Saturday, 1 May 2021

ईम्यूनिटी, कम्युनिटी, मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी सब ‘सिस्टम’ के वेंटिलेटर पर

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

देश को नरेन्द्र मोदी से अधिक ऑक्सीजन की जरुरत - 1

-सिस्टम यानी तंत्र का कोई स्वयं में अपना वजूद नहीं है। नागरिक मान्यताओं व कर्तव्यों के आधार पर तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व है।

-आपदा को अवसर बना लेने वाले गिद्ध अब भी लाशों को नोचने खाने में जुटे हैं। 



ईम्यूनिटी, कम्युनिटी,  मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करने वाला मानव ऑक्सीजन  (प्राण वायु) के बिना तड़प रहा है। अपने विकास पर इतराने वाली मानव सभ्यता खुद के बनाये तंत्र (सिस्टम) में तड़प रही है। इस सिस्टम के कारण सैकड़ों लोग रोज मर रहे हैं। चिताओं की लपटें आकाश छू रही हैं। मृत्यु शैया पर सज्जन और अपराधी सभी मानवता की दुहाई दे रहे हैं। आपदा को अवसर बना लेने वाले गिद्ध अब भी लाशों को नोचने खाने में जुटे हैं। 

कब, कहां, क्या, क्यों और कैसे घटना हुई। अब यह महत्व का समाचार नहीं रहा। प्रतिक्षण मानवता की दुहाई दी जा रही है और कुचली जा रही है।  उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी तिलकधारी सिंह की पत्नी राजकुमारी को बुखार आया और दम तोड़ दिया। कोरोना संक्रमण के डर से कोई पास नहीं आया। परिवार गांव के लोगों ने साथ छोड़ दिया तो हताश होकर एक वृद्ध अपनी पत्नि को साईकिल के फ्रेम में लादकर अंतिम संस्कार करने का प्रयास किया लेकिन बुजुर्ग होने की वजह से जल्द ही थक कर बैठ गया और किस्मत पर रोने लगा। 'द्रष्टा' ने देखा कि कोरोना महामारी के डर से मानवता की दुहाई देने वाला सभ्य गॉव-समाज वृद्ध के साथ नहीं है। 

जौनपुर के ही विक्की अग्रहरि नामक युवक कहता है कि "मैं मरीजों को बिना आक्सीजन के तड़पते हुए देख नहीं सका तो मैंने अपनी एंबुलेंस से ही ऑक्सीजन सिलेंडर निकाल कर ऑक्सीजन दे दी।" तो सिस्टम को चलाने वाले जिलाधिकारी मनीष वर्मा कहते हैं कि  "हमारे अधिकारी और मेडिकल स्टाफ भी अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं। उनके प्रयासों को तो मीडिया में जगह नहीं मिलती है लेकिन जब कोई नकारात्मक खबर आती है तो उसे उछाल दिया जाता है। इससे अधिकारियों का मनोबल भी गिरता है।" इसीलिए सीएमओ की शिकायत पर विक्की अग्रहरी के खिलाफ जौनपुर कोतवाली में  महामारी एक्ट की धारा 3 और भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 269 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।

कहीं एम्बुलेंस वाले मरीज के परिजनों को ब्लैकमेल कर रहे हैं तो कहीं डॉक्टर अस्पताल में बेड दिलाने के नाम पर मनमानी रकम ऐंठ रहे हैं। द्रष्टा से कुछ लोगों ने शिकायतें की हैं कि मेरठ प्रशासन के अधिकारीे लाखों रुपये की रिश्वत मांग रहे हैं। न देने पर ऑक्सीजन रिफिलिंग प्लांट को बंद करने की धमकी दे रहे हैं। सिस्टम(तंत्र) के अधिकारियों को फांसी पर लटका देने वाले हाईकोर्ट के आदेशों का भी डर नहीं है। 

तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व

द्रष्टा साफ देख रहा है कि ईम्यूनिटी, कम्युनिटी,  मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी सब ‘सिस्टम’ के वेंटिलेटर पर है। राजनेता कहते नहीं अघाते कि देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए हमने सिस्टम बनाया है। सिस्टम अर्थात तंत्र जो देश के नागरिकों के लिए बनाया गया है वह पूंजीपतियों व चापलूस राजनेताओं के अधीन सदा से ही रहा है। इस सिस्टम को कोरोना वायरस ने ध्वस्त कर दिया है यह बात सत्य नहीं है। सत्य यह है कि सिस्टम ने ही कोरोना वायरस को पांव पसारने व ऐसी तबाही का मौका दिया। किसी व्यक्ति विशेष राजनेता पर टिप्पणी करके नागरिक कर्तव्यों से बचा नहीं जा सकता है। मजबूरी में ही सही हम सभी इस सिस्टम को मान्यता देते हैं और इसी के सहारे जीवन जीते भी हैं। सिस्टम यानी तंत्र का कोई स्वयं में अपना वजूद नहीं है। नागरिक मान्यताओं व कर्तव्यों के आधार पर तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व है।

