Sunday, 23 January 2022

क्या जनसमस्याओं को दरकिनार कर नेताओं का चुनाव करेगी जनता ?

  विधान सभा चुनाव 2022 : प्रश्न-1

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
‘द्रष्टा’ की नजर में सकारात्मक सोच (पॉजिटिव थिंकिंग ) रचनात्मकता (क्रिएटीविटी) के लिए अनिवार्य है परन्तु जो झूठ परोसा जा चुका है उसे सकारात्मक सोच (पॉजिटिव थिंकिंग) से बदला नहीं जा सकता है। इस सत्य को मानने से ही रचनात्मक सोच पैदा होगी।   

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने आजादी के 100 साल पूरे होने तक एक नया भारत तैयार करने का लक्ष्य रखा है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट  "इनइक्वलिटी किल्स’’ आ चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में लगभग 84% परिवारों की आय घटी है वहीं अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। ऑक्सफेम ने बताया है कि सबसे अमीर 100 परिवारों की संपत्ति में वृद्धि का लगभग पांचवां हिस्सा एक दिग्गज बिजनेसमैन यानी कि अदानी के बिजनेस में था। 

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"इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" रिपोर्ट में स्पष्ट है कि देश के स्वास्थ्य बजट 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10% की गिरावट देखी गई । यानि जब देश कोरोना महामारी से जुझ रहा था स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा चुकी थी और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी 15 फीसदी पहुंच गयी तब ऐसे समय में अरबपतियों दिन दुगनी रात चौगुनी सम्पत्ति बढ़ रही थी। वहीं दूसरी ओर सरकार कोरोना नियमों की अवहेलना करने वाली बदहवास पीड़ित जनता से धन ऐंठ कर जनआक्रोश को दबा रही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान (मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक) भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है। इस बीच, 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक भारतीयों अत्यधिक गरीबी रेखा के अंदर आए हैं।

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ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा के लिए आवंटन में 6% की कटौती की गई, जबकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन कुल केंद्रीय बजट के 1.5% से घटकर 0.6% हो गया। यह रिपोर्ट देश में स्वास्थ्य असमानता के स्तर को मापने के लिये विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में स्वास्थ्य परिणामों का व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है। विभिन्न समूहों का प्रदर्शन: सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तुलना में, हिंदू, मुसलमानों से, अमीर का प्रदर्शन गरीबों की तुलना में, पुरुष, महिलाओं की तुलना में तथा शहरी आबादी, ग्रामीण आबादी की तुलना में विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों पर बेहतर है। कोविड-19 महामारी ने इन असमानताओं को और बढ़ा दिया है।

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समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्यू में मशहूर अर्थशास्त्री और पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने बेबाकी से अपने विचार रखते हुए कहा कि सरकार को कोरोना वायरस महामारी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चिंता मध्यम वर्ग, छोटे और मझोले क्षेत्र और बच्चों को लेकर है। इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ चमकीले तो कई काले धब्बे हैं. यहाँ 'चमकीले धब्बे' से राजन का मतलब ऐसे बड़े फर्मों से है जो तेजी से प्रगति कर रहे हैं। आईटी और आईटी से जुड़े क्षेत्र भी अच्छा कर रहे हैं। कई क्षेत्रों में यूनिकॉर्न कंपनियाँ सामने आईं हैं और वित्तीय क्षेत्रों को इससे ताकत मिली है। वहीं दूसरी तरफ 'काले धब्बे' से राजन का मतलब बढ़ती बेरोजगारी और कम खरीद शक्ति से है। निम्न मध्यम वर्ग में ये ज्यादा बड़ी चिंता है। साथ ही जो छोटे और मझोले फर्म हैं उन्हें जिस तरीके का आर्थिक दबाव झेलना पड़ रहा है इसे भी राजन ने ''काले धब्बे'' के तौर पर बताया है।

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‘द्रष्टा’ की नजर में आकड़े का मतलब तकनिकी भाषा में काल्पनिक झूठी बाते है। एग्जिट पोल के आंकड़े जैसी काल्पनिक झूठी सामग्री नागरिकों को भ्रमित करने में कामयाब होती रही है। एग्जिट पोल एक माइंडवॉश गेम है जो, लोकतंत्र के लिए घातक है। भविष्य देखने की बातें करना और इन मनगढंत झूठी बातों पर रात-दिन चर्चा करना भला किस प्रकार मतदाता के सतित्व को बचा सकता है? यह एक गंभीर प्रश्न है। सकारात्मक सोच (पॉजीटिव थिंकींग) रचनात्मकता (क्रिएटीविटी) के लिए अनिवार्य है परन्तु, जो झूठ परोसा जा चुका है उसे सकारात्मक सोच (पॉजीटिव थिंकींग) से बदला नहीं जा सकता है। इस सत्य को मानने से ही रचनात्मक सोच पैदा होगी।   

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बड़ी -बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले राजनेताओं के लिए यह विषय चिन्ताजनक नहीं है, अपने चहुंओर सुख ही सुख देख रहे हैं और मीडिया और जनता को सकारात्मक विचारों का चश्मा लगाने की बात कह रहे हैं। अपने जुमलेबाजी के लिए प्रसिद्ध प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भगवान राम का सहारा छोड़ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सहारे नया भारत बनाने की बात कह रहे है। इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को बुझाकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति का अनावरण करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने आजादी के 100 साल पूरे होने तक एक नया भारत तैयार करने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल 2014 से लेकर 2022 तक देश में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानता की खाईं  दिन-प्रतिदिन गहरी होती जा रही है। क्या प्रधानमंत्री नये भारत में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानताओं के साथ नया भारत बनाना चाहते हैं? इस प्रश्न का उत्तर जनता से दूर रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहिए। फिलहाल ‘द्रष्टा’ की नजर विधान सभा चुनाव 2022 पर लगी है। और ‘द्रष्टा’ इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है कि अबकी बार ‘क्या जनसमस्याओं को दरकिनार कर नेताओं का चुनाव करेगी जनता’? 

क्रमश: जारी है.....

..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

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Saturday, 15 January 2022

ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल

 रविकांत सिंह 'द्रष्टा'
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 भाग-1

भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 



कोरोना महामारी, आफत और बदइंतजामी के बीच चुनाव की घोषणा हो चुकी है। पांच राज्यों के विधानसभा  चुनाव में यूपी का चुनाव महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में 4 प्रमुख पार्टियां आमने-सामने है। समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी। 2017 के विधान सभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल कर सरकार बनाने वाली भाजपा इस बार कमजोर पड़ रही है। बहुमत हासिल करने में शीर्ष नेतृत्व को ही संदेह है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नौटंकी भजपाईयों के गले की हड्डी बनता जा रहा है। योगी आदित्यनाथ की जातिवादी राजनीति और महिलाओं की उपेक्षा भाजपा को कमजोर कर चुका है। कोरोना में सरकार की बदइंतजामी और बेरहम सत्ता की कु्ररता झेल चुकी यूपी की जनता आक्रोशित है। भाजपा के पदहीन कार्यकर्ताओं में भी असंतोष उबाल मार रहा है। 

‘द्रष्टा’ देख रहा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की चिन्ता का कारण बना हुआ है। 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनाती है? राजनीति का खेल वह नहीं जो दिखाई देता है या दिखलाया जाता है। मीडिया और प्रचारतंत्र के बाद तो राजनीति शुरु होती है। राजनीति के प्यादों को पर्दे के पीछे रहने वाले चलाते है। भारतीय जनता पार्टी  को इस बार चुनावी समर में विपक्षी पार्टियों से नहीं आम जनता से लड़ना होगा। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों का विकासशील नजरिया जनता को आकर्षित नहीं कर रही है। भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों के कम नक्कारे होने व उनकी सहिष्णुता मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। विपक्षी पार्टियों को केवल मौकापरस्ती का लाभ मिल सकता है। 

भाजपा का डर

भाजपा का अंदरुनी कलह इस बात पर है कि 2017 के ओबीसी वोटरों को 2022 में कैसे लुभाया जाय। परिस्थितियां योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के अनुकूल नहीं है। नरेन्द्र मोदी से देश का किसान नाराज है। पश्चिम यूपी के वोटर नरेन्द्र मोदी की वजह से तो पिछड़े और ब्राह्मण मतदाता योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं। यूपी चुनाव में नरेन्द्र मोदी का क्या काम? इस प्रश्न के जबाब में भाजपा को बताने के लिए कुछ भी नहीं है। बिते सप्ताह से भाजपा के विधायक लगातार इस्तीफे दे रहे हैं और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। बसपा से भाजपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार समाजवादी पार्टी का साथ देने को तैयार हैं। ओबीसी नेतृत्व के बगैर यूपी की सत्ता में भाजपा का आना मुश्किल साबित हो सकता है। इस बात को समझते हुए अखिलेश यादव ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी टोपी पहना कर उनका स्वागत किया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का दल बदलना नई बात नहीं है। लेकिन इस बार समय और राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं है। पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलित भाजपा से बेहद नाराज हैं। 

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ओबीसी उत्तर प्रदेश में एक प्रभावशाली और निर्णायक वोट बैंक हैं और हाल के दिनों में बीजेपी के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण हैं। भाजपा इस बार भी ओबीसी समुदायों खासकर गैर यादवों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। ओबीसी उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं का 50 प्रतिशत से अधिक है, जबकि गैर-यादव ओबीसी राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 35 प्रतिशत है। बीजेपी उत्तर प्रदेश ओबीसी मोर्चा ने राज्य भर में संगठनात्मक कार्यों की निगरानी के लिए तीन टीमों का गठन किया था। उत्तर प्रदेश बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में राज्य स्तर पर 32 टीमों का गठन हुआ, जो उत्तर प्रदेश के 6 क्षेत्रों और 75 जिलों में काम की। भाजपा के इतने बड़े अभियान का मकसद 2022 विधान सभा चुनाव में गैर-यादव, छोटी या बड़ी ओबीसी जातियों का समर्थन हासिल करना है। 

सपा का ओबीसी गठबंधन

सपा ने विधानसभा चुनाव के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी), अपना दल अपना दल (कमेरावादी), प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), महान दल, टीएमसी से गठबंधन किया है। सपा में गैर यादव ओबीसी का शामिल होना बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है। केशव मौर्य या ओबीसी वर्ग के नेताओं को सीएम चेहरा न बनाना भाजपा को हार के करीब ले जा रहा है। 

यही कारण है कि भाजपा ने पहली लिस्ट में 107 उम्मीदवारों में से 44 ओबीसी, 19 एसटी और 10 महिलाओं के नाम शामिल किये हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं। जिन 107 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी किए गए हैं, उनमें से 83 सीटों पर अभी भाजपा के विधायक हैं। जाहिर है विधायकों की नाराजगी से भाजपा डर गयी। 

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती को सीबीआई का डर भाजपा के निकट ले गया इस बात को दलित भली प्रकार से समझ रहे हैं।  दलित मतदाताओं का बसपा से मोह भंग होना भाजपा को लाभ दे सकता है। परन्तु, दलित मतदाताओं का नेतृत्व बटता हुआ दिखाई दे रहा है। नौजवान नेता चन्द्रशेखर रावण बिते पांच सालों में दलित ओर ओबीसी वर्ग के युवकों में अपनी पैठ मजबूत कर रखी है। दलित वर्ग को नये नेतृत्व की तलाश चन्द्रशेखर रावण पुरी कर रहे हैं। 

कांग्रेस की प्राथमिकता

कांग्रेस ने प्रियंका गॉंधी के नेतृत्व में अपनी स्थिति मजबूत की है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लल्लुराम सपा के मूकाबले बड़ी मजबूती से योगी सरकार का सामना किया। कांग्रेस ने उन्नाव रेप केस की विक्टिम की मां आशा

 रेप केस की विक्टिम की मां आशा सिंह


 
सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है,  आपको बता दें 2017 में उन्नाव की बांगरमऊ सीट से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर एक नाबालिग लड़की ने अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था। बाद में उनके रिश्तेदारों पर दुर्घटना करने का भी मामला भी दर्ज हुआ, इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में योगी सरकार की जमकर आलोचना हुई। आलोचना के बाद सेंगर की विधायकी खत्म कर दी गई थी। सूत्रोंं के मुताबिक कांग्रेस पीड़ित परिवार की महिलाओं की ऐसी सूची तैयार कर रही है, जिन्हें कांग्रेस प्रत्याशी बना सकें।  सूत्रों के मुताबिक योगी सरकार में बेइज्जती, रेप और प्रताड़ना की शिकार हुई महिलाओं की सूची बनाई जा रही हैं। 


उन्नाव और हाथरस की घटना और पीड़िता के पक्ष में मजबूती से कांग्रेस ने संघर्ष किया।  कांग्रेस ने पीड़िता की मां को पार्टी का टिकट देकर महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर दी है। प्रियंका की इस राजनीतिक दांव ने बगैर मुकाबले के ही अखिलेश यादव को नैतिक रुप से चित कर दिया। और सपा ने अपना प्रत्याशी मुकाबले में नहीं खड़ा किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी  ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए 125 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इसमें  40 फीसदी यानी 50 महिलाओं को टिकट दिया गया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के नारे ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ की तर्ज पर कांग्रेस ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस पीड़ित परिवारों से टिकट देने में प्राथमिकता महिलाओं को रख रही है,  यदि परिवार से महिला टिकट चुनाव नहीं लड़ना चाहती तो फिर उसके बाद पुरूष या उनके करीबी रिश्तेदारों को टिकट देने की कांग्रेस की रणनीति है। 

.............क्रमशः जारी है 

..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

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 किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 1

 सरकार का दम्भ बनाम किसानों की मांग और सुप्रीम कोर्ट की दखल

किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें

किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र

बाटी-चोखा के बीच अखिल भारतीय पंचायत परिषद् में कृषि बिल और पंचायत की स्वायत्तता पर चर्चा

 पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

गजनवी की नाजायज औलादें -1




 

Sunday, 3 October 2021

आदमखोर सत्ता के पुजारी

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है- पार्ट 6

यह घटना न केवल एक अहंकारी सत्ता के हाथों किसानों को मारे जाने की है और न ही एक बद्जात, क्रूर आतताई द्वारा गाड़ी से कूचले जाने वाले किसानों की मौत के बारे में है। बल्कि यह घटना उस विषय और प्रश्नों की ओर ले जाती है कि क्यों चॉंद और मंगल तक पहुंच बनाने वाली मानव सभ्यता के समकालीन ऐसी क्रूर घटनाएं हो रही है? 



उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में 3 अक्टूबर को गृह राज्य मंत्री भारत सरकार अजय मिश्रा के बेटे ने किसानों को कुचलकर मारडाला। सत्ता शक्ति के ओवरडोज से पगलाये आशीष उर्फ मोनू मिश्रा ने दर्जन भर किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी। खबर मिलने तक 5 किसानों की मौत हो चूकी है और कई घायल अस्पताल में दर्द से चीख-चिल्ला रहे हैं। घटना के तुरन्त बाद ही प्रशासन ने इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी ताकि किसानों की चिख-पुकार कोई सून न सके। इसके बावजूद तमाम हमदर्द किसान नेता और राजनेता दलबल सहित लखीमपुर खीरी के लिए कूच कर चूके हैं। आदमखोर सत्ता और उसके पुजारियों को लेकर किसानों में आक्रोश की ज्वालाएं भड़क रही हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत और भारतीय किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेन्द्र तिवारी लखीमपुर खीरी देर रात तक पहुंच गये हैं। राकेश टिकैत किसानों के बीच पंचायत कर रहे हैं तो वहीं भारतीय किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेन्द्र तिवारी दोषियों को सख्त सजा दिलाने के लिए सरकार से अपील कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ ने कहा है कि घटना में जो भी संलिप्त होगा सरकार उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी। साथ ही उन्होंने अपील किया है कि क्षेत्र के लोग किसी के बहकावे में न आवें।

‘जय जवान और जय किसान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री और अहिंसा के पुजारी महात्मा गॉंधी के रास्ते चलने की बात करने वाले अब पंचायत में क्या निर्णय लेते हैं। इस बात को ‘द्रष्टा’ समय पर छोड़ रहा है। हिंसक विचार रखने वालों के सरगना व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस प्रमुख को तलब किया है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था प्रशान्त कुमार, आयुक्त और आईजी लखनऊ मौके पर मौजूद हैं। 
उत्तम कार्यों में कृषि कार्य सर्वोंत्तम कार्य है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक की जो मानव सभ्यता फलफूल रही है उसका आधार ही खेती और किसान हैं। इसके बावजूद खेत हड़पे और किसान कूचले जा रहे हैं। देश का भविष्य उस संक्रान्ति काल से गुजर रहा है जिसका जिक्र ‘द्रष्टा’ करता आ रहा है। यह घटना न केवल एक अहंकारी सत्ता के हाथों किसानों को मारे जाने की है और न ही एक बद्जात, क्रूर आतताई द्वारा गाड़ी से कूचले जाने वाले किसानों की मौत के बारे में है। बल्कि यह घटना उस विषय और प्रश्नों की ओर ले जाती है कि क्यों चॉंद और मंगल तक पहुंच बनाने वाली मानव सभ्यता के समकालीन ऐसी क्रूर घटनाएं हो रही है? 

आत्महत्या से मरने वाले किसानों की खबरे विशेष नहीं है लेकिन लखीमपुर खीरी में मरने वाले किसानों की घटना विशेष है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के आतताई पुत्र ने अहंकार में चूर बड़ी ही निर्दयता से अहिंसक प्रदर्शन कर रहे किसानों को गाड़ी से कुचल कर मार डाला। सत्ता का इतना नशा और वीभत्स चेहरा केवल फिल्मों में देखने को मिलता है। अब लखीमपुर खीरी की घटना नई पीढ़ी अपनी आँखों से देख रही है। सभ्य कहने वाले मानव का व्यवहार जानवरों की तरह अब भी है। 

आत्महत्या करना पाप है परिस्थितियों का मुकाबला करना सत्यकर्म है। ऐसी बातें सोचकर किसानों ने परिस्थितियों से मुकाबले की ठानी। तो, श्रम का महत्व न समझने वाली सत्ता ने सत्यकर्म करने वाले किसानों को भ्रष्ट व्यवस्था के पोषकों के हवाले कर दिया। द्रष्टा देख रहा है कि जमीन पर गिद्ध दृष्टि जमाए कारपोरेट किसानों को जीने नहीं दे रहा है। लगातार कृषि और किसानों की हालत खराब करने में जूटा है। .............क्रमशः जारी है 

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किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें

किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र

बाटी-चोखा के बीच अखिल भारतीय पंचायत परिषद् में कृषि बिल और पंचायत की स्वायत्तता पर चर्चा

 पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1


Saturday, 1 May 2021

ईम्यूनिटी, कम्युनिटी, मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी सब ‘सिस्टम’ के वेंटिलेटर पर

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

देश को नरेन्द्र मोदी से अधिक ऑक्सीजन की जरुरत - 1

-सिस्टम यानी तंत्र का कोई स्वयं में अपना वजूद नहीं है। नागरिक मान्यताओं व कर्तव्यों के आधार पर तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व है।

-आपदा को अवसर बना लेने वाले गिद्ध अब भी लाशों को नोचने खाने में जुटे हैं। 



ईम्यूनिटी, कम्युनिटी,  मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करने वाला मानव ऑक्सीजन  (प्राण वायु) के बिना तड़प रहा है। अपने विकास पर इतराने वाली मानव सभ्यता खुद के बनाये तंत्र (सिस्टम) में तड़प रही है। इस सिस्टम के कारण सैकड़ों लोग रोज मर रहे हैं। चिताओं की लपटें आकाश छू रही हैं। मृत्यु शैया पर सज्जन और अपराधी सभी मानवता की दुहाई दे रहे हैं। आपदा को अवसर बना लेने वाले गिद्ध अब भी लाशों को नोचने खाने में जुटे हैं। 

कब, कहां, क्या, क्यों और कैसे घटना हुई। अब यह महत्व का समाचार नहीं रहा। प्रतिक्षण मानवता की दुहाई दी जा रही है और कुचली जा रही है।  उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी तिलकधारी सिंह की पत्नी राजकुमारी को बुखार आया और दम तोड़ दिया। कोरोना संक्रमण के डर से कोई पास नहीं आया। परिवार गांव के लोगों ने साथ छोड़ दिया तो हताश होकर एक वृद्ध अपनी पत्नि को साईकिल के फ्रेम में लादकर अंतिम संस्कार करने का प्रयास किया लेकिन बुजुर्ग होने की वजह से जल्द ही थक कर बैठ गया और किस्मत पर रोने लगा। 'द्रष्टा' ने देखा कि कोरोना महामारी के डर से मानवता की दुहाई देने वाला सभ्य गॉव-समाज वृद्ध के साथ नहीं है। 

