Wednesday, 9 December 2020

कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
   किसान क्रांति :गरीबों के निवाले भी, सियासत छिन लेती है-5

कोरोना का भय और विश्व व्यापार संगठन द्वारा फैलाए गये भ्रम में देश फंस चुका है बनारस में गंगा मैया की गोंद में बैठकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि कृषि बिल पर राजनीतिक पार्टिया किसानों को भ्रमित कर रही हैं। जबकि हकीकत ये है कि विश्व के बड़े व्यापारियों की साजिश को सफल बनाने के लिए  कृषि बिल 2020 पर उनकी सरकार किसानों को भ्रमित कर रही है।


पूरा विश्व कोरोना महामारी से जुझ रहा है। भारत में भी भय और भ्रम का वातावरण बन चुका है। फरवरी 2020 में जब भारतीय कोरोना महामारी की खबर मीडिया के माध्यम से देख सुन रहे थे तब उन्हें अन्दाजा नहीं था कि एक दिन वे खुद भी इसके चपेट में जायेंगे। मास्क, सैनिटाइजर उनके जीवन का हिस्सा बन जायेगा। ये बात किसी भारतीय ने नहीं सोचा था कि दुनिया में सबसे बुरा माना जाने वाला शब्दसोशल डिस्टेंसिंगको लोग जीवन सूत्र बना लेगें। आम भारतीयों ने ये भी नहीं सोचा था कि अमीर-गरीब, अनपढ़- होशियार, ईमानदार-बेईमान सभी इस सूत्र का रट्टा मारेंगे। कोरोना महामारी के इस विवादित हकीकत को जो नहीं जानता उसे सरकार के बनाये नियमों का पालन करना पड़ेगा और जो हकीकत को जानता होगा उसे भी सरकार के मुर्खतापूर्ण नियमों का पालन करना होगा। लोकतांत्रिक सरकार का कोई भी आदेश अपने नागरिकों की हिफाजत से जुड़ा होता है। इसलिए सरकार के बनाये नियमों और कानूनों पर सोच समझ कर ही टिप्पणी करनी चाहिए। 

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द्रष्टासरकारी आदेशों की अवहेलना करने की बात नहीं कह रहा है बल्कि सरकार के कुप्रबंधन नियमों का पालन कराने वाले मुर्ख अधिकारियों और कर्मचारियों की बात कर रहा है। कोरोना का भय और विश्व व्यापार संगठन द्वारा फैलाए गये भ्रम में देश फंस चुका है। बनारस में गंगा मैया की गोंद में बैठकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि कृषि बिल पर राजनीतिक पार्टिया किसानों को भ्रमित कर रही हैं। जबकि हकीकत ये है कि विश्व के बड़े व्यापारियों की साजिश को सफल बनाने के लिए उनकी सरकार कृषि बिल 2020 पर किसानों को भ्रमित कर रही है।

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भारत में जब कोरोना महामारी का तेजी से प्रसार और प्रचार चल रहा था तब, सरकारी तंत्र कार्र्पोरेट और व्यवसायियों को फायदा पहुंचाने की जुगत में लग गया। कारपोरेट लॉबी इस बूरे वक्त में अपने लाभ के लिए कोरोना महामारी को अवसर बना लिया। कोरोना महामारी के बीच सरकार ने व्यवसायिक क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र को कारपोरेट के लिए प्राथमिकता देना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सम्बोधन के जरिए देश को स्षष्ट संदेश देते हुुए कहा कि कोरोना के रुप में हमें अवसर प्राप्त हुआ है। इस सम्बोधन को गैर व्यवसायिक मिजाज वाले समझ नहीं सके। यही कारण था कि गुजराती नरेन्द्र मोदी की बात किसानों के भी पल्ले नहीं पड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक सम्बोधन में अपनी सोच के बारे में अह्मी भाषाशैली में कहा था कि ‘‘नरेन्द्र मोदी कभी छोटा सोचता ही नही, जब भी सोचता है बड़ा सोचता है।’’ प्रधानमंत्री बोलते वक्त आदतन ये बात भूल जाते है कि नरेन्द्र मोदी की सोच -समझ वाले संपूर्ण भारतीय नहीं है। अधिकतर देशवासी स्वयं को भारत का नागरिक समझते हैं कि अडानी-अंबानी जैसे बनियों के उपभोक्ता। यह एक बहुत बड़ा फर्क है जो गुजराती नरेन्द्र मोदी को समझ में नहीं आता है।

