Friday, 18 December 2020

बाटी-चोखा के बीच अखिल भारतीय पंचायत परिषद् में कृषि बिल और पंचायत की स्वायत्तता पर चर्चा

नयी दिल्ली/  द्रष्टा 

किसान आन्दोलन और केन्द्र सरकार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टांग अड़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसम्बर को स्पष्ट कहा है कि किसानों को विरोध जारी रखना चाहिए लेकिन दिल्ली को ब्लॉक नहीं किया जा सकता है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, ने कहा कि इस मामले को एक समिति को सौंप दिया जाना चाहिए। समिति में कृषि की जानकारी रखने वाले स्वतंत्र सदस्य होने चाहिए जो कि दोनों पक्षों को सुनें और जो किया जाना है उस पर रिपोर्ट दें। कोर्ट ने कहा कि विरोध हिंसा के बिना जारी रह सकता है और पुलिस कुछ भी नहीं करेगी। अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने इस सुनवाई से पहले अपनी रणनीति बना ली थी। अखिल भारतीय पंचायत् परिषद् का कहना है कि संविधान के 73 वें सशोधन व 11 वीं अनुसूचि में स्पष्ट है। कृषि  व कृषि विस्तार पर चर्चा पंचायत (ग्राम सभा) का विषय है। लेकिन पक्ष- विपक्ष और केन्द्र व राज्य सरकारें अपने दलगत फायदे के लिए ग्राम सभा के अधिकारों पर चर्चा नहीं कर रही हैं।

इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद 18 दिसंबर को अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने बाटी -चोखा के साथ कृषि बिल पर चर्चा का आयोजन किया। गरमा-गरम बाटी चोखा के साथ अपने गॉंवो और उनके अधिकारों को याद करते हुए अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के महामंत्री सत्येन्द्र सिंह व कानूनी विशेषज्ञ वरिष्ठ वकील वरुण सिन्हा ने पंचायतीराज और कोर्ट व सरकार की कार्यप्रणाली पर गम्भीरता से चर्चा की। श्री सिन्हा ने कहा कि ग्राम पंचायत में ज्यादातर किसान रहता है। जब लोकतांन्त्रिक तरीके से चुनी हुई ग्रामीणों की सरकार पंचायत है तो किसानों को अपना विधेयक खुद बनाना चाहिए और सरकार को भी उसे कंसीडर करना चाहिए। 


सवाल के जवाब में किसान नेता सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि जब भारत की संसद ने पंचायतों के लिए संविधान बनाये तब उसमें 73 वें सविधान संशोधन की11 वीं अनुसूचि में स्पष्ट किया था कि कृषि कृषि विस्तार, भूमि, भूमि सुधार, मंडी बाजार और ग्रामीण रोजगार व आय आदि 29 विषयों पर योजना बनाना व लागू करने की जिम्मेदारी पंचायत को दी गयी थी।  और कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद की है। जब वही लोग पंचायतों से न इस पर चर्चा किए और न ही संपर्क किए तो, क्या अपेक्षा करना कि पंचायतों को किसानों ने तवज्जो क्यों नहीं दिया?

सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि आज से दो साल पहले किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए पंचायत और भारत सरकार की मंत्री परिषद् ने दो से तीन दिन का बड़ा सम्मेलन किया गया था। उस कार्यक्रम में हम लोगों ने देखा कि आमंत्रित लोगों की सूचि में कारपोरेट के लोग थे। खेती-बाड़ी से जुड़े व पंचायत के लोगों का जिक्र नहीं था। इस बात पर हम लोगों ने एक कड़ा पत्र भारत सरकार के पंचायत मंत्री को दिया था। जिसमें पंचायत मंत्री से आपत्ति प्रकट की गयी कि दूनियाभर से लोगों को आप बुलाए लेकिन खेती-बाड़ी कैसे हो? किसानों की स्थिति में क्या सुधार हो? इस पर किसानों को ही आपने चर्चा में शामिल नहीं किया। क्या भारत के संविधान को आप नहीं जानते हैं या आप जानबूझकर खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों का सम्मान नहीं करते हैं?