जौनपुर के ही विक्की अग्रहरि नामक युवक कहता है कि "मैं मरीजों को बिना आक्सीजन के तड़पते हुए देख नहीं सका तो मैंने अपनी एंबुलेंस से ही ऑक्सीजन सिलेंडर निकाल कर ऑक्सीजन दे दी।" तो सिस्टम को चलाने वाले जिलाधिकारी मनीष वर्मा कहते हैं कि  "हमारे अधिकारी और मेडिकल स्टाफ भी अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं। उनके प्रयासों को तो मीडिया में जगह नहीं मिलती है लेकिन जब कोई नकारात्मक खबर आती है तो उसे उछाल दिया जाता है। इससे अधिकारियों का मनोबल भी गिरता है।" इसीलिए सीएमओ की शिकायत पर विक्की अग्रहरी के खिलाफ जौनपुर कोतवाली में  महामारी एक्ट की धारा 3 और भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 269 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।

कहीं एम्बुलेंस वाले मरीज के परिजनों को ब्लैकमेल कर रहे हैं तो कहीं डॉक्टर अस्पताल में बेड दिलाने के नाम पर मनमानी रकम ऐंठ रहे हैं। द्रष्टा से कुछ लोगों ने शिकायतें की हैं कि मेरठ प्रशासन के अधिकारीे लाखों रुपये की रिश्वत मांग रहे हैं। न देने पर ऑक्सीजन रिफिलिंग प्लांट को बंद करने की धमकी दे रहे हैं। सिस्टम(तंत्र) के अधिकारियों को फांसी पर लटका देने वाले हाईकोर्ट के आदेशों का भी डर नहीं है। 

तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व

द्रष्टा साफ देख रहा है कि ईम्यूनिटी, कम्युनिटी,  मोरैलिटी, यूनिटी और ह्यूमैनिटी सब ‘सिस्टम’ के वेंटिलेटर पर है। राजनेता कहते नहीं अघाते कि देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए हमने सिस्टम बनाया है। सिस्टम अर्थात तंत्र जो देश के नागरिकों के लिए बनाया गया है वह पूंजीपतियों व चापलूस राजनेताओं के अधीन सदा से ही रहा है। इस सिस्टम को कोरोना वायरस ने ध्वस्त कर दिया है यह बात सत्य नहीं है। सत्य यह है कि सिस्टम ने ही कोरोना वायरस को पांव पसारने व ऐसी तबाही का मौका दिया। किसी व्यक्ति विशेष राजनेता पर टिप्पणी करके नागरिक कर्तव्यों से बचा नहीं जा सकता है। मजबूरी में ही सही हम सभी इस सिस्टम को मान्यता देते हैं और इसी के सहारे जीवन जीते भी हैं। सिस्टम यानी तंत्र का कोई स्वयं में अपना वजूद नहीं है। नागरिक मान्यताओं व कर्तव्यों के आधार पर तंत्र (सिस्टम) का अस्तित्व है।

‘द्रष्टा’ का मानना है कि ‘‘नागरिक जब अपने कर्तव्यों को नजर अंदाज कर जीवन जीने लगता है तब तंत्र (सिस्टम) को मान्यता नहीं मिलती है।’’ कुछ लोग अपनी अल्पज्ञता में यह कहते हैं कि फलाने अचानक बीमार हो गए, अचानक काम बिगड़ गया या सिस्टम अचानक फेल हो गया। नियति को लेकर अल्पज्ञों ने ऐसी बड़ी गलतफहमी पाल रखी है। दुनिया में अचानक कुछ भी घटित नहीं होता है। व्यक्ति को जानकारी अचानक मिल सकती है लेकिन नियति का कार्य अचानक नहीं होता है।

प्रधानमंत्री ने नैतिकता (मोरैलिटी) खो दिए  

जीव गर्भ से लेकर जीवन और मृत्यु तक अनेकों प्रकार के वायरस (विषाणु) से घिरा होता है। जब जीव की इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होने लगती है तब विषाणु उसके शरीर को खाने लगते हैं। जीव अनजाने में करोड़ों विषाणुओं का प्रतिक्षण भक्षण करते हैं। मानव इस प्रक्रिया को भली-भांति जानता है। और नजरअंदाज भी कर देता है। इस प्रकार मानव दूरदर्शी व दूरगामी सोच और नियति के परिणामों को स्वीकार न कर विनाश को आमंत्रित करता है। नागरिक परेशान है इसके पीछे केवल कोरोनावायरस कारण नहीं है। बल्कि मानव स्वयं है। मानव समाज के लिए ऐसी चीजें नई नहीं है पहले भी ऐसी महामारी रही हैं। मानव हर तरह की परिस्थितियों से लड़ने और विनाशकारी चुनौतियों को स्वीकार करने में सक्षम है। लेकिन यह तभी संभव है जब मानव की एकता बनी रहे। अब एकता और अखंडता को ध्वस्त करने वाले बदजुबान, बद्गुमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी ‘सिस्टम’ के सहारे सत्ताधीश बने रहना चाहते हैं जिस सिस्टम का स्वयं में अस्तित्व ही नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार आपदा को बनियागिरी वाला अवसर बना लिए नैतिकता खो दिए।

सामाजिकता का विध्वंश

देश के नागरिक अपने बेकाबू जज्बात को काबू में कर साफ नजरिये से विचार करें कि राजनेताओं और इस सरकार के चहेतों ने समय- समय पर कम्यूनिटी(धर्मिकता) पर हमले करते रहे हैं। नेताओं ने पहले नागरिकों में जाति-धर्म के नाम पर उन्माद पैदा किये। नागरिकों को आपस में लड़ाए और हत्याएं कराई। नागरिकों की एकता और अखण्डता को तार-तार कर डाला। सामाजिक प्रेम और सौहार्द को छिन्न-भिन्न किया संगठित करने वाले न्यायप्रिय लोगों को डराया। राजनेताओं बिकाऊं शख्शियतों ने हमारे बीच मनभेद पैदा कर सामाजिकता का विध्वंश किया। 

मानव की ईम्यूनिटी की तरह समाज की बुराई से लड़ने की शक्ति कमजोर पड़ गयी और फिर पूंजीवादी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सुनहरा अवसर बनाने के लिए आपदा को निमंत्रण दे दिया। मानव समाज के सिस्टम (तंत्र) ने आर्थिक असमानता को और असमानता ने कुपोषण को जन्म दिया। विषाणुओं ने कुपोषित शरीर को खाना शुरू कर दिया।  इस तरह की विनाशकारी परिस्थितियों का जन्म मानवीय एकता और अखंडता खत्म होने से ही होती है। कोरोना महामारी दूरगामी सोच को नजरअंदाज करने का परिणाम है कि आज मानव की इम्युनिटी(रोग प्रतिरोधक क्षमता) घटी तो कम्युनिटी (धर्मिकता) में भूचाल आ गया और वर्तमान में ह्यूमैनिटी(मानवता) व यूनिटी (एकता) को नियति ने सिस्टम (तंत्र ) के वेंटिलेटर पर पहुंचा दी है।



..............(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

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Friday, 29 January 2021

किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग

 

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
स्वर्ग की सैर -7

अमीर-गरीब का भेदभाव इन सुविधाभोगी मंत्रियों में मरने के बाद भी विद्यमान है। किसानों के पसीने से इन हरामखोर मंत्रियों को बदबू आती है। ये मंत्री धरती से स्वर्ग में आने वाले दरवाजे को किसानों के लिए बंद कर दिये हैं। जीते जी किसान, धरती के भोग -विलास में डूबे नागरिकों की समस्या हैं और मरने के बाद स्वर्गवासियों की समस्या बन रहे हैं।


...आध्यात्मिक व्यक्ति इस जगत को नश्वर और काल्पनिक मानता है। कल्पनाएं ही उसकी उम्मीदें हैं और उम्मीदों के सहारे ही वह कभी-कभी नश्वर हकीकत से रुबरु हो पाता है। मैं विचारों के प्रवाह में तैर रहा था तभी दो देवदूत देवराज का संदेशा लेकर प्रकट हुए। एक ने कहा कि आप को स्वर्ग की सभा में उपस्थित होने के लिए देवराज ने आदेश दिया है। मैं अपनी कल्पनाओं को हकीकत का रुप दे पाता इससे पहले दूत स्वर्ग में जल्द चलने की बात दोहराने लगे। मैंने दूतों से छण भर रुकने को कहा परन्तु, दूतों ने अपने मन की बात की और दोनों दूतों ने मेरा हाथ पकड़कर स्वर्ग में खड़ा कर दिया....

स्वर्ग में देवराज सहित सभी देवता पहले से ही उपस्थित थे। देवता मुंह लटकाए अपने-अपने आसनों से बंधे थे। गुरु वृहस्पति भी चिन्ता के सागर में गोते लगाते दिखाई पड़ रहे थे। मैं भी अपनी पुरानी टुटी हई कुर्सी पर बैठ गया। मुझे देखते ही देवताओं ने घूरना शुरु कर दिया। देवताओं का तेवर मेरे मन में घबराहट पैदा कर सकती थी लेकिन धरती पर सत्ताधीशों के तेवर की तुलना में मुझे देवताओं का तेवर फिका लग रहा था। मैं कारण समझ रहा था। स्वभावत: द्रष्टा के तौर पर मैं निर्भय हूँ।  

(डैसिंग देवराज और ब्यूटिफूल इंद्राणी का आगमन हुआ। देवराज ने मेरी ओर अपनी नजरें घूमाई और पूछा)

देवराज- कब खत्म होगा ए किसान आन्दोलन? तुम्हारी सरकार निर्णय क्यों नहीं ले पा रही है?

द्रष्टा- देवराज मैं आपके प्रश्नों का जबाब दे दूँगा लेकिन आपको बताना होगा कि ‘‘किसान आन्दोलन से आपका क्या सरोकार है’’?

देवराज- ‘प्रश्न’ का उत्तर ‘प्रश्न’ नहीं होता द्रष्टा। आप मेरे प्रश्नों का सीधा उत्तर दें। 

द्रष्टा-  मैंने कहा न कि ‘‘पहले आपको बताना होगा कि किसान आन्दोलन से आपका क्या सरोकार है।

देवराज-(मुंह बनाते हुए) मेरे स्वर्ग में भी किसान आन्दोलन गति पकड़ रहा है। देवराज मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं। भारतवर्ष की सरकार पर फर्क पड़े या न पड़े परन्तु, मेरी सरकार पर तो फर्क पड़ने लगा है।

द्रष्टा-  वो कैसे?

देवराज- स्वर्ग में अन्नदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। एक से बढ़कर एक किसान नेता पहले से ही स्वर्ग में अड़ी जमाए बैठे हैं। स्वामी सहजानन्द सरस्वती और सबके प्रिय बापू स्वर्गवासियों को स्वच्छता और चरखे से सूत काटना सिखा रहे हैं। भगत सिंह अपने साथियों के साथ इंकलाब के नारे लगा रहे हैं। सुभाष नेता जी अभी भी 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा' की रट लगा रहे हैं। यही नहीं चन्द्रशेखर आजाद मुझे गोली मारने पर आमादा हैं। स्वर्ग में अचानक इन क्रान्तिकारियों का यह तेवर देखकर सभी स्वर्ग के देवता दहशत में हैं।  

इंद्राणी- हां द्रष्टा, देवराज जी को अपनी कुर्सी और जान जाने का डर सता रहा है। 

देवगुरु वृहस्पति-इसीलिए, मैंने स्वर्ग में प्रेस कांन्फ्रैस बुलाई है। 

द्रष्टा - तो यह बात है, देवराज ने कुर्सी और जान जाने के भय के कारण ये प्रेस कांफ्रेंस बुलाई है। तो, देवराज पृथ्वीवासियों की तरह आप भी द्रष्टा के साथ बेवजह का सवाल करने लगे हैं। आपको केवल अपनी समस्या बतानी चाहिए न कि सवाल करना चाहिए। सवाल करना मेरा काम है। आप भी मीडिया को अपने कब्जे में लेने की सोच रहे हैं क्या?

इंद्राणी- (देवराज के भय का भेद खोलते हुए)वो क्या है न द्रष्टा, धरती पर गंदी राजनीति करने वाले कुछ सत्ताधीशों ने स्वर्ग में सीट रिजर्ब कराने के लिए प्रभु से संपर्क किया था। बगैर लेनदेन के स्वर्ग में भी सुनवाई नहीं होती है। और बद्दिमाग सत्ताधीश धरती की मुद्रा स्वर्ग में ला भी नहीं सकते। तो, प्रभु ने प्रपंची राजनेताओं से सत्ता में बने रहने का गुरुमंत्र सीखने का सौदा कर लिया। अब इन्हीं प्रपंची ढोंगी सत्ताधीशों और अपने सहयोगी प्रशासनिक अधिकारियों के बल पर सत्ता बचाना चाहते हैं। 

द्रष्टा- मंत्री परिषद् क्या कर रही है। मंत्री देवराज का विरोध क्यों नहीं कर  रहे हैं?

(नारायण...नारायण ब्रह्मर्षि नारद जी स्वर्ग में प्रकट हुए। देवता अपने आसनों को छोड़ खड़े हो गये और नारद जी का स्वागत किया। मैं हैरान था कि स्वर्ग में अभी भी पत्रकारों का सम्मान बरकरार है। हमारे यहां तो सत्ताधीश और वैमनस्यता के भाव में डूबी जनता दोनों पक्ष पत्रकारों को आतंकवादी, भड़वा और संस्थानों को गोदी मीडिया बोलती है। मैं भी अपने वरिष्ठ साथी नारद जी को प्रणाम किया और अपने आसन पर बैठ गया।)

नारद- किसान स्वर्ग में आने वाले रास्ते को घेर क्यों बैठे हैं देवराज? उनकी सुनवाई क्यों नहीं हो रही है?

