पना चाहते हैं। हमारे आधुनिक चकाचौंध में जो भाई बन्धु गुमराह हो गये हैं और जो शहरों में निवास करते हैं। महंगाई से उनका हमसे अधिक नुकसान हो रहा है। उन्हें अपनी पुरानी पीढ़ी और व्यवसाय को याद करना चाहिए और सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने स्वाभिमान को जगाकर हमारा साथ देना चाहिए।’’
केन्द्र सरकार के विवादित कृषि बिल 2020 ने किसानों के जज्बात को बेकाबू कर दिया है। दिलों में गम-ओ-गुस्से का तुफान लिए किसानों ने दिल्ली घेर रखा है। गुस्से का इजहार न हो पाने की बेचैनी किसानों में दिखने लगी है। मानवीय पीड़ा से बे-खबर और बे-अदब शहरी लोग किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही कह रहे हैं। कृषि बिल 2020 में संशोधन के सरकारी प्रस्ताव को किसानों ने नामंजूर करते हुए ‘बहिष्कार आन्दोलन’ की धमकी भी दी है। गौतम अडानी, मुकेश अंबानी व अनिल अंबानी की रिलायंश और बाबा रामदेव की पतंजलि आदि कम्पनीयों के उत्पादों का इस्तेमाल न करने की किसान संगठनों ने देशवासियों से अपील की है।
अवश्य पढ़ें:कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश
देश की 65 प्रतिशत आबादी खेती करती है। इस खेती की जरुरतों के लिए कुछ आबादी यंत्र-सयंत्र आदि उत्पाद बनाते है। और बाकि इससे जुड़े फूड प्रोसेसिंग आदि व्यवसाय से जुड़े हैं। यानि भारत की लगभग 95 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रुप से कृषि क्षेत्र से जुड़ी है। ये आबादी उत्पादक है तो, उपभोक्ता भी है। किसान कम दाम में जो फसल बेंचते हैं वही फसल बाजार में अधिक दाम पर उपभोक्ता के रुप में खरीदते हैं। अब कारपोरेट इस बड़े व्यवसायिक क्षेत्र पर कब्जा चाहता है। कृषि उत्पादन के व्यवसाय में बेलगाम कार्पोरेट की दखल से 95 प्रतिशत नागरिकों की आर्थिक हालत बिगड़ने का खतरा है।
असमान लोगों की प्रतियोगिता
कृषि बिल 2020 के जरिए सरकार ने कारपोरेट के लिए रेड कार्पेट बिछा दिया है। जैसा कि प्रतियोगितावादी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो देश की अर्थव्यवस्था जोर पकड़ेगी और हमारा भारत 5 ट्रीलियन डालर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जायेगा। लेकिन वे भूल रहे हैं कि असमान लोगों में प्रतियोगिता नहीं होती और जो असमान लोगों में प्रतियोगिता कराता है वह अन्यायी व्यक्ति कहलाता है। कारपोरेट पूँजीपति और किसान कम पूूंजीवाला नागरिक, अभाव में काम करने वाला किसान और साधन सम्पन्न कारपोरेट, एक धुर्त, चालाक, ठग व व्यवसाय के दांव पेंच, का माहिर, खिलाड़ी और दूसरा सीधा, सरल, संघर्षशील व शोषित किसान, एक सत्ता के करीब और दूसरा सत्ता से दूर, एक धन के लिए धर्म को ठोकर मारता है और दूसरा धर्म को ठुकराकर धन कमाता है। किसान और कारपोरेट में दूर-दूर तक कोई समानता नहीं। तो, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कैसे किसानों को प्रतियोगिता के लिए कारपोरेट के सामने बाजारु अखाड़े में खड़ा कर रहे हैं।
किसान आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकारीतंत्र ने बहुत से षड़यंत्र किये। इस षड़यंत्र में सोशल मीडिया के वायरस ने किसानों को कुछ दिनों के लिए बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल्लीवासियों के जमीर को जगाने आये किसान कारपोरेट और सरकार के गठबंधन को समझ गये हैं।'द्रष्टा' से किसान नेताओं का कहना है कि ‘‘हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी। सरकार की नीयत में खोंट है। सरकार हमारी आने वाली नस्ल को कारपोरेट का गुलाम बनाना चाहती है। कम्पनीयों के पास बहुत पूँजी है वे हमारे व्यवसाय को हड़पना चाहते हैं। हमारे आधुनिक चकाचौंध में जो भाई बन्धु गुमराह हो गये हैं और जो शहरों में निवास करते हैं। महंगाई से उनका हमसे अधिक नुकसान हो रहा है। उन्हें अपनी पुरानी पीढ़ी और व्यवसाय को याद करना चाहिए और सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने स्वाभिमान को जगाकर हमारा साथ देना चाहिए।’’
