Sunday, 23 January 2022

क्या जनसमस्याओं को दरकिनार कर नेताओं का चुनाव करेगी जनता ?

  विधान सभा चुनाव 2022 : प्रश्न-1

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
‘द्रष्टा’ की नजर में सकारात्मक सोच (पॉजिटिव थिंकिंग ) रचनात्मकता (क्रिएटीविटी) के लिए अनिवार्य है परन्तु जो झूठ परोसा जा चुका है उसे सकारात्मक सोच (पॉजिटिव थिंकिंग) से बदला नहीं जा सकता है। इस सत्य को मानने से ही रचनात्मक सोच पैदा होगी।   

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने आजादी के 100 साल पूरे होने तक एक नया भारत तैयार करने का लक्ष्य रखा है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट  "इनइक्वलिटी किल्स’’ आ चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में लगभग 84% परिवारों की आय घटी है वहीं अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। ऑक्सफेम ने बताया है कि सबसे अमीर 100 परिवारों की संपत्ति में वृद्धि का लगभग पांचवां हिस्सा एक दिग्गज बिजनेसमैन यानी कि अदानी के बिजनेस में था। 

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"इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" रिपोर्ट में स्पष्ट है कि देश के स्वास्थ्य बजट 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10% की गिरावट देखी गई । यानि जब देश कोरोना महामारी से जुझ रहा था स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा चुकी थी और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी 15 फीसदी पहुंच गयी तब ऐसे समय में अरबपतियों दिन दुगनी रात चौगुनी सम्पत्ति बढ़ रही थी। वहीं दूसरी ओर सरकार कोरोना नियमों की अवहेलना करने वाली बदहवास पीड़ित जनता से धन ऐंठ कर जनआक्रोश को दबा रही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान (मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक) भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है। इस बीच, 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक भारतीयों अत्यधिक गरीबी रेखा के अंदर आए हैं।

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ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा के लिए आवंटन में 6% की कटौती की गई, जबकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन कुल केंद्रीय बजट के 1.5% से घटकर 0.6% हो गया। यह रिपोर्ट देश में स्वास्थ्य असमानता के स्तर को मापने के लिये विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में स्वास्थ्य परिणामों का व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है। विभिन्न समूहों का प्रदर्शन: सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तुलना में, हिंदू, मुसलमानों से, अमीर का प्रदर्शन गरीबों की तुलना में, पुरुष, महिलाओं की तुलना में तथा शहरी आबादी, ग्रामीण आबादी की तुलना में विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों पर बेहतर है। कोविड-19 महामारी ने इन असमानताओं को और बढ़ा दिया है।

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समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्यू में मशहूर अर्थशास्त्री और पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने बेबाकी से अपने विचार रखते हुए कहा कि सरकार को कोरोना वायरस महामारी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चिंता मध्यम वर्ग, छोटे और मझोले क्षेत्र और बच्चों को लेकर है। इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ चमकीले तो कई काले धब्बे हैं. यहाँ 'चमकीले धब्बे' से राजन का मतलब ऐसे बड़े फर्मों से है जो तेजी से प्रगति कर रहे हैं। आईटी और आईटी से जुड़े क्षेत्र भी अच्छा कर रहे हैं। कई क्षेत्रों में यूनिकॉर्न कंपनियाँ सामने आईं हैं और वित्तीय क्षेत्रों को इससे ताकत मिली है। वहीं दूसरी तरफ 'काले धब्बे' से राजन का मतलब बढ़ती बेरोजगारी और कम खरीद शक्ति से है। निम्न मध्यम वर्ग में ये ज्यादा बड़ी चिंता है। साथ ही जो छोटे और मझोले फर्म हैं उन्हें जिस तरीके का आर्थिक दबाव झेलना पड़ रहा है इसे भी राजन ने ''काले धब्बे'' के तौर पर बताया है।

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‘द्रष्टा’ की नजर में आकड़े का मतलब तकनिकी भाषा में काल्पनिक झूठी बाते है। एग्जिट पोल के आंकड़े जैसी काल्पनिक झूठी सामग्री नागरिकों को भ्रमित करने में कामयाब होती रही है। एग्जिट पोल एक माइंडवॉश गेम है जो, लोकतंत्र के लिए घातक है। भविष्य देखने की बातें करना और इन मनगढंत झूठी बातों पर रात-दिन चर्चा करना भला किस प्रकार मतदाता के सतित्व को बचा सकता है? यह एक गंभीर प्रश्न है। सकारात्मक सोच (पॉजीटिव थिंकींग) रचनात्मकता (क्रिएटीविटी) के लिए अनिवार्य है परन्तु, जो झूठ परोसा जा चुका है उसे सकारात्मक सोच (पॉजीटिव थिंकींग) से बदला नहीं जा सकता है। इस सत्य को मानने से ही रचनात्मक सोच पैदा होगी।   

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बड़ी -बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले राजनेताओं के लिए यह विषय चिन्ताजनक नहीं है, अपने चहुंओर सुख ही सुख देख रहे हैं और मीडिया और जनता को सकारात्मक विचारों का चश्मा लगाने की बात कह रहे हैं। अपने जुमलेबाजी के लिए प्रसिद्ध प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भगवान राम का सहारा छोड़ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सहारे नया भारत बनाने की बात कह रहे है। इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को बुझाकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति का अनावरण करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने आजादी के 100 साल पूरे होने तक एक नया भारत तैयार करने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल 2014 से लेकर 2022 तक देश में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानता की खाईं  दिन-प्रतिदिन गहरी होती जा रही है। क्या प्रधानमंत्री नये भारत में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानताओं के साथ नया भारत बनाना चाहते हैं? इस प्रश्न का उत्तर जनता से दूर रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहिए। फिलहाल ‘द्रष्टा’ की नजर विधान सभा चुनाव 2022 पर लगी है। और ‘द्रष्टा’ इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है कि अबकी बार ‘क्या जनसमस्याओं को दरकिनार कर नेताओं का चुनाव करेगी जनता’? 

क्रमश: जारी है.....

..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

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Saturday, 15 January 2022

ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल

 रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 भाग-1

भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 



कोरोना महामारी, आफत और बदइंतजामी के बीच चुनाव की घोषणा हो चुकी है। पांच राज्यों के विधानसभा  चुनाव में यूपी का चुनाव महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में 4 प्रमुख पार्टियां आमने-सामने है। समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी। 2017 के विधान सभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल कर सरकार बनाने वाली भाजपा इस बार कमजोर पड़ रही है। बहुमत हासिल करने में शीर्ष नेतृत्व को ही संदेह है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नौटंकी भजपाईयों के गले की हड्डी बनता जा रहा है। योगी आदित्यनाथ की जातिवादी राजनीति और महिलाओं की उपेक्षा भाजपा को कमजोर कर चुका है। कोरोना में सरकार की बदइंतजामी और बेरहम सत्ता की कु्ररता झेल चुकी यूपी की जनता आक्रोशित है। भाजपा के पदहीन कार्यकर्ताओं में भी असंतोष उबाल मार रहा है। 

‘द्रष्टा’ देख रहा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की चिन्ता का कारण बना हुआ है। 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनाती है? राजनीति का खेल वह नहीं जो दिखाई देता है या दिखलाया जाता है। मीडिया और प्रचारतंत्र के बाद तो राजनीति शुरु होती है। राजनीति के प्यादों को पर्दे के पीछे रहने वाले चलाते है। भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 

भाजपा का डर

भाजपा का अंदरुनी कलह इस बात पर है कि 2017 के ओबीसी वोटरों को 2022 में कैसे लुभाया जाय। परिस्थितियां योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के अनुकूल नहीं है। नरेन्द्र मोदी से देश का किसान नाराज है। पश्चिम यूपी के वोटर नरेन्द्र मोदी की वजह से तो पिछड़े और ब्राह्मण मतदाता योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं। यूपी चुनाव में नरेन्द्र मोदी का क्या काम? इस प्रश्न के जबाब में भाजपा को बताने के लिए कुछ भी नहीं है। बिते सप्ताह से भाजपा के विधायक लगातार इस्तीफे दे रहे हैं और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। बसपा से भाजपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार समाजवादी पार्टी का साथ देने को तैयार हैं। ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल साबित हो सकता है। इस बात को समझते हुए अखिलेश यादव ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी टोपी पहना कर उनका स्वागत किया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का दल बदलना नई बात नहीं है। लेकिन इस बार समय और राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं है। पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलित भाजपा से बेहद नाराज हैं। 

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ओबीसी उत्तर प्रदेश में एक प्रभावशाली और निर्णायक वोट बैंक हैं और हाल के दिनों में बीजेपी के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण हैं। भाजपा इस बार भी ओबीसी समुदायों खासकर गैर यादवों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। ओबीसी उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं का 50 प्रतिशत से अधिक है, जबकि गैर-यादव ओबीसी राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 35 प्रतिशत है। बीजेपी उत्तर प्रदेश ओबीसी मोर्चा ने राज्य भर में संगठनात्मक कार्यों की निगरानी के लिए तीन टीमों का गठन किया था। उत्तर प्रदेश बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में राज्य स्तर पर 32 टीमों का गठन हुआ, जो उत्तर प्रदेश के 6 क्षेत्रों और 75 जिलों में काम की। भाजपा के इतने बड़े अभियान का मकसद 2022 विधान सभा चुनाव में गैर-यादव, छोटी या बड़ी ओबीसी जातियों का समर्थन हासिल करना है। 

सपा का ओबीसी गठबंधन

सपा ने विधानसभा चुनाव के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी), अपना दल अपना दल (कमेरावादी), प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), महान दल, टीएमसी से गठबंधन किया है। सपा में गैर यादव ओबीसी का शामिल होना बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है। केशव मौर्य या ओबीसी वर्ग के नेताओं को सीएम चेहरा न बनाना भाजपा को हार के करीब ले जा रहा है। 

यही कारण है कि भाजपा ने पहली लिस्ट में 107 उम्मीदवारों में से 44 ओबीसी, 19 एसटी और 10 महिलाओं के नाम शामिल किये हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं, उनमें से 83 सीटों पर अभी भाजपा के विधायक हैं। जाहिर है विधायकों की नाराजगी से भाजपा डर गयी। 

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती को सीबीआई का डर भाजपा के निकट ले गया इस बात को दलित भली प्रकार से समझ रहे हैं।  दलित मतदाताओं का बसपा से मोह भंग होना भाजपा को लाभ दे सकता है। परन्तु, दलित मतदाताओं का नेतृत्व बटता हुआ दिखाई दे रहा है। नौजवान नेता चन्द्रशेखर रावण बिते पांच सालों में दलित ओर ओबीसी वर्ग के युवकों में अपनी पैठ मजबूत कर रखी है। दलित वर्ग को नये नेतृत्व की तलाश चन्द्रशेखर रावण पुरी कर रहे हैं। 

कांग्रेस की प्राथमिकता

कांग्रेस ने प्रियंका गॉंधी के नेतृत्व में अपनी स्थिति मजबूत की है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लल्लुराम सपा के मूकाबले बड़ी मजबूती से योगी सरकार का सामना किया। कांग्रेस ने उन्नाव रेप केस की विक्टिम की मां आशा

 रेप केस की विक्टिम की मां आशा सिंह


 
सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है,  आपको बता दें 2017 में उन्नाव की बांगरमऊ सीट से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर एक नाबालिग लड़की ने अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था। बाद में उनके रिश्तेदारों पर दुर्घटना करने का भी मामला भी दर्ज हुआ, इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में योगी सरकार की जमकर आलोचना हुई। आलोचना के बाद सेंगर की विधायकी खत्म कर दी गई थी। सूत्रोंं के मुताबिक कांग्रेस पीड़ित परिवार की महिलाओं की ऐसी सूची तैयार कर रही है, जिन्हें कांग्रेस प्रत्याशी बना सकें।  सूत्रों के मुताबिक योगी सरकार में बेइज्जती, रेप और प्रताड़ना की शिकार हुई महिलाओं की सूची बनाई जा रही हैं। 


उन्नाव और हाथरस की घटना और पीड़िता के पक्ष में मजबूती से कांग्रेस ने संघर्ष किया।  कांग्रेस ने पीड़िता की मां को पार्टी का टिकट देकर महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर दी है। प्रियंका की इस राजनीतिक दांव ने बगैर मुकाबले के ही अखिलेश यादव को नैतिक रुप से चित कर दिया। और सपा ने अपना प्रत्याशी मुकाबले में नहीं खड़ा किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी  ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए 125 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इसमें  40 फीसदी यानी 50 महिलाओं को टिकट दिया गया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के नारे ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ की तर्ज पर कांग्रेस ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस पीड़ित परिवारों से टिकट देने में प्राथमिकता महिलाओं को रख रही है,  यदि परिवार से महिला टिकट चुनाव नहीं लड़ना चाहती तो फिर उसके बाद पुरूष या उनके करीबी रिश्तेदारों को टिकट देने की कांग्रेस की रणनीति है। 

.............क्रमशः जारी है 

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