सरकार बनाम पंचायत के कानूनी अधिकारों और उसकी जटीलताओं पर वरिष्ठ वकील वरुण सिन्हा ने मिर्जापुर के ग्राम पंचायत से जुड़े एक मुकदमें का जिक्र करते हुए कहा कि एक ग्राम पंचायत को नगर निगम में शामिल कर लिया गया। गांव के प्रधान ने सिंगल जज हाईकोर्ट इलाहाबाद के यहा मुकदमा किया जिसमें राज्य सरकर के वकील ने आपत्ति की, कि जब आप ग्राम प्रधान हैंं तों आपको राज्य सरकार की स्टैंडिंग कौंसिल से मुकदमा करवाना चाहिए न कि प्राईवेट वकील से। तो, उस व्यक्ति ने सरकारी वकील को कहा कि मैं ग्राम प्रधान अब नहीं हूँ जो ग्राम पंचायत थी उसे आप ने नगर निगम बना दिया। अब मैं गॉंव का एक साधारण सदस्य हूँ और मुझे अपना प्राईवेट वकील रखने का अधिकार है। यदि आप मुझे ग्राम प्रधान मानते है तो, भी ग्राम पंचायत का अपना वकील होगा न कि सरकारी वकील। ग्राम प्रधान ने दलील दी कि संविधान का 73 वॉ संशोधन हमें ‘स्थानीय स्वशासित सरकार’ का दर्जा देता है। लेकिन सिंगल जज ने कहा कि ग्राम पंचायत सरकार के खिलाफ मुकदमा नहीं लड़ सकती और यदि लड़ना होगा तों सरकारी वकील ही करना होगा और दलील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टीस के पास जब यह मुकदमा पहुंचा तों, ग्राम प्रधान के वकील और सरकार के वकील के बीच काफी बहस हुयी। बहस को सुनने के बाद चीफ जस्टीस ने कहा कि पंचायत राज्य सरकार के अधीन है।

वरुण सिन्हा ने कहा कि 1992 से लेकर आज तक राज्य सरकार बीडीओ(ब्लॉक डेवलपमेंट आफिसर) सीडीओ(चीफ डेवलपमेंट आफिसर) डीएम (डिस्ट्रीक्ट मजिस्ट्रेट)के जरिए प्रभुत्व जमा बैठी है। और जो चुना हुआ जनप्रतिनिधि है चाहे वो ब्लॉक प्रमुख हो, जिला पंचायत सदस्य या ग्राम प्रधान सभी सरकारी अधिकारियों के अधीन हो जाते हैं। और जो जनप्रतिनिधि मालिक है वो नौकर बन जाता है और जो नौकर है वो मालिक बन जाता है यही वजह है कि केन्द्र व राज्य सरकार दोनों पंचायत को स्वायत्तता नहीं देना चहती है और न आप से संम्पर्क करना चाहती है। । यही लड़ाई केन्द्र व राज्य सरकार बनाम पंचायत है।   
कृषि बिल और पंचायतों की स्वायत्तता को लेकर मुखर रहने वाले पंचायत परिषद् के अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह ने की चर्चा को सूनने के बाद कहा कि एक बार पंचायत मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से मिलना चाहिए। मंत्री जी से मिलकर इन सवालों पर उनकी क्या राय है यह जानने की आवश्यकता है। 

पंचायत परिषद्के बाटी-चोखा कार्यक्रम में प्रोफेसर वी. एस. भदौरिया, वरिष्ठ वकील बिपुल मिश्रा, प्रदीप कुमार, डा. सुरेश कुमार, डा. केके रॉय, प्रहलाद सिंह, रविकांत सिंह, विजय पाण्डे, नीतु त्यागी, श्वेता ठाकुर, रचना शाही, करुणा त्यागी, अर्चना, दीपक, अजय सिंह चौहान,अमीर चन्द पटेल, राजेश वैद्य,राजन मदान, आदि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मौजूद थे।


..

