Thursday 28 January 2021

किसान क्रान्ति: सत्ता के चक्रव्यूह में किसान नेता और षड्यंत्र में फंसा आन्दोलन

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो ,कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

देश के किसानों के साथ धोखा है, अत्याचार है। बीजेपी के विधायक 300 लोगों के साथ लाठियों डंडों के साथ मौजूद हैं। बीजेपी के लोग साजिश कर रहे हैं। बीजेपी किसानों को मरवाना चाहती है। ये उक्त बातें किसान नेता राकेश टिकैत ने प्रेस के सामने भावूक होकर रोते हुए कही। राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद दो किसान संगठनों ने आंदोलन खत्म करने की घोषणा की है।

भारतीय किसान यूनियन (भानु) और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने बुधवार को आंदोलन खत्म कर दिया और प्रदर्शनकारी किसान धरना स्थल से चले गए।इसके साथ ही चिल्ला बॉर्डर से किसान वापस चले गए हैं। यहां करीब 58 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा था। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने आंदोलन वपास लेने की वजह ट्रैक्टर परेड के दौरन हुई हिंसा को बताया है।

किसान नेता राकेश टिकैत

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‘द्रष्टा’ देख रहा है कि देश के किसान और मजदूर आर्थिक तंगी और बदहाली से लाखों किसान बेमौत मारे गये। कृषि कानून 2020 आर्थिक गुलामी की तरफ झोंक देगा इस आशंका से आन्दोलन कर रहे हैं। मीडिया उन्हें आतंकी व असली-नकली किसान बताकर भेद पैदा करने में कामयाब रहा है। देश के लोग जरा भी भावूक नहीं हो रहे। लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो , कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

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गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड सुखदायक और ऐतिहासिक होने वाला था। लेकिन परेड में घात लगाकर पहले से ही मौजूद अराजक तत्वों ने किसानों को गुमराह कर दिया। पुलिस की गुनाहगारों के प्रति नरमी और किसान नेताओं के प्रति सख्ती ने ट्रैक्टर परेड को हिंसक बना दिया। अब इसी हिंसक घटना के सहारे सरकार किसान आन्दोलन को नाकाम बताकर खत्म करवाना चाहती है। साल भर पहले नागरिकता कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को भी रक्त रंजित करवाकर खत्म करवाया गया था। देश के नागरिकों के लिए यह सब मनोरंजन की घटनाएं हैं या उन्हें भूलने की बीमारी। सत्ता ने जो उनकी आँखें बंद कर रखी है वह कब खुलेंगी? यह भी प्रश्न समय पर छोड़ते हैं। 



26 जनवरी से सरकार का पक्ष रखने वाली मीडिया अपने दर्शकों को यह समझाने में कामयाब रही कि किसान गलत हैं। किसान नेताओं ने भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गलती स्वीकार की। किसान नेता शायद ये भूल गये कि सत्ता में बैठे नेताओं ने अपनी बड़ी से बड़ी गलती कभी भी स्वीकार नहीं की। पूलवामा हमले में मारे गये जवानों की साजिश पर मौन रहने वाली जनता 26 जनवरी की घटना पर आक्रोशित हो गई। सत्ताधीशों के दरबारी मीडिया में रात-दिन किसानों को गलत ठहरा कर समाचार प्रस्तुत किया। और इस तरह मीडिया के माध्यम से अपने विचार बनाने वाली आमजनता और किसान नेता सत्ता की साजिशों का शिकार हो गयी। 

गण और तंत्र का शक्ति प्रदर्शन

किसान क्रान्ति के बीच गणतंत्र दिवस का महत्व अधिक बढ़ जाता है। आज गण और तंत्र का ऐतिहासिक टकराव हुआ। किसानों का आक्रोश पुलिस जवानों पर कहर ढा रहा था। किसानों ने अपने रास्तों के पत्थरों और बैरिकेटिग को तोड़ दिया। एहतियातन पुलिस प्रशासन और किसान नेताओं ने जो ऐलान किया था उसकी मर्यादा दोनों ओर से टूटी। किसानों ने अनुशासन में बंधे अपने ही जवानों पर आक्रामकता दिखाई। पुलिस के जवान कहीं भीड़ गये तो, कहीं पीछे हट गये। भूखे प्यासे जवानों को पानी और भोजन खिलाने वाले किसानों का यह तांडव देख कर सरकार सकते में है। जाहिर है किसानों की जज्बाती आक्रामकता का भय उन्हें नहीं होगा परन्तु कुर्सी का भय अवश्य सता रहा होगा। ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाने वाला कृषि कानून 2020 को रद्द करें या रोक के रखें, सत्ताधीश इसी ऊहापोह की स्थिति में हैं।


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पाण्डव नगर थाने के जवानों ने एनएच 24 के मण्डावली फूटब्रीज पर बैरिकेटिंग कर मोर्चा संभाल रखा था। डीटीसी की बसों व ट्रकों को रास्ते से हटाने के लिए किसानों ने तोड़फोड़ कर दी। इस घटना से पार पाते इससे पहले पूलिस के जवान आन्दोलित किसानों से घिर चुके थे। महिला पुलिसकर्मी किसानों के आगे बेबस लाचार दिख रही थी। इसके बावजूद वे डटी रहीं और अपने साथियों की मदद करती रहीं। किसानों का जत्था सत्ता की चुनौति को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ गये। ऐसी क्रान्तियां नई पीढ़ी को सबक सीखाने के लिए काफी हैं बशर्ते उनका स्पष्ट मन और मत हो। पक्षपाती विचारधारा वाले सबक नहीं सीख सकते है। कोई नई पीढ़ी को सिखाए इससे अच्छा है स्वयं में जिज्ञासु प्रवृत्ति पैदा करें व सीखें। 

सरकार वह सभी संशाधनों को अपने हाथों में रखना चाहती है जो नागरिकों को मौलिक अधिकार कर्तव्य पूरा करने के लिए मिले हैं। सत्ताधीशों को सत्ता जाने का भय सताने लगा है। प्रेस सूचनाओं पर नियंत्रण इस बात का स्पष्ट संकेत है। इलेक्ट्रानिक मीडिया को ध्वस्त करने के लिए इंटरनेट सेवा आज के दिन ठप कर दी गयी। संविधान व उपभोक्ता कानूनों की धज्जियां उड़ाकर प्रशासन ने रख दी है। प्रभावित नागरिक यदि कोर्ट चले गये तो, इसका दण्ड भी सरकार को भुगतना पड़ेगा। 

‘द्रष्टा’ आन्दोलन के महतवपूर्ण घटनाओं को एकटक होकर देख रहा है। आन्दोलन के साथ ऐसी नाइंसाफी सत्ता ने कई बार की है। अब चक्रव्यूह में किसान नेता फंसे है और षड्यंत्र में फंसा है किसान आन्दोलन। देश के नौजवानों के लिए सबक बनने वाले इस आन्दोलन की परिणति क्या होगी? इस प्रश्न को समय पर छोड़ देते हैं।


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