देवराज को घूस देकर स्वर्ग में आए एक उचक्का मंत्री उचक-उचक के नारद को जबाब देने के लिए लालायित हो रहा था। 

मंत्री- आल देज आर फेक फार्मरस्? दे आर टेररिस्ट।  इट इज डीसोल्वींग द पीस आॅफ अवर सीटीस् पीपूल। 

द्रष्टा- मंत्री जी, आप कह रहे हैं कि ये सभी नकली किसान और आतंकवादी हैं और आपके शहर की शान्ति भंग कर रहे हैं।  आप आन्दोलनकारियों के खिलाफ ऐसी वाहियात बात किस आधार पर कह रहे हैं। 

दूसरा मंत्री- लगता है द्रष्टा, ‘‘आप न्यूज चैनल नहीं देख रहे हैं। आपकी जानकारी में बता दूं कि ये ब्रांडेड जींस कपड़े पहनते है और महंगी गाड़ियॉं और सुख सुविधाओं का अम्बार है। आप ही बताओं भला किसान गरीब कैसे है’’?

द्रष्टा - मंत्री जी, आप धरती से स्वर्ग में भी आकर नहीं सुधरे। गधे तब भी थे और अब भी हो। 

(मेरा जबाब सूनकर स्वर्ग सभा में उपस्थित हरामखोर मंत्री आग बबूला हो गया और बोला,‘‘ये क्या बदतमीजी है’’?

वृहस्पति- ‘‘शांत हो जाइए मंत्री महोदय, शांत... द्रष्टा क्रिया और प्रतिक्रया को केवल अभिव्यक्त करता है। ‘एकोद्रष्टासि सर्वस्य’.... इसलिए आप सभी द्रष्टा को सूनों’’।


द्रष्टा- स्वर्ग की सभा को मालूम होना चाहिए कि आन्दोलन करने वाले पेशे से किसान और मजदूर हो सकते हैं लेकिन भिखारी नहीं हो सकते हैं। सबकी अपनी मेहनत की कमाई है वह अपना शौक पूरा कर सकते हैं। किसानों के ठाट- बाट से आपको ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। वे भ्रष्ट अफसरशाही और उनके द्वारा बनाये गये कृषि कानून को लेकर अपने भविष्य से चिन्तित है। इसलिए कृषि बिल 2020 को खत्म करने की बात कर रहे हैं। बस, केवल इतनी ही बात है। और हां मंत्री परिषद् के लोग बताइए कि ऐसा कौन सा काम आप करते हैं कि आपके खजाने की दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी होती है।

नारद- द्रष्टा सही कह रहा है देवराज, इन मंत्री साहब के दोस्त मंत्री भी जो कल तक किसानों को खलिस्तानी आतंकी और न जाने क्या-क्या बकवास कर रहे थे। मैंने देखा कि इन्हीं किसानों के लंगर में ये मंत्री लोग प्लेट चाट रहे थे।

द्रष्टा- देवराज, किसानों की मांग पूरी हो या न हो। मंत्रियों के इस करतूत को थूक के चाटना कहते हैं। देवराज इन मंत्रियों और नौकरशाहों के प्रपंच में 65 दिनों से धरनारत 160 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है और अब वे सभी एक-एक कर स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। अमीर-गरीब का भेदभाव इन सुविधाभोगी मंत्रियों में मरने के बाद भी विद्यमान है। किसानों के पसीने से इन हरामखोर मंत्रियों को बदबू आती है। ये मंत्री धरती से स्वर्ग में आने वाले दरवाजे को किसानों के लिए बंद कर दिये हैं। जीते जी किसान, धरती के भोग -विलास में डूबे नागरिकों की समस्या हैं और मरने के बाद स्वर्गवासियों की समस्या बन रहे हैं।

देवराज दरअसल, यही आप की भी समस्या है। आप चाहते हैं कि धरती पर जो आन्दोलन हो रहा है उसमें किसान न मरे, नहीं तो धर्मयुद्ध में मरने की वजह से किसानों को सीधा स्वर्ग में जगह प्राप्त होगा। किसानों के साथ न्याय कैसे और कब होगा? वे अपने अस्तित्व की रक्षा कर पायेंगे कि नहीं? यह प्रश्न न पूछकर आप किसान आन्दोलन खत्म कब होगा? यह पूछ रहे हैंं। 

इंद्राणी- सही पकड़े हैं। इन्होंने असली-नकली किसान परखने के चक्कर में घनघोर बारिश कर दी थी। कुछ किसान स्वर्ग में शहीद होकर और आ गये हैं। किसानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 

द्रष्टा- देवराज, अब किसान और सरकार के बीच रण भीषण होगा। सत्ताधीशों के चक्रव्यूह में किसान नेता फंस चुके हैं। किसान आन्दोलन अपने चरम पर है। किसानों ने लठ्ठ गाड़ दी है। देखा जाय तो, किसानों को झूकाना सरकार के बलबूते का नहीं हैं। सभा को मैं बताना चाहता हॅूं कि यह नौबत स्वर्ग में आये इससे पहले देवराज को मेरी सलाह है कि ‘‘वे चापलूसी पसंद और प्रपंची मंत्रियों को पदमुक्त कर दें। किसानों को हृदय से स्वीकार करें।’’ 

(सभा में देवगण और गुरु वृहस्पति देवराज को समझाने में लग गये और मैंने स्वर्ग सभा को प्रणाम किया और अपने घर लौट आया।)

...............(व्याकरण की त्रुटिपूर्ण दोष के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

drashtainfo@gmail.com

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Thursday, 28 January 2021

किसान क्रान्ति: सत्ता के चक्रव्यूह में किसान नेता और षड्यंत्र में फंसा आन्दोलन

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 

लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो ,कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

देश के किसानों के साथ धोखा है, अत्याचार है। बीजेपी के विधायक 300 लोगों के साथ लाठियों डंडों के साथ मौजूद हैं। बीजेपी के लोग साजिश कर रहे हैं। बीजेपी किसानों को मरवाना चाहती है। ये उक्त बातें किसान नेता राकेश टिकैत ने प्रेस के सामने भावूक होकर रोते हुए कही। राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद दो किसान संगठनों ने आंदोलन खत्म करने की घोषणा की है।

भारतीय किसान यूनियन (भानु) और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने बुधवार को आंदोलन खत्म कर दिया और प्रदर्शनकारी किसान धरना स्थल से चले गए।इसके साथ ही चिल्ला बॉर्डर से किसान वापस चले गए हैं। यहां करीब 58 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा था। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने आंदोलन वपास लेने की वजह ट्रैक्टर परेड के दौरन हुई हिंसा को बताया है।

किसान नेता राकेश टिकैत

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‘द्रष्टा’ देख रहा है कि देश के किसान और मजदूर आर्थिक तंगी और बदहाली से लाखों किसान बेमौत मारे गये। कृषि कानून 2020 आर्थिक गुलामी की तरफ झोंक देगा इस आशंका से आन्दोलन कर रहे हैं। मीडिया उन्हें आतंकी व असली-नकली किसान बताकर भेद पैदा करने में कामयाब रहा है। देश के लोग जरा भी भावूक नहीं हो रहे। लाल किले पर किसानों के बीच कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की तो , कुछ लोगों की भावनाएं आहत होने लगी। टीवी और फिल्में देखकर रोने-धोने वाले दर्शकों और साम दाम, दंड, भेद के सहारे सत्ता निर्णय लेगी क्या? या मेहनतकश किसानों के खुशहाली के लिए निर्णय लेगी। 

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गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड सुखदायक और ऐतिहासिक होने वाला था। लेकिन परेड में घात लगाकर पहले से ही मौजूद अराजक तत्वों ने किसानों को गुमराह कर दिया। पुलिस की गुनाहगारों के प्रति नरमी और किसान नेताओं के प्रति सख्ती ने ट्रैक्टर परेड को हिंसक बना दिया। अब इसी हिंसक घटना के सहारे सरकार किसान आन्दोलन को नाकाम बताकर खत्म करवाना चाहती है। साल भर पहले नागरिकता कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को भी रक्त रंजित करवाकर खत्म करवाया गया था। देश के नागरिकों के लिए यह सब मनोरंजन की घटनाएं हैं या उन्हें भूलने की बीमारी। सत्ता ने जो उनकी आँखें बंद कर रखी है वह कब खुलेंगी? यह भी प्रश्न समय पर छोड़ते हैं। 



26 जनवरी से सरकार का पक्ष रखने वाली मीडिया अपने दर्शकों को यह समझाने में कामयाब रही कि किसान गलत हैं। किसान नेताओं ने भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गलती स्वीकार की। किसान नेता शायद ये भूल गये कि सत्ता में बैठे नेताओं ने अपनी बड़ी से बड़ी गलती कभी भी स्वीकार नहीं की। पूलवामा हमले में मारे गये जवानों की साजिश पर मौन रहने वाली जनता 26 जनवरी की घटना पर आक्रोशित हो गई। सत्ताधीशों के दरबारी मीडिया में रात-दिन किसानों को गलत ठहरा कर समाचार प्रस्तुत किया। और इस तरह मीडिया के माध्यम से अपने विचार बनाने वाली आमजनता और किसान नेता सत्ता की साजिशों का शिकार हो गयी। 

गण और तंत्र का शक्ति प्रदर्शन

किसान क्रान्ति के बीच गणतंत्र दिवस का महत्व अधिक बढ़ जाता है। आज गण और तंत्र का ऐतिहासिक टकराव हुआ। किसानों का आक्रोश पुलिस जवानों पर कहर ढा रहा था। किसानों ने अपने रास्तों के पत्थरों और बैरिकेटिग को तोड़ दिया। एहतियातन पुलिस प्रशासन और किसान नेताओं ने जो ऐलान किया था उसकी मर्यादा दोनों ओर से टूटी। किसानों ने अनुशासन में बंधे अपने ही जवानों पर आक्रामकता दिखाई। पुलिस के जवान कहीं भीड़ गये तो, कहीं पीछे हट गये। भूखे प्यासे जवानों को पानी और भोजन खिलाने वाले किसानों का यह तांडव देख कर सरकार सकते में है। जाहिर है किसानों की जज्बाती आक्रामकता का भय उन्हें नहीं होगा परन्तु कुर्सी का भय अवश्य सता रहा होगा। ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाने वाला कृषि कानून 2020 को रद्द करें या रोक के रखें, सत्ताधीश इसी ऊहापोह की स्थिति में हैं।


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पाण्डव नगर थाने के जवानों ने एनएच 24 के मण्डावली फूटब्रीज पर बैरिकेटिंग कर मोर्चा संभाल रखा था। डीटीसी की बसों व ट्रकों को रास्ते से हटाने के लिए किसानों ने तोड़फोड़ कर दी। इस घटना से पार पाते इससे पहले पूलिस के जवान आन्दोलित किसानों से घिर चुके थे। महिला पुलिसकर्मी किसानों के आगे बेबस लाचार दिख रही थी। इसके बावजूद वे डटी रहीं और अपने साथियों की मदद करती रहीं। किसानों का जत्था सत्ता की चुनौति को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ गये। ऐसी क्रान्तियां नई पीढ़ी को सबक सीखाने के लिए काफी हैं बशर्ते उनका स्पष्ट मन और मत हो। पक्षपाती विचारधारा वाले सबक नहीं सीख सकते है। कोई नई पीढ़ी को सिखाए इससे अच्छा है स्वयं में जिज्ञासु प्रवृत्ति पैदा करें व सीखें। 

सरकार वह सभी संशाधनों को अपने हाथों में रखना चाहती है जो नागरिकों को मौलिक अधिकार कर्तव्य पूरा करने के लिए मिले हैं। सत्ताधीशों को सत्ता जाने का भय सताने लगा है। प्रेस सूचनाओं पर नियंत्रण इस बात का स्पष्ट संकेत है। इलेक्ट्रानिक मीडिया को ध्वस्त करने के लिए इंटरनेट सेवा आज के दिन ठप कर दी गयी। संविधान व उपभोक्ता कानूनों की धज्जियां उड़ाकर प्रशासन ने रख दी है। प्रभावित नागरिक यदि कोर्ट चले गये तो, इसका दण्ड भी सरकार को भुगतना पड़ेगा। 

‘द्रष्टा’ आन्दोलन के महतवपूर्ण घटनाओं को एकटक होकर देख रहा है। आन्दोलन के साथ ऐसी नाइंसाफी सत्ता ने कई बार की है। अब चक्रव्यूह में किसान नेता फंसे है और षड्यंत्र में फंसा है किसान आन्दोलन। देश के नौजवानों के लिए सबक बनने वाले इस आन्दोलन की परिणति क्या होगी? इस प्रश्न को समय पर छोड़ देते हैं।


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Saturday, 23 January 2021

किसान क्रान्ति: सरकार के हितकारी कानून को किसानों ने क्यों नहीं स्वीकार किया?

रविकांत सिंह 'द्रष्टा' 
‘लोकसम्मति के बगैर कानून सफल नहीं हो सकता है। कानून की अपनी मर्यादा होती है। वह स्वत: खड़ा नहीं हो सकता है। कानून अधिकार दे सकता है, अवसर दे सकता है लेकिन वह साधारण नागरिकों तक नहीं पहुंच सकता। वह कभी भी प्रेरणादायि नहीं हो सकता अगर सामान्य नागरिक के अभिमत का अधिष्ठान उसे प्राप्त न हो।’’


- सत्ताधीश व्यवहारिक कानून न बनाकर नागरिकों के शोषण और पूॅजीपतियों को लाभान्वित करने की नियत वाला कानून क्यों बनाना चाहते हैं? सत्ता से इस प्रश्न के जबाब पूछने की आवश्यकता है।

आमसहमति के बगैर बनने वाले कानूनों का सत्ता और नागरिकों के लिए क्रियान्वयन कितना दुखदायक होता है इसे देश समझ रहा है। एक तरफ सत्ता सरकारी योजनाओं को प्रत्येक नागरिकों तक पहुंचाने के लिए बनी संस्थाओं के अधिकारों का हनन कर रही है तो, दूसरी तरफ योजनाओं का लॉलीपॉप दिखाकर सत्ता नागरिकों को उलझा रही है। सीएए और एनआरसी पहले से ही विवादों में उलझा है। देश के जागरुक नागरिक इस सीएए कानून को संविधान का उलंघन करने वाला कानून मान रहे हंै। जो भारतीय नागरिकों के अधिकारों व उनके स्वाभिमान का गला घोंट रहा है।



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आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसु) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की असम की यात्रा से ठीक पहले अपनी मांगों के समर्थन में 22 जनवरी को मशाल जुलूस निकाला। साथ ही, आसु ने 24 जनवरी को शाह की यात्रा के दौरान सीएए की प्रतियां जला कर काला दिवस मनाने की घोषणा की है। आसु पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिनियम रद्द करने और असम संधि की धारा छह पर समिति की रिपोर्ट का क्रियान्वयन करने के भी पक्ष में है। यह धारा मूल निवासियों के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण करती है।", 

के.एन. गोविन्दाचार्य

इस विवादित कानूनों से नागरिक झुलस रहे थे कि इसी बीच कृषि कानून 2020 देश की 90 फीसदी आबादी की रोजी-रोजगार को हड़पने के लिए बना दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के नेता व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से ताल्लुक रखने वाले चिन्तक व विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य ने ‘द्रष्टा’ को बताया कि किसानों का विश्वास पुन: अर्जित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारण्टी कानून बनाने की केंद्र सरकार घोषणा करे। किसानों के आंदोलन को लगभग दो महीने होने आए हैं। हजारों किसान 58 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। लगभग 150 किसानों का दिल्ली सीमा पर बलिदान हो चुका है। अब तक आंदोलन में सहभागी किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 11 बार बातचीत हो चुकी है। किसानों और केंद्र सरकार के बीच आपसी अविश्वास के कारण अब तक की बातचीत बेनतीजा रहीं हैं।

गोविन्दाचार्य ने कहा कि किसान संगठनों की दो प्रमुख मांगें हैं। पहला- केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी कानून बनाए और दूसरा नये बनाए तीन कृषि कानूनों को केन्द्र सरकार वापस ले। 20 जनवरीको किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच हुई बातचीत में सरकार ने इन विषयों में दो प्रस्ताव किसान संगठनों के सामने रखे हैं।  पहली न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विचार के लिए केंद्र सरकार एक 11 सदस्यों की समिति बनाने के लिए तैयार है और दूसरी मांग के लिए अगले डेढ़ या दो वर्ष तक केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों को स्थगित रखने को तैयार है। 

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‘द्रष्टा’ से उन्होंने कहा कि किसानों में केंद्र सरकार के प्रति इतना अविश्वास व्याप्त है कि इन दोनों प्रस्तावों को वे आंदोलन को भटकाने या भरमाने की चालबाजी मान रहें हैं। सरकारों ने अबतक किसानों के अनेक आंदोलनों को इसी प्रकार के आश्वासन देकर तोड़ा है। बाद में सरकारें अपने वादे से मुकर जाती है या उसे एक और समिति के हवाले करके अंतहीन प्रक्रिया बना देती है। दोनों में से एक भी मांग को मनाए बिना अगर किसान संगठनों के नेता केंद्र सरकार के उपरोक्त दोनों प्रस्तावों को मान कर आंदोलन स्थगित कर देते हैं तो उनकी साख संदेह के घेरे में आ सकती है। उस कारण फिर नजदीक भविष्य में किसानों का प्रभावी आंदोलन खड़ा करना कठिन हो जाएगा। केंद्र सरकार को इस प्रकार से किसान संगठनों और उनके नेताओं को संकट में नहीं फंसाना चाहिए।

इसमें सबसे बेहतर मार्ग है कि केंद्र सरकार किसानों की जायज मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी का कानून बनाने की घोषणा करके किसानों का विश्वास पुन: अर्जित कर ले। इसी प्रकार तीन कृषि कानूनों पर पुनर्विचार के लिए एक समिति बनाए। उस समिति के निर्णय तक तीन कृषि कानूनों को स्थगित कर दे। ऐसा करने से केंद्र सरकार के प्रति किसानों में व्याप्त अविश्वास भी दूर होगा, किसान नेताओ की साख पर भी प्रश्न नहीं लगेगा और अभी चल रहे आंदोलन को स्थगित करने का मार्ग निकल सकेगा।

गोविन्दाचार्य जी की सुझाव पर सरकार कितना ध्यान देती है। इसे समय तय करेगा। सत्ताधीश व्यवहारिक कानून न बनाकर नागरिकों के शोषण और कुछ पूॅजीपतियों को लाभान्वित करने की नियत वाला कानून क्यों बनाना चाहते हैं? सत्ता से इस प्रश्न के जबाब पूछने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अपने प्रश्नों की पोटली दुनिया के सामने खोल दी है। कमेटी ने किसानों से 20 सवाल पूछ हैं और एमएसपी से एपीएमसी तक किसानों की समझ को परख रही है। समिति के वेबपेज पर मौजूद फीडबैक फॉर्म में 20 सवाल हैं, जिन्हें 5 खंडों में बांटा गया है।

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द्रष्टा का मानना है कि ‘‘लोकसम्मति के बगैर कानून सफल नहीं हो सकता है। कानून की अपनी मर्यादा होती है। वह स्वत: खड़ा नहीं हो सकता है। कानून अधिकार दे सकता है, अवसर दे सकता है लेकिन वह साधारण नागरिकों तक नहीं पहुंच सकता। वह कभी भी प्रेरणादायि नहीं हो सकता अगर सामान्य नागरिक के अभिमत का अधिष्ठान उसे प्राप्त न हो।’’ अब द्रष्टा कमेटी के एक-एक प्रश्नों व किसानों के उत्तर पर दृष्टि जमाए है। सरकार अब तक किसानों के लिए हितकारी कानून साबित करने में जुटी है लेकिन किसानों ने इसे नकार दिया है। सरकार को कानून बनाते समय किसान नेताओं और ग्राम पंचायतों से राय नहीं ली। 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च गणतंत्र परेड का डर सरकार को दिखने लगा तो, किसानों की हर बात को कान घूमाकर कबूल करने लगी। सत्ताधीशों का दम्भ अब भी कायम है। लेकिन किसान सत्तामद के इस दम्भ को निगल जायेंगे। 


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