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

किसानों की भाग्य रेखा को काटने की नाकाम कोशिश

अब प्रधानमंत्री को समझाने के लिए देश के जागरुक किसान लठ् लिए दिल्ली में डेरा डाल चुके हैं। अंग्रेजियत शिक्षा प्रणाली में प्रशिक्षित नौकरशाह किसानों को रोकने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। किसान दिल्ली तक पहुंचे इसलिए सरकार ने रास्तों को काट डाला, बैरिकेटिंग लगाया, सड़कों पर बड़े-बड़े पत्थरों का ब्रेकर बनाया , किसानों के ऊपर ठंडे पानी की बौछार छोड़ी, आंसू गैस के गोले दागे परन्तु किसान नहीं रुके। सरकार ने मुख्य मार्गों को काटने के साथ ही वह सब कूछ किया जिससे किसानों की भाग्य रेखा कट जाए। सरकार के इस कुचक्र का मुहतोड़ जबाब देते हुए आन्दोलनकारी किसान अब दिल्ली को घेर कर बैठे हैं। किसान अपने भाग्य को दुर्भाग्य में बदलने की सरकारी साजिश को नेस्तनाबूत करने पर आमादा है।

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देश में गुलाम मानसिकता के लोग किसानों के इस आन्दोलन का विरोध कर रहे हैं। शहरी और गुलाम मानसिकता वाले अपनी मर्यादाओं से अधिक बोल कर किसानों को हतोत्साहित कर रहे हैं। सरकारी तंत्र ऐसे ही गुलाम मानसिकता वालों के जरिए अपनी बेतुकी योजनाएं और शोषण करने वाले कानून को प्रचारित-प्रसारित करा रहा है। सत्ताधीशों को भी पता है कि उन्हें वोट देने वालों में गुलाम मानसिकता वालों की संख्या अधिक है। इसलिए मुर्खतापूर्ण नियम काले कानून कारपोरेटरों के लिए अनुकूल है। सत्ताधीशों को लगता है कि उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपये के चुनावी बॉंड के बदले में जो कारपोरेट से सौदा किया है उसे पूरा करने का यह उचित समय है।  

गजनवी की नाजायज औलादें -1

एक भ्रष्ट,अवैधवसूली का अरोपी पत्रकार निजी चैनल के जरिए देश का माहौल बिगाड़कर कारपोरेट के पक्ष में माहौल बना रहा है। और गुलाम मानसिकता के शहरी नागरिक उस चैनल की खबरों पर यकीन कर किसानों को आतंकी, खालिस्तान समर्थक कह रहे हैं।  द्रष्टाविपक्षी राजनैतिक दलों के द्वारा सरकार पर लगाये जा रहे अरोपों पर बात नहीं करता है।द्रष्टानिष्पक्ष नहीं है बल्कि सत्य का पक्षधर है। और सत्य ये है कि कृषि बिल पूरी तरह से केवल किसान हितों के खिलाफ है बल्कि आम नागरिकों के खिलाफ भी है। आर्थिक रुप से सबसे ज्यादा नुकासान में गैर कृषक वर्ग भी है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के हटने के बाद देश के नागरिक महंगे आलु, प्याज जैसे आवश्यक वस्तुएं खरीदने को विवश हैं। किसानों से बड़े व्यवसायी खाद्यान्न वस्तुएं सस्ते दामों पर खरीद कर जमाखोरी कर रहे हैं। कोरोना महामारी की आड़ में आम नागरिकों को वे महंगे दामों में बेंच रहे हैं। आलु, प्याज, लहसन, दाल, चावल, गेंहूँ आदि आवश्यक वस्तुओं में शामिल है। किसानों का मानना है कि जमाखोरी(ब्लैकमार्केटिंग) को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को बदला है।

                                                    क्रमश: जारी है....अगले भाग में


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