अवश्य पढ़ें:

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1


Tuesday, 15 December 2020

किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

गरीबों के निवाले भी, सियासत छिन लेती है- 7

किसान नेता और सरकार दोनों को नहीं मालूम की संविधान के 73 वें संशोधन 1992 के अनुसार कृषि कृषि विस्तार से जुड़े मामले ग्राम सभा (पंचायत)का विषय है। संविधान की 11 वीं अनुसूची की 29 विषयों में स्पष्ट रुप से कृषि कृषि विस्तार शामिल है। लेकिन सरकार एक ही तीर से अपनी राजसत्ता और कारपोरेट को जनहितों से ऊपर रखकर पंचायतों किसानों के अधिकारों का दमन करना चाहती है।

केन्द्र सरकार द्वारा लाए गये कृषि बिल 2020 के उद्देश्यों उसके दूरगामी परिणामों पर वाद-विवाद का दौर जारी है। किसानों का मानना है कि सत्ता मेंं बैठे बेकार और नक्कारे किस्म के नेता और चाटुकार नौकरशाह हरामखोर पूॅजीपतियों के लिए संसाधन जुटा रहे हैं। कोरोना महामारी का भय दिखाकर केन्द्र सरकार राज्य सरकारें गैरजरुरी कामों को अंजाम देती गयीं। एक ओर गलत नियत वालों को बेहतर फायदा पहुंचाने के लिए किसानों की भलाई के नाम पर कृषि बिल 2020 को केन्द्र सरकार जबरन जनता पर थोपना चाहती है। वहीं दूसरी ओर पंचायतों को मिले संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण भी कर दी। पंचायतीराज की विकेन्द्रित व्यवस्था को कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित कर रही है।

किसान क्रांति : प्रधानमंत्री का जुमला बना सरकार की फजीहत


द्रष्टाकृषि बिल 2020 के संबंध में जब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह से बातचीत करनी चाही तो उन्होंने गुस्से से अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि सरकार और आन्दोलित किसान नेता दोनों ही बेपटरी होकर फालतु की बहस में उलझे हैं। चुंकि इस बहस को पूरी दुनिया सुन रही है इसलिए उनकी बहसों से पूरा विश्व भ्रमित है। सरकार डर रही है कि विपक्षी राजनीतिक दलों के भ्रामक प्रचार में फंसकर किसान सत्ता परिवर्तन का दबाव बना रहे है। और किसान नेता डर रहे हैं कि इस कानून से पॅूजीपति किसानों की कृषि व्यापार को छिनकर जमीने हड़प लेंगे। और किसानों को उनके ही खेतों में गुलाम बना देंगे। किसान नेता और सरकार दोनों को नहीं मालूम की संविधान के 73 वें संशोधन 1992 के अनुसार कृषि कृषि विस्तार से जुड़े मामले ग्राम सभा (पंचायतका विषय है। संविधान की 11 वीं अनुसूची की 29 विषयों में स्पष्ट रुप से कृषि कृषि विस्तार शामिल है। लेकिन सरकार एक ही तीर से अपनी राजसत्ता और कारपोरेट को जनहितों से ऊपर रखकर पंचायतों किसानों के अधिकारों का दमन करना चाहती है।

संविधान की 11 वीं अनुसूची

1. कृषि, कृषि विस्तार सहित।

2. भूमि सुधार, भूमि सुधारों का कार्यान्वयन, भूमि समेकन औरं मिट्टी संरक्षण।

3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और वाटरशेड विकास।

4. पशुपालन, डेयरी और मुर्गी पालन।

5. मत्स्य।

6. सामाजिक वानिकी और कृषि वानिकी।

7. लघु वनोपज।

8. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों सहित लघु उद्योग।

9. खादी, गाँव और कुटीर उद्योग।

10. ग्रामीण आवास।

11. पीने का पानी।

12. ईंधन और चारा।

13. सड़कें, पुलिया, पुल, घाट, जलमार्ग और संचार के अन्य साधन।

14. बिजली के वितरण सहित ग्रामीण विद्युतीकरण।

15. गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत।

16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।

17. प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों सहित शिक्षा।

18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।

19. वयस्क और गैर-औपचारिक शिक्षा।

20. पुस्तकालय।

21. सांस्कृतिक गतिविधियाँ।

22. बाजार और मेले।

23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिसमें अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय शामिल हैं।

