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रविकांत सिंह 'द्रष्टा' |
‘धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’- भाग 1-‘नागर’ शब्द का संस्कृत में अर्थ है जो दूसरे के साथ रह सकता है। अर्थात् नागरिक वह है जो एक दूसरे के साथ रह सके। अगल-बगल, पास पड़ोस में नहीं बल्कि एक दूसरे के सूख-दुख में सहयोगी बनकर रहना ही नागरी जीवन है।
-बाजार केवल आर्थिक लाभ-हानि को व्यापार का आधार मानता है न कि नागरिक मूल्यों को।
किसान और सरकार के बीच 8 वें दौर की बैठक खत्म हो चुकी है। 60 से अधिक किसानों की शहादत के बाद भी सरकार ने किसानों की मांग अब तक पूरी नहीं की है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी को सुनवाई होनी है। वहीं किसानों के साथ बैठकों के बीच सरकार के मंत्री कृषि बिल 2020 को वापस न लेने की बात लगातार कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि किसानों के साथ सरकार की जो बैठक हो रही थी वह केवल प्रपंच है। षड्यंत्र में 6 प्रकार के प्रपंच होते हैं। द्रष्टा जानता है कि यह बैठकें तो, षड्यंत्रों का भंवर है जिसमें समूचे भारतीय नागरिकों को डूबा देने की शक्ति है। यह सारा सरकारी षड्यंत्र आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने की है।
कृषि बिल 2020 का विरोध करने वाले किसानों का कहना है कि अपनी पूँजीवादी सोच की शक्ति से कारपोरेटर हमारे नागरिक अधिकारों का दमन कर कर रहे हैं और उपभोक्ता समझ रहे हैं। सरकार जानती है कि भारतीय नागरिकों की क्रय शक्ति क्या है? इसके बावजूद कारपोरेट के इशारे पर हमें असंतुलित बाजार में सरकार झोंक रही है। बेलगाम पूॅजीवादी प्रतियोगिता में हमें निचोड़ा जा रहा है। केंद्र से आया प्रस्ताव ठुकराने के साथ ही किसानों ने गौतम आडानी-अंबानी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। किसानों ने अंबानी के पुतले जलाए, भारी संख्या में जियो के सिम तोड़ी और अपने नंबर अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वे ‘सरकार की असली मजबूरी, अडानी-अंबानी जमाखोरी’ जैसे नारों को अब जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे और इन दोनों कॉरपोरेट घरानों के तमाम प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट पूरे देश में किया जाएगा।
‘द्रष्टा’ का मानना है कि हम किस वस्तु का उपभोग करेंगे यह प्रत्येक नागरिक का अपना अधिकार है। बाजार नागरिक की इच्छा के विपरित व्यवहार करता है। बाजारु लोगों की प्रकृति है कि वह हमें नागरिक न समझकर अपना उपभोक्ता समझते हैं। मानव सभ्यता फले -फूले इसके लिए मनुष्यों ने बाजार का निर्माण किया। मानव जीवन सरल और सुव्यवस्थित हो इसके लिए बाजार को संतुलित रखने व उच्च प्रबंधन पर जोर दिया। एक दूसरे से लेन-देन के लिए उत्पादित वस्तुओं का विनिमय अदला-बदली करना ही मानव के द्वारा शुरुआती व्यवसाय था। मानव सभ्यता के विकास के क्रम में उसने इसे जटिल बनाना शुरु कर दिया। जाहिर है मानव ने स्वार्थवश लोभ में आकर ऐसा किया है। और इस तरह लोभ और स्वार्थ को व्यवसाय से जोड़कर मानव ने एक गैर बराबरी वाली प्रतियोगिता की परम्परा बना दी। आज उसी परम्परा का विभत्स रुप आप देख रहे है।
अडानी और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं?
‘धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’ पंजाबी भाषा में कहे गए इस नारे का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी न तो धर्म से सरोकार रखते हैं और न ही विज्ञान से, वे सिर्फ रिलायंस (कॉरपोरेट) से सरोकार रखते हैं। इन दोनों कॉरपोरेट घरानों का ये विरोध सिर्फ नारों और सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पंजाब के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रिलायंस के पेट्रोल पंप से रिलायंस के तमाम स्टोर्स और अडानी ग्रुप के एग्रो आउटलेट्स का बहिष्कार किया है, मुकेश अंबानी के पुतले जलाए हैं और भारी संख्या में जियो के सिम तोड़े हैं और अपने नंबर किसी अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। इसी तरह के विरोध को अब पूरे देश में फैलाने की बात किसान कर रहे हैं। किसान तमाम कॉरपोरेट घरानों में से सिर्फ अदाणी और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल कहते हैं, ‘ये सरकार पूरे देश को कॉरपोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है। अडानी -अंबानी कॉरपोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं जो पिछले थोड़े ही समय में बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं और मुख्य कारण यही है कि राजसत्ता और पूंजी साथ-साथ चल रहे हैं। ये दोनों ही ग्रुप मौजूदा सत्ता के बेहद करीब हैं और ये किसी से छिपा नहीं है।
इसके अलावा इन दोनों घरानों का नाम प्रतीकात्मक रूप से भी इस्तेमाल होता है। हमने इनके अलावा अन्य कॉरपोरेट घरानों का भी विरोध किया है जिसमें एस्सार ग्रुप जैसे नाम भी हैं। उनके पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार पंजाब में हुआ है। ये विरोध किसी व्यक्ति या एक-दो कॉरपोरेट घरानों का नहीं बल्कि पूरे कॉपोर्रेट के हवाले जाते संसाधनों का विरोध है। इसलिए हमने सबसे से मांग की है कि कॉरपोरेट घरानों के तमाम उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार किया जाए।’
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इस रुप से द्रष्टा अनजान नहीं है। भारत ने सभ्यता के विकास में पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। आज हम सतही बातों का समना कर रहे हैं। जो महत्वहीन है सभ्य तो, बिल्कुल नहीं। देश जब आजाद हुआ और हमने अपना संविधान बनाया तो, उसमें प्रान्तीय नागरिक नहीं बल्कि हम अखिल भारतीय नागरिक बने। ‘नागर’ शब्द का संस्कृत में अर्थ है जो दूसरे के साथ रह सकता है। अर्थात् नागरिक वह है जो एक दूसरे के साथ रह सके। अगल-बगल, पास पड़ोस में नहीं बल्कि एक दूसरे के सूख-दुख में सहयोगी बनकर रहना ही नागरी जीवन है। यह सहअस्तित्व की बात है। उपभोक्ता के रुप में हमारी पहचान यह है कि हम स्वेच्छा से, अपनी मनपसन्द, जरुरत व सहुलियत के अनुसार वस्तुओं का उपभोग करते हैं। इस संदर्भ में हम उपभोक्ता है। जबकि व्यापारी अपनी सहुलियत के अनुसार ऐसे बाजार का निर्माण करते हैं जिनके उत्पाद में नागरिकों की कोई रुचि नहीं होती है। अधिकतर उत्पाद उनके क्रयशक्ति से बाहर के होते है। वह जिसे शुद्ध मानकर खरीदते हैं वह शुद्ध नहीं होता है। बाजार केवल आर्थिक लाभ-हानि को व्यापार का आधार मानता है न कि नागरिक मूल्यों को। इसलिए किसान नागरिक जियो रिलायंश, पतंजलि, गौतम अडानी और अम्बानी बन्धुओं का विरोध कर रहे हैं।
क्रमश: जारी है....अगले भाग में
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