महंगाई बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में वृद्धि अस्थिर रही है। यह 2014-15 में -0.2% थी, जबकि 2016-17 में 6.3%, और 2019-20 में यह फिर गिरकर 2.8% हो गई। कृषि में सकल स्थिर पूंजीगत निर्माण 2013-14 में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) के 17.7% से गिरकर 2017-18 में जीवीए का 15.2% हो गया। जीवीए में कृषि का योगदान 2014-15 में 18.2% से गिरकर 2019-20 में 16.5% हो गया। इस गिरावट का मुख्य कारण यह था कि 2014-15 में जीवीए में फसलों की हिस्सेदारी 11.2% से गिरकर 2017-18 में 10% हो गई थी। गैर कृषि क्षेत्रों में अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय प्रदर्शन के कारण इस हिस्सेदारी में गिरावट हुई थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था वाला देश बनाना चाहते हैं। ‘द्रष्टा’ को आशंका है कि किसानों की आय दुगनी करने के लिए उनकी कैबिनेट ने देश में महंगाई बढ़ाने का रास्ता चुना है। कोरोना महामारी से पहले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी। कारपोरेट जगत में अफरातफरी का माहौल था। विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश ऐसे क्षेत्रों पर नजर गड़ाए बैठे थे जिससे उन्हें आर्थिक मजबूती मिल सके। कारपोरेट जगत दवा और खाद्यान्न वस्तुओं के व्यापार में निवेश को सुरक्षित व अधिक फायदों वाला मानता है। कोरोना महामारी के बीच भी मेडिकल सेक्टर के बाद सबसे फायदे में रहने वाला व्यवसाय कृषि क्षेत्र का था। दुनियाभर के व्यापारी इस क्षेत्र की ओर झुकाव कर रहे हैं। सरकारं का भी मानना है कि भारत कृषि प्रधान देश है परन्तु, जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी केवल 15 प्रतिशत है। यदि इस क्षेत्र को व्यवस्थित कर दिया जाय तो, जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ सकती है। पूर्व की सरकारें इस दिशा में धीरे-धीरे काम कर रही थीं। नरेन्द्र मोदी की सरकार कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए बड़ी तेजी से अपने कदम बढ़ाना शुरु की और 2020 में इस विवादित कृषि विधेयक को मंजूरी दे दी।
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2केन्द्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कुछ मुद्दों पर काम करने की बात कह रही है। जैसे ऋण की उपलब्धता, बीमा कवरेज और कृषि में निवेश। भारत में कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण अपेक्षाकृत कम है, जिसे लक्षित करने के अतिरिक्त खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर अधिक ध्यान देकर फसल बाद के नुकसान को कम करने पर सरकार जोर दे रही है और कृषि उत्पादन के लिए अतिरिक्त बाजार तैयार कर रही है।
प्रधानमंत्री के जुमलों की वजह से सरकार के वादों पर किसान भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। किसान कृषि बिल 2020 के तीनों विधेयकों को खत्म कर सरकार से न्युनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला कानून चाहते हैं। मोदी के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह और कृषि व पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर कृषि बिल 2020 में संशोधन करने के लिए किसानों को आश्वासन दिया। इसके बावजूद किसान आन्दोलन से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। शहरी गुलाम मानसिकता वाले नागरिकों के तंज को सहते हुए हठयोगी किसान भीषण सर्द मौसम में दिल्ली बार्डर की सड़कों पर डेरा जमाये बैठे हैं। तमाम झंझावातों को सहन करने के बाद किसान इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि देश के आम नागरिकों को मुनाफाखोर व्यवसायियों के खिलाफ तैयार किया जाय। कारपोरेट घरानों जैसे अडानी, अंबानी की रिलायंश व बाब रामदेव की पतंजली के उत्पादों का बहिष्कार किसानों का मुख्य टारगेट है।
क्रमश: जारी है....अगले भाग में
अवश्य पढ़ें:
सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1
गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती
देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर
‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’
No comments:
Post a Comment