नयी दिल्ली/ द्रष्टा
किसान आन्दोलन और केन्द्र सरकार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टांग अड़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसम्बर को स्पष्ट कहा है कि किसानों को विरोध जारी रखना चाहिए लेकिन दिल्ली को ब्लॉक नहीं किया जा सकता है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, ने कहा कि इस मामले को एक समिति को सौंप दिया जाना चाहिए। समिति में कृषि की जानकारी रखने वाले स्वतंत्र सदस्य होने चाहिए जो कि दोनों पक्षों को सुनें और जो किया जाना है उस पर रिपोर्ट दें। कोर्ट ने कहा कि विरोध हिंसा के बिना जारी रह सकता है और पुलिस कुछ भी नहीं करेगी। अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने इस सुनवाई से पहले अपनी रणनीति बना ली थी। अखिल भारतीय पंचायत् परिषद् का कहना है कि संविधान के 73 वें सशोधन व 11 वीं अनुसूचि में स्पष्ट है। कृषि व कृषि विस्तार पर चर्चा पंचायत (ग्राम सभा) का विषय है। लेकिन पक्ष- विपक्ष और केन्द्र व राज्य सरकारें अपने दलगत फायदे के लिए ग्राम सभा के अधिकारों पर चर्चा नहीं कर रही हैं।
इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद 18 दिसंबर को अखिल भारतीय पंचायत परिषद् ने बाटी -चोखा के साथ कृषि बिल पर चर्चा का आयोजन किया। गरमा-गरम बाटी चोखा के साथ अपने गॉंवो और उनके अधिकारों को याद करते हुए अखिल भारतीय पंचायत परिषद् के महामंत्री सत्येन्द्र सिंह व कानूनी विशेषज्ञ वरिष्ठ वकील वरुण सिन्हा ने पंचायतीराज और कोर्ट व सरकार की कार्यप्रणाली पर गम्भीरता से चर्चा की। श्री सिन्हा ने कहा कि ग्राम पंचायत में ज्यादातर किसान रहता है। जब लोकतांन्त्रिक तरीके से चुनी हुई ग्रामीणों की सरकार पंचायत है तो किसानों को अपना विधेयक खुद बनाना चाहिए और सरकार को भी उसे कंसीडर करना चाहिए।
सवाल के जवाब में किसान नेता सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि जब भारत की संसद ने पंचायतों के लिए संविधान बनाये तब उसमें 73 वें सविधान संशोधन की11 वीं अनुसूचि में स्पष्ट किया था कि कृषि कृषि विस्तार, भूमि, भूमि सुधार, मंडी बाजार और ग्रामीण रोजगार व आय आदि 29 विषयों पर योजना बनाना व लागू करने की जिम्मेदारी पंचायत को दी गयी थी। और कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद की है। जब वही लोग पंचायतों से न इस पर चर्चा किए और न ही संपर्क किए तो, क्या अपेक्षा करना कि पंचायतों को किसानों ने तवज्जो क्यों नहीं दिया?
सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि आज से दो साल पहले किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए पंचायत और भारत सरकार की मंत्री परिषद् ने दो से तीन दिन का बड़ा सम्मेलन किया गया था। उस कार्यक्रम में हम लोगों ने देखा कि आमंत्रित लोगों की सूचि में कारपोरेट के लोग थे। खेती-बाड़ी से जुड़े व पंचायत के लोगों का जिक्र नहीं था। इस बात पर हम लोगों ने एक कड़ा पत्र भारत सरकार के पंचायत मंत्री को दिया था। जिसमें पंचायत मंत्री से आपत्ति प्रकट की गयी कि दूनियाभर से लोगों को आप बुलाए लेकिन खेती-बाड़ी कैसे हो? किसानों की स्थिति में क्या सुधार हो? इस पर किसानों को ही आपने चर्चा में शामिल नहीं किया। क्या भारत के संविधान को आप नहीं जानते हैं या आप जानबूझकर खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों का सम्मान नहीं करते हैं?
सरकार बनाम पंचायत के कानूनी अधिकारों और उसकी जटीलताओं पर वरिष्ठ वकील वरुण सिन्हा ने मिर्जापुर के ग्राम पंचायत से जुड़े एक मुकदमें का जिक्र करते हुए कहा कि एक ग्राम पंचायत को नगर निगम में शामिल कर लिया गया। गांव के प्रधान ने सिंगल जज हाईकोर्ट इलाहाबाद के यहा मुकदमा किया जिसमें राज्य सरकर के वकील ने आपत्ति की, कि जब आप ग्राम प्रधान हैंं तों आपको राज्य सरकार की स्टैंडिंग कौंसिल से मुकदमा करवाना चाहिए न कि प्राईवेट वकील से। तो, उस व्यक्ति ने सरकारी वकील को कहा कि मैं ग्राम प्रधान अब नहीं हूँ जो ग्राम पंचायत थी उसे आप ने नगर निगम बना दिया। अब मैं गॉंव का एक साधारण सदस्य हूँ और मुझे अपना प्राईवेट वकील रखने का अधिकार है। यदि आप मुझे ग्राम प्रधान मानते है तो, भी ग्राम पंचायत का अपना वकील होगा न कि सरकारी वकील। ग्राम प्रधान ने दलील दी कि संविधान का 73 वॉ संशोधन हमें ‘स्थानीय स्वशासित सरकार’ का दर्जा देता है। लेकिन सिंगल जज ने कहा कि ग्राम पंचायत सरकार के खिलाफ मुकदमा नहीं लड़ सकती और यदि लड़ना होगा तों सरकारी वकील ही करना होगा और दलील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टीस के पास जब यह मुकदमा पहुंचा तों, ग्राम प्रधान के वकील और सरकार के वकील के बीच काफी बहस हुयी। बहस को सुनने के बाद चीफ जस्टीस ने कहा कि पंचायत राज्य सरकार के अधीन है।
पंचायत परिषद्के बाटी-चोखा कार्यक्रम में प्रोफेसर वी. एस. भदौरिया, वरिष्ठ वकील बिपुल मिश्रा, प्रदीप कुमार, डा. सुरेश कुमार, डा. केके रॉय, प्रहलाद सिंह, रविकांत सिंह, विजय पाण्डे, नीतु त्यागी, श्वेता ठाकुर, रचना शाही, करुणा त्यागी, अर्चना, दीपक, अजय सिंह चौहान,अमीर चन्द पटेल, राजेश वैद्य,राजन मदान, आदि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मौजूद थे।
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