24. परिवार कल्याण।

25. महिला और बाल विकास।

26. विकलांगों और मानसिक रूप से मंद लोगों के कल्याण सहित सामाजिक कल्याण।

27. कमजोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण।

28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

29. सामुदायिक संपत्ति का रखरखाव।

अवश्य पढ़ें पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

अध्यक्ष बाल्मीकी प्रसाद सिंह ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते है। उनकी यह बात प्रशंसनीय  देशहित में है परन्तु, इसके लिए आत्मनिर्भर भारत बनाने का जो रास्ता है गॉवों से होकर गुजरता है। और गॉंवों की व्यवस्था गॉंव की सरकार पंचायती राज चलाती है। अखिल भारतीय पंचायत परिषद् पंचायतीराज की जनक संस्था है। जब-जब सरकार और अजागरुक जनता रास्ता भूल जाती है तब-तब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् उनका मार्ग बताता रहा है। लगभग 2 दशक से जोरों पर सत्ता में बैठे नेता और नौकरशाह अपनी हरामखोरी की दुकान चलाने के लिए पूँजीपतियों से साठगॉंठ कर पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन कर रही हैं।
अवश्य पढ़ें : पंचायती राज की उपेक्षा और विकास के दावे

द्रष्टादेख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में भी कारपारेट के पक्ष में स्पष्ट संकेत देते हुए किसानों को खुली चुनौती दे रहे हैं। लेकिन किसान राजनीतिक दल के नेताओं के मायाजाल में उलझता चला जा रहा है। किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों कृषि बिल 2020 को रद्द करने की अपनी मागों पर नजर गड़ाये हैं लेकिन अपने संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि सरकार नाजायज तरीके से कानून बनाकर देश की आम आवाम पर थोपे जा रही है। कृषि बिल 2020 के तीनों विधेयकों के वापसी के लिए किसान दिल्ली पहुंचने का रास्ता रोककर बैठे हैं। सरकार के सिपाही और किसान दोनों लाठियां लेकर आमने-सामने खड़े है। किसान नेताओं और मंत्रियों के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी है। सरकारी तंत्र का प्रपंच और किसानों का जबाब दोनों की कार्यशैली को जानने वालों में यह चर्चाएं भ्रांति पैदा कर रही है।

अवश्य पढ़ें: मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ आर्थिक गुलामी की ओर

अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के राष्ट्रीय सलाहकार रविकांत सिंह का कहना है कि ''यह केवल किसानो का मसला नहीं है बल्कि देश के आम नागरिकों को आर्थिक समस्यायों में उलझने का मामला है ।  सरकार जो आज चन्द किसान नेताओं को ठेके पर बुलाकर कृषि बिल पर जो चर्चा कर रही है वही पहले ग्राम सभा से चर्चा करके कृषि बिल तैयार करती तो आज किसान आन्दोलन होता और ही हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचती। लगता है सत्ता को जनता पर भरोसा नहीं है इसलिए वह जबरन ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है।'' रविकांत सिंह ने आगे कहा कि ''अब भी सरकार की नियत किसानों को फायदा पहुंचाने की है तो, कम से कम एक कृषि कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम एक्ट 1955 को यथास्थिति रखते हुए ग्राम सभा के बीच जाना चाहिए। और अखिल भारतीय पंचायत परिषद् को निगरानी की जिम्मेदारी देनी चाहिए। ग्राम सभा के हित में जो होगा वह वैसा कानून बनाने का प्रस्ताव दे देगी। इससे पंचायतीराज के संवैधानिक अधिकारों का भी दमन नहीं होगा''।

बहरहाल,पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों के मसले पर बेहतर अनुभव रखने वाले नेता नीतिन गडकरी को अब अखिल भारतीय पंचायत परिषद् को शामिल कर लेना चाहिए। कृषि बिल 2020 को ग्राम सभाओं से पास कराकर ही संसद को कानून बनाना चाहिए यही एक मात्र किसान आन्दोलन को रोकने की कारगर व्यवस्था है'।

                                        क्रमशजारी है....अगले भाग में

अवश्य पढ़ें:

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1


Friday, 11 December 2020

किसान क्रांति : प्रधानमंत्री का जुमला बना सरकार की फजीहत

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
 गरीबों के निवाले भी, सियासत छिन लेती है- 6

किसान नेताओं का कहना है कि ‘‘हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी। सरकार की नीयत में खोंट है। सरकार हमारी आने वाली नस्ल को कारपोरेट का गुलाम बनाना चाहती है। कम्पनीयों के पास बहुत पूँजी है वे हमारे व्यवसाय को हड़पना चाहते हैं। हमारे आधुनिक चकाचौंध में जो भाई बन्धु गुमराह हो गये हैं और जो शहरों में निवास करते हैं। महंगाई से उनका हमसे अधिक नुकसान हो रहा है। उन्हें अपनी पुरानी पीढ़ी और व्यवसाय को याद करना चाहिए और सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने स्वाभिमान को जगाकर हमारा साथ देना चाहिए।’’