‘द्रष्टा’ का मानना है कि ‘‘नागरिक जब अपने कर्तव्यों को नजर अंदाज कर जीवन जीने लगता है तब तंत्र (सिस्टम) को मान्यता नहीं मिलती है।’’ कुछ लोग अपनी अल्पज्ञता में यह कहते हैं कि फलाने अचानक बीमार हो गए, अचानक काम बिगड़ गया या सिस्टम अचानक फेल हो गया। नियति को लेकर अल्पज्ञों ने ऐसी बड़ी गलतफहमी पाल रखी है। दुनिया में अचानक कुछ भी घटित नहीं होता है। व्यक्ति को जानकारी अचानक मिल सकती है लेकिन नियति का कार्य अचानक नहीं होता है।

प्रधानमंत्री ने नैतिकता (मोरैलिटी) खो दिए  

जीव गर्भ से लेकर जीवन और मृत्यु तक अनेकों प्रकार के वायरस (विषाणु) से घिरा होता है। जब जीव की इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होने लगती है तब विषाणु उसके शरीर को खाने लगते हैं। जीव अनजाने में करोड़ों विषाणुओं का प्रतिक्षण भक्षण करते हैं। मानव इस प्रक्रिया को भली-भांति जानता है। और नजरअंदाज भी कर देता है। इस प्रकार मानव दूरदर्शी व दूरगामी सोच और नियति के परिणामों को स्वीकार न कर विनाश को आमंत्रित करता है। नागरिक परेशान है इसके पीछे केवल कोरोनावायरस कारण नहीं है। बल्कि मानव स्वयं है। मानव समाज के लिए ऐसी चीजें नई नहीं है पहले भी ऐसी महामारी रही हैं। मानव हर तरह की परिस्थितियों से लड़ने और विनाशकारी चुनौतियों को स्वीकार करने में सक्षम है। लेकिन यह तभी संभव है जब मानव की एकता बनी रहे। अब एकता और अखंडता को ध्वस्त करने वाले बदजुबान, बद्गुमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी ‘सिस्टम’ के सहारे सत्ताधीश बने रहना चाहते हैं जिस सिस्टम का स्वयं में अस्तित्व ही नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार आपदा को बनियागिरी वाला अवसर बना लिए नैतिकता खो दिए।

सामाजिकता का विध्वंश

देश के नागरिक अपने बेकाबू जज्बात को काबू में कर साफ नजरिये से विचार करें कि राजनेताओं और इस सरकार के चहेतों ने समय- समय पर कम्यूनिटी(धर्मिकता) पर हमले करते रहे हैं। नेताओं ने पहले नागरिकों में जाति-धर्म के नाम पर उन्माद पैदा किये। नागरिकों को आपस में लड़ाए और हत्याएं कराई। नागरिकों की एकता और अखण्डता को तार-तार कर डाला। सामाजिक प्रेम और सौहार्द को छिन्न-भिन्न किया संगठित करने वाले न्यायप्रिय लोगों को डराया। राजनेताओं बिकाऊं शख्शियतों ने हमारे बीच मनभेद पैदा कर सामाजिकता का विध्वंश किया। 

मानव की ईम्यूनिटी की तरह समाज की बुराई से लड़ने की शक्ति कमजोर पड़ गयी और फिर पूंजीवादी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सुनहरा अवसर बनाने के लिए आपदा को निमंत्रण दे दिया। मानव समाज के सिस्टम (तंत्र) ने आर्थिक असमानता को और असमानता ने कुपोषण को जन्म दिया। विषाणुओं ने कुपोषित शरीर को खाना शुरू कर दिया।  इस तरह की विनाशकारी परिस्थितियों का जन्म मानवीय एकता और अखंडता खत्म होने से ही होती है। कोरोना महामारी दूरगामी सोच को नजरअंदाज करने का परिणाम है कि आज मानव की इम्युनिटी(रोग प्रतिरोधक क्षमता) घटी तो कम्युनिटी (धर्मिकता) में भूचाल आ गया और वर्तमान में ह्यूमैनिटी(मानवता) व यूनिटी (एकता) को नियति ने सिस्टम (तंत्र ) के वेंटिलेटर पर पहुंचा दी है।



..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

drashtainfo@gmail.com

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