Saturday 15 January 2022

ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल

 रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 भाग-1

भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 



कोरोना महामारी, आफत और बदइंतजामी के बीच चुनाव की घोषणा हो चुकी है। पांच राज्यों के विधानसभा  चुनाव में यूपी का चुनाव महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में 4 प्रमुख पार्टियां आमने-सामने है। समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी। 2017 के विधान सभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल कर सरकार बनाने वाली भाजपा इस बार कमजोर पड़ रही है। बहुमत हासिल करने में शीर्ष नेतृत्व को ही संदेह है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नौटंकी भजपाईयों के गले की हड्डी बनता जा रहा है। योगी आदित्यनाथ की जातिवादी राजनीति और महिलाओं की उपेक्षा भाजपा को कमजोर कर चुका है। कोरोना में सरकार की बदइंतजामी और बेरहम सत्ता की कु्ररता झेल चुकी यूपी की जनता आक्रोशित है। भाजपा के पदहीन कार्यकर्ताओं में भी असंतोष उबाल मार रहा है। 

‘द्रष्टा’ देख रहा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की चिन्ता का कारण बना हुआ है। 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनाती है? राजनीति का खेल वह नहीं जो दिखाई देता है या दिखलाया जाता है। मीडिया और प्रचारतंत्र के बाद तो राजनीति शुरु होती है। राजनीति के प्यादों को पर्दे के पीछे रहने वाले चलाते है। भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 

भाजपा का डर

भाजपा का अंदरुनी कलह इस बात पर है कि 2017 के ओबीसी वोटरों को 2022 में कैसे लुभाया जाय। परिस्थितियां योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के अनुकूल नहीं है। नरेन्द्र मोदी से देश का किसान नाराज है। पश्चिम यूपी के वोटर नरेन्द्र मोदी की वजह से तो पिछड़े और ब्राह्मण मतदाता योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं। यूपी चुनाव में नरेन्द्र मोदी का क्या काम? इस प्रश्न के जबाब में भाजपा को बताने के लिए कुछ भी नहीं है। बिते सप्ताह से भाजपा के विधायक लगातार इस्तीफे दे रहे हैं और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। बसपा से भाजपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार समाजवादी पार्टी का साथ देने को तैयार हैं। ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल साबित हो सकता है। इस बात को समझते हुए अखिलेश यादव ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी टोपी पहना कर उनका स्वागत किया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का दल बदलना नई बात नहीं है। लेकिन इस बार समय और राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं है। पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलित भाजपा से बेहद नाराज हैं। 

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ओबीसी उत्तर प्रदेश में एक प्रभावशाली और निर्णायक वोट बैंक हैं और हाल के दिनों में बीजेपी के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण हैं। भाजपा इस बार भी ओबीसी समुदायों खासकर गैर यादवों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। ओबीसी उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं का 50 प्रतिशत से अधिक है, जबकि गैर-यादव ओबीसी राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 35 प्रतिशत है। बीजेपी उत्तर प्रदेश ओबीसी मोर्चा ने राज्य भर में संगठनात्मक कार्यों की निगरानी के लिए तीन टीमों का गठन किया था। उत्तर प्रदेश बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में राज्य स्तर पर 32 टीमों का गठन हुआ, जो उत्तर प्रदेश के 6 क्षेत्रों और 75 जिलों में काम की। भाजपा के इतने बड़े अभियान का मकसद 2022 विधान सभा चुनाव में गैर-यादव, छोटी या बड़ी ओबीसी जातियों का समर्थन हासिल करना है। 

सपा का ओबीसी गठबंधन

सपा ने विधानसभा चुनाव के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी), अपना दल अपना दल (कमेरावादी), प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), महान दल, टीएमसी से गठबंधन किया है। सपा में गैर यादव ओबीसी का शामिल होना बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है। केशव मौर्य या ओबीसी वर्ग के नेताओं को सीएम चेहरा न बनाना भाजपा को हार के करीब ले जा रहा है। 

यही कारण है कि भाजपा ने पहली लिस्ट में 107 उम्मीदवारों में से 44 ओबीसी, 19 एसटी और 10 महिलाओं के नाम शामिल किये हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं, उनमें से 83 सीटों पर अभी भाजपा के विधायक हैं। जाहिर है विधायकों की नाराजगी से भाजपा डर गयी। 

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती को सीबीआई का डर भाजपा के निकट ले गया इस बात को दलित भली प्रकार से समझ रहे हैं।  दलित मतदाताओं का बसपा से मोह भंग होना भाजपा को लाभ दे सकता है। परन्तु, दलित मतदाताओं का नेतृत्व बटता हुआ दिखाई दे रहा है। नौजवान नेता चन्द्रशेखर रावण बिते पांच सालों में दलित ओर ओबीसी वर्ग के युवकों में अपनी पैठ मजबूत कर रखी है। दलित वर्ग को नये नेतृत्व की तलाश चन्द्रशेखर रावण पुरी कर रहे हैं। 

कांग्रेस की प्राथमिकता

कांग्रेस ने प्रियंका गॉंधी के नेतृत्व में अपनी स्थिति मजबूत की है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लल्लुराम सपा के मूकाबले बड़ी मजबूती से योगी सरकार का सामना किया। कांग्रेस ने उन्नाव रेप केस की विक्टिम की मां आशा

 रेप केस की विक्टिम की मां आशा सिंह


 
सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है,  आपको बता दें 2017 में उन्नाव की बांगरमऊ सीट से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर एक नाबालिग लड़की ने अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था। बाद में उनके रिश्तेदारों पर दुर्घटना करने का भी मामला भी दर्ज हुआ, इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में योगी सरकार की जमकर आलोचना हुई। आलोचना के बाद सेंगर की विधायकी खत्म कर दी गई थी। सूत्रोंं के मुताबिक कांग्रेस पीड़ित परिवार की महिलाओं की ऐसी सूची तैयार कर रही है, जिन्हें कांग्रेस प्रत्याशी बना सकें।  सूत्रों के मुताबिक योगी सरकार में बेइज्जती, रेप और प्रताड़ना की शिकार हुई महिलाओं की सूची बनाई जा रही हैं। 


उन्नाव और हाथरस की घटना और पीड़िता के पक्ष में मजबूती से कांग्रेस ने संघर्ष किया।  कांग्रेस ने पीड़िता की मां को पार्टी का टिकट देकर महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर दी है। प्रियंका की इस राजनीतिक दांव ने बगैर मुकाबले के ही अखिलेश यादव को नैतिक रुप से चित कर दिया। और सपा ने अपना प्रत्याशी मुकाबले में नहीं खड़ा किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी  ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए 125 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इसमें  40 फीसदी यानी 50 महिलाओं को टिकट दिया गया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के नारे ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ की तर्ज पर कांग्रेस ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस पीड़ित परिवारों से टिकट देने में प्राथमिकता महिलाओं को रख रही है,  यदि परिवार से महिला टिकट चुनाव नहीं लड़ना चाहती तो फिर उसके बाद पुरूष या उनके करीबी रिश्तेदारों को टिकट देने की कांग्रेस की रणनीति है। 

.............क्रमशः जारी है 

..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

drashtainfo@gmail.com


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