केन्द्र सरकार के विवादित कृषि बिल 2020 ने किसानों के जज्बात को बेकाबू कर दिया है। दिलों में गम-ओ-गुस्से का तुफान लिए किसानों ने दिल्ली घेर रखा है। गुस्से का इजहार न हो पाने की बेचैनी किसानों में दिखने लगी है। मानवीय पीड़ा से बे-खबर और बे-अदब शहरी लोग किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही कह रहे हैं। कृषि बिल 2020 में संशोधन के सरकारी प्रस्ताव को किसानों ने नामंजूर करते हुए ‘बहिष्कार आन्दोलन’ की धमकी भी दी है। गौतम अडानी, मुकेश अंबानी व अनिल अंबानी की रिलायंश और बाबा रामदेव की पतंजलि आदि कम्पनीयों के उत्पादों का इस्तेमाल न करने की किसान संगठनों ने देशवासियों से अपील की है।  

अवश्य पढ़ें:कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश

देश की 65 प्रतिशत आबादी खेती करती है। इस खेती की जरुरतों के लिए कुछ आबादी यंत्र-सयंत्र आदि उत्पाद बनाते है। और बाकि इससे जुड़े फूड प्रोसेसिंग आदि व्यवसाय से जुड़े हैं। यानि भारत की लगभग 95 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रुप से कृषि क्षेत्र से जुड़ी है। ये आबादी उत्पादक है तो, उपभोक्ता भी है। किसान कम दाम में जो फसल बेंचते हैं वही फसल बाजार में अधिक दाम पर उपभोक्ता के रुप में खरीदते हैं। अब कारपोरेट इस बड़े व्यवसायिक क्षेत्र पर कब्जा चाहता है। कृषि उत्पादन के व्यवसाय में बेलगाम कार्पोरेट की दखल से 95 प्रतिशत नागरिकों की आर्थिक हालत बिगड़ने का खतरा है। 

असमान लोगों की प्रतियोगिता

कृषि बिल 2020 के जरिए सरकार ने कारपोरेट के लिए रेड कार्पेट बिछा दिया है। जैसा कि प्रतियोगितावादी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो देश की अर्थव्यवस्था जोर पकड़ेगी और हमारा भारत 5 ट्रीलियन डालर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जायेगा। लेकिन वे भूल रहे हैं कि असमान लोगों में प्रतियोगिता नहीं होती और जो असमान लोगों में प्रतियोगिता कराता है वह अन्यायी व्यक्ति कहलाता है। कारपोरेट पूँजीपति और किसान कम पूूंजीवाला नागरिक, अभाव में काम करने वाला किसान और साधन सम्पन्न कारपोरेट, एक धुर्त, चालाक, ठग व व्यवसाय के दांव पेंच, का माहिर, खिलाड़ी और दूसरा सीधा, सरल, संघर्षशील व शोषित किसान, एक सत्ता के करीब और दूसरा सत्ता से दूर, एक धन के लिए धर्म को ठोकर मारता है और दूसरा धर्म को ठुकराकर धन कमाता है। किसान और कारपोरेट में दूर-दूर तक कोई समानता नहीं। तो, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कैसे किसानों को प्रतियोगिता के लिए कारपोरेट के सामने बाजारु अखाड़े में खड़ा कर रहे हैं।


किसान आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकारीतंत्र ने बहुत से षड़यंत्र किये। इस षड़यंत्र में सोशल मीडिया के वायरस ने किसानों को कुछ दिनों के लिए बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल्लीवासियों के जमीर को जगाने आये किसान कारपोरेट और सरकार के गठबंधन को समझ गये हैं।'द्रष्टा' से किसान नेताओं का कहना है कि ‘‘हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी। सरकार की नीयत में खोंट है। सरकार हमारी आने वाली नस्ल को कारपोरेट का गुलाम बनाना चाहती है। कम्पनीयों के पास बहुत पूँजी है वे हमारे व्यवसाय को हड़पना चाहते हैं। हमारे आधुनिक चकाचौंध में जो भाई बन्धु गुमराह हो गये हैं और जो शहरों में निवास करते हैं। महंगाई से उनका हमसे अधिक नुकसान हो रहा है। उन्हें अपनी पुरानी पीढ़ी और व्यवसाय को याद करना चाहिए और सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने स्वाभिमान को जगाकर हमारा साथ देना चाहिए।’’

अवश्य पढ़ें पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

महंगाई बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य 

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में वृद्धि अस्थिर रही है। यह 2014-15 में -0.2% थी, जबकि 2016-17 में 6.3%, और 2019-20 में यह फिर गिरकर 2.8% हो गई। कृषि में सकल स्थिर पूंजीगत निर्माण 2013-14 में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) के 17.7% से गिरकर 2017-18 में जीवीए का 15.2% हो गया। जीवीए में कृषि का योगदान 2014-15 में 18.2% से गिरकर 2019-20 में 16.5% हो गया। इस गिरावट का मुख्य कारण यह था कि 2014-15 में जीवीए में फसलों की हिस्सेदारी 11.2% से गिरकर 2017-18 में 10% हो गई थी। गैर कृषि क्षेत्रों में अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय प्रदर्शन के कारण इस हिस्सेदारी में गिरावट हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था वाला देश बनाना चाहते हैं। ‘द्रष्टा’ को आशंका है कि किसानों की आय दुगनी करने के लिए उनकी कैबिनेट ने देश में महंगाई बढ़ाने का रास्ता चुना है। कोरोना महामारी से पहले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी। कारपोरेट जगत में अफरातफरी का माहौल था। विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश ऐसे क्षेत्रों पर नजर गड़ाए बैठे थे जिससे उन्हें आर्थिक मजबूती मिल सके। कारपोरेट जगत दवा और खाद्यान्न वस्तुओं के व्यापार में निवेश को सुरक्षित व अधिक फायदों वाला मानता है। कोरोना महामारी के बीच भी मेडिकल सेक्टर के बाद सबसे फायदे में रहने वाला व्यवसाय कृषि क्षेत्र का था। दुनियाभर के व्यापारी इस क्षेत्र की ओर झुकाव कर रहे हैं। सरकारं का भी मानना है कि भारत कृषि प्रधान देश है परन्तु, जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी केवल 15 प्रतिशत है। यदि इस क्षेत्र को व्यवस्थित कर दिया जाय तो, जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ सकती है। पूर्व की सरकारें इस दिशा में धीरे-धीरे काम कर रही थीं। नरेन्द्र मोदी की सरकार कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए बड़ी तेजी से अपने कदम बढ़ाना शुरु की और 2020 में इस विवादित कृषि विधेयक को मंजूरी दे दी। 

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2
केन्द्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कुछ मुद्दों पर काम करने की बात कह रही है। जैसे ऋण की उपलब्धता, बीमा कवरेज और कृषि में निवेश। भारत में कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण अपेक्षाकृत कम है, जिसे लक्षित करने के अतिरिक्त खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर अधिक ध्यान देकर फसल बाद के नुकसान को कम करने पर सरकार जोर दे रही है और कृषि उत्पादन के लिए अतिरिक्त बाजार तैयार कर रही है। 

प्रधानमंत्री के जुमलों की वजह से सरकार के वादों पर किसान भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। किसान कृषि बिल 2020 के तीनों विधेयकों को खत्म कर सरकार से न्युनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला कानून चाहते हैं। मोदी के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह और कृषि व पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर कृषि बिल 2020 में संशोधन करने के लिए किसानों को आश्वासन दिया। इसके बावजूद किसान आन्दोलन से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। शहरी गुलाम मानसिकता वाले नागरिकों के तंज को सहते हुए हठयोगी किसान भीषण सर्द मौसम में दिल्ली बार्डर की सड़कों पर डेरा जमाये बैठे हैं। तमाम झंझावातों को सहन करने के बाद किसान इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि देश के आम नागरिकों को मुनाफाखोर व्यवसायियों के खिलाफ तैयार किया जाय। कारपोरेट घरानों जैसे अडानी, अंबानी की रिलायंश व बाब रामदेव की पतंजली के उत्पादों का बहिष्कार किसानों का मुख्य टारगेट है।

क्रमशजारी है....अगले भाग में


अवश्य पढ़ें:

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1



Featured post

द्रष्टा देगा मुक्ति

संपादकीय देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों...