Thursday 21 January 2021

किसान क्रांन्ति : सरकार का दम्भ बनाम किसानों की मांग और सुप्रीम कोर्ट की दखल

रविकांत सिंह 'द्रष्टा'

एमएसपी के लिए एक कानून बनाने की बात पर किसान कायम

किसान आन्दोलन के 58 दिनों में 148 किसान अब तक शहीद हो चुके है। सरकार और लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 11 वें दौर की बैठक होनी है। 10 वें दौर की बातचीत के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार ने एक से डेढ़ साल तक इन कृषि कानूनों को निलंबित करने का प्रस्ताव किसानों समक्ष रखा है। साथ ही उन्होंने कहा कि ‘जिस दिन किसानों का आंदोलन समाप्त होगा, वह भारतीय लोकतंत्र के लिये जीत होगी’। इससे पहले 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए चार सदस्यों की समीति बनाई थी। जिस पर किसानों ने आपत्ति जताते हुए समीति के सदस्यों को पक्षपाती बताया था और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत न होने का फैसला लिया था। अब 20जनवरी को मुख्य न्यायाधीश किसानों पर भड़कते हुए बोल रहे हैं कि ‘कमेटी के पास कोई पावर ही नहीं, तो वे पक्षपाती कैसे हो गये’? आप समीति के समक्ष पेश नहीं होना चाहते तो, हम आपको बाध्य नहीं करेंगे। लेकिन आप समीति पर आरोप नहीं लगा सकते हैं। किसानों का कहना है कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक एमएसपी के लिए एक कानून बनाने की बात पर वह कायम हैं।

अवश्य पढ़ें किसान क्रांति : प्रधानमंत्री का जुमला बना सरकार की फजीहत


‘द्रष्टा’ देख रहा है कि पूरजोर व पूरअमन तरीके से चल रहे किसान आन्दोलन-2020-21 के परिणाम की घोषणा होने वाली है। समय की परीक्षा में सरकार के मंत्री, किसान और सर्वोच्च न्यायालय शामिल हैं। किसानों का यह आन्दोलन नौजवान पीढ़ियों में जोश भर रहा है और खेती-किसानी में उन्हें जागरुक कर रहा है। किसानों को पहले आतंकवादी और नकली किसान बोलकर बेदिल, संकीर्ण मानसिकता के धनी, लोग उन पर थूक रहे थे। अब उन्हें आसमान पर थूकने का दण्ड मिल रहा है। पलटकर आसमान से गिरे अपने थूक को अब वे चाटने में लग गये हैं। कृषि बिल 2020 को सरकार के मंत्री अपनी निजी सम्पत्ति मानते हुए दुर्योधन की तरह हठ कर रहे हैं। अब हालत यह है कि जिन मंत्रियों के सिर किसानों के सामने झूकने को तैयार नहीं था अब वे कह रहे हैं कि दो साल के लिए हम अपना सिर झूका रहे हैं। सत्ताधीशों के गैर जिम्मेदाराना बयान किसानों को आक्रोशित कर रहा था। 



बंगाल चुनाव और 26 जनवरी को किसानों का दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की घोषणा, सरकार के मंत्रियों की धड़कने बढ़ा रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की किसानों ने धज्जियां उड़ा रखी है। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन सब हराम हो रखा है। किसानों का कहना है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने सरकार की तौहीन खुद कराई है।

'द्रष्टा' संवाददाता ने ‘किसानों का आक्रोश और खतरे में खट्टर सरकार’ नामक शीर्षक में सरकार को सचेत करने की कोशिश की थी। समाचार प्रकाशन के लगभग एक माह बाद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं को समझ आया कि खतरे में है खट्टर सरकार। सत्ता और सत्ताधीश होने के दंभ ने मुख्यमंत्री को बेपरवाह बना दिया। वे नकली किसान सभाएं करने लगे। मुख्यमंत्री के इस चरित्र की जानकारी मिलते ही किसानों ने सभा का टेंट उखाड़ दिया। उनके सहयोगी पार्टी के विधायक बदहवास होकर सरकार गिराने की बात करने लगे। हरियाणा सीएम की केन्द्रिय नेताओं से वार्तालाप शुरु हो गयी। 

तीन नए कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए बुधवार को मोदी सरकार द्वारा थोड़ी नरमी दिखाते हुए कानूनों को डेढ़ वर्ष तक निलंबित रखे जाने के प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया है। लगभग साढ़े पांच घंटे चली 10वें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि आपस में चर्चा जारी रख सकें और दिल्ली की विभिन्न  सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान इस कड़ाके की ठंड में अपने घरों को लौट सकें। नरेन्द्र सिंह तोमर के इन बातों को बेअसर करते हुए किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है।
अवश्य पढ़ें क्या किसान और मजदूर भ्रष्ट सरकारी तंत्र को लॉक डाउन कर सकते हैं ?

सरकार का षड्यंत्र असली और नकली किसानों का भेद जानने के लिए था या कारपोरेट से किये वादे को निभाने की जिद। सरकार के मंत्री इस काम में फेल साबित हो रहे थे तो,केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की शरण में चली गयी। सत्ता ने अपने नागरिकों को कोर्ट में घसीट कर चुनौती दी। सरकार के चाल-चलन से बाकायदा वाकिफ किसान नेताओं को ऐसी ही उम्मीद थी। दोनों पक्ष कोर्ट में भीड़ गये।

कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश शरद अरविन्द बोबडे छाये रहे। नागरिक और सरकार के इस जंग में जजों ने न्यायायिक मर्यादा का ख्याल नहीं रखा। परन्तु, नागरिकों का यह आन्दोलन इस जज की इस गुस्ताखी को भी मान गया। ‘द्रष्टा’ विशेष समय पर उनके प्रत्येक वाक्यों का विश्लेषण करेगा। बहरहाल, सत्ताधीश और न्यायाधीश अपनी ताकत जनता जनार्दन को दिखाने में कामयाब हुए। सरकार ने अब डेढ़ साल के लिए कृषि कानून 2020 पर रोक लगाने का किसानों को प्रस्ताव भेजा है। जिसे किसान नेताओं ने खारिज करते हुए एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं।


अवश्य पढ़ें:

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र

 पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1

drashtainfo@gmail.com

No comments:

Post a Comment

Featured post

द्रष्टा देगा मुक्ति

संपादकीय देश एक भ्रामक दौर से गुजर